Jun 4, 2011

बाबा रामदेव के रंग हजार


बाबा रामदेव अपनी सवारी बदलते रहे हैं और सफल भी रहे हैं। एक दशक पहले साइकिल पर सवार होकर भजन-कीर्तन गाने वाले बाबा ने ‘योग’ की सवारी की। वे देश-दुनिया के योग गुरु हो गए। अब वे एक बार फिर नई सवारी की ओर व्यग्रतापूर्ण ढंग से मुखातिब हैं। इस बार वे राजनीति की सवारी कर ‘सत्ता’  तक पहुंचना चाहते हैं। लेकिन बाबा की अब तक की यात्रा में कुछ ऐसे पड़ाव भी हैं जो उनकी धवल  छवि को कठघरे में खड़ा करते हैं....

अहसान अंसारी

मजदूरों का शोषण,दवाओं में मिलावट,अपनी सुरक्षा के लिए गलत बयानी और रेवेन्यू चोरी तो बाबा रामदेव मामले में  पुरानी बात हो गई है। नई बात यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग-ए-ऐलान करते हुए अनशन पर जाने की जिद करने वाले बाबा ने हरिद्वार के निकट एक ग्राम सभा की जमीन पर कब्जा जमाया है। स्कॉटलैंड में टापू खरीदने वाले एक संन्यासी को ग्रामसभा की जमीन कब्जाने की जरूरत क्यों पड़ गई यह एक बड़ा सवाल है.

बाबा रामदेव की छवि के भीतर कई छवियां हैं। निदा फाजली के अंदाज में कहें तो-‘हर आदमी के भीतर होते हैं दो-चार आदमी’। एक वो चेहरा जो दिखाई देता है यानी योग गुरु का-संन्यासी के लिबास में। लेकिन यह अधूरा सच है। पूरा सच यह है कि बाबा के भीतर वो तत्व भी छिपा है जिसका वे निरंतर विरोध करते हैं। मसलन भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर अलख जगाने और अब आमरण अनशन करने जा रहे बाबा और उनके सहयोगियों ने ऐसे कई कारनामों को अंजाम दिया है जो भ्रष्टाचार की परिधि में ही आते हैं।

ताजा मामला हरिद्वार के निकट औरंगाबाद में ग्रामसभा की जमीन कब्जाने का है। यहां वे भू-माफिया की भूमिका में हैं। लेकिन यह बात उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़ी जा रही जंग में दब कर रह गईं। इस पर कहीं कोई चर्चा नहीं है। मजदूरों का शोषण,दवाओं में जानवरों की हड्डियां मिलाना, कर चोरी जैसे न जाने कितने ही मामलों के बाद अब बाबा के खिलाफ एक और नया मामला सामने आया है। मामला पैसे और पहुंच की धमक से ग्रामसभा की भूमि पर कब्जा करने का है। बात तब सामने आयी जब पिछले दिनों उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’द्वारा चलाये जा रहे बहुद्देशीय शिविर में इस कब्जे की शिकायत की गयी।

चरण सिंह नाम के एक व्यक्ति ने कहा कि हरिद्वार के निकट औरंगाबाद में योग ग्राम की स्थापना के दौरान रामदेव के पतंजलि ट्रस्ट ने कुछ जमीन तो वहां के काश्तकारों से खरीदी,लेकिन खरीदी गयी जमीन से कहीं ज्यादा भूमि पर (लगभग 42 बीघा) ट्रस्ट ने कब्जा जमा लिया। शिकायत के बाद जब हरिद्वार के उपजिलाधिकारी हरवीर सिंह और तहसीलदार पूर्ण सिंह की अगुवाई में जांच टीम ने उस जगह का निरीक्षण किया तो कब्जे का मामला सच निकला। यहां बाबा के ट्रस्ट का बड़े-बड़े बाड़ लगाकर सिर्फ जमीन ही नहीं नदी में भी पक्की दीवार बनवाकर कब्जा पाया गया। प्रशासन ने तत्काल ही वहां चल रहे सभी निर्माण कार्य रुकवा दिये।

बाद में पतंजलि योग पीठ ट्रस्ट ने मामले की नजाकत को समझते हुए अपनी गलती स्वीकार कर जिलाधिकारी के समक्ष एक निवेदन किया। निवेदन में इस आशय को स्पष्ट किया गया कि पतंजलि ट्रस्ट ने जितनी जमीन पर कब्जा कर रखा है दूसरी तरफ स्थित उतनी ही जमीन वह ग्रामसभा को देने को तैयार है। उसने यह भी कहा कि उक्त जमीन खेती योग्य है और ग्रामसभा की अन्य भूमि के साथ है। लिहाजा जमीन की अदला-बदली कर ली जाये। रामदेव अब सिर्फ योग गुरु नहीं रह गये हैं। आयुर्वेदिक औषधि से लेकर सत्तू तक बाबा द्वारा स्थापित फैक्ट्रियों में बनाया जाता है। जो बाजार में अच्छे दामों में बेचा जाता है।

हमने कोई कब्जा नहीं किया है। औरंगाबाद में योगग्राम के लिए हमने कई वर्ष पहले जमीन खरीदी थी। हम ग्रामसभा की जमीन से अपनी जमीन का बदला भी करने को तैयार हैं,और अधिक मैं कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि जो ‘दि संडे पोस्ट’को लिखना है वह लिखेगा ही।
आचार्य बालकृष्ण,महामंत्री पतंजलि ट्रस्ट रामदेव
हमारी टीम राजस्व विभाग की भूमि पर कब्जा के संबंध में जांच करने के लिए औरंगाबाद गई थी जिसमें 43बीघा भूमि पर तत्काल ही कब्जा हटा दिया गया था,बाकी 43बीघे भूमि के संबंध में जिलाधिकारी महोदय को जांच रिपोर्ट प्रेषित की जा चुकी है।हरवीर सिंह, उपजिलाधिकारी, हरिद्वार

