मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL)ने 13जुलाई को हुए मुंबई बम धमाकों की जांच पर मुंबई आतंकवाद निरोधी दस्ते के प्रमुख राकेश मारिया और उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक बृजलाल के अंर्तविरोधी बयानों पर सवाल उठाया है। पीयूसीएल ने के प्रदेश संगठन सचिव शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि एक तरफ राकेश मारिया कह रहे हैं कि मुंबई एटीएस उत्तर प्रदेश भेजी जा चुकी है,वहीं बृजलाल कह रहे हैं कि मुंबई एटीएस नहीं आई है।
पीयूसीएल के मुताबिक अगर बृजलाल कहते हैं कि मुंबई एटीएस की कोई टीम यूपी नहीं आई है और मुंबई धमाकों का यूपी कनेक्सन नहीं मिला है,तब उन्हें मुंबई आतंकवाद निरोधी दस्ते के प्रमुख मारिया द्वारा लगातार आ रहे बयानों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। क्योंकि मुंबई एटीएस के यूपी आने और उसके द्वारा युवकों से पूछताछ और उठाने की खबर लगातार छापी जा रही है और इन खबरों का आधार मुंबई एटीएस और यूपी पुलिस और खूफिया विभाग हैं।
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इसके साथ पीयूसीएल ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि वो तत्काल कथित पुलिसिया और खूफिया स्रोतों द्वारा अखबारों में सांप्रदायिक मंशा से प्लांट की जा रही खबरों पर रोक लगाए। संगठन के मुताबिक दैनिक जागरण में आजमगढ़ से छपी खबर ‘एटीएस पहुंची आजमगढ़, एक को उठाया’ की सत्यता पर सवाल उठाया है। पीयूसीएल के मसीहुद्दीन संजरी,और तारिक शफीक ने कहा कि इस खबर के माध्यम से जिले में डर व दहशत का माहौल बनाने की कोशिश की गई है। संगठन के मुताबिक हिंदी दैनिक अमर उजाला लखनऊ ने अपने १६ जुलाई के अंक में पहली लीड स्टोरी ‘‘संजरपुर के सैकड़ों मोबाइल फोन पर खूफिया निगाहें’’लगायी है,यह खबर न सिर्फ आजमगढ़ को बदनाम करने की शातिर कोशिश है बल्कि कई पहलुओं से तो हास्यास्पद भी बन गई है।
मसलन यह खबर अपने राजनीतिक और सांप्रदायिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए यहां तक कहती है ‘‘लखनऊ जेल में बद आईएम के आंतकी सलमान व तारिक कासमी से भी पूछताछ की गई है।’’ जबकि सच्चाई तो यह है कि सलमान जिसे कुछ महीनों पहले ही दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली विस्फोटों के आरोप से बरी कर दिया है और वह अब दूसरे आरोप में जयपुर की जेल में बंद है और जहां तक तारिक कासमी से पूछताछ की बात है तो उसकी सच्चाई यह है कि बकौल तारिक के ही उससे किसी ने इस मामले में पूछताछ नहीं की है। यह बात खुद तारिक कासमी से मिलकर आए उनके वकील और चर्चित मानवाधिकार नेता मो. शोएब ने इस झूठी खबर को पढ़ने के बाद पीयूसीएल की तरफ से जारी प्रेस नोट में कहा।
दरअसल कोर्ट ने यह पाया कि सलमान जिसे एटीएस ने उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर से गिरफ्तार करने का दावा किया था, के साथ पुलिस ने जिस नेपाली पासपोर्ट के बरामद होने का दावा किया था उसे वह कभी पेश नहीं कर पाई। दूसरे, पुलिस ने एक फर्जी फोटो स्टेट जिसमें सलमान की उम्र 27 साल दिखाई गई थी जबकि उसकी वास्तविक उम्र पन्द्रह साल थी को कोर्ट में पेश किया और तीसरे पुलिस ने सलमान के पास से जो सउदी अरब का हेल्थ कार्ड बरामद होने का दावा किया था वो भी फर्जी निकला।
कोर्ट ने पुलिस और एटीएस पर सलमान जैसे निर्दोष को फसाने के लिए पुलिसिया करतूतों की काफी आलोचना की और सख्त हिदायत दी कि पुलिस अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाए। यहां दिलचस्प बात है कि सलमान की गिरफ्तारी के वक्त भी मीडिया द्वारा इन्हीं झूठे सुबूतों का पुलिंदा बनाकर उसकी एक खतरनाक छवि बनाने का प्रयास किया गया था। दरअसल सलमान के सहारे पुलिस और खूफिया एक मीडिया ट्रायल कर रहे हैं कि सलमान भले ही सुबूतों के आभाव में बरी हो गया है लेकिन वह आतंकवादी है।
यह राज्य की नीति है कि वह अपने द्वारा अपने हितों के लिए पकड़े गए लोग जो न्यायालय से बरी भी हो गए हैं,उनको समाज में अस्वीकार बना दें। इसी खबर में कहा गया है कि सलमान जो की छोटी उम्र का है इसलिए उससे छोटी उम्र के लड़कों के बारे में जानकारी इकट्ठी की जा रही है के सहारे छोटी उम्र के आजमगढ़ के लड़कों पर जहां एक ओर मनोवैज्ञानिक रुप से दबाव बनाया जा रहा है। वहीं समाज के नजर में उन्हें एक संदिग्ध मुस्लिम पीढ़ी के बतौर स्थापित करने की कोशिश की जा रही है।
आजमगढ़ के मुसलमानों के खिलाफ यह ऐसी साजिश बाटला हाउस के वक्त भी की गई थी जब 16साल के साजिद को बाटला हाउस (बाटला हाउस कांड को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी वेब साइट पर फर्जी मुठभेड़ो की लिस्ट में रखा है।)फर्जी मुठभेड़ में मारकर कांग्रेस ने आजमगढ़ के बच्चों पर यह आरोप मढ़ा कि वह आतंकवादी होते हैं। इस रणनीति से फायदा यह है कि हिंदुत्वादी दिशा अख्तियार कर चुके राजनीतिक माहौल में टेरर पालिटिक्स को लंबे समय तक जिन्दा रखा जा सकता है.
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