Apr 10, 2017

पत्रकार और थानाध्यक्ष के झगड़े में खबर ही बदल गयी

महेश कुमार का दलित होना पत्रकार के लिए मौके की तरह था। आप खुद भी खबर देखेंगे तो पाएंगे कि कहीं पत्रकार यह नहीं बता पाता कि हमलावर चाहते क्या थे...... 

जनज्वार। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले की एक खबर कल से चर्चा में है। खबर के मुताबिक 8 अप्रैल की रात मनकापुर गांव के दलित छात्र महेश कुमार भारती पर इसलिए हमला किया गया कि वह यूपीएससी का साक्षात्कार न दे सके। 
हिंदुस्तान में छपी खबर
पर बीएचयू से भूगोल में एमए प्रथम वर्ष के छात्र महेश कुमार भारती के मामले में जब पड़ताल की गयी तो कुछ और ही मामला सामने निकल के आया। 

हिंदुस्तान दैनिक और उसके आॅनलाइन पोर्टल के मुताबिक बलरामपुर जिले के गैसड़ी थाना के मनकापुर गांव का महेश कुमार भारती 8 अप्रैल की रात शौच के लिए अपने घर से निकला। पहले से घात लगाए 6 लोगों ने उस पर जानलेवा हमला कर दिया। हमलावरों में एक के हाथ में चाकू था। चाकू से भी उस पर वार हुआ। शरीर पर चाकू के निशान हैं। 

अखबार और उसका आॅनलाइन पोर्टल हमले का कारण लड़के का दलित होना बताता है। कारण के रूप में अखबार की ओर से यह भी बताया जाता है कि हमलावर नहीं चाहते थे कि महेश कुमार भारती आइएएस की परीक्षा देने जा सके। हालांकि महेश आइएएस की नहीं, बल्कि मेंस पास करने के बाद यूपीएससी का साक्षात्कार देने जाने वाला था। 

यही खबर अमर उजाला और दैनिक जागरण में भी छपी है। पर उसमें हमले कारण दलित होना और हमलावरों का मदसद इंटरव्यू देने से रोकना नहीं बताया गया है। इसलिए अमर उजाला और दैनिक जागरण की खबर न कहीं शेयर हो रही है और न ही कोई चर्चा कर रहा है। 

ऐसे में सवाल है कि हिंदुस्तान अखबार पत्रकार की खबर का एंगल कैसे बदला? 

दरसअल, पत्रकार और गैसड़ी थानाध्यक्ष संपूर्णानंद तिवारी के बीच इस खबर के बारे में जानकारी लेने के दौरान ठन गयी। पत्रकार ने जानकारी लेने के दौरान ताव आने पर थानाध्यक्ष को तुम से संबोधित किया और हम तुम्हें देख लेंगे।

ऐसे में थानाध्यक्ष को भी पीछे नहीं रहना था सो थानाध्यक्ष ने पत्रकार को चमकाते हुए कहा, 'तुम हमारे लिए गाली है। हम पूरब के हैं। ठीक से बोलो नहीं तो हम तुमसे निपट लेंगे। अभी वर्दी में हैं तो कमजारे न समझो।' 

ऐसे में पत्रकार ने बड़े अधिकारियों का हवाला देते भौकाल टाइट किया। पर थानाध्यक्ष ने कह दिया जो करना है करो। मैं किसी से नहीं डरता। जाहिर है बात यहां खत्म नहीं होनी थी। और खत्म हुई भी नहीं। 

महेश कुमार का दलित होना पत्रकार के लिए मौके की तरह था। आप खुद भी खबर देखेंगे तो पाएंगे कि कहीं पत्रकार यह नहीं बता पाता कि हमलावर चाहते क्या थे? क्यों परीक्षा देने से महेश को वंचित रखना चाहते थे। 

नाम न छापने की शर्त पर एक पत्रकार बताते हैं, 'महेश एक मेधावी लड़का है और उसका परिवार बहुत सामान्य। उनका गांव में कोई दुश्मन नहीं और महेश का झगड़े से कोई लेना—देना नहीं। वह मूड फ्रेश करने के मकसद से रात 9 बजे के आसपास गांव की ही सड़क पर टहलने निकला था तभी किसी दूसरे गांव के दो मोटरसाइकिल सवारों से इसकी कहासुनी हो गयी। यह अकेला था और वह तीन—चार। उन्होंने इसे दो—चार हाथ लगा दिया और चलते बने। किस्सा बस इतना ही था। पर पत्रकार और थानाध्यक्ष के बीच की अहम की लड़ाई में क्या से क्या हो गया।'

