Jul 18, 2011

हरियाणा से लौटे दर्जनभर मजदूरों की मौत



उत्तर प्रदेश के सोनभद्रसे काम की तलाश में हरियाणा गए दर्जनों मजदूर अपने शरीर में मौत लेकर लौटें हैं.इनमें से करीब एक दर्जन से भी ज्यादा मजदूरों की विगत एक वर्ष में टीबी से मौत हो चुकी है और दो दर्जन से भी ज्यादा टीबी की बीमारी से ग्रसित है।यह जानकारी जन संघर्ष मोर्चा के जांच दल ने प्रेस को दी। गौरतलब है कि सोनभद्र के चोपन ब्लाक के कोन क्षेत्र के गिधिया गांव सैकड़ों मजदूर हरियाणा के फरीदाबाद जिले में पाली पहाड़ पर पत्थर खदान और क्रशर में काम करने पिछले वर्ष काम करने गए थे।

बारह घंटे के काम की मजदूरी इन मजदूरों को सौ रूप्ए प्रतिदिन के हिसाब से मिलती थी। काम के दौरान ही इन मजदूरों के सीने में दर्द,बुखार और खांसी की शिकायत होने पर खदान मालिक ने इन मजदूरों को वापस भेज दिया। यहां वापस आने पर इन मजदूरों ने जांच करायी तो टीबी निकला। इनमें से करीब दर्जनभर से ज्यादा मजदूरों की दवा के अभाव में अब तक मौत हो चुकी है।

मरने वाले मजदूरों में बीरबल चेरो पुत्र रूपचंद उम्र 18वर्ष,संजय कुमार गोड़ पुत्र बसंत 30वर्ष, उदय कुमार पुत्र बसंत 25 वर्ष, अजय कुमार कलवार पुत्र मिश्रीलाल 30 वर्ष, शिवभजन गोड़ पुत्र रामलाल उम्र 42 वर्ष, जोगेन्द्रर चेरो पुत्र मुन्नीलाल उम्र 28 वर्ष, जयनाथ गोड़ पुत्र करीमन उम्र 35 वर्ष, जगरनाथ गोड़ पुत्र करीमन उम्र 25 वर्ष, धनेश्वर चेरो पुत्र बरसावन उम्र 28 वर्ष, देवकुमार चेरो पुत्र रामभरोस उम्र 25 वर्ष, भगवान दास चेरो पुत्र बुटाई उम्र 45 वर्ष, रामविचार चेरो पुत्र श्री 22 वर्ष, सुनरदेव चेरो पुत्र श्री 20 वर्ष, शिवप्रसाद चेरो पुत्र विश्वनाथ उम्र 45 वर्ष, कृपाशंकर चेरो पुत्र बैजनाथ उम्र 20 वर्ष है।

इसी प्रकार गांव में करीब दो दर्जन से ज्यादा मजदूर अभी भी टीबी के मरीज है। जिसमें से आनंद गोड़, देवकुमार गोड, मंगरू चेरों, नागेष्वर गोड़, संजय कुमार गोड़, अक्षय कुमार गोड़, राजकुमार गोड़, अशोक चेरो, कुन्त बिहारी गोड़, प्रमोद कलवार, मोहनदास चेरो, सुखराज, आषीष कलवार, गोपी चेरो, रामधनी चेरो, इन्द्रदेव गोड़, संजय गोड़, विद्यानाथ गोड़ की हालत तो बेहद गम्भीर है। जसमों जांच दल को ग्रामीणों ने बताया कि चोपन ब्लाक के 23 ग्रामसभाओं वाले इस कोन क्षेत्र में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है जिसमें आयुर्वेदिक के एक डाक्टर नियुक्त है वह भी आमतौर पर केन्द्र पर नहीं रहते परिणामतःह दवा के लिए हमें झारखण्ड़ के नगरउटांरी में जाना पड़ता है और यहां इलाज कराना इतना महंगा पड़ता है कि हम लोग इलाज नहीं करा पाते।

ग्रामीणों ने बताया कि गाँव में मनरेगा में यदि हमें साल में सौ दिन काम मिलता तो हमें हरियाणा में काम के लिए गांव से पलायन करने की जरूरत ही न पड़ती लेकिन यहां तो स्थिति यह है कि काम तो मिलता नहीं और जो काम हम करते भी है उसकी भी मजदूरी सालों बकाया रहती है। ग्रामीणों ने उदाहरण देते हुए बताया कि वर्ष 2006में ब्लाक द्वारा बंधी का निर्माण कराया गया पर आज तक उसकी मजदूरी नहीं मिली।

इसी प्रकार विगत वर्ष ग्रामसभा के परसहीया और चिवटहीया टोला में आरईएस विभाग द्वारा कराए गए खंडजा निर्माण,पीडब्लूडी द्वारा बनवायी गयी सड़क और वनविभाग द्वारा खोदवाएं गए ट्रेच व गड्डों की मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है। इसलिए अपने परिवार के जीवनयापन के लिए मजबूरी में हमें पलायन करना पड़ता है। काम की तलाश में हम हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र जाते है। जहां पर काम करन से हमें बीमारी मिलती है।

जन संघर्ष मोर्चा के जिलाध्यक्ष और गांव के प्रधान सोहराब ने बताया कि इस क्षेत्र के अस्पताल में डाक्टरों की समुचित व्यवस्था और ग्रामीणों के इलाज के लिए हमने बार-बार पत्रक दिए,मजदूरों का पलायन न हो इसके लिए मनरेगा में काम और बकाया मजदूरी के भुगतान के संदर्भ में आंदोलन किया गया पर प्रशासनिक अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेगी। जांच दल का नेतृत्व करते हुए जन संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता दिनकर कपूर ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलायी जा रही सचल चिकित्सा दल योजना इस जनपद में हाथी का दिखाने वाला दांत साबित हो रही है।

इस जिले के लिए दी गयी सचल चिकित्सा दल की गाड़ियां शहरों में धूमते हुए सरकार का प्रचार करते तो मिल जायेगी लेकिन कोन,भाठ जैसे सदूर इलाकों में जहां इसकी सर्वाधिक आवश्यकता आदिवासियों और ग्रामीणों को है वहां इसका दर्शन तक दुर्लभ है। उन्होनें कहा कि इस इलाके के बसपा और सपा के चुने गए विधायक और सांसद ने अपनी भूमिका अदा नहीं कि अन्यथा न तो इस इलाके के  लोगों को काम की तलाष में पलायन करना पड़ता और न ही उन्हे दवा के अभाव में दम तोड़ना पड़ता। जन संघर्ष मोर्चा ग्रामीणों और आदिवासी नौजवानों की मौत के इस मामले को राजनीतिक मुद्दा बनायेगा और मानवाधिकार आयोग को पत्र भेजा जायेगा।

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