Jun 5, 2011

'रौंगटे खड़े करने वाली थी काली रात, कांप उठी मेरी आत्मा'

 
रामलीला मैदान में लोगों पर हुए पुलिस के अत्याचार ने  बर्बरता की सारी हदें पार कर दीं । अनशन में परिवार बच्चों को लेकर भी आए  थे। पुलिस ने उन बच्चों को भी नहीं बख्शा। बच्चों को घसीट-घसीट कर मारा। यह सब देख मेरी आत्मा कांप उठी...रामदेव  
 
 
नई दिल्ली. बाबा रामदेव ने हरिद्वार में आज यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी पर सीधा निशाना साधा और कहा कि पूरी कार्रवाई उन्हीं के निर्देश पर हुई है। उन्होंने कहा कि आज का दिन वे काला दिवस के रूप में मना रहे हैं। उन्होंने कहा कि रामलीला मैदान पर शुरु हुआ, उनका अनशन जारी रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि यह मेरे एनकाउंटर की साजिश थी।  दिल्ली से विशेष विमान से देहरादून  और वहां से वे हरिद्वार स्थित अपने पतंजलि आश्रम पहुंचे, बाबा  पूरी तरह सफेद कपड़ों में थे ।  उन्होंने वहां जमा पत्रकारों से संक्षिप्त चर्चा में कहा कि इस घटना से साफ हो गया है कि सोनिया गांधी को इस देश और देश वासियों से प्यार ही नहीं है।  


बाद में रामदेव ने हरिद्वार में अपनी पत्रकार वार्ता में कहा कि उस काली रात की याद रौंगटे खड़े करने वाली है। - अब तक मैंने लोगों पर हुए पुलिसिया अत्याचार को सिर्फ सुना था। लेकिन जो रामलीला मैदान में लोगों पर पुलिस का अत्याचार हुआ उसने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी। और जिस तरह से मैंने वहां पर दृश्य देखा और मैंने बार-बार पुलिस को मना किया कि आप मां, बहन बेटियों के साथ इस तरह क्यों व्यवहार कर रहे हैं। महिला पुलिस पांच-दस की संख्या में होगी और सशस्त्र पुलिस करीब पांच से दस हजार के बीच। मेरी आंखों के सामने जो उन्होंने जुल्म किए छोटे-छोटे बच्चों पर क्योंकि इस अनशन में परिवार बच्चों को लेकर भी आए हुए थे। पुलिस ने उन बच्चों को भी नहीं बख्शा। बच्चों को घसीट-घसीट कर मारा। यह सब देख मेरी आत्मा कांप उठी.

पहले तो मैं जो षडयंत्र रचे जा रहे थे उनके बारे में ध्यान आकर्षण करना चाहता हूं। पहले हमसे कहा गया कि आप जो चाहते हैं हम वो कर देंगे। हम काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति भी घोषित कर देंगे और उसके लिए बिल भी ले आएंगे। हम काले धन का पता लगाने के लिए उच्च स्तरीय जांच करेंगे।  दूसरी तरफ सरकार हम पर दवाब डाल रही थी कि हम अनशन खत्म कर दें  और वो हमारी मांगे मान लेंगे। तीन तारीख को हमसे मुलाकात भी कि और कहा कि सरकार के चार मंत्रियों ने एयरपोर्ट जाकर काफी आलोचना करवा दी है। हमें होटल में बुलाया जाता है। आयार्य जी पर दवाब डाला जाता है। करीब पांच घंटे तक बैठक चली और अंत में हमे कहा गया कि या तो समझौता देने के लिए तैयार रहो और या फिर सरकार का कोप झेलने के लिए।

कपिल सिब्बल जैसे व्यक्ति ने इतने शातिर दिमाग से और कूटनीतिक चालों से हमारे सामने दो प्रश्न रखे। उसकी योजना तो मुझे गिरफ्तार करके या तो मेरा एनकाउंटर करवाने या गायब करवाने की थी। सारा मीडिया इस बात को जानता है कि जैसे चार तारीख की रात को भारी पुलिस आई थी उसी तरह तीन तारीख को भी होटल के बाहर भारी पुलिस थी। सरकार तो सभी लोगों की जान लेने पर तुली थी।

प्रेस वार्ता में बाबा ने आगे कहा की  मैं महिला के कपड़े पहनकर बैठा हूं। सरकार की पूरी योजना थी कि या तो रामदेव को इस दमन के दौरान मरवा दिया जाए या फिर उसे गायब करवा दिया जाए। मैंने महिला के वस्त्र पहनकर वहां से निकलने की कोशिश की। मैं करीब दो घंटे वहां पर बैठा रहा। जब आंसू गैस के गोलो का प्रभाव थोड़ा कम हुआ तो मैंने निकालने की कोशिश की. मैंन बार-बार कहा है कि मैं मरने से डरता तो यह आंदोलन नहीं करता। लेकिन कायरता से मरना बहादुरी नहीं है।  पुलिस ने मेरे साथ दुर्व्यवाहर किया। मेरे गले में दुपट्टा था और उन्होंने उससे मेरे गले में फंदा लगा दिया। मैंने कहा कि मैं अपराधी नहीं हूं। क्या अन्याय के खिलाफ आवाज उठाकर मैं अपराधी हो गया।

इधर दिल्ली पुलिस ने बाबा के दिल्ली घुसने पर पाबंदी लगा दी है. इसके पहले बाबा रामदेव, अनशन जबरन समाप्त कराए जाने के बाद से रातभर पुलिस की हिरासत में रहे और उन्हें सुबह विशेष विमान से देहरादून भेजा गया। देहरादून से वे सड़क मार्ग से पतंजलि आश्रम पहुंच गए हैं। पुलिस ने उनके दिल्ली में अगले आदेश तक घुसने पर भी पाबंदी लगा दी है। जानकारी के अनुसार कम से कम १५ दिन वे दिल्ली की सीमा में नहीं घुस पाएंगे। 

रामदेव बाबा ने शनिवार 4 जून की सुबह भ्रष्‍टाचार और काले धन के खिलाफ अनशन शुरू किया था। आधी रात के बाद पुलिस रामलीला ग्राउंड के पंडाल में पहुंची और बाबा को उठा कर ले गई। इससे पहले पंडाल में जबरदस्‍त हंगामा हुआ। पंडाल में हजारों लोगों की मौजूदगी के बावजूद आंसू गैस के गोले छोड़े गए, लाठियां चलाई गईं। महिलाओं से धक्‍कामुक्‍की की गई। करीब पांच हजार पुलिसकर्मियों ने शनिवार-रविवार की दरमियानी रात करीब डेढ़ बजे पूरे रामलीला ग्राउंड को घेर लिया था। पुलिस ने पंडाल उखाड़ दिए और मंच पर रखे माइक व अन्य सामान तोड़ने की कोशिश की। बाबा मंच से गिर गए। महिलाओं सहित भारी संख्या में उनके समर्थक सुरक्षा ढाल बनकर खड़े हो गए। पर पुलिस ने सभी को जबरन काबू किया और देर रात 2.30 बजे बाबा को ले गई। प्रशासन ने पंडाल में योग शिविर आयोजित करने की दी गई इजाजत भी रद कर दी।

दिल्‍ली में डटे बाबा के हजारों समर्थक दिल्‍ली छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। आशंका है कि वे जंतर मंतर पर जुट कर पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे। इस आशंका के मद्देनजर जंतर मंतर इलाके में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। हरिद्वार, रुड़की सहित उत्‍तराखंड के कुछ जगहों पर भी अलर्ट घोषित कर दिया गया है। रामलीला ग्राउंड को खाली करा कर पुलिस ने अपने कब्‍जे में ले लिया है। इस इलाके के आसपास धारा 144 लगा दी गई है।

दैनिक भास्कर से साभार व संपादित  


पर्यावरण दिवस की आज पूरी हुई खानापूर्ति

बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए स्कूल और कालेजों में पर्यावरण शिक्षा को पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से जोड़ने का निर्देश दिए थे। कोर्ट के आदेश पर पर्यावरण को पाठ्यक्रम में शामिल तो कर लिया गया, लेकिन इससे लोगों में जागरूकता नहीं आई...