पत्रकार से यह पूछने पर कि लेकिन सभी अखबार गंभीर रूप से घायल क्यों लिखे हुए हैं, तो उनका कहना था, हिंदुस्तान की खबर इतनी हिट हो गयी कि हमें यह लिखना ही पड़ा। अन्यथा वह कैसा गंभीर घायल है जो दिल्ली चला गया और इंटरव्यू दे रहा है।

जनज्वार से बातचीत में गैसड़ी थानाध्यक्ष संपूर्णानंद तिवारी ने भी माना कि हिंदुस्तान दैनिक के पत्रकार से उनकी कहासुनी हो गई।

लेकिन इस गलत खबर को भुगत कौन रहा है? जनता और पाठक। पहले गलत खबर के रूप में और इससे भी बढ़कर गलत विश्वलेषण के रूप में। कई संगठन और वरिष्ठ पत्रकार भी खबर को शेयर कर रहे हैं। थानाध्यक्ष और पत्रकार का कुछ नहीं बिगड़ा। दोनों अपने धंधे में मस्त। एक नए मामले देख रहा है और दूसरा नई खबरें। 

मुकदमा 323 और 147 के तहत अज्ञात हमलावरों के खिलाफ दर्ज हो चुका है। महेश कुमार के भाई बिंदेश्वरी भारती ने मुकदमे में लिखवाया है कि दो मोटरसाइकिल सवार मेरे भाई पर हमला कर दिए और मारा। 

अभी की ताजा खबर के मुताबिक आज 10 अप्रैल को महेश कुमार भारती स्वस्थ्य तन और मन से दिल्ली में साक्षात्कार दे रहा है। आज ही उसका साक्षात्कार है। आप दुआ कीजिए वह सफल हो और बड़ा अधिकारी बनकर आपको ऐसे थानेदारों और पत्रकारों से बचाने के कुछ रास्ते निकाले।  

Apr 7, 2017

राजस्थान गौ रक्षा दल ने कहा, हमारी भावनाओं से खेलेंगे तो हम मारेंगे

राजस्थान गौररक्षा दल के सह प्रभारी प्रवीण स्वामी ने अलवर-बहरोड़ हाइवे पर मारे गए पहलू खान के मामले में अपना पक्ष रखा। 

पहलू खान के बेटे और पत्नी  : इंसाफ की उम्मीद किससे करें जब मंत्री ही कह रहे हैं कि मौत हार्ट अटैक से हुई है

बताया कि अगर गौ तस्कर हमारी आस्था से खिलवाड़ करेंगे तो हम उनके साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगे, जैसा पहलू खान के साथ किया गया है। हालांकि उन्होंने पहलू खान की हत्या के मामले में गौ रक्षा दल के सदस्यों का  हाथ होने से इनकार किया है पर वे ऐसा करने वालों के साथ हैं। 

उन्होंने पहलू खान की हत्या से भी इनकार किया। गौ रक्षा दल के सह प्रभारी का कहना है, पहलू की मौत हॉर्ट अटैक से हुई है न कि लोगों ने उसकी हत्या की है। वह डरा हुआ था और मर गया। 

 उनका कहना है कि आस्था से खिलवाड़ के कारण लोगों का यह ​गुस्सा फूटा है, जिसका शिकार पहलू खान और अन्य लोग हुए हैं।

प्रवीण स्वामी के मुताबिक, 'हमारे ऊपर गौ तस्कर लगातार हमले कर रहे हैं। पर मीडिया इसको मुद्दा नहीं बनाती। वह कभी इन पहलुओं को नहीं दिखाती कि किन हालातों में वह गौ माता की रक्षा कर रहे हैं।'

प्रवीण स्वामी से बातचीत का अंश आप यहां सुन सकते हैं...



मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल ने इस मामलेे को संज्ञान लेते हुए राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को वीडियो क्लिप के साथ एक विस्तृत पत्र लिखा है। पत्र में संगठन ने पहलू खान के परिवार को मुआवजा देने और घायलों का इलाज कराने और उनको भी मुआवजा देने की मांग की है।

पीयूसीएल महासचिव कविता श्रीवास्तव के अनुसार राजस्थान में यह गौरक्षकों के नाम पर गुण्डागर्दी बढती जा रही है। पहलू खान की हत्या दूसरी हत्या है। 30 मई, 2015 को अब्दुल गफ्फार खान की हत्या खीमसर तहसील, नागौर जिले में की गई थी। 19 मार्च को हुए जयपुर के होटल हैयात रब्बानी पर हमले में गौ माता को बीफ खिलाना होटल मालिक व उसके कर्मचारीयों के मत्थे मढ दिया गया, जो कि एक अच्छे चलते होटल को बन्द करने की साजिश के अलावा कुछ भी नहीं था। 

