Jun 2, 2011

सरकार को अंगूठा मत देना अन्ना ?


पहले तो राजनेताओं और भ्रष्टाचारियों ने लोकपाल बिल की मसौदा कमिटी बनाने में अड़चन डाली और अब कोशिश यह कर रहे हैं कि  ऐसा बिल बने कि जनता के शोषकों पर कोई असर न पड़े...

घनश्याम वत्स

महाभारत में प्रसंग आता है कि एकलव्य धनुर्विद्या सीखने के लिए गुरु द्रोणाचार्य के पास गया  तो गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को धनुर्विद्या सिखाने से मना कर दिया. जब एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य कि मूर्ति के सम्मुख स्वयं के अभ्यास से धनुर्विद्या में प्रवीणता हासिल कर ली तो गुरु द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षिना के बदले एकलव्य का अंगूठा मांग लिया,ताकि भविष्य में एकलव्य कभी भी राजकुमार अर्जुन को चुनौती न दे सके और राजकुमार अर्जुन विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन सके. भोला  एकलव्य इस चाल को न समझा और उसने अपना अंगूठा तुरंत काट कर गुरु द्रोणाचार्य को भेंट कर दिया .

भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ाई में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है. बस एकलव्य, अर्जुन और द्रोणाचार्य बदल गए हैं. भारत की आम जनता एकलव्य हो गयी है, तो भ्रष्टाचारी लोग राजकुमार अर्जुन बन बैठे हैं  जिनकी रक्षा गुरु  द्रोणाचार्य की भूमिका में भ्रष्ट राजनेता कर रहे हैं. वे जनता का पक्ष रख रहे प्रतिनिधियों से लोकपाल बिल में बड़ी मछलियों को बचाने के कुछ छेद चाहते हैं. वे चाहते हैं कि बिल की  मूल आत्मा  को काटकर अलग करने की बात पर अन्ना की टीम राजी हो जाये. पहले तो राजनेताओं और भ्रष्टाचारियों ने लोकपाल बिल की मसौदा कमिटी बनाने में अड़चन डाली और अब कोशिश यह कर रहे हैं की ऐसा बिल बने कि जनता के शोषकों पर कोई असर न पड़े.आखिर सरकार को लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री और सांसदों को लाने में  हर्ज क्या है ?  

जनता ने भ्रष्टाचार से त्रस्त होकर जब सरकार से भ्रष्टाचारियों पर लगाम कसने के विषय में कानून बनाने अनुरोध किया तो आजादी के बाद से ही  सरकार कोई न कोई बहाना बना कर उसे टालती रही.  जब जनता ने बिना सरकार की सहायता के "जन लोकपाल बिल" तैयार कर लिया और उसे लागू कराने के लिए अन्ना हजारे के उपवास के माध्यम से सरकार पर चौतरफा दबाव बनाया तो सरकार को जनता की बात माननी पड़ी और एक "लोकपाल बिल ड्राफ्टिंग कमेटी" का गठन किया गया. लेकिन  कुछ लोग "लोकपाल बिल ड्राफ्टिंग कमेटी" के जन प्रतिनिधियों को लगातार किसी न किसी प्रकार से निशाना बना रहे है और उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करके भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ाई की धार को कुंद करने में लगे हुए है,ताकि भ्रष्टाचारी लोगों का बोलबाला कायम रह सके.

हमें इस सत्य को स्वीकार करना पड़ेगा कि भ्रष्टाचारी, कमेटी में शामिल जन प्रतिनिधियों पर हमला करते हुए उन्हें बदनाम करने में लगे रहेंगे. दूसरा  हमें यह  स्वीकार करना पड़ेगा कि इस भ्रष्ट समाज में शत प्रतिशत भ्रष्टाचार मुक्त व्यक्ति को ढूँढना लगभग असंभव है. यदि कमेटी के किसी प्रतिनिधि ने कोई भ्रष्टाचार किया है भी तो कानून अपना काम करेगा. यदि आप सचमुच भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई के पक्षधर है तो आप उस भ्रष्टाचारी को   सजा दिलाने का काम करें  न कि सिर्फ बयानबाज़ी करके भ्रष्टाचार के विरुद्ध चल रही लड़ाई को कमज़ोर करने का.

"लोकपाल बिल"  किसी धर्म, जाति और लिंग से जुडा हुआ मुद्दा भी नहीं है इसलिए धर्म, जाति और लिंग के सवाल उठाकर कुछ राजनेता केवल मात्र अपने क्षुद्र राजनितिक स्वार्थों कि पूर्ति करते हुए केवल इसके व्यवहारिक होने में ही अडंगा डालने का काम कर रहे है. आम जनता को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि जब इतनी बड़ी और समझदार संविधान सभा द्वारा बनाए गए संविधान में कुछ परिवर्तनों की गुंजाइश रह सकती है तो यदि धर्म,जाति और लिंग के कारण "लोकपाल बिल" में किसी कारण कोई कमी रह जायेगी तो उसमे भी आवश्यकतानुसार परिवर्तन किये जा सकते है. इसलिए हमारा सारा ध्यान केवल एक व्यवहारिक और ठोस  "लोकपाल बिल"  पर होना चाहिए  न कि कहीं और.

दूसरी ओर यदि जनता की और से कमिटी में शामिल जनप्रतिनिधि अपने उद्देश्य से किंचित मात्र भी विचलित होते हैं  तो इतिहास और ये जनता जिसने इस आन्दोलन के लिए अप्रत्याशित समर्थन दिया है वह इस कमेटी के सदस्यों को कभी माफ़ नहीं करेगी. साथ ही  यह भविष्य में होने वाले जनांदोलनो के लिए भी घातक होगा.

ऐसे में  जनप्रतिनिधियों का  एकमात्र कर्तव्य बन जाता है कि वे अपने ऊपर लगने वाले हर आरोप का समुचित और सटीक उत्तर दें  और व्यर्थ कि बातों में न उलझकर अपनी एकाग्रता को बनाए रखे.  उन्हें  चाहिए कि  वे किसी भी प्रकार के दबाव में आए बिना निष्पक्ष रूप से अपना काम करें  और एक ठोस एवं कारगर लोकपाल विधेयक का निर्माण करें. जाहिर है  इसके निर्माण के दौरान उन्हें उन गंभीर विषयों और आलोचनाओ एवं टिप्पणियों के विषय में भी विचार करना चाहिए जो समय समय पर कुछ विद्वान् लोगो द्वारा इस भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम को और मज़बूत करने के विषय में कि जाती रही है.

जनप्रतिनिधियों को विशेष रूप से सजग और सतर्क रहना होगा और बिना किसी ब्लैक मेलिंग का  शिकार हुए ऐसा प्रभावशाली और व्यवहारिक "लोकपाल बिल"बनाना होगा कि अब कोई भ्रष्टाचारी द्रोणाचार्य से  अंगूठा मांगने की हिम्मत न कर सके.तभी सच्चे अर्थों में देश,जनता और सत्य की विजय होगी.


पेशे से डॉक्टर और सामाजिक-राजनितिक विषयों पर लिखने में दिलचस्पी.





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