राजेंद्र राठौर  

जंगलों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और लगातार बढ़ती जनसंख्या के अलावा बड़े पैमाने पर लग रहे उद्योगों से छत्तीसगढ़ का पर्यावरण असंतुलित होने लगा है। उद्योगों के कारण उपजाऊ भूमि सिमट रही है, वहीं फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं और अपशिष्ट पदार्थो से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। बढते प्रदूषण के कारण धान का कटोरा कहलाने वाले छत्तीसगढ़ के आगामी वर्षों  में राख के कटोरे में तब्दील हो जाये तो  संदेह नहीं ।

छत्तीसगढ़ राज्य में तेजी से पांव पसारते औद्योगिक इकाईयों से यहां प्रदूषण का खतरा दिनों-दिन बढ़ने लगा है। पर्यावरण प्रदूषण से मनुष्य सहित पेड़-पौधे व जीव-जन्तु भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। औद्योगिकीकरण व जनसंख्या में वृद्धि के कारण पिछले एक दशक में छत्तीसगढ़ के कई जिलों के भूजल स्तर में काफी गिरावट आई है। वहीं रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से भी भूमि प्रदूषित हो रही है। छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले की बात करें तो इस जिले में वर्तमान में 10 से अधिक छोटे-बड़े उद्योग लग चुके है, जिससे आम जनजीवन प्रदूषण की मार झेल रहा है। बावजूद इसके राज्य सरकार ने यहां पावर प्लांट लगाने उद्योगपतियों द्वार खोल दिए हैं।

पिछले तीन वर्षो में अकेले जांजगीर-चांपा जिले में मुख्यमंत्री ने 40 से अधिक उद्योगपतियों से पावर प्लांट लगाने एमओयू किए है, जिनके चालू होने के बाद इस जिले की क्या दशा होगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। इधर व्यापक पैमाने पर औद्योगिक इकाईयों की स्थापना से नदियों का अस्तित्व भी संकट में है। औद्योगिक इकाईयां सिंचाई विभाग व सरकार से किए गए अनुबंध से ज्यादा नदी के पानी का उपयोग करती है, जिसके कारण गर्मी शुरू होने से पहले ही कई नदियां सूख जाती है। वहीं कई उद्योगों द्वारा तो नदियों में कैमिकलयुक्त पानी भी छोड़ा जाता है, जिससे नदी किनारे गांव में रहने वालों को बड़ी मुसीबत झेलनी पड़ती है।

आज 5 जून को देश भर में पर्यावरण दिवस के मौके पर एक बार फिर औपचारिकता निभाई जाएगी। एयरकंडीशनर कमरों में बड़े-बड़े नेता, अधिकारी और सामाजिक संगठन के लोग जुटेंगे, घंटों चर्चा करेंगे तथा फोटो खिंचवाकर सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित कराएंगे। दूसरे दिन लोगों को समाचार पत्रों व टीवी चैनलों से पता चलेगा कि कुछ लोगों को देश व जनजीवन की चिंता है, जिन्होंने पर्यावरण को सुरक्षित रखने घंटों सिर खपाया है। क्या वास्तव में इस तरह की औपचारिकता निभाना सही है? हमारे पास शुध्द पेयजल का अभाव है, सांस लेने के लिए शुध्द हवा कम पड़ने लगी है। जंगल कटते जा रहे हैं, जल के स्रोत नष्ट हो रहे हैं, वनों के लिए आवश्यक वन्य प्राणी भी लुप्त होते जा रहे हैं।

आज छत्तीसगढ़ में पर्यावरण सबसे ज्यादा चर्चित मुद्दा है। हम जब पर्यावरण की बात करते हैं तो धरती, पानी, नदियाँ, वृक्ष, जंगल आदि सभी की चिन्ता उसमें शामिल होती है। पर्यावरण की यह चिन्ता पर्यावरण से लगाव से नहीं, मनुष्य के अपने अस्तित्व के खत्म हो जाने के भय से उपजी है। आजकल पर्यावरण की इसी चिन्ता से कुछ नए नए दिवस निकल आए हैं। किसी दिन पृथ्वी दिवस है तो कभी जल दिवस और कोई पर्यावरण दिवस। पिछले दो-तीन दशकों मे हमनें तरह-तरह के दिवस मनाने शुरू किए हैं। पर्यावरण, जल, पृथ्वी, वन, बीज, स्वास्थ्य, भोजन आदि न जाने कितने नए-नए दिवस सरकारी, गैर-सरकारी तौर पर मनाए जाते हैं। मगर विडम्बना यह है कि जिन विषयों पर हमने दिवस मनाने शुरू किए, वे ही संसाधन या चीजें नष्ट होती जा रही हैं।

पर्यावरण के इतिहास पर नजर डाले तो संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिवस पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनितिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए मनाया जाता है। पर्यावरण दिवस का आयोजन 1972 के बाद शुरू हुआ। सबसे पहली बार 5 से 15 जून 1972 को स्वीडन की राजधानी स्टाकहोम मे मानवी पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन हुआ, जिस में 113 देश शामिल हुए थे। इसी सम्मेलन की स्मृति बनाए रखने कि लिए 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस घोषित कर दिया गया। सवाल तो यह है कि पर्यावरण दिवस के इस दिन का हमसे क्या रिश्ता? क्या 1972 के बाद लगातार पर्यावरण दिवस मना लेने से हमारा पर्यावरण ठीक हो रहा है? यह सोचने वाली बात है।

एक अहम बात यह भी है कि बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए स्कूल और कालेजों में पर्यावरण शिक्षा को पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से जोड़ने का निर्देश दिए थे। कोर्ट के आदेश पर पर्यावरण को पाठ्यक्रम में शामिल तो कर लिया गया, लेकिन इससे भी लोगों में कोई जागरूकता नहीं आई। स्कूल-कालेजों में इस विषय पर वर्ष भर किसी तरह की पढ़ाई नहीं होती, जबकि परीक्षा में सभी को मनचाहे नंबर जरूर मिल जाते हैं। बहरहाल, आज पर्यावरण संतुलन की उपेक्षा जिस तरह से हो रही है, उससे कहीं ऐसा न हो कि एक दिन इस भयंकर भूल का खामियाजा हमें और हमारी भावी पीढ़ी को भुगतना पड़े।



छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र पत्रकार और समसामयिक मसलों पर लगातार लेखन.







पाकिस्तान में मीडिया पर गहराता संकट

विश्वस्तरीय अंग्रेज़ी पत्रिका टाईम मैगज़ीन के एक पत्रकार ने इस बात का सचित्र व सप्रमाण पर्दाफाश किया था कि भारत का मोस्ट वांटेड दाऊद इब्राहिम कराची में किस स्थान पर और किस आलीशान कोठी में किस शानोशौकत के साथ रह रहा है...

तनवीर जाफरी

वॉल स्ट्रीट जनरल के 38वर्षीय अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल का अपहरण तथा 2002 में उसकी की गई नृशंस हत्या से लेकर अब तक दर्जनों पत्रकार पाकिस्तान में सिर्फ इसी बात का खमियाज़ा भुगत चुके हैं कि उन्होंने अपनी रिपोर्टिंग,आलेख या समीक्षा में पाकिस्तान के ज़मीनी हालात तथा उसकी सच्चाई उजागर करने का साहस आखिर  कैसे किया। ताजा मामला  31 मई को मारे गए  40 वर्षीय पत्रकार सलीम शहज़ाद का है, जो एशिया टाईम्स ऑन लाईन का पाक ब्यूरो प्रमुख थे । सलीम ने  पाकिस्तानी नौसेना तथा अलकायदा के मध्य सांठगांठ होने जैसे नापाक रिश्तों का सप्रमाण पर्दाफाश किया। इस आशय का लेख प्रकाशित होते ही सलीम शहज़ाद को धमकियां मिलने लगीं थीं और अंत में उसका अपहरण कर हत्या कर दी गई।

सलीम की लाश इस्लामाबाद से लगभग दौ सौ किलोमीटर दूर एक सुनसान जगह पर मिली. पाक मीडिया में संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि हो न हो सलीम शहज़ाद की हत्या आईएसआई ने ही कराई है। पाकिस्तान के सत्ताधीश,फौजी हुक्मरान, आईएसआई के अधिकारी यह कतई पसंद नहीं करते कि दुनिया को पाकिस्तान में गहराती चरमपंथ व आतंकवाद की जड़ों का सही-सही अंदाज़ा हो सके। पाक शासक व सैन्य अधिकारी यह भी नहीं चाहते कि दुनिया को इस बात का इल्म हो कि किस प्रकार आईएसआई तथा पाक सेना आतंकियों से गुप्त रूप से सांठगांठ बनाए हुए है। वे कश्मीर सहित पूरे भारत में आईएसआई द्वारा चलाए जा रहे भारत विरोधी आतंकी मिशन का भी भंडाफोड़ नहीं चाहते।