अब जयललिता का ताबूत मांग रहा वोट


तमिलनाडु के आरके नगर विधानसभा में 12 अप्रैल को होने वाले उपचुनाव के प्रचार का तरीका ऐसा भी हो सकता है, शायद किसी ने सोचा भी न होगा। पन्नीरसेल्वम गुट के एआईएडीएमके ने जे. जयललिता की डमी और ताबूत के साथ चुनाव अभियान शुरू किया है। यह ताबूत हू—ब—हू उसी ताबूत की नकल है, जिसमें 5 दिसम्बर को जयललिता को उनके मरने के बाद रखा गया था। डमी को जयललिता की सबसे पसंदीदा हरी साड़ी में तैयार किया गया है, जिसे भारतीय तिरंगे से कवर किया गया है। एआईएडीएमके (पुरची थालामी अम्मा) का यह दांव उन मतदाताओं से सहानुभूति वोट हासिल करने के लिए है, जो जयललिता को भगवान की तरह पूजते थे और उनके लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते थे।

गौरतलब है कि जयललिता की मौत के बाद एआईएडीएमके लगातार विवादों में है, पार्टी के अंदर शशिकला और पन्नीरसेल्वम दो गुटों के अगुवा बन गये। 23 मार्च को चुनाव आयोग ने एआईएडीएमके के चुनाव चिन्ह 'दो पत्ते' को सील कर दोनों गुटों को नए चुनाव चिन्ह जारी किए थे। शशिकला गुट को 'टोपी' और पन्नीरसेल्वम गुट को 'बिजली का खंभा' ​चुनाव चिन्ह जारी किया गया था। वहीं दोनों गुटों का नाम भी बदल दिया गया। शशिकला गुट को एआईएडीएमके अम्मा का नाम दिया गया और पन्नीरसेल्वम को एआईएडीएमके पुरची थालामी अम्मा।

आरके नगर विधानसभा में 12 अप्रैल को होने वाले उपचुनाव के लिए जयललिता की भतीजी दीपा जयकुमार पन्नीरसेल्वम गुट से उम्मीदवार हैं तो शशिकला के भतीजे टीटीके दिनकरन को उनके गुट ने चुनाव मैदान में उतारा है। देखना दिलचस्प होगा कि इस चुनाव में लोगों की भावनाओं को कैश करने की पैंतरेबाजी काम आती है या फिर शशिकला गुट उपचुनाव पर जीत की मुहर लगाता है।  

जनता की सहानुभूति बटोरने के लिए अम्मा की डमी को जिस तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है, उसकी तरह—तरह से आलोचनाएं होनी शुरू हो गई हैं। एआईएडीएमके के अन्य दलों द्वारा भी अम्मा के नकली ताबूत और डमी बॉडी के माध्यम से चुनाव प्रचार करने पर आपत्ति जतायी जा रही है और आशंका जताई जा रही है कि इसकी शिकायत चुनाव आयोग में दर्ज होगी। 

'द न्यूज मिनट' से हुई बातचीत में द्रविड़ मुनेत्र कझगम की नेता कनिमोझी ने भी पन्नीरसेल्वम गुट द्वारा लोगों की भावनाओं को कैश करने के इस कदम की आलोचना की है और कहा कि जयललिता के अनुयायियों को उनके प्रति सम्मान दिखाना चाहिए, न कि वोटों के लिए कुछ भी करना चाहिए।

Apr 6, 2017

अमेरिका में पहली बार हुआ दोनों हाथ का ट्रांसप्लांट

ट्रांसप्लांट हाथ से पी सकते हैं चाय, बजा सकते हैं तालियां और लिख सकते हैं पत्र 

अमेरिका में ऐसा पहली बार हुआ है। इससे पहले एक हाथ ट्रांसप्लांट होने का रिकॉर्ड तो था अमेरिका के पास, लेकिन दोनों हाथ ट्रांसप्लांट होना अमेरिकी चिकित्सा के विकास में एक महत्वपूर्ण बात मानी जा रही है। भारतीय डॉक्टरों के लिए यह एक उत्साहजनक खबर है। 

टेलीग्राफ यूके में छपी खबर के मुताबिक पिछली जुलाई से ​57 वर्षीय क्रिश किंग के हाथ आॅपरेशन चल रहा था। पहले एक हाथ का सफलतापूर्वक आॅपरेशन हुआ, फिर दूसरा हाथ भी ट्रांसप्लाट हुआ। आॅपरेशन लीड्स जनरल ईनफरमरी नाम के अस्पताल में संपन्न हुआ। 