 
हाल ही में बाबा ने एक अंग्रेजी अखबार को दिये गये साक्षात्कार में बताया कि वर्ष 1995से स्थापित उनके ट्रस्ट के पास वर्तमान में लगभग एक हजार एक सौ करोड़ की संपत्ति है। अगस्त 2009 में ‘दि संडे पोस्ट’के टॉक-ऑन टेबल कार्यक्रम में बाबा रामदेव ने अपनी संपत्ति 775करोड़ बताई थी। तकरीबन पौने दो साल में बाबा की संपत्ति में चार सौ करोड़ की बढ़ोतरी हुई। करोड़ों की संपत्ति के मालिक होने के बाद भी जब बाबा और उनका ट्रस्ट सरकार को चूना लगाने से पीछे नहीं हटता तो ये समझना आम इंसान की सोच से परे है कि वही बाबा बार-बार किस भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए विश्व का सबसे बड़ा सत्याग्रह आंदोलन शुरू करने जा रहे हैं।

उनकी नई जंग की तह में जाएं तो जो संकेत उभरते हैं उसका सार तत्व यही है कि संन्यासी के परिधान को धारण किये काया के भीतर सियासी महत्वाकांक्षाएं उछाल मारती हैं। सियासत माने सत्ता मोह। वह सत्ता पाने का ही मोह है जो उनको राजनीति की राह पर चलने के लिए बाध्य करता है। वे राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी बनाते हैं। 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान भी करते हैं। यहां तक कि जंतर-मंतर से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई शुरू कर नायक बनने वाले अन्ना हजारे उनको रास नहीं आते उनको लगता है कि अन्ना ने उनके मुद्दों को हाईजेक कर लिया। अन्ना से उनका मतभेद अब ज्यादा साफ हुआ है जब उन्होंने बयान दिया कि जनलोकपाल विधेयक के दायरे में प्रधानमंत्री नहीं आने चाहिए।

दरअसल,इस बयान के पीछे भी सियासी गलियारों में कई तरह की सरगोशियां चल रही हैं। अटकलें हैं कि बाबा का सुर बदल गया है। कुछ हफ्ते पहले तक कांग्रेस और उसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रति आग उगलने वाले बाबा को कांग्रेस ने साध लिया है। बहुत संभव है दोनों के बीच ‘सेटिंग’ हो गयी है। अब बाबा को सोनिया और मनमोहन सिंह नेक और गरिमामय प्रतीत होने लगे हैं। कल तक दिल्ली में बाबा को शिविर के लिए जगह तक मुहैया नहीं कराने वाली कांग्रेस सरकार ने भी रामलीला मैदान में योग शिविर के लिये शर्तपूर्ण अनुमति दे दी। इस पूरी प्रक्रिया में लोकपाल विधेयक को लेकर जिस तरह से बाबा ने स्टंड बदला है उससे अन्ना की टीम सकते में है। वो इसे सत्ता की चाल मान रही है जो अन्ना-रामदेव के बीच मोटी विभाजक रेखा खींचने में कामयाब रही है।

क्या यह महज संयोग है कि जिन चीजों को मुद्दा बनाकर बाबा रामदेव विरोध करते हैं,व्यक्तिगत जीवन में वे उसके पोषक हैं। मसलन बाबा शोषण के खिलाफ हैं। मानवीयता की बात करते हैं। मगर अपने दिव्य फार्मेसी से मजदूरों को इसलिए निकाल देते हैं क्योंकि वो वाजिब हक की मांग कर रहे थे। वे कोका कोला में मिलावट की बात करते हैं। लेकिन उनकी दवाइयों में भी आपत्ति जनक मिलावट है। जानवरों की हड्डियों से लेकर मानव खोपड़ी तक मिलायी जाती। कांग्रेस में परिवारवाद का विरोध करते हैं मगर उन्होंने अपने आश्रम में भाई-भतीजावाद का ऐसा माहौल रचा कि उनके सहयोगी आचार्य कर्मवीर आजिज आकर पलायन कर गए।

गुरु-शिष्य परंपरा पर ढेरों प्रवचन दिए। लेकिन खुद अपने गुरु-स्वामी शंकरदेव का दुख नहीं दूर कर पाए। उनको इलाज तक के लिए पैसे नहीं दिए। जिस भ्रष्टाचार की पूंछ पकड़कर वे सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं,उससे अछूते वह खुद भी नहीं हैं। पहले रेवन्यू की चोरी और अब ग्रामसभा की जमीन पर कब्जा। ये सब बाबा का अंतर्विरोध नहीं अलबत्ता वह सच है जो यह साबित करता है कि बाबा के रंग हजार हैं और इनमें सबसे गहरा रंग उसका है जिसे ‘राजनीति’ कहते हैं। अब पाठक ही तय करें कि बाबा की बहुत सारी छवियों में कौन सी छवि सच है।



(अहसान अंसारी हिंदी साप्ताहिक ' द सन्डे पोस्ट' से जुड़े हुए हैं और खोजी पत्रकार हैं. उनकी यह रिपोर्ट द सन्डे पोस्ट से साभार यहाँ प्रकाशित की जा रही है. रिपोर्ट की  दूसरी किस्त जनज्वार शीघ्र ही प्रकाशित करेगा.)



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