सलीम शहजाद और डेनियल पर्ल : कर्त्तव्य  के लिए  क़ुर्बानी

इतना ही नहीं बल्कि पाक शासक आंतरिक राजनीति अथवा अन्य आंतरिक मामलों को लेकर भी अपनी आलोचना मीडिया के माध्यम से सुनने के आदी नहीं हैं। याद कीजिए जनरल परवेज़ मुशर्रफ के शासनकाल का वह लगभग अंतिम दौर जबकि उन्होंने पाकिस्तान के मशहूर टीवी चैनल जियो टीवी को अपना एक साक्षात्कार दिया था। इस साक्षात्कार में मुशर्रफ ने कुछ अंश प्रसारित न करने की संपादक हामिद मीर को हिदायत दी थी। परंतु हामिद मीर ने अपनी निष्पक्ष पत्रकारिता का दायित्व निभाते हुए मुशर्रफ का असंपादित साक्षात्कार प्रसारित किया। जैसे ही साक्षात्कार के विवादित अंश टीवी पर प्रसारित होना शुरु हुए उसी समय परवेज़ मुशर्रफ के सरकारी गुंडों ने जियो टी वी के दफ्तर में घुसकर भारी तोड़-फोड़ कर डाली।

मीडिया की आज़ादी का गला घोंटने का यह प्रयास पाकिस्तान के किसी सामान्य नेता,धर्मगुरु या अधिकारी द्वारा नहीं बल्कि सीधे तौर पर तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष द्वारा किया जा रहा था। यह घटना इस बात का सुबूत है कि पाकिस्तान की सेना,शासन तथा आईएसआई की व्यवस्था से जुड़े लोग अपनी उन सच्चाईयों पर पर्दा डाले रखना चाहते हैं जो वास्तव में पाकिस्तान को रसातल की ओर ले जा रही हैं। और यही सच्चाईयां इस समय न सिर्फ पाकिस्तान के आम नागरिकों के लिए सबसे बड़ा धोखा साबित हो रही हैं बल्कि इन्हीं कारणों से पाकिस्तान को पूरी दुनिया में रुसवा व बदनाम भी होना पड़ रहा है। पाकिस्तान के यही हालात पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित किए जाने की कगार पर भी ले जा चुके हैं।

पाकिस्तान में पत्रकारों को डराना-धमकाना, उनका अपहरण करना तथा बेरहमी से पत्रकारों की हत्या करना अब पाकिस्तान के लिए कोई नई बात नहीं रह गई। ठीक उसी तरह जैसे कि पाकिस्तान में आत्मघाती हमले का होना अब कोई विशेष खबर नहीं है। पाकिस्तान में इस समय चारों ओर अराजकता,असुरक्षा तथा आतंकवाद का बोलबाला है। पाक सेना व आईएस आई की आतंकियों से जगज़ाहिर मिलीभगत ने आज आतंकियों के हौसले इतने बुलंद कर दिए हैं कि अब पाक स्थित चरमपंथी तथा अफगानिस्तान की सीमा की ओर से आने वाले तालिबानी व कबाईली आतंकी अब सीधे पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को ही चुनौती देने लगे हैं।


पिछले दिनों कराची में मेहरान नौसैनिक अड्डे पर जिस प्रकार आतंकवादियों ने हमला बोला उसे देखकर कई पाक सैन्य अधिकारियों ने स्वयं इस बात का संदेह ज़ाहिर किया है कि इतनी साहसिक व सुनियोजित आतंकी कार्रवाई करने वाले लोग केवल सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त आतंकवादी ही हो सकते हैं। मेहरान नेवल बेस को आतंकियों से मुक्त कराने के लिए पाकिस्तान की स्पेशल  सर्विसिज़ ग्रुप नेवी अर्थात् एस एस जी एन को पंद्रह घंटों का समय लगा। ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान में एसएसजीएन की वही क्षमता व हैसियत है जोकि अमेरिका में यूएस नेवी सील की है। कराची के इस आप्रेशन में आतंकवादी दो लड़ाकू विमानों सहित भारी मात्रा में सैन्य सामग्री को भी नष्ट कर गए।   

मुंबई के 26/11 के चरमपंथी हमलों में भी पाकिस्तान सेना द्वारा प्रशिक्षित एवं सहायता प्राप्त आतंकवादियों के शामिल होने का खुलासा हो चुका है। अब सवाल यह है कि यदि इन्हें पाकिस्तान में प्रशिक्षित नहीं किया गया फिर आिखर इन्हें किसने प्रशिक्षित किया? परंतु पाकिस्तान के शासक व सैन्य अधिकारी यह कतई बर्दाश्त नहीं करते कि कोई शख्स विशेषकर मीडियाकर्मी ऐसी कड़वी सच्चाईयों को उजागर करने का साहस करे। और यदि कोई पत्रकार अपने पेशे के प्रति ईमानदार व समर्पित है तथा उसने ऐसी सच्चाईयों को दुनिया के सामने लाने की कोशिश की तो उसे अपने इस कर्तव्य तथा साहस का भुगतान किसी भी रूप में करना पड़ सकता है।

आईएसआई तथा पाक सेना अपनी काली करतूतों को मीडिया की नज़रों से किस प्रकार छिपाना चाहती है और यदि उनकी कोई काली करतूत मीडिया ने उजागर कर भी दी तो उस पत्रकार से यह किस प्रकार निपटते हैं इसका भी एक उदाहरण तीन वर्ष पूर्व पाकिस्तान में देखने को मिल चुका है। अमेरिका की विश्वस्तरीय अंग्रेज़ी पत्रिका टाईम मैगज़ीन के एक पत्रकार ने इस बात का सचित्र व सप्रमाण पर्दाफाश किया था कि भारत का मोस्ट वांटेड दाऊद इब्राहिम कराची में किस स्थान पर और किस आलीशान कोठी में किस शानोशौकत के साथ रह रहा है। इसी पत्रकार ने अपने लेख में यह भी लिखा था कि दाऊद इब्राहिम को पाकिस्तान में किस प्रकार आईएसआई, सैनिकों व पूर्व सैनिकों का संरक्षण मिला हुआ है।

दाऊद इब्राहिम तथा आईएसआई की इस मिलीभगत का भंडाफोड़ करने के तत्काल बाद ही भारत सहित दुनिया के कई देशों में आतंकवाद को पनाह देने वाला पाकिस्तान का असली चेहरा एक बार फिर से बेनकाब हो गया था। आतंकवादियों को पनाह देने के इल्ज़ामों से घिरता जा रहा पाकिस्तान दाऊद इब्राहिम की पाक में मौजूदगी के सुबूत प्रकाशित होने से और भी बौखला गया। आखिरकार  आईएसआई तथा पाक जासूसों ने उस सत्यवादी व कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार का भी अपहरण कर लिया तथा उसे कई दिनों तक भरपूर शारीरिक व मानसिक यातना दी। उसे खूब डराया-धमकाया व प्रताडि़त किया गया तथा उससे एक फर्जी  सुसाईड नोट तक लिखवा लिया गया। आखिरकार  डरा-सहमा वह पत्रकार अपने परिवार सहित पाकिस्तान छोडक़र चला गया तथा अमेरिका में जा बसा।

मीडिया का गला घोंटने के ऐसे तमाम किस्से  पाकिस्तान में सुने जा सकते हैं। लेकिन  मीडिया का गला घोंटने का पाक हुक्मरानों तथा नीति निर्धारकों का यह प्रयास पाकिस्तान और  वहां की जनता को अंधेरे तथा अनिश्चितता के वातावरण की ओर ही ले जा रहा है।  आतंकवादियों को संरक्षण देने तथा इनसे मिलीभगत रखने के ही परिणामस्वरूप ऐबटाबाद जैसी घटना घटित हुई। वास्तव में यदि पाकिस्तान को अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता से प्यार है तथा इसका आदर करना है तो न केवल आतंकवाद व चरमपंथ से अपने रिश्ते खत्म करने होंगे बल्कि ऐसे नेटवर्क का भंडाफोड़ करने वाले पत्रकारों की रिपोर्ट व उनके आलेख का भी आदर व सम्मान करते हुए उस पर कार्रवाई करनी होगी। 



लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी के भूतपूर्व सदस्य और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मसलों के प्रखर टिप्पणीकार हैं.






