बच्चे सुबह जागे और पिता को पास में नहीं पाया तो बाहर निकलकर चिल्लाने लगे। गांव वालों के सहयोग से जब सुरेश को ढूंढ़ा गया तो उसकी लाश अपने ही दो बीघा बन्धक बने बंजर खेत में पायी गयी...
आशीष सागर
बांदा जिला के फतेहगंज थाना के बघेला बारी गांव में 18 जून को 42 वर्षीय किसान सुरेश यादव की कई दिनों से भूखे रहने और टीबी की लंबी बीमारी के कारण मौत हो गयी। उनकी मौत के बाद अब उनके तीन बच्चे अनाथों की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। बच्चों की सबसे बड़ी आसरा कही जाने वाली मां का साया तीन साल पहले 2008 में ही उठ गया था, जब सुरेश अपनी पत्नी सरस्वती के केंसर का ईलाज दो बीघा जमीन बेचकर भी नहीं करा सके थे और उनकी की मौत हो गयी थी।
छिन गया बचपन : जीवन की कठिन डगर |
पत्नी की असामयिक मौत ने सुरेश की समस्याएं और बढ़ा दीं,जिसके कारण वह लंबे समय से निराश थे और बच्चों पर खुद को भार मान रहे थे। बिटिया संगीता की बढ़ती हुयी उम्र के साथ उसके ब्याह की चिन्ता और विकास, अन्तिमा के भविष्य की ऊहा-पोह में पिसते हुए 18 जून को अपने ही खेत पर खून की उल्टियों के साथ सुरेश इस दुनिया से चले गये। जब बच्चे सुबह जागे और पिता को पास में नहीं पाया तो बाहर निकलकर चिल्लाने लगे। गांव वालों के सहयोग से जब सुरेश को ढूंढ़ा गया तो उसकी लाश अपने ही दो बीघा बन्धक बने बंजर खेत में पायी गयी।
अब परिवार का सारा जिम्मा सुरेश यादव के सबसे बड़े बेटे 14वर्षीय नाबालिग विकास यादव पर है, जिसने इसी साल दसवीं की परीक्षा पास की है। विकास बताता है कि पिता के बीमार होने के कारण उनके जीते जी भी परिवार का खर्च चलाने के लिए उसे मजदूरी करने जाना पड़ता था, जिसके कारण परीक्षा में मात्र 54 फीसदी अंक प्राप्त हुए हैं। परिवार में तंगहाली के कारण विकास की सबसे छोटी बहन अंतिमा पिछले वर्ष स्कूल छोड़ चुकी है तो बड़ी बहन संगीता मां के मरने के बाद से ही घर में चौका-बर्तन की पूरी जिम्मेदारी निभा रही है और स्कूल नहीं जाती।
पहले मां और अब पिता की मौत ने विकास से खिलंदड़ी बचपन को छीन लिया है और वह अपने हम उम्र बच्चों से बड़ा दिखता है। कुछ भी पूछने पर उसकी आंखे भर आती हैं, लेकिन वह पिता की मौत को अपने उपर हावी होने देने से लगातार जूझता है और गमछे से आंखों को पोछ कहता है, ‘घर और पढ़ने की व्यवस्था हो जाये तो बाकी का मैं संभाल लुंगा।’ एक जिम्मेदार नागरिक के गहरे अहसासों भरा विकास बताता है कि ‘मां के मरने के बाद जो बाकी दो बीघा जमीन बची थी उसे पिता ने त्रिवेणी ग्रामीण बैंक, बदौसा में 21 हजार रूपये के किसान क्रेडिट कार्ड के बदले गिरवी रख छोड़ा है।’
ग्रामीण बताते हैं,पत्नी सरस्वती की मौत के बाद से सुरेश यादव मानसिक रूप से तन्हा,अवसाद ग्रस्त और क्षय रोग से पीड़ित हो गया था। कुल चार बीघा जमीन में से दो बीघा जमीन उसने पहले ही पत्नी के इलाज में बेच दी थी और इधर बच्चों के पालन पोषण व खेती को करने के लिये सुरेश ने त्रिवेणी ग्रामीण बैंक बदौसा से 21 हजार रूपये, साहूकार से 50 हजार रूपये बतौर कर्ज ऋण लिया था। गांव वालों के मुताबिक टीबी के रोग से पीड़ित सुरेश को नरैनी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, जिला अस्पताल बांदा से नियमित रूप से डाट्स की दवायें भी उपलब्ध नहीं होती थी। परिवार की माली हालत ऐसी थी कि सुरेश के मरने के बाद विकास के पास इतना भी पैसा नहीं था कि वह अपने पिता को धर्म मुताबिक फूंकने की व्यवस्था कर पाता। गांव वालों ने आनन-फानन में सुरेश की लाश को एक चादर में लपेटकर रसिन बांध में प्रवाहित कर दिया।