अपने सर्जन प्रोफेसर सिमन का शुक्रिया करते हुए क्रिश किंग कहते हैं, 'मैं अपने सर्जन का बहुत शुक्रगुजार हूं। मैं हर हफ्ते अपने हाथ की मजबूती बढ़ते हुए पा रहे हूं। मैं किताबें पढ़ पा रहा हूं और बहुत आसानी से कप भी थाम लेता हूं। मेरी कोशिश है कि अगले कुछ हफ्तों में अपनी शर्ट की बटन खुद बंद कर सकूं।'

क्रिश किंग का चार साल पहले अंगूठा छोड़कर दोनों हाथ तब कट गये था जब वे प्रेशर कटिंग मशीन पर ड्यूटी पर थे। एंबुलेंस में ले जाते हुए उनके साथियों को लगा था उनकी मौत हो जाएगी। पर उन्हें बचा लिया गया था। 

क्रिश किंग के दोनों हाथों का ट्रांसप्लांट उसी प्लास्टिक सर्जन प्रोफेसर सिमन ने किया जिन्होंने पहली बार एक वाले मरीज का हाथ ट्रांसप्लांट किया था। 

केजरीवाल सरकार की कार्यशैली पर भ्रष्टाचार के 10 गंभीर आरोप

शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट पर पढ़िए टी शर्मा की विस्तृत पड़ताल 

उपराज्यपाल नजीब जंग द्वारा गठित 3 सदस्यीय शुंगलू जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में केजरीवाल सरकार पर नियमों और प्रक्रियाओं को ताक पर रख कर नियुक्तियां और स्थानांतरण करने, दिल्ली सरकार के सीमित अधिकारों के बावजूद अपने निर्णयों में जान-बूझकर संवैधानिक व कानूनी प्रक्रिया का पालन न करने, कानूनी तौर पर अयोग्य व्यक्तियों को आवास व अन्य सुविधाएं देने व कुछ ख़ास सरकारी और सेवानिवृत्त अधिकारियों की गैरकानूनी तरीके से मदद करने का आरोप है। 

101 पन्नों की रिपोर्ट ज्यादातर ऐसे मामलों से भरी हुई है, जहां ये जानते हुए भी कि उपराज्यपाल की अनुमति जरूरी है, लेकिन उपराज्यपाल को सम्बंधित फाइल ही नहीं भेजी गयी।


शुंगलू कमेटी  द्वारा पकड़ी केजरीवाल सरकार की मुख्य गड़बड़ियां 

1. सौम्या जैन को दिल्ली स्टेट हेल्थ मिशन निदेशक की सलाहकार नियुक्त करना। शुंगलू कमेटी ने इस नियुक्ति को पूरी तरह से गैरकानूनी बताया है। मजेदार बात यह है कि आधिकारिक रूप से उनकी न तो किसी ने नियुक्ति की, न ही उन्हें इसके लिए कोई नियुक्ति पत्र मिला। उनकी नियुक्ति के लिए बस सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण को ये लिख दिया गया कि चेयरमैन एस. एच. एस. इन्हें सलाहकार नियुक्त कर सकता है। यहां तक कि कोई नियुक्ति आदेश तक जारी नहीं किया गया। तीन महीने के कार्यकाल में उनके ऊपर 1.15 लाख का खर्च आया। पेशे से आर्किटेक्ट सौम्या जैन स्वास्थ्य सेवाओं के अध्ययन के लिए सरकारी खर्च पर चीन के दौरे पर गयीं। शुंगलू कमेटी ने आगे लिखा है कि इस सबकी एक ही वजह थी कि सौम्या दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री की बेटी थीं।
(पेज 13 पर)

2.  विधायक अखिलेश पति त्रिपाठी को 2000 वर्ग फुट का पूरी तरह सुसज्जित आवासीय घर कार्यालय के नाम पर देना। कार्यालय के नाम पर ऐसे 10 आवास 10 विधायकों को देने की बात सामने आई है। इस मामले की और विस्तृत जांच की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री ने हर विधायक को ऐसे कार्यालय देने की बात कही है। 
(पेज 15 -16) 

3. स्वाति मालीवाल जो दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष हैं,  को नियमों के विरुद्ध जाकर सरकारी आवास देना। यहां गौर देने वाली बात यह है कि वे आप के एक बड़े नेता नवीन जयहिंद की पत्नी हैं। 
(पेज 17) 

4. केजरीवाल का गोपाल मोहन को 1 रु. वेतन पर अपना सलाहकार नियुक्त करना, पर 4 महीने बाद ही उन्हें वहां से हटाकर एक अन्य खाली हुए पद पर जिसका वेतन 115000 मासिक है, पर स्थानांतरित कर देना। जांच आयोग इस सारी कार्यवाही को  सीधा व्यक्ति विशेष को गलत आचरण से फायदा पहुंचाने का मामला बताया है। (पेज 21 -22) 

