Oct 12, 2016

नंदिता दास नहीं कर सकेंगी पाकिस्तान में शूटिंग

भारत के दंगाई मानसिकता के लोग पाकिस्तानी कलाकारों के भागीदारी से बन रही हिंदुस्तानी फिल्मों के अधर में लटकने से बहुत खुश थे। वे अब और खुश हो सकते हैं कि पाकिस्तान में हिंदुस्तानी फिल्म शूट होने का प्लान रद्द गया है...

लो जी मामला बराबर हो गया। भारतीय अभिनेत्री नंदिता दास जिस फिल्म के शूटिंग की तैयारी रही थीं, उसका प्लान अब रद्द हो गया है। उन्होंने मुंबई एक अखबार से बातचीत में कहा कि वह दिल्ली में शूटिंग की कोशिश कर रही हैं। फिल्म में मंटो का रोल नवाजुद्दीन सिद्दीकी निभाने वाले थे।

सार्थक फिल्मों की चर्चित अभिनेत्री नंदिता दास अपनी पूरी टीम के साथ प्रसिद्ध कहानीकार शआदत हसन मंटो पर बन रही एक फिल्म की शूटिंग के लिए लाहौर जाने वाली थीं। फिल्म दिसंबर में शूट होने वाली थी। मंटो लाहौर में भी रहे थे, इसलिए फिल्म के निर्देशक ने यथार्थ चित्रण के लाहौर को चुना।

नंदिता ने अखबार को बताया कि दोनों मुल्कों में तनाव के बाद असुरक्षित मान इस फिल्म को हम लाहौर में शूट नहीं कर सकते और हम दिल्ली में शूटिंग का मन बना रहे हैं।

गौरतबल है कि जिस मंटो ने दंगे और बंटवारे के खिलाफ सबसे मजबूती से लिखा उसी मंटो की फिल्म हिंदूस्तान—पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव की भेंट चढ़ गयी। 'टोबा टेक सिंह' बंटवारे पर मंटो की प्रसिद्ध कृति है, जिसका हजारो बार मंचन हो चुका है, फिल्में बन चुकी हैं।

Oct 7, 2016

देवी से दो बातें

हर 2 मिनट में
अत्चायार होता है म​हिलाओं पर

हर घंटे
26 अपराध होते हैं औरतों पर

हर 10 घंटे में
पति प्र​ताड़ित करता है बीवी को

और पिछले दस साल में
2 लाख 43 हजार 51 का हुआ बलात्कार
3 लाख 15 हजार 74 के साथ हुई अपहरण की वारदात
80 हजार 8 सौ 33 मार दी गयीं कि दहेज कम ले आईं
4 लाख 70 हजार 5 सौ 56 महिलाओं का हुआ यौन उत्पीड़न

चलो मान लिया
हर 2 मिनट में संभव नहीं
हर घंटे भी मुश्किल होगी
10 घंटे में भी नहीं संभल पाएगा देश
पर दस साल में

दस साल में तो
बीस बार आए होंगे नवरात्रे
इतनी ही बार अव​तरित हुई होंगी देवी भी
और संगी रही होंगी अनेकानेक देवियां

फिर
इतने साल क्या कम थे
बलात्कार
हत्या
छेड़खानी
उत्पीड़न और औरत पर अपराध रोकने के लिए
एक दस हाथ वाली देवी के लिए
जो हर दस साल पर अपराध दोगुने से भी ज्यादा होते जाते हैं

इसलिए
मुझसे नहीं अपनी देवी से पूछो
मैं क्यों नहीं रखता नवरात्रे
सुबह उठकर क्यों नहीं करता दुर्गा सप्तसती का पाठ
मैं तो बस इतना जानता हूं
इंसान  अपना काम न करे तो उसे निकम्मा कहते हैं
अगर दिन, महीने, साल और सदी
दस हाथों वाली देवी हाथ पर हाथ धरे बैठी रहें
तो  उन्हें क्या कहेंगे
ये आप ही बता दो 
हम कुछ बालेंगे
आप तलवार खींच लोगे 

Oct 6, 2016

अखलाक के हत्या के आरोपी को तिरंगें में लपेटकर दिया सम्मान

सैनिकों की शहादत पर ओढ़ाया जाने वाला तिरंगा क्या अब अपराधियों शान बनेगा

मोदी युग में पहली बार किसी दंगाई और गुंडे को तिरंगे में लपेटे जाने का मामला सामने आया है जिसके बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या जाति और धर्म के आधार पर देश में अपराधियों के अपराध तय होंगे या देश में कानून का राज कायम होगा।

उत्तर प्रदेश के दादरी में हुआ चर्चित अखलाक हत्याकांड के एक आरोपी रवि की मंगलवार को एक अस्पताल में मौत हो गई। 22 साल के रवि के गुर्दों ने काम करना बंद कर दिया था जिसके बाद उसे उत्तर प्रदेश के नोयडा स्थित जिला अस्पताल से लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल लाया गया था। अस्पताल जब उसे घरा लाया गया तो हिंदू संगठनों के लोगों ने उसके शव को तिरंगें में लपेट दिया और फिर घर लेकर आए।