Jun 4, 2011

बाबा रामदेव पर भ्रष्टाचार का नवग्रह

भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबा रामदेव के जंग -ए- ऐलान ने सरकार को बैकफुट  पर ला दिया है. दिल्ली एअरपोर्ट पर बाबा को मनाने  के लिए  प्रणब मुखर्जी समेत चार - चार मंत्रियों का पहुंचना इसका प्रमाण है. लेकिन असलियत यह है कि  बाबा अपने आश्रम में मजदूरों के शोषण, दवाओं में मिलावट और रेवेन्यु चोरी से गुजरते हुए देश में भर्ष्टाचार के सबसे बुलंद आवाज के रूप में उभरते हैं, हतप्रभ करता है.... अंतिम किस्त

आकाश नागर


बाबा पर लगे भ्रष्टाचार के  आरोपों में से  नौ को यहाँ  प्रस्तुत किया जा रहा है....

1. हरिद्वार कोतवाली में हुआ मामला दर्ज-  यह वर्ष 2002-2003 की बात है जब स्वामी रामदेव का हरिद्वार के अधिवक्ता से विवाद हो गया था। यह विवाद शंकर देव आश्रम में कब्जे को लेकर हुआ था। जिसमें स्वामी रामदेव ने बाली नामक एक अधिवक्ता के सर पर भारी प्रहार कर दिया था। बाद में लहूलुहान अधिवक्ता ने कोतवाली हरिद्वार में स्वामी रामदेव पर जान से मारने की नीयत से हमला करने का मामला दर्ज कराया।

2. श्रमिकों का शोषण -हरिद्वार स्थित दिव्य योग ट्रस्ट जिसके सर्वेसर्वा स्वामी रामदेव हैं, उन दिनों चर्चा में आई जब दिव्य योग फार्मेसी में श्रमिकों को बाहर का रास्ता दिखाया गया । इस प्रकरण की शुरूआत 5 मई 2005 में जब हुई तब स्वामी रामदेव के भाई राम भारत ने दिव्य फार्मेसी के उन 90 श्रमिकों को सेवामुक्त कर दिया जो न्यूनतम वेतन की मांग कर रहे थे। मजदूरों का 16 दिन तक हरिद्वार स्थित कलक्ट्रेट परिसर में धरना प्रदर्शन चला। 21 मई 2005 को श्रमिकों से समझौता कर धरना खत्म करवा दिया गया। समझौते के तहत फार्मेसी में 5 मई 2005 से पूर्व की स्थिति बहाल कर दी जायेगी। साथ ही किसी भी कर्माचरी के खिलाफ बदले की भावना के अंतर्गत कोई कार्रवाही नहीं की जायेगी। लेकिन मजदूर तब सकते में आ गए जब अगले ही दिन उन्होंने फार्मेसी के गेट पर ताला जड़ा देखा। इसके बाद वर्षों तक कई बार मजदूरों ने आंदोलन किया लेकिन उन्हें आज तक दिव्य योग फार्मेसी में नौकरी पर बहाल नहीं किया गया। कई मजदूरों की हालत बेहद खस्ता हाल हो गई और वे सड़कों पर आ गए। अपने जीवनयापन के लिए वे सब्जी की ठेलियां लगाने पर मजबूर हुए।

3. सुधीर के परिवार का उत्पीड़न -मजदूर हितों की बात करने वाले तथा आश्रम संबंधी सच को कहने वाले सुधीर के विरुद्ध झूठे आरोप लगाकर उसे तथा उसके परिवार को उत्पीड़ित किया गया। सुधीर का कसूर यह भी था कि वह दिव्य योग ट्रस्ट के संस्थापकों में से एक रहे आचार्य करमवीर का रिश्तेदार था। जिसका खामियाजा उसे झूठे मुकदमे और पुलिस तथा गुण्डों के खौफ से भुगतना पड़ा। दिव्य योग  फार्मेसी के मैनेजर पद पर रहे सुधीर पर स्वामी रामदेव की हत्या का षड्यंत्र जैसे संगीन आरोप लगाए गए जो बाद में सिद्ध नहीं हो सके। स्वामी रामदेव पर आरोप हैं कि उन्होंने गुंडों को  पुलिसवर्दी में सुधीर के घर तोड़फोड़ करने के लिए भेजा। भयभीत सुधीर और उसके परिजनों को घर छोड़कर भागना पड़ा था।

4. दवाओं में मानव खोपड़ी का इस्तेमाल -स्वामी रामदेव की दिव्य योग फार्मेसी में कई सनसनीखेज खुलासे हुए। जिनमें मिर्गी के इलाज के लिये तैयार होने वाली कुल्या भस्म में मानव खोपड़ी के चूर्ण के इस्तेमाल सहित वन्य जीव उदबिलाव के अण्डकोष को यौन शक्ति बढ़ाने वाली दवाई यॉवनावृत वटी में मिलाया जाता था। इसके अलावा दमा की बीमारी में काम आने वाली  शृंगभस्म में हिरण और बारहसिंगा के सींग का चूर्ण मिलाए जाने की भी चर्चा रही। दिव्य योग  फार्मेसी के मजदूरों ने केवल इसका खुलास किया बल्कि उन्होंने फार्मेसी से हिरण के सींग और  उदबिलाव के अण्डकोष तक मीडिया के समक्ष प्रस्तुत किए। बाद में इस मुद्दे को लेकर वन्य जीव प्रेमी मेनका गांधी और माकपा सांसद वृंदा करात सामने आई। लेकिन वोट बैंक की राजनीति के बाद में दोनों इस मामले के प्रति उदासीन हो गई।

 5. भाई-भतीजावाद  -हरिद्वार में दिव्य योग ट्रस्ट के तत्कालीन उपाध्यक्ष आचार्य करमवीर ने जब दिव्य योग  फार्मेसी में हो रही अवैध गतिविधियों और परिवारवाद के खिलाफ आवाज उठाई तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। 28 मार्च 2005 को जारी एलआईयू हरिद्वार की एक रिपोर्ट में बाकायदा इसका खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार ‘स्वामी रामदेव ने अपने भाई रामभारत को फार्मेसी प्रमुख बनाया तथा बहनोई डॉ  यशदेव शास्त्री को ऋषि आफसेट प्रिंटिंग प्रेस बनाकर दी। रामदेव अपने परिजनों को दिव्य योग फार्मेसी तथा अन्य संस्थानों में लाकर स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। इससे आश्रम के अन्य लोगों खासकर आचार्य करमवीर में खासा रोष है।’

6. ‘दि संडे पोस्ट’ पर मुकदमा - आश्रम संबंधी सच सामने लाने से नाराज होकर दिव्य योग ट्रस्ट की तरफ से वर्ष 2005 में ‘दि संडे पोस्ट’ के खिलाफ भारतीय प्रेस परिषद में मामला दर्ज कराया गया था। इसके चलते 14 सितंबर 2005 को भारतीय प्रेस परिषद की सचिव विभा भार्गव ने दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट बनाम ‘दि संडे पोस्ट’ का नोटिस भिजवाया। जिसमें समाचार पत्र पर आरोप लगाए गए कि स्वामी रामदेव और दिव्य योग  फार्मेसी से संबंधित खबरें तथ्य विहीन तथा प्रेस काउंसिल एक्ट 1978 एवं प्रेस काउंसिल रेगुलेशन 1979 में निहित नियमों और उद्देश्यों के विपरीत हैं। इसके जवाब में बताया गया कि समाचार पत्र में जो खबरें  प्रकाशित की गई वे पूरी खोजबीन एवं आश्रम में कार्यरत मजदूरों के बयानों तथा तथ्यों पर आधारित थी। बाद में भारतीय प्रेस परिषद ने इस मामले पर ‘दि संडे पोस्ट’ का पक्ष लिया।