मीडिया ने जब इस मुद्दे को तूल देना शुरू किया तो जनपद के तत्कालिक जिलाधिकारी कैप्टन एके द्विवेदी अपने लाव लश्कर के साथ मौके पर पहुंचे और पीड़ित परिवार के तीन अनाथ बच्चों से बातचीत की। प्रदेश की मुखिया के दिशा निर्देश के अनुसार भूख से कोई मौत न होने पाये और कोई किसान कर्ज और मर्ज से आत्महत्या न करे इस फतवे के डर से जिलाधिकारी ने तुरन्त ही विकास को बरगलाना शुरू किया और सुरेश के क्षय रोग कार्ड को मीडिया के सामने दिखाते हुये कहा कि सुरेश की मौत कर्ज से नहीं बल्कि टीबी के रोग से हुयी है।
जिलाधिकारी के साथ मौजूद अधिकारियों ने जब मृतक के घर जाने की जहमत उठायी तो मीडिया के सामने घर की हालत देख उनके भी होश फाख्ता हो गये। सबके मूंह से एक ही आवाज आयी, ऐसे में भला कैसे जलता और कैसे चलता घर का चूल्हा ?मौके नजाकत को भांपते हुए जिलाधिकारी ने तुरंत इन्दिरा आवास, पारिवारिक लाभ योजना, एक लाख रूपये मुआवजा कृषक बीमा योजना से और बीपीएल कार्ड द्वारा मुफ्त राशन का निर्देश कोटेदार को देते हुए बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी जिला प्रशासन द्वारा वहन करने की घोषणा कर दी।
विकास की छोटी बहनें अंतिमा और संगीता |
इस बीच इलाके के कुछ सामाजिक सहयोगी भी विकास की मदद के लिए सामने आये हैं,जिनमें सन्त मेरी सीनियर सेकण्डरी स्कूल के डॉ फेड्रिक डिसूजा,फादर रोनाल्ड डिसूजा, शिवप्रसाद पाठक शामिल हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि सरकार और स्वंय सेवी समूहों के विस्तृत जाल के बावजूद सुरेश यादव और उन जैसे हजारों किसानों आत्महत्याओं,भूख और बीमारियों के जबड़े में क्यों स्वाहा होते चले जा रहे हैं। क्यों विकास जैसे बच्चे अनाथ हो रहे हैं और उनका बचपन उनसे छिनता चला जा रहा है,जबकि अरबों के पैकेज की लूट में न जाने कितने लूटेरों की पीढ़ियों के लिए अकूत धन जमा होता जा रहा है। आखिरकार इन सवालों का जवाब कौन देगा ?
aisi stories kyon nahi aati hain media me...yah ek bada swal hai.
ReplyDeleteRavi Sharma
bulandshahar
बहुत मार्मिक रिपोर्ट. अगर बुन्देलखंड से ऐसी खबरे अआती रहें तो शायद सरकार जागे.
ReplyDeleteइन सवालों का जवाब कोई नहीं देगा आशीष, आपको ही ढूँढना पड़ेगा. जहाँ तक मैं जानता हूँ आप वही आशीष हैं जो कपाट नाम के एनजीओ में थे. आशीष, सबसे बुरा तो बुन्देलखंड में एनजीओ वालों ने किया है जो सरकार के बाद का भ्रष्टाचार कर रहे हैं. रिपोर्ट बहुत ही अच्छी है, साधुवाद. अगर जनज्वार यही तेवर बरक़रार रखे तो इसे पत्रकारिता के नए मानक गढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है. इसके विज्ञापन दो पत्रिकाओं में देखकर अच्छा ल
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