गौरतलब है कि दादरी के बिसाहड़ा गांव में 51 साल के मोहम्मद अखलाक को पिछले साल भीड़ ने पीट- पीट कर मार डाला था जिसके बाद क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव हो गया था। भीड़ को संदेह था कि अखलाक गौमांस का सेवन करते थे। गांव में दंगा करने और अखलाक की हत्या करने में दस नामजद आरोपी शामिल थे, उनमें एक रवि भी था, जिसकी मंगलवार को दिल्ली के अस्पताल में मौत हो गयी।

28 सितंबर की रात करीब साढ़े दस बजे गांव के 14-15 लोग हाथों में लाठी, डंडा, भाला और तमंचा लेकर घर की तरफ गाली-गलौज करते हुए आए और दरवाजे को धक्का मारकर घुस गए थे और अखलाक और उनके बेटे दानिश को जान से मारने की नीयत से मारने लगे थे. इस वारदात में अखलाक की मौत हो गयी थी।
दंगे और अख़लाक़ के हत्या के आरोपी रवि को मिला तिरंगे का सम्मान। कानून का समय है या धार्मिक उन्माद का

Oct 4, 2016

जो सुबह—शाम गौ को कहते हैं माता

जिन किसानों के घर गाय है
उनके लिए चार—पांच बार बच्चा दे चुकी गाय एक भार है
जर्सी का बछड़ा पैदा होते ही उनके ​जी का जंजाल है
और ट्रैक्टरों के आने के बाद से देसी का बछड़ा भी बेकार का माल है

इसलिए पूछो
गौरक्षक गुंडों के उस राष्ट्रीय सरगना से
कि किसके बापों के जेबों में इतना माल है
जो पालेगा इन्हें और तुम्हारे वोट के लिए अपने बच्चों को रखेगा भूखा
कौन है वह देशभक्त और गौरक्षक
पेश करो उन्हें गरीब किसानों के बीच
जो पानी, बिजली, डीजल और खाद की महंगाई से तंग आकर
छोड़ रहे हैं खेती और भाग रहे खेत की मेड़ों से सीेधे शहरों की संकरी गलियों की ओर
वह कहां से लाएंगे पंद्रह रुपए किलो का रोज पांच—दस किलो भूसा
जिनकी कमाई नहीं है हर रोज की पचास रुपए 

इसलिए
उन्हें भी जनअदालत में ला पटको  
जो सुबह—शाम गौ को कहते हैं माता
और इंजैक्शन से निचोड़ते हैं दूध
नहीं भ्ररता जी तो मार देते हैं बछड़े को
और उसकी चमड़ी में भर देते हैं भूसा
खड़ा कर देते हैं गाय के सामने
और बड़ी फक्र से अपनी मां को ही बुरबक  बना
निचोड़ लेते हैं बछड़े के हिस्से का एक-एक बूंद

इसलिए
इसी मजमें में उन्हें भी बुलाओ
जो शहरों में देते हैं संस्कृति की दुहाई
और बात—बात में कहते हैं गाय है हमारे धरम की माई
उछलकर पकड़ो उनकी गिरेबां
ध्यान रहे भागने न पाएं
​थमाओ उनको ठठहरा हो चुकी गायों का पगहा
और बांध आओ उनके फ्लैटों में 
गलियों, नुक्कड़ों पर तांडव मचा रहे सांडों को
साथ में ले जाओ उन बछड़ों को भी

देखते हैं हम
जिनके दिलों में अपनी मां, भाई और बहन को रखने की जगह नहीं
जिनके घरों में इतनी जगह नहीं कि दो रोज दो मेहमान रोक सकें
अलबत्ता बच्चों की खेलने की फर्लांग भर जमीन भी नहीं है जिनके पास
वह कहां बांधते हैं अपनी माई को
कैसे करते हैं धरम की रक्षा
किसका काटते हैं सर और किसको लटका देते हैं सूली पर
देखते हैं हम भी
सरगना तुम भी देखना...देखना तुम भी