5. बड़ी संख्या में ऐसे मामले हैं जहां नियुक्तियों में गलत तरीके से ख़ास लोगों की मदद की गयी।
(पेज 17 ,18 ,19 ,20) 

6. एलजी की बिना अनुमति और प्रक्रिया के सरकारी खर्च पर मंत्रियों और विधायकों के गैरजरुरी विदेशी दौरों पर धन की बर्बादी।
(पेज 30) 

7.  सरकारी कंपनियों BTL, DPCL, IGPCL, के निदेशक मंडल में नियमों के विरुद्ध निदेशकों की नियुक्ति।

8.  संवैधानिक संस्थाओ में भर्ती के नियमों के विरुद्ध अयोग्य व्यक्तियों की भर्ती। 
(पेज 40, 41, 42, 43, 46, 47, 48, 49, 50)

9. इसके अलावा जांच आयोग ने सरकारी पैनल पर रखे नए वकीलों और उनको दी जा रही फीस पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाए हैं। आयोग को ऐसी 46 फाइलों का पता चला है जहां वकीलों को स्पेशल काउंसलर नियुक्त किया गया है। ऐसे लगता है इतनी बड़ी संख्या में बिना किसी काम के वकीलों की नियुक्ति गलत आचरण से की गयी है। ऐसी ज्यादातर नियुक्तियों के समय कानून और वित्त विभाग से भी कोई सलाह मशविरा नहीं किया गया। 
10. बहुत सारे ऐसे मामले हैं जहां एक ही केस 2 वकीलों को दिया गया। जांच आयोग ने वकीलों की इस गैरजरूरी नियुक्ति पर हाईकोर्ट के एक जज पीएस तेजी की एक तीखी टिप्पणी का भी हवाला दिया है, जहां लिपिका मित्रा vs स्टेट CRL .MC 48 92 /2015 के मामले में सुनवाई के दौरान कहा, 'आज फिर अदालत में तमाशा हुआ है, जहां 2 वकील अपने आप को सरकार का वकील कह रहे हैं। न तो यह न्याय व्यवस्था और अदालत की कार्यवाही के हित में है और न ही सरकार के लिए यह परिदृश्य सही हो सकता है। 
(पेज 68 ,69) 

प्रतिबंधित संगठनों से जुड़े बच्चों का एडमिशन नहीं होगा दिल्ली में

केजरीवाल सरकार ने जारी किया पहली बार ऐसा कोई फरमान, मानवाधिकार संगठनों ने उठाए सवाल, कहा यह नियम जीने के अधिकार के खिलाफ है 

जनज्वार। किसी प्रतिबंधित संगठन से जुड़े बच्चों को दिल्ली सरकार के स्कूलों में एडमिशन नहीं दिया जाएगा। यह आदेश दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय (डीओई) द्वारा सभी स्कूलों के प्रिंसिपल को भेज दिया गया है। केजरीवाल सरकार ने प्रवेश न देने का ऐसा कोई 'कोड आॅफ कंडक्ट' पहली बार लागू किया है।



गौरतलब है कि हाल ही में डीओई ने एक परिपत्र जारी किया है जिसमें दिल्ली सरकार के स्कूलों में किन कारणों से और कैसे बच्चों को एडमिशन नहीं दिया जाएगा, ऐसे 21 कारण क्रमवार गिनाए गए हैं।  

इसी में 21 वें नंबर पर प्रतिबंधित संगठन से किसी भी तरह से ताल्लुक रखने वाले बच्चों को एडमिशन न दिया जाना भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और शिक्षा अधिकार कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल ने इसे मूल अधिकारों से वंचित किया जाने वाला आदेश बताया है और मांग की है कि इसे तत्काल प्रभाव से खत्म किया जाए। 

इस बारे में कुछ भी पूछने पर दिल्ली सरकार के अधिकारी बचाव की मुद्रा अपना लेते हैं, साथ ही यह कहना नहीं भूलते कि यह निर्देश सिर्फ उन बच्चों पर लागू होते हैं जो ऐसे इलाकों से ताल्लुक रखते हैं, जहां प्रतिबंधित संगठन संचालित होते हैं। इस आदेश का असर दिल्ली में 6 से 12 तक पढ़ने वाले बच्चों पर सर्वाधिक पड़ेगा। 

यानी सिर्फ शक की बिनाह पर आरोपी किसी बच्चे को सिर्फ इसलिए प्रवेश नहीं दिया जायेगा कि वह प्रतिबंधित संगठन से जुड़ा हो सकता है, उसके प्रति वैचारिक रूप से जुड़ा है या समर्थक है। 