7. सुरक्षा लेने के मामले में - मई 2006 में हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में स्वामी रामदेव के साथ हेलिकॉप्टर में सवार होकर पहुंचे  गौरव  अग्रवाल से क्या वाकई स्वामी रामदेव की जान को खतरा था या जेड प्लस की सुरक्षा पाने के लिए किया गया एक और ड्रामा। इस ड्रामे में अब तक सुधीर कुमार, दीपु भट्ट और आंदोलनरत श्रमिकों के अलावा ई-मेल के धमकी भरे पत्रों को इस्तेमाल करने की असफल कोशिश की गई। भले ही रामदेव यह ऐलान कर चुके कि उन्होंने जेड श्रेणी की सुरक्षा के लिए सरकार से मांग नहीं की। मगर वास्तविकता यह है कि वे पहले भी यह मांग कर चुके हैं और इसके लिए साजिश रचने की बातें भी सामने आई हैं। इस संबंध में गृह मंत्रालय ने उत्तराखण्ड सरकार से जवाब तलब किया कि क्या वाकई स्वामी रामदेव को जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा की जरूरत  है। इसके तहत सरकार ने हरिद्वार की एलआईयू को जांच करने के आदेश दिए। एलआईयू की 17/05, 28 मार्च 2005 को जारी की गई जिसमें स्पष्ट कहा गया कि स्वामी रामदेव को परोक्ष रूप से कोई भय होना ज्ञात नहीं हुआ है उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों से कथित प्रतिस्पर्धा के चलते एवं अपने निजी कार्यों से जीवन भय की आशंका प्रकट की थी।

 8. शंकर देव का रहस्य - स्वामी शंकर देव महाराज वह साधु थे जिन्होंने स्वामी रामदेव को न केवल अपने आश्रम में आश्रय दिया बल्कि आश्रम की संपत्ति भी उनके ट्रस्ट के नाम कर दी। लेकिन बाद में शंकर देव की स्थिति ऐसी हो गई कि उनके दुखों तक को स्वामी रामदेव को देखने की फुर्सत नहीं मिली। यह चौंकाने वाली बात है कि एक तरफ श्ंकर देव महाराज की देन आश्रम को करोड़ों की दवाइयों का कारोबार हो रहा था वहीं दूसरी तरफ वे इलाज के लिए तरसते रहे और लोगों से उधार लेकर काम चलाते रहे। दो साल पूर्व आहत होकर उन्होंने आचार्य करमवीर से स्वामी रामदेव की शिकायत की थी। तब करमवीर ने उनका इलाज कराया। इसके बाद शंकर देव का कोई अता-पता नहीं है। शंकर देव कहां गए? इस संबंध में हरिद्वार के कई साधु संतों ने स्वामी रामदेव पर आरोप लगाए कि उन्होंने संपत्ति के लालच में उनकी हत्या करा दी।

 9. रेवन्यू चोरी - एक तरफ तो वे देश के धन्नासेठों द्वारा कर चोरी करके अरबों रुपये का काला धन विदेशी बैंकों में जमा कराने की बात करते हैं वहीं दूसरी तरफ उनके पंतजलि योगपीठ के खिलाफ भी रेवन्यू चोरी के मामले दर्ज हैं। इस बाबत राजस्व विभाग ने पतंजलि योगपीठ और आचार्य बालकृष्ण पर मामले दर्ज किए हैं। राजस्व विभाग का कहना है कि बाबा और उसके सहयोगी बालकृष्ण ने रेवन्यू चोरी करके करीब 60 लाख का चूना सरकार को लगाया है।




खोजी पत्रकारिता कर कई महत्वपूर्ण मामले उजागर करने वाले आकाश नागर इस समय द  सन्डे पोस्ट के रोमिंग असोसिएट एडिटर हैं. यह लेख वहीँ  से साभार प्रकाशित किया जा रहा है.




बाबा रामदेव के रंग हजार


बाबा रामदेव अपनी सवारी बदलते रहे हैं और सफल भी रहे हैं। एक दशक पहले साइकिल पर सवार होकर भजन-कीर्तन गाने वाले बाबा ने ‘योग’ की सवारी की। वे देश-दुनिया के योग गुरु हो गए। अब वे एक बार फिर नई सवारी की ओर व्यग्रतापूर्ण ढंग से मुखातिब हैं। इस बार वे राजनीति की सवारी कर ‘सत्ता’  तक पहुंचना चाहते हैं। लेकिन बाबा की अब तक की यात्रा में कुछ ऐसे पड़ाव भी हैं जो उनकी धवल  छवि को कठघरे में खड़ा करते हैं....

अहसान अंसारी

मजदूरों का शोषण,दवाओं में मिलावट,अपनी सुरक्षा के लिए गलत बयानी और रेवेन्यू चोरी तो बाबा रामदेव मामले में  पुरानी बात हो गई है। नई बात यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग-ए-ऐलान करते हुए अनशन पर जाने की जिद करने वाले बाबा ने हरिद्वार के निकट एक ग्राम सभा की जमीन पर कब्जा जमाया है। स्कॉटलैंड में टापू खरीदने वाले एक संन्यासी को ग्रामसभा की जमीन कब्जाने की जरूरत क्यों पड़ गई यह एक बड़ा सवाल है.

बाबा रामदेव की छवि के भीतर कई छवियां हैं। निदा फाजली के अंदाज में कहें तो-‘हर आदमी के भीतर होते हैं दो-चार आदमी’। एक वो चेहरा जो दिखाई देता है यानी योग गुरु का-संन्यासी के लिबास में। लेकिन यह अधूरा सच है। पूरा सच यह है कि बाबा के भीतर वो तत्व भी छिपा है जिसका वे निरंतर विरोध करते हैं। मसलन भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर अलख जगाने और अब आमरण अनशन करने जा रहे बाबा और उनके सहयोगियों ने ऐसे कई कारनामों को अंजाम दिया है जो भ्रष्टाचार की परिधि में ही आते हैं।

ताजा मामला हरिद्वार के निकट औरंगाबाद में ग्रामसभा की जमीन कब्जाने का है। यहां वे भू-माफिया की भूमिका में हैं। लेकिन यह बात उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़ी जा रही जंग में दब कर रह गईं। इस पर कहीं कोई चर्चा नहीं है। मजदूरों का शोषण,दवाओं में जानवरों की हड्डियां मिलाना, कर चोरी जैसे न जाने कितने ही मामलों के बाद अब बाबा के खिलाफ एक और नया मामला सामने आया है। मामला पैसे और पहुंच की धमक से ग्रामसभा की भूमि पर कब्जा करने का है। बात तब सामने आयी जब पिछले दिनों उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’द्वारा चलाये जा रहे बहुद्देशीय शिविर में इस कब्जे की शिकायत की गयी।

चरण सिंह नाम के एक व्यक्ति ने कहा कि हरिद्वार के निकट औरंगाबाद में योग ग्राम की स्थापना के दौरान रामदेव के पतंजलि ट्रस्ट ने कुछ जमीन तो वहां के काश्तकारों से खरीदी,लेकिन खरीदी गयी जमीन से कहीं ज्यादा भूमि पर (लगभग 42 बीघा) ट्रस्ट ने कब्जा जमा लिया। शिकायत के बाद जब हरिद्वार के उपजिलाधिकारी हरवीर सिंह और तहसीलदार पूर्ण सिंह की अगुवाई में जांच टीम ने उस जगह का निरीक्षण किया तो कब्जे का मामला सच निकला। यहां बाबा के ट्रस्ट का बड़े-बड़े बाड़ लगाकर सिर्फ जमीन ही नहीं नदी में भी पक्की दीवार बनवाकर कब्जा पाया गया। प्रशासन ने तत्काल ही वहां चल रहे सभी निर्माण कार्य रुकवा दिये।

बाद में पतंजलि योग पीठ ट्रस्ट ने मामले की नजाकत को समझते हुए अपनी गलती स्वीकार कर जिलाधिकारी के समक्ष एक निवेदन किया। निवेदन में इस आशय को स्पष्ट किया गया कि पतंजलि ट्रस्ट ने जितनी जमीन पर कब्जा कर रखा है दूसरी तरफ स्थित उतनी ही जमीन वह ग्रामसभा को देने को तैयार है। उसने यह भी कहा कि उक्त जमीन खेती योग्य है और ग्रामसभा की अन्य भूमि के साथ है। लिहाजा जमीन की अदला-बदली कर ली जाये। रामदेव अब सिर्फ योग गुरु नहीं रह गये हैं। आयुर्वेदिक औषधि से लेकर सत्तू तक बाबा द्वारा स्थापित फैक्ट्रियों में बनाया जाता है। जो बाजार में अच्छे दामों में बेचा जाता है।

हमने कोई कब्जा नहीं किया है। औरंगाबाद में योगग्राम के लिए हमने कई वर्ष पहले जमीन खरीदी थी। हम ग्रामसभा की जमीन से अपनी जमीन का बदला भी करने को तैयार हैं,और अधिक मैं कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि जो ‘दि संडे पोस्ट’को लिखना है वह लिखेगा ही।
आचार्य बालकृष्ण,महामंत्री पतंजलि ट्रस्ट रामदेव
हमारी टीम राजस्व विभाग की भूमि पर कब्जा के संबंध में जांच करने के लिए औरंगाबाद गई थी जिसमें 43बीघा भूमि पर तत्काल ही कब्जा हटा दिया गया था,बाकी 43बीघे भूमि के संबंध में जिलाधिकारी महोदय को जांच रिपोर्ट प्रेषित की जा चुकी है।हरवीर सिंह, उपजिलाधिकारी, हरिद्वार

