Jun 18, 2017

महिला के पक्ष में रिपोर्ट शेयर की तो ग्रुप की महिलाएं हुईं आग बबूला

पारिवारिक ग्रुपों में अश्लील चुटकुलों और अश्लील फब्तियों पर तो खूब मजे लिए जाते हैं लेकिन महिला मसलों के गंभीर सवालों पर संस्कारी लोग मुंह बिचकाने लगते हैं.....

पूरी कहानी बता रहे हैं, मनु मनस्वी 

पिछले दिनों जनज्वार में औरत के गुप्तांग की शक्ल वाली ऐशट्रे के विज्ञापन का हो रहा विरोध खबर पढ़कर मन बेहद दुखी हुआ। लगा कि जनता के पैसों पर पलकर करोड़ों—अरबों कमाने वाली कंपनियों के लिए मनुष्य केवल सामान बेचने का जरिया मात्र रह गया है। इस खबर पर सबसे पहले लेखिका अनामिका अनु अपने फेसबुक पेज के जरिए प्रकाश में लेकर आयीं, जिसके बाद पता चला कि कई वेबसाइट्स पर यह घटिया विज्ञापन प्रसारित हो रहा है।

 
जब इस खबर के लिंक को मैंने व्हाट्सएप ग्रुप पर शेयर किया तो कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली। हैरत की बात यह कि प्रतिक्रिया खबर के विरोध में होने की बजाय इस बात पर थी कि मैंने ऐसी खबर शेयर करने का दुस्साहस कैसे कर दिया? मेरे रिश्तेदारों द्वारा बनाए गए ‘फैमिली ग्रुप’ में खबर को देखते ही ये धारणा बना ली गई कि खबर अश्लील है। 

फैमिली ग्रुप के एकाध मेंबर ने तो ललकारते हुए ग्रुप छोड़ने की धमकी तक दे डाली। खैर! मेरे लिए फैमिली का अर्थ बहुत व्यापक है। ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की अवधारणा को मानने वाला मैं कैसे मात्र कुछ एक रिश्तेदारों को फैमिली मान सकता हूं, जबकि पूरे समाज के प्रति मेरा दायित्व बनता है। 

कहने को तो लोग अपने बच्चों को ईमानदारी, सच्चाई, परोपकार की घुट्टी पैदा होते ही पिलाने लग जाते हैं, पर दुखद है कि अक्सर वे ही इस पर दोगली मानसिकता रखते हैं।  

खैर! मेरे द्वारा खबर का लिंक शेयर करने पर मिली तीखी प्रतिक्रिया से मैं हैरान था। ये हैरानी क्षोभ में तब बदली, जब एक महिला सदस्य ने कहा कि इस तरह की खबर के ग्रुप में शेयर होने से अब यह ग्रुप ‘फैमिली ग्रुप’ नहीं रहा, लिहाजा अब वह इस ग्रुप को छोड़ रही हैं। (गोया कि महिलाओं पर आधारित यह खबर डालने से फैमिली ग्रुप अछूत हो गया हो, जिससे आहत होकर वह महिला सदस्य अपने पापों का प्रायश्चित कर रही हो।)

मुझे उक्त महिला सदस्य की इस मानसिकता पर बेहद दुख हुआ। मैं समझ गया कि यह खबर पढ़ी ही नहीं गई है और मात्र हेडिंग देखकर ही अश्लील होने का ठप्पा इस पर लगा दिया गया है। मैंने तत्काल इसका जवाब देना मुनासिब समझा और ग्रुप में एक मैसेज भेज दिया जो कुछ इस प्रकार था -

‘एक बात का जवाब दें। फैमिली ग्रुप शब्द के मायने क्या होते हैं? क्या केवल हा..हा..ही..ही.. करना या समाज में हो रहे सही—गलत कार्यों पर अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करना भी होता है? कोई वाहियात चुटकुला बनाकर इस ग्रुप में शेयर करूं तो सही, लेकिन सच को सच तरह पेश करूं तो गलत। वह सही होगा? सच को सच कहने का साहस मैं रखता हूं इसीलिये मैं हर एक को नहीं सुहाता

जवाब में मैंने आगे लिखा, 'यह खबर एक महिला अनामिका अनु द्वारा ही लिखी गई है। खबर में न तो चटखारे लेकर औरतों का मजाक उड़ाया गया है और न ही इसे चुटकुले के रूप में पेश किया गया है। ये महिलाओं के प्रति बिजनेस कंपनियों की घटिया सोच को दर्शाती खबर है, जिसे सच्चाई के साथ पेश किया गया है।'  

मैंने कहा, 'इस खबर का लिंक शेयर करने पर कायम हूं। आप समाज में हो रही गलत चीजों पर आंखें फेर लेने से या ‘छिः छिः गंदा’ कहकर आप उसे अच्छा नहीं बना सकते। फैमिली ग्रुप में पति पत्नी के जोक्स और शादियों की फोटो ही शेेयर करनी हैं तो वही सही। पर सच से आंखें नहीं मूंदी जा सकतीं। खासकर तब, जबकि ग्रुप में अधिकतर सदस्य शिक्षा और पुलिस जैसे जिम्मेदार महकमों से जुड़े हों।’

मैसेज भेजकर मुझे कुछ सुकून मिला। बहरहाल एकाध के ग्रुप छोड़कर जाने का मैसेज मिल चुका है। शेष भी चलें जाए तो मेरी बला से। लंगड़े घोड़े होने से बेहतर है पैदल सड़कें नापना।

No comments:

Post a Comment