देश में कुल 37 प्रतिबंधित संगठन हैं। डीओई के इस दायरे में भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित संगठनों लश्कर—ए—तैयबा, जैश—ए—मोहम्मद, बब्बर खालसा इंटरनेशन, कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ इंडिया (माओवादी) और उत्तर पूर्व के कई प्रतिबंधित संगठन भी आते हैं।

मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की महासचिव कविता श्रीवास्तव ने इसे जीने के अधिकार पर हमला बताया और कहा कि इसे भूल मानते हुए तत्काल वापस लिया जाना चाहिए। साथ ही उन्होने यह भी कहा कि यह शिक्षा निदेशालय का यह सर्कुलर सर्वोच्च न्यायालय के उन आदेशों की भी अवहेलना है जिसमें अदालत ने कहा ​है कि प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने या समर्थक होने भर से कोई अपराधी नहीं हो जाता। 

​कविता श्रीवास्तव आगे कहती हैं, हर तरह के अतिवादियों के बच्चों को ज्यादा तरजीह के साथ मुख्यधारा में लाने की कोशिश करनी चाहिए, जबकि केजरीवाल सरकार इसके उलट कदम उठा रही है। बच्चों को शिक्षा से वंचित रखने का सर्कुलर जाहिर करता है कि केजरीवाल सरकार खुद अतिवाद की ओर बढ़ रही है।

सर्कुलर में और क्या—क्या लिखा है विस्तार से देखें नीचे—


Apr 4, 2017

पंजाब सरकार जेठमलानी को एक पेशी पर 3 लाख 30 हजार देती है और दिल्ली सरकार 22 लाख

सवाल है कि 7 गुना ज्यादा फीस देने के पीछे असल मकसद क्या है? साधारण जन की सरकार होने का दावा करने वाले केजरीवाल अपने बचाव में इतने आलीशान क्यों हैं?

ईमानदार सरकार बनाने और राष्ट्र का पैसा भ्रष्टाचारियों से बचाने के नाम पर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए अरविंद केजरीवाल इन दिनों दोनों हाथों से जनता का पैसा लुटा रहे हैं। अभी दिल्ली सरकार का 97 करोड़ रुपया आम आदमी पार्टी के प्रचार में खर्च कर देने का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी हर पेशी पर 22 लाख रुपए देने का मामला सुर्खियों में है।

गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के​ खिलाफ मानहानी का मुकदमा किया हुआ है। मुख्यमंत्री की ओर से मुकदमा वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट वकील राम जेठमलानी लड़ रहे हैं। रामजेठमलानी देश के सबसे ​महंगे और ​काबिल वकीलों में माने जाते हैं। इसी के मद्देनजर दिल्ली सरकार ने उन्हें अपना वकील बनाया।

जेठमलानी ने पहले ही अपनी हर पेशी पर 22 लाख का रेट सरकार के सामने साफ कर दिया। दिल्ली राज्य के कानून मंत्री होने के नाते मनीष सिसौदिया ने वकील जेठमलानी की फीस देने पर लिखित स्वीकारोक्ति भी दे दी।

लेकिन बाद में जब सरकार पर तरह—तरह के शिकंजे कसने लगे तो केजरीवाल सरकार अतिरिक्त सावधान हो गयी। वैसे भी दिल्ली के राज्यपाल का वह आदेश जिसमें कहा गया है कि सरकार के नाम पर आम आदमी पार्टी ने जो अपना प्रचार किया है, उसमें लगे 97 करोड़ रुपए पार्टी 30 अप्रैल तक सरकार के खाते में जमा कराए, के बाद सरकार की सांसत बढ़ गयी है।  

ऐसे में जब दिल्ली सरकार ने अरविंद केजरीवाल पर हुए मानहानी का मुकदमा लड़े राम जेठमलानी की फीस बिल भेजने के बाद भी नहीं दिया तो वह पत्र सार्वजनिक हो गया। पत्र में साफ लिखा है कि जेठमलानी प्रति पेशी 22 लाख दिल्ली सरकार से वसुलेंगे।

पत्र के सार्वजनिक होने के बाद काननू मंत्री ​मनीष सिसौदिया ने मुख्यमंत्री का बचाव करते हुए कहा है कि मुकदमा सरकार पर है तो फीस भी सरकार ही वहन करेगी। पर भाजपा के वरिष्ठ नेता विजेंद्र गर्ग इसे जनता के पैसे की बर्बादी मानते हैं। वे कहते हैं मानहानी के मुकदमें सरकार के नहीं ​बल्कि व्यक्तिगत होते हैं।

गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर राम जेठमलानी के निजी सचिव संजय कुमार द्वारा दिल्ली सरकार को भेजा एक बिल घूम रहा है जिसमें दिल्ली सरकार से जेठमलानी की एक सुनवाई का 22 लाख रुपए देने के लिए कहा गया है। हालांकि मामले पर हल्ला मचने पर जेठमलानी ने अपना रेट 1 करोड़ होना बताया है और साथ में यह भी कहा है कि अरुण जेटली के खिलाफ मुफ्त में भी मुकदमा लड़ सकते हैं। 


पर इस पूरे मामले में स्वराज अभियान के नेता और पंजाब—​हरियाणा हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील राजीव गोदारा कहते हैं, 'मुकदमा सरकार लड़े या व्यक्गित तौर पर अरविंद केजरीवाल पर असल सवाल यह है कि इतनी फीस क्यों दी जा रही है? यही जेठमलानी साहब पंजाब सरकार के पैनल में हैं और वह सिर्फ 3 लाख 30 हाजर प्रति पेशी लेते हैं।'  30 मार्च को पंजाब सरकार ने 76 वकीलों की एक सूची जारी की जिसमें रामजेठमलानी समेत कई दिग्गज पंजाब सरकार के पैनल पर हैं. 

ऐसे में मुख्य सवाल यह है कि जब पंजाब सरकार से जेठमलानी एक पेशी पर 3 लाख 30 हजार ले सकते हैं, फिर दिल्ली सरकार उससे 7 गुना फीस क्यों अदा कर रही है? क्या इसके पीछे भी कोई कहानी है या फिर 'ईमानदारी' के खोल में लिपटी दिल्ली सरकार इस भ्रष्टाचार को देख ही नहीं पा रही?

पुलिस और जांच एजेंसियों की ड्यूटी बनती जा रही भाजपा की वफादारी

न पीपी पांडे जैसे पुलिस अफसर आसमान से टपकते हैं और न अमित शाह जैसे उनके राजनीतिक पैरोकार| उत्तर प्रदेश चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने ठीक ही समाजवादी सरकार पर पुलिस थानों को पार्टी दफ्तरों के रूप में चलाने का आरोप लगाया था...

विकास नारायण राय, पूर्व आइपीएस 

सर्वोच्च न्यायालय में जूलियस रिबेरो की याचिका पर गुजरात के विवादास्पद डीजीपी पीपी पांडे को पद छोड़ना पड़ा और डीजीपी के पद पर सरकार को आनन-फानन में गीता जोहरी को बैठाना पड़ा. ऐसे में सवाल पूछा जा सकता है कि एक बदनाम हत्यारोपी पुलिस अफसर को, योग्यता और वरिष्ठता के मानदंडों को दरकिनार कर, राज्य पुलिस का मुखिया बनाने के पीछे क्या राजनीतिक सन्देश छिपा हुआ था | 

पांडे, अमित शाह के मोदी शासन में गुजरात के गृह राज्य मंत्री दौर में काफी समय तक राजनीतिक पुलिस मुठभेड़ों के लिए कुख्यात पुलिस अफसर वंजारा के वरिष्ठ रहे | बाद में इशरत जहान जैसे फर्जी मुठभेड़ कांडों में वे वंजारा के साथ गिरफ्तार किये गये और लम्बी जद्दोजहद के बाद जमानत मिलने पर कार्यवाहक डीजीपी बना दिए गये | जग जाहिर है कि आज तक भी गुजरात में शीर्ष पदों पर नियुक्तियां अमित शाह की मार्फत होती हैं | यानी प्रधानमंत्री मोदी की सुविधा को ध्यान में रखते हुए | पांडे को भी इस समीकरण के तहत ही डीजीपी बनाकर पुरस्कृत किया गया | 



मोदी-शाह की जोड़ी चाहती तो पांडे की हिंदुत्व के एजेंडे पर जेल जाने की भरपाई और तरह से भी कर सकती थी| पांडे के जमानत पर छूटने तक मोदी देश के प्रधानमंत्री बन चुके थे और शाह काबिज थे भाजपा के शक्तिमान अध्यक्ष के पद पर| उन्होंने यदि पांडे को तब भी राज्य पुलिस का मुखिया ही बनाना तय किया तो इस तरह वे अपने वफादारों के लिए दो संदेश दे रहे थे| पहला यह कि वे अपने वफादारों की सेवाओं को पुरस्कृत करना कभी नहीं भूलते, हालाँकि यह संदेश पांडे को सूचना आयुक्त या निगरानी आयुक्त या लोक सेवा आयोग में पदस्थापित कर भी दिया जा सकता था| लिहाजा,इस सन्दर्भ में मोदी-शाह का दूसरा सन्देश ज्यादा महत्वपूर्ण था| अंधवफादारी के आगे वरिष्ठता, योग्यता या नेकनामी का कोई महत्व नहीं है।