 
हाल ही में बाबा ने एक अंग्रेजी अखबार को दिये गये साक्षात्कार में बताया कि वर्ष 1995से स्थापित उनके ट्रस्ट के पास वर्तमान में लगभग एक हजार एक सौ करोड़ की संपत्ति है। अगस्त 2009 में ‘दि संडे पोस्ट’के टॉक-ऑन टेबल कार्यक्रम में बाबा रामदेव ने अपनी संपत्ति 775करोड़ बताई थी। तकरीबन पौने दो साल में बाबा की संपत्ति में चार सौ करोड़ की बढ़ोतरी हुई। करोड़ों की संपत्ति के मालिक होने के बाद भी जब बाबा और उनका ट्रस्ट सरकार को चूना लगाने से पीछे नहीं हटता तो ये समझना आम इंसान की सोच से परे है कि वही बाबा बार-बार किस भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए विश्व का सबसे बड़ा सत्याग्रह आंदोलन शुरू करने जा रहे हैं।

उनकी नई जंग की तह में जाएं तो जो संकेत उभरते हैं उसका सार तत्व यही है कि संन्यासी के परिधान को धारण किये काया के भीतर सियासी महत्वाकांक्षाएं उछाल मारती हैं। सियासत माने सत्ता मोह। वह सत्ता पाने का ही मोह है जो उनको राजनीति की राह पर चलने के लिए बाध्य करता है। वे राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी बनाते हैं। 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान भी करते हैं। यहां तक कि जंतर-मंतर से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई शुरू कर नायक बनने वाले अन्ना हजारे उनको रास नहीं आते उनको लगता है कि अन्ना ने उनके मुद्दों को हाईजेक कर लिया। अन्ना से उनका मतभेद अब ज्यादा साफ हुआ है जब उन्होंने बयान दिया कि जनलोकपाल विधेयक के दायरे में प्रधानमंत्री नहीं आने चाहिए।

दरअसल,इस बयान के पीछे भी सियासी गलियारों में कई तरह की सरगोशियां चल रही हैं। अटकलें हैं कि बाबा का सुर बदल गया है। कुछ हफ्ते पहले तक कांग्रेस और उसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रति आग उगलने वाले बाबा को कांग्रेस ने साध लिया है। बहुत संभव है दोनों के बीच ‘सेटिंग’ हो गयी है। अब बाबा को सोनिया और मनमोहन सिंह नेक और गरिमामय प्रतीत होने लगे हैं। कल तक दिल्ली में बाबा को शिविर के लिए जगह तक मुहैया नहीं कराने वाली कांग्रेस सरकार ने भी रामलीला मैदान में योग शिविर के लिये शर्तपूर्ण अनुमति दे दी। इस पूरी प्रक्रिया में लोकपाल विधेयक को लेकर जिस तरह से बाबा ने स्टंड बदला है उससे अन्ना की टीम सकते में है। वो इसे सत्ता की चाल मान रही है जो अन्ना-रामदेव के बीच मोटी विभाजक रेखा खींचने में कामयाब रही है।

क्या यह महज संयोग है कि जिन चीजों को मुद्दा बनाकर बाबा रामदेव विरोध करते हैं,व्यक्तिगत जीवन में वे उसके पोषक हैं। मसलन बाबा शोषण के खिलाफ हैं। मानवीयता की बात करते हैं। मगर अपने दिव्य फार्मेसी से मजदूरों को इसलिए निकाल देते हैं क्योंकि वो वाजिब हक की मांग कर रहे थे। वे कोका कोला में मिलावट की बात करते हैं। लेकिन उनकी दवाइयों में भी आपत्ति जनक मिलावट है। जानवरों की हड्डियों से लेकर मानव खोपड़ी तक मिलायी जाती। कांग्रेस में परिवारवाद का विरोध करते हैं मगर उन्होंने अपने आश्रम में भाई-भतीजावाद का ऐसा माहौल रचा कि उनके सहयोगी आचार्य कर्मवीर आजिज आकर पलायन कर गए।

गुरु-शिष्य परंपरा पर ढेरों प्रवचन दिए। लेकिन खुद अपने गुरु-स्वामी शंकरदेव का दुख नहीं दूर कर पाए। उनको इलाज तक के लिए पैसे नहीं दिए। जिस भ्रष्टाचार की पूंछ पकड़कर वे सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं,उससे अछूते वह खुद भी नहीं हैं। पहले रेवन्यू की चोरी और अब ग्रामसभा की जमीन पर कब्जा। ये सब बाबा का अंतर्विरोध नहीं अलबत्ता वह सच है जो यह साबित करता है कि बाबा के रंग हजार हैं और इनमें सबसे गहरा रंग उसका है जिसे ‘राजनीति’ कहते हैं। अब पाठक ही तय करें कि बाबा की बहुत सारी छवियों में कौन सी छवि सच है।



(अहसान अंसारी हिंदी साप्ताहिक ' द सन्डे पोस्ट' से जुड़े हुए हैं और खोजी पत्रकार हैं. उनकी यह रिपोर्ट द सन्डे पोस्ट से साभार यहाँ प्रकाशित की जा रही है. रिपोर्ट की  दूसरी किस्त जनज्वार शीघ्र ही प्रकाशित करेगा.)



कांग्रेस का किसान प्रेम मध्यप्रदेश में क्यों नहीं ?

आन्दोलन चलता रहा, लेकिन प्रशासन किसान नेताओं से कोई बातचीत नही की गई। केवल अदानी कंपनी द्वारा किसान आन्दोलन के नेतृत्व को खरीदने की कोशिश किसानों का की गई...

 डॉ0 सुनीलम्

मध्य प्रदेश   के छिन्दवाडा जिले में जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर 22 मई की शाम साढ़े पांच बजे अदानी पॉवर प्रोजेक्ट लिमिटेड और पेंच पावर लिमिटेड के ठेकेदार गुंडों ने मुझपर हमला किया। हमला केंद्रीय मंत्री कमलनाथ के इशारे पर हुआ। करीब पंद्रह की संख्या में पहुंचे कांग्रेसी नेता कमलनाथ के गुंडों  ने मेरी जीप को तोड़ दिया, लाठियों से मेरे दोनों हाथ भी तोड़ दिए और सिर में चोट आई। अदानी प्रोजेक्ट तथा पेंच परियोजना से प्रभावित हो रहे किसानों के आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे वकील आराधना भार्गव को पीटे जाने के चलते सिर में 10 टांके लगे तथा एक हाथ फैक्चर हो गया। यह हमला तब किया गया जब हम छिन्दवाड़ा जिले के भूलामोहगांव से 28 से 31 मई के बीच दोनों प्रोजेक्ट के विरोध में पद्यात्रा के कार्यक्रम को अंतिम रूप देकर लौट रहे थे।
अदानी ग्रुप चेयरमैन : मुनाफे के लिए सब कुछ  

हमले के बाद आराधना भार्गव ने पुलिस अधीक्षक छिंदवाडा को फोन कर हमला करने वालों तथा गाड़ियों के नम्बर की जानकारी दी, लेकिन मध्य प्रदेष पुलिस को 14 किलोमीटर की दूरी तय करने में ढाई घंटे का समय लगा। इसके बाद पुलिस ने हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज करने की बजाय धारा 323 के तहत साधारण मारपीट का मुकदमा दर्ज कर खानापूर्ती कर दी। इस बीच मैंने हमले के विरोध में दो दिनों तक छिन्दवाड़ा जिला चिकित्सालय में अनषन किया। अदानी के काम रोके जाने और हमलावरों पर कार्यवाही के प्रषासन से मिले आष्वासन के बाद मैंने ग्रामवासियों के हाथों अनषन तोड़ा और पदयात्रा के लिए वापस छिंदवाडा पहुंच गया। 28 से 31 मई की चिलचिलाती धूप में पदयात्रा की।

