Jun 1, 2011

जमीन के बदले जमीन ही सही पुनर्वास नीति


जनज्वार. उत्तर  प्रदेश  के इलाहबाद जिले के करछना में कचरी विद्युत संयंत्र के लिए  भूमि  अधिग्रहण किया जा रहा है. इस परियोजना से विस्थापित  होने वाले किसानों को रु. 3  लाख प्रति बीघा दिया जा रहा है. किसानों को उनकी जमीन के बदले दी जा रही ये कीमत वहां के  सर्किल रेट से तीन गुना  है. लेकिन सामाजिक कार्यकर्त्ता और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पाण्डेय का कहना है कि 'सही पुनर्वास नीति जमीन के बदले जमीन ही  है.

 आखिर रातों-रात अपना जीने कर तरीका या आजीविका का माध्यम बदल देने के लिए कौन तैयार होगा,  चाहे मुआवजा कितना  ही क्यों न हो' ?  अगर नकद से ही काम चल जाता तो सभी सरकारी अधिकारी स्वैच्छिक सेवा निवृति कर लाभ क्यों नहीं उठाते? इलाहबाद के जिलाधिकारी अलोक कुमार और मंडलायुक्त  मुकेश मेश्राम को लिखे अपने पत्र में संदीप पाण्डेय ने आगे कहा कि  जमीन के बदले सिर्फ  पैसे की अदायगी को किसानों के साथ न्याय नहीं कहा जा सकता। किसान परिवार के लिए जमीन ही उसकी जीविका व जीवन का साधन है और न्यायपूर्ण मुआवजा जमीन के बदले जमीन ही है।

इसलिए प्रसाशन को  अधिग्रहण वाले जिले में ही जमीन तलाश कर विस्थापित किसानों का पुनर्वास करना चाहिए. अगर  किसानों से ली गयी जमीन के बदले   में दी जाने वाली जमीन की गुणवत्ता में अंतर हो  तो जमीन के मूल्य के मुताबिक अधिग्रहित जमीन के अनुपात में दूसरी जगह जमीन दी जा सकती है। अगर पूरे किसान परिवार को ध्यान में रखकर निर्णय लिया जाएगा तो जमीन के बदले जमीन ही सही नीति प्रतीत होगी। हलांकि नकद मुआवजे का विकल्प,जो चाहें उनके लिए,खुला रखा जा सकता है। परन्तु इस पर परिवार की प्रमुख महिला की सहमति भी अनिवार्य होनी चाहिए।



No comments:

Post a Comment