केंद्र में सत्ता मिलने के बाद से मोदी-शाह को कहीं बड़े गेम खेलने पड़े हैं| गुजरात प्रकरणों में कांग्रेस ने भी सीबीआई की मार्फत शाह को जेल में रखा था और मोदी के पसीने छुड़ा दिए थे| दरअसल, यूपीए दो के दौर में मनमोहन सरकार को सत्ता में रखने में सीबीआई की बड़ी भूमिका रही- मायावती और मुलायम को जब-तब जेल का डर दिखाकर और अपने शासन के तरह-तरह के स्कैम में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश वाली जांचों को मन मुताबिक निर्देशित कर|

इस दौर में कांग्रेस सरकार ने सीबीआई को एपी सिंह और रंजीत सिन्हा के रूप में सीबीआई इतिहास के दो सर्वाधिक ‘लचीले’ डायरेक्टर दिए। फिलहाल,सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से इन दोनों के भ्रष्ट आचरण की जांच स्वयं सीबीआई को ही करनी पड़ रही है| इसी क्रम में मोदी-शाह ने भी गुजरात के ही एक जूनियर पुलिस अफसर राकेश अस्थाना को सीबीआई का कार्यवाहक डायरेक्टर बनाकर रखा| 

जाहिर है, पांडे जैसे ही इस ‘वफादार’ की मार्फत वे कांग्रेस से भी बढ़कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते रहे हों| सोचिये दांव पर कितना कुछ है कि यह सीनाजोरी तब की गयी जब भारत का मुख्य न्यायाधीश स्वयं सीबीआई का डायरेक्टर चुनने की समिति का हिस्सा होता है| अंततः उनका छद्म बहुत दिनों तक चला नहीं और सर्वोच्च न्यायालय के दखल के बाद वरिष्ठता के आधार पर एक नया डायरेक्टर लगाना पड़ा|

‘वफादारी’ का यह खेल उन्हें बेशक कांग्रेस ने सिखाया हो पर मोदी-शाह के तौर-तरीके कहीं अधिक निरंकुश हैं| उन्होंने सीबीआई के अलावा एकमात्र अन्य केन्द्रीय जांच एजेंसी एनआइए को भी पूरी तरह अपनी जकड़ में ले लिया है| कांग्रेस राज में एनआइएनेमालेगांव,समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद,अजमेर शरीफ जैसे आतंकी मामलों में भगवा आतंक का हाथ सिद्ध किया था और तदनुसार संघ के असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा समेत कई सदस्यों का अदालतों में चालान भी हुआ| 

केंद्र में मोदी सरकार बनते ही इन मुकदमों में अभियोजन के गवाहों को तोड़ने, संघी अभियुक्तों को जमानत दिलाने और उन्हें डिस्चार्ज कराने व बरी कराने का जिम्मा एनआइए के डायरेक्टर शरद कुमार ने उठा लिया| तब से असीमानंद अजमेर शरीफ मामले में बरी हो चुका है और प्रज्ञा को जमानत पर छोड़ने की अभूतपूर्व गुहार,जो स्वयं अभियोजक एजेंसी एनआइए कर चुकी है, अदालत ने ख़ारिज कर दी है| पुरस्कार स्वरूप शरद कुमार का सेवा काल दो वर्ष से लगातार बढ़ाया जा रहा है| 

मोदी-शाह को इसी स्तर की वफादारी चाहिए और इसलिए अपनी राजनीतिक साख की कीमत पर भी वे पीपी पांडे को गुजरात का एंटी करप्शन ब्यूरो के निदेशक बनाने से नहीं रुके| सोचिये, इस तरह उन्होंने शरद कुमार और राकेश अस्थाना जैसे कितने ही भावी ‘वफादारों’ को आश्वस्त किया होगा|

न पांडे जैसे पुलिस अफसर आसमान से टपकते हैं और न अमित शाह जैसे उनके राजनीतिक पैरोकार| उत्तर प्रदेश चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने ठीक ही समाजवादी सरकार पर पुलिस थानों को पार्टी दफ्तरों के रूप में चलाने का आरोप लगाया था| हालाँकि वे भूल गए कि गुजरात में स्वयं उनकी पार्टी भी पुलिस का व्यापक दुरुपयोग करती रही है| आज स्वयं केंद्र में सीबीआई और एनआइए अमित शाह के इशारे पर चलने वाली जांच एजेंसियां बनी हुयी हैं| गुजरात पुलिस का तो कहना ही क्या!