Jun 2, 2011

पाखण्ड है मायावती की किसान पंचायत


जनज्वार. उत्तर प्रदेश सरकार की  आज लखनऊ में बुलायी  गयी किसानों की पंचायत बुनियादी रूप से किसानों को बुरबक बनाने  के लिए थी. हालाँकि 7 मई को ग्रेटर नोएडा के भट्टा और परसौल  गाँव  के किसान आन्दोलन से परेशानी  में फंसी सरकार नए जमीन अधिग्रहण कानून के नाम पर जो  नया झुनझुना किसानों को थमाने  में  लगी है, उसकी मियाद भी लम्बी नहीं दिखती. 

जन संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि प्रदेश  में कारपोरेट घरानों के मुनाफे के लिए किए जा रहे भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलनरत किसानों की हत्या करने के बाद आज सरकार द्वारा बुलायी गयी किसान पंचायत महज किसानों को गुमराह करने के लिए है। उन्होनें कहा कि आज किसान पंचायत आयोजित कर 70 फीसदी और 30 फीसदी की कवायद कांग्रेस द्वारा लाए जा रहे भूमि अधिग्रहण सम्बंधी बिल के पाखण्ड के सामानांतर  मायावती का पाखण्ड है। जबकि कांग्रेस और मायावती दोनों की ही नीयत किसानों की जमीन छीनना है।

 संसद अगले मानसून सत्र में नए कानून के लिए बसपा की ओर  से  संघर्ष की बात करते हुए मायावती ने अधिग्रहण में प्रभावित हो रहे परिवार के एक सदस्य को नौकरी और प्रति एकड़ के हिसाब से 33 वर्ष तक 23 हजार रूपये देने की भी बात कही है. मायावती  की यह अधिग्रहण नीति  हरियाणा में चल रही मौजूदा अधिग्रहण नीति की बारीक फेरबदल के साथ नक़ल है, जिसे मानसून सत्र में आदर्श राज्य के तौर पर केंद्र सरकार की पेश करने की तैयारी में  है. हालाँकि  हरियाणा में ही इस अधिग्रहण नीति का लगातार विरोध हो रहा है और लोग इसे सरकार की नयी ठगी का तरीका मान रहे हैं.

पूंजीपतियों द्वारा जमीन सीधे लेने की घोषणा करने वाली मायावती सरकार को प्रदेश  की जनता को बताना चाहिए कि उनकी सरकार ने अब तक जेपी समूह को जमीन क्यों दी और इलाहाबाद के कचरी में वहां के डीएम द्वारा किए गए समझौते को भी आज तक लागू क्यों नहीं किया जा रहा है। वैसे में  किसान नेताओं को सरकार के इस जाल में फंसने से बचना चाहिए और  1894 का भूमि अधिग्रहण कानून रद्द होना चाहिए. उससे पहले  प्रदेश  में किसानों से एक भी इंच जमीन लेने पर रोक लगनी चाहिए। इसी सवाल पर जन संघर्ष मोर्चा ने विगत 13 मई को दिल्ली में प्रदर्षन कर गिरफ्तारी दी और प्रधानमंत्री को पत्र भी भेजा है और कल 3 मई को आयोजित रैली में 1894 के भूमि अधिग्रहण के काले कानून में संशोधन  नहीं इसे पूरे तौर पर रद्द करने और नयी राष्ट्रीय भूमि उपयोग नीति बनाने का सवाल प्रमुखता से उठेगा।
       
भूमि अधिग्रहण कानून के सवाल पर मायावती की संसद मार्च की बात वैसे ही पाखंड है जैसे उनकी महंगाई कम करने की मांग, जबकि वह टैक्स में कटौती करके इसे खुद ही कम कर सकती है. वैसे में मायावती तथा कांग्रेस के खेल को बेनकाब करना सबसे महत्वपर्ण हो गया है.



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