यात्रा के छिंदवाडा पहुंचने पर 5 हजार से अधिक किसान, जमीन बचाओ खेती बचाओ, रैली में शामिल हुए। डॉक्टर बीडी शर्मा, किशोर तिवारी तथा अन्य संगठनों  के नेताओ ने रैली को सम्बोधित किया तथा मुख्यमंत्री एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश  को जिलाधीश  के माध्यम से ज्ञापन सौंपा। आष्चर्यजनक तौर पर मध्य प्रदेश  के दोनों मुख्य दलों भाजपा और कांग्रेस की ओर से न तो इस घटना की निन्दा की गई न ही अदानी पावर प्रोजेक्ट लिमिटेट तथा पेंच पावर प्रोजेक्ट को लेकर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। जबकि उत्तर प्रदेश कांग्रेस की ओर से राहुल बाबा तथा दिग्विजयसिंह मैदान में डटे हुए हैं तो भाजपा की ओर से राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र किसान यात्रा निकाल रहे है। ऐसे में साफ है कि दोनों पार्टियों की भूअधिग्रहण तथा औद्योगिकरण के सम्बन्ध में कोई एक राष्ट्रीय नीति नहीं है।

अदानी पावर प्रोजेक्ट लिमिटेट तथा पेंच पावर प्रोजेक्ट को लेकर मध्य प्रदेश  में शुरू हुए विरोध की जड़ें करीब 25 वर्श पुरानी हैं। मध्य प्रदेष बिजली बोर्ड (एमपीईबी) ने 1986-87 में 5 गांव के किसानों की जमीनें ढेड़ हजार रूपए के हिसाब से 10 हजार प्रति एकड़ की दर पर जमीनें अधिग्रहित कीं। किसानों के हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने, निषुल्क बिजली देने तथा पूरे मध्य प्रदेश  के किसानों को लागत मुल्य पर बिजली उपलब्ध कराने और 3 वर्ष में ताप विद्युत गृह निर्माण का वायदा, तत्कालिन कांग्रेसी मुख्यमंत्री दिग्विज सिंह की ओर से हुआ। लेकिन न तो थर्मल पावर बना न ही किसान परिवारों को रोजगार। जमीनें किसानों के पास ही रहीं और वे उसपर खेती करते रहे।

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अब मध्य प्रदेष सरकार ने किसानों से सहमति लिये बगैर ही उनकी जमीनें 13.50 लाख रूपए प्रति एकड़ की दर से अदानी और पेंच  पावर लिमिटेड कंपनी को बेच दी हैं। मगर किसान जमीन देने को तैयार नहीं हैं। जाहिर है किसानों ने भी कब्जा नहीं छोड़ा है। 6 नवम्बर 2010 को चौसरा में पर्यावरण मंत्रालय की ओर आयोजीत जनसुनवाई में किसानों ने किसी भी कीमत पर जमीन न देने तथा कब्जा नहीं छोड़ने का ऐलान किया। कुछ कांग्रेसी नेताओं ने बाहर के किसानों को लाकर जनसुनवाई की खानापूर्ति करनी चाही, लेकिन क्षेत्र के किसानों ने उन्हें खदेड़ दिया। खदेड़ देने के बाद पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने अदानी के कार्यालय में जनसुनवाई करने का नाटक किया, लेकिन उसे किसान मानने को तैयार नहीं हैं।

किसानों का आन्दोलन चलता रहा, लेकिन प्रषासन किसान नेताओं से कोई बातचीत नही की गई। केवल अदानी कंपनी द्वारा किसान आन्दोलन के नेतृत्व को खरीदने की कोषिष की गई। मुझसे भी अदानी के एक उच्च अधिकारी ने अलग-अलग तरीके से बिना समय लिए या जानकारी दिए, मुलाकात की और किसानों के साथ समझौता कराने के लिए 10 करोड़ रूपए देने की पेशकश की। शायद उसी दिन से अदानी ग्रुप  ने हमला कराने की योजना बनानी शुरू कर दी थी, जिसका क्रियान्वयन 22 मई को हुआ।

अदानी पेंच पावर प्रोजेक्ट के लिए पानी पेंच परियोजना के अन्तर्गत बन रहे दो बांधों से दिया जाने वाला है, जबकि 31 गांवो की जमीनांे का अधिग्रहण जनहित के बहाने किसानों को सिंचाई का पानी देने के उद्देष्य से किया जा रहा है। क्षेत्र के किसानों को यह तथ्य हाल ही में तब पता चला जब अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों ने फर्जी एफडीआर पर माचागोरा बांध निर्माण का ठेका लेने वाले एसके जैन का ठेका निरस्त कराया, जो अब अदानी ने अपनी हैदराबाद स्थित कम्पनी को दिलवा दिया है। नई परिस्थिति में पेंच परियोजना में अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों तथा अदानी पेंच पावर प्रोजेक्ट से अपनी जमीन वापस लेने की लड़ाई लड़ रहे किसानों में एकता बन गयी है। किसानों के लिए विरोध ही विकल्प तक कि समझ तक पहुंचाने में विषेशज्ञों की टीम से मिली जानकारियां महत्वपर्ण रहीं। हालांकि इस बीच अदानी कम्पनी द्वारा बिना पर्यावरण मंजूरी के बाऊण्ड्रीवाल बना ली गई, जमीनों पर कब्जा प्राप्त हुए जगह जगह पर गढ्ढे करा लिए गए। जिलाधीश के आष्वासन के बावजूद निर्माण कार्य जारी रहा और पर्यावरण मंत्रालय चुप रहा।

यानी अब किसानों  के सामने तीन विकल्प हैं ? किसान न्यायालय का दरवाजा खटखटायें और  उम्मीद करें कि जिस तरह दादरी में उच्च न्यायालय ने किसानों की जमीनें वापस करने के निर्देष दिए, वैसे ही निर्देष किसान न्यायालय के माध्यम से हासिल कर सकेंगे। दुसरे विकल्प के तौर पर किसान पर्यावरण मंत्रालय पर दबाव बनाकर किसी भी परिस्थिति में पावर प्लांट बनाने की अनुमति न देने तथा अब तक किए गए निर्माण कार्य को ध्वस्त करने का निर्देष मंत्री जयराम रमेष से कराने की कोशिश  कर सकते है ? और तीसरा विकल्प है कि वे स्वंय आगे बढ़कर अब तक किए गए निर्माण कार्या को खुद ध्वस्त कर दें और खेती करें।

तीसरे विकल्प में भीषण टकराव की स्थिति बन सकती है। अदानी के गुण्डे या पुलिस किसानों को लाठी या गोली की दम पर रोकने की कोषिष कर सकते हैं। बड़े पैमाने पर किसानों पर फर्जी मुकदमे लगाये जा सकते हैं और अदानी पर फना हो रहा प्रषासन किसान नेताओं की गिरफ्तारी भी कर सकता है।  कारण कि अदानी ने क्षेत्र के सभी दबंग परिवारों और नेताओं  प्रोजेक्ट के ठेकांे से जोड़कर उनके आर्थिक स्वार्थ पैदा कर दिए हैं।

लेकिन 31 मई को छिन्दवाड़ा खेती बचाओ जमीन बचाओ पदयात्रा में किसानों ने बडी संख्या में शामिल होकर यह तो साफ कर दिया है कि वे दबंगई से डरकर घर बैठने वाले नहीं है। 31 मई की सभा के दौरान किसानांे ने हाथ खडा कर अपनी जमीनो पर खेती करने तथा अदानी पावर प्रोजेक्ट रद्द करने की मांग को लेकर हजारों की संख्या में जेल भरो चलाने का ऐलान किया है। ऐसे में अगर सरकार समय रहते नहीं चेती तो किसानों को लड़ाई में जीत को ही अंतिम विकल्प के साथ संघर्ष हर रास्ता  अख्तियार करना पड़ेगा. 


समाजवादी पार्टी  नेता और  पूर्व विधायक. सामाजिक-राजनितिक आंदोलनों में भागीदारी का लम्बा सिलसिला. 






Jun 3, 2011

मायावती के खिलाफ एकजुट हुआ मोर्चा


लखनउ के झूलेलाल पार्क में 3 मई को जन संघर्ष मोर्चा की ओर से आयोजित आज रैली में किसान नेताओं ने उत्तर प्रदेश की जनता से अपील किया कि मायावती तथा कांग्रेस के झांसे में न आयें। उनके खेल को बेनकाब करें और 1894 के काले कानून को रद्द कराने की मुहिम में शामिल हों । जन संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने रैली को सम्बोधित करते हुए कहा कि ‘कांग्रेस- भाजपा, सपा-बसपा की कॉरपोरेटपरस्त राजनीति के खिलाफ कम्युनिस्ट धारा, किसान आंदोलन, मुस्लिम संगठन और सामाजिक न्याय, नागरिक आंदोलन की तमाम ताकतें जनवादी राजनीतिक विकल्प के लिए एक मंच पर आयी। हमें उम्मीद है कि यह रैली में प्रदेश में जनपक्षधर राजनीतिक विकल्प की जरूरत को पूरा करने का केन्द्र बनेगी। 

रैली की अध्यक्षता करते हुए वेलफेयर पार्टी आफ इंडिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष इलियास आजमी ने कहा कि कांग्रेस, सपा, बसपा एक दूसरे की विकल्प नहीं, बल्कि पूरक हैं। भाजपा का तो मात्र एक ही काम है, हमारे देश की गंगा-जमुनी तहजीब को बिगाड़ना और दंगा-फसाद की जमीन पर खड़े होकर राजनीति करना है। इसलिए इन दलों से अलग राजनीतिक विकल्प वक्त की जरूरत है। राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मंत्री कौशल किशोर ने कहा कि प्रदेश में बन रहा यह नया राजनीतिक विकल्प विकास और लोकतंत्र की गारंटी देगा।

भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष ऋषिपाल अम्बावता के मुताबिक 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून को रद्द किया जाए और ’जनहित’ की ठोस व्याख्या की जाए, ताकि उसके नाम पर उपजाऊ, कृषि भूमि के गैर कृषि कार्यों के लिए हस्तानांतरण पर रोक लग सके। इसके लिए नयी राष्ट्रीय भूमि उपयोग नीति की घोषणा की जाए। इन सवालों पर तमाम किसान संगठनों के साथ मिलकर मानसून सत्र में संसद मार्च करने का उन्होंने ऐलान किया। 

लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघु ठाकुर ने कहा कि देश का विकास तभी हो सकता है जब कृषि के विकास को केन्द्र में लाया जाए। उन्होंने उत्तर प्रदेश में विकल्प के लिए जारी इस मुहिम में पूरे तौर पर साथ रहने की बात कही।

भ्रष्टाचार विरोधी राष्ट्रव्यापी आंदोलन के साथ जोरदार एकजुटता व्यक्त करते हुए रैली में लिए गए राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया कि आय से अधिक सम्पत्ति के मामलों में मुलायम सिंह तथा मायावती को बचाने के लिए जिस तरह मनमोहन सरकार सीबीआई का दुरूपयोग कर रही है, यह रैली उसकी कड़ी निन्दा करती है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीआई द्वारा इस मामले में बार-बार बयान बदलने पर हैरानी जाहिर कर कठोर टिप्पणियां कीं। यह अनायास नहीं है कि हर नाजुक मौके पर मुलायम और मायावती केन्द्र सरकार के बचाव में खडे नजर आते है।

इसमें लिए गये राजनीतिक प्रस्ताव में प्रदेश में लोकतांत्रिक अधिकारों पर हो रहे हमले पर गहरी चिन्ता व्यक्त की गयी। भट्टा पारसोल के किसानों से लेकर गोरखपुर में आंदोलनरत मजदूरों समेत जनता के सभी तबकों के न्यायपूर्ण संघर्षों पर बर्बर दमन ढाया जा रहा है। मायावती सरकार ने पूरे प्रदेश में धारा 144 लगा रखी है, हिटलरी फरमान जारी करके धरना, प्रदर्शन, आमसभा, रैली जैसी लोकतांत्रिक कारवाइयों के लिए भी सरकार द्वारा बॉन्ड भरवाया जा रहा है। आंदोलन के नेताओं के सर पर अपराधियों की तरह इनाम घोषित किया जा रहा है। आसमान छूती महंगाई, विशेषकर पेट्रोलियम पदार्थों के दाम में अंधाधंुध बढ़ोत्तरी के लिए मनमोहन सरकार की कड़ी आलोचना की गयी।

रैली में प्रदेश में अति पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों-वनवासियों के सामाजिक न्याय के अधिकार की गारंटी के लिए सरकार से मांग की गयी कि अति पिछड़े हिन्दुओं और पिछड़े मुसलमानों के आरक्षण कोटे को अलग किया जाए। दलित अल्पसंख्यकों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए। कोल, मुसहर, राजभर जातियों को आदिवासी का दर्जा दिया जाए और गोड़, खरवार जैसी आदिवासी का दर्जा पायी जातियों के लिए चुनाव में सीट आरक्षित की जाए।   

पर्यावरण कानूनों का खुला उल्लंधन कर प्रदेश के मिर्जापुर-सोनभद्र, इलाहाबाद, बुदेलखण्ड अंचल में किए जा रहे अवैध खनन और प्राकृतिक संसाधनों की लूट, जिसमें मायावती जी के नजदीकी सिपहसालार शामिल है, पर भी गहरी चिन्ता व्यक्त की गयी। सोनभद्र में अनेक मासूम बच्चों की जहरीला पानी पीकर मौत हुयी है। यह पूरा क्षेत्र डार्क जोन में आता है, बावजूद इसके चुनार से लेकर सोनभद्र तक जेपी समूह ने बिजली बनाने के लिए जमीन से पानी निकालकर जल संकट को और भी बढ़ा दिया है। गोरखपुर अंचल में हर साल हजारों लोग मस्तिष्क ज्वर और ऐसी ही अन्य बीमारियों से मर रहे हैं, लेकिन सरकार लोगों की जिदंगी बचा पाने में विफल है। रैली में मांग की गयी कि प्राकृतिक संसाधनों की लूट पर रोक लगाई जाये।

इस रैली को जन संघर्ष मोर्चा के महाराष्ट्र प्रभारी ललित रूनवाल, किसान मंच के उपाध्यक्ष हृदय नारायण शुक्ल, समाजवादी जनता पार्टी के प्रदेश्ज्ञ अध्यक्ष प्रताप नारायण सिंह, इंकलाब पार्टी आफ इंडिया के मोहम्मद इकबाल, मुस्लिम मजलिस के युसुफ हबीब, पूर्व सांसद अखिलेश सिंह, जसमो प्रदेश प्रवक्ता अनिल सिंह, पूर्व आई. जी. एस आर दारापुरी, नागरिक आंदोलन के शोएब, पीडीएफ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अफजाल, सोशलिस्ट पार्टी (लोहिया) के रामसहारे, आदिवासी वनवासी महासभा के गुलाब चंद गोड, लाल बहादुर सिंह, पारख महासंघ के उपाध्यक्ष उपेन्द्र सिंह रावत, तिलकधारी बिन्द ने सम्बोधित किया और संचालन जसमों केन्द्रीय प्रवक्ता दिनकर कपूर ने किया।            
                                                                          

                                                                          

हा हुसैन हम न हुए



अशोक चक्रधर




—चौं रे चम्पू! इत्ती देर ते गुम्मा सौ बैठौ ऐ, कभी उदास है जाय, कभी मुस्काय, चक्कर का ऐ?

—चचा, एक पत्रिका-संपादक से सुबह-सुबह फोन पर तथ्याधारित बात हो रही थी, पर अचानक उन्होंने आवेश में आकर, ‘करना है जो कर लो’, कहा और फोन काट दिया।

—तेरे खिलाफ छापौ का कछू?—हां चचा! पिछले कुछ सालों से मेरी निन्दा के बिना उनकी पत्रिका पूरी नहीं होती। मैं जिन क्षेत्रों में जो भी कार्य कर रहा हूं,उनके साथ हास्य-कवि होने पर भी मुझे गर्व है,लेकिन वे हास्य-कवि का इस्तेमाल गाली की तरह करते हैं। इस बार उन्होंने तुम्हारे चम्पू और उसके परिवार के बारे में बड़ा ही नकारात्मक और तथ्यविहीन लेख छाप दिया।
 
अपमानबोध पर उदासी छा जाती है और उनके अधकचरे ज्ञान और व्यक्तिगत दुराग्रहों की ईर्ष्याजन्य भावनाओं पर हंसी आती है। माना कि इस भूमण्डलीकरण के बाद तनाव दुनियाभर के लिए एक अपरिहार्य अंगरखा है,लेकिन ज़िन्दा रहने की मजबूरी में अंग-प्रत्यंग का हंसना भी अनिवार्य बना रखा है। हमारी कॉलोनी में सुबह-सुबह पार्क में योग की कक्षाएं चलती हैं। लाउडस्पीकर पर बेसुरे प्रवचन होते हैं। चिंतन-मुक्त और निर्विकार होने की सलाह दी.