Oct 3, 2016

सर्जिकल स्ट्राईक के तीन दिन

सर्जिकल स्ट्राईक का पहला दिन
देखा सर, 38 सर काट लिए हमने?
कब, कैसे, किसका काटे?
अरे, उन्हीं कटुओं के, पाकिस्तानियों के, लेकिन आप तो मानेंगे नहीं?
क्यों नहीं मानेंगे, पर तुम्हारे हाथ में तो सिर लटका नहीं दिख रहा है
हमने पाकिस्तान में घुसकर मारा है, मोदी जी कोई मनमोहन नहीं हैं जो मौन रह जाएंगे। देखा नहीं आपने डीजीएमओ की प्रेस कांफ्रेेंस।
हां, देखी पर उसमें ये सब नहीं था
वेबसाइट पर चला दी हमने। लिख दी। डीजीएमओ खुलकर सबकुछ थोड़े बताएगा।
तुम्हें कैसे पता चली?
दूसरी वेबसाइट पर देखी
उसने कैसे चलाई, उसको किसने बताया, पता करो जरा?
​सर, इससे क्या लेनादेना। खबर चलाएंगे कि यह देखने जाएंगें कि कहां से सूचना आई।
पर यह तो देखोेगे कि सही क्या है, उसका स्रोत क्या है, किसी ने फर्जी चला दी तो?
सर, यह सब देखने जाएंगें तबतक दस दूसरे चिपका देंगे और हम रिसर्च करते ही रह जाएंगें और वह हिट बटोर लेंगे। दूसरी बात सर पाकिस्तान कौन सा नोटिस भेज रहा है।
पर टीवी वाले भी दिखा रहे हैं, उनके पास कहां से आई जानकारी। जरा उनके रिपोर्टरों से पता करो?
हा—हा सर, यही तो बात है। उन्होंने हमसे लीड ली है। उनके पास कहां खबर थी। सबसे पहले हमने चमकाई।
पर संख्या का कैसे पता चला?
सर, सामान्य ज्ञान से। सेना ने कहा 7 स्थानों पर हमला किया। मान लीजिए एक स्थान पर 5 को मारा होगा तो 35 हुए। 35 लिखने से सीधी गिनती हो जाती इसलिए 38 ठीक है।
पर यह सब तुम्हें कैसे पता?
मैं तो उस वेबसाइट के बारे में बता रहा हूं जिसने 38 लिखा। हमने तो उसका लिखा हुआ लिखा। अपन कोई टेंशन नहीं। हिट देखते जाइए।


सर्जिकल स्ट्राईक का दूसरा दिन
पता किया तुमने कि किसने कहा 38 मारे गए?
सर, आप अभी वहीं अटके हो। आज शहाबु​द्दीन चल रहा है। सर्जिकल आज शर्मा देख रहा है। छोड़ा माल वही बटोरता है।
आके। पर तुम ब्यूरो वालों से पूछो, उन्हें पता होगा जो रक्षा या आईबी कवर करते हैं। उनको कोई खबर होगी कि किसने लीड दी। 
सर, आप इतने बुद्धिमान होके भी कभी—कभी वही वाली बात कर देते हैं। हमें कुत्ते ने काटा है जो पूछने जाएं। उन्होंने हमें लीड दी थी? वह साले नेताओं की सहला लें यही बहुत है। देखिएगा शाम को हमारी ही खबर का कट—पेस्ट करेंगे। और सरकार को जरूरत होगी संख्या बताने की तो उसे भी लगा देंगे। पर यह जानिए कि मीडिया ने इतना प्रेशर बना दिया है कि सरकार संख्या घटाकर नहीं बोल पाएगी। वैसे भी कौन सी नौकरी देनी है किसी को, मूंह से संख्या ही तो बोलनी है। 

सर्जिकल स्ट्राईक का तीसरा दिन
अरे भाई, पता किया क्या?
हां, सर। बात हो गयी है। 30 सिम कल दे जाएंगें। रिलायंस वाले अपने को मोदी ही समझते हैं। आॅफर आया है तो सबसे पहले हमलोगों को मिलेगा न। कह रहा था कोड जेनेरेट करना पड़ेगा, मगर हमने कह दिया आज शाम की रात नहीं होनी चाहिए...पर आपके पास वोल्टी टेक्नॉलॉजी वाला मोबाईल तो है न। न हो तो सर ​ले लीजिएगा। मैं अभी नवरात्रे अपडेट कर रहा हूं।
ओह...ये नहीं। मैं पूछ रहा था सर्जिकल स्ट्राईक में कितने आतंकी और पाकिस्तानी जवान मारे गए, इसके बारे में सरकार या सेना ने कोई जानकारी दी है क्या।
हा—हा, सर। अभी—अभी खबर आई है, वही लीड ले रहे हैं। अब सर्जिकल स्ट्राईक पुरानी बात हो गयी। अब तो मोदी जीे ने कह दिया हम कहीं हमला नहीं करते। शांति चाहते हैं, दुनिया के लिए अपनी जान कुर्बान करते हैं। हम गांधी के देश के हैं और विरासत में हम सत्य, अहिंसा और असहयोग की खेती करते हैं।

Sep 30, 2016

साला मुझे नहीं बनना तेरी बीवी

मेघना पेठे
.......................................
साला मुझे नहीं बनना तेरी बीवी
तुम्हारी बीवी होने से तुम क्या चाहोगे
कपड़े उतारो, पंखा डलो, हो जा मेरी चीयर लीडर?
हट हट, झट से निकल पतली गली से फटाफट
चीयर लीडर बनें तेरे दोस्त, मैं क्यों बनूँ?
मै ही मारूंगी एक नहीं चार चौके, छ: सिक्सर..
तब तुझे स्टेडियम में एंट्री भी न मिलेगी
साल्ला मैं न बनूँगी तेरी घरवाली..

क्या बोला मैं तेरी सीढ़ी..
तेरे लिए जमीं पर पाँव गड़ाए खड़ी रहूंगी?
और तू क्या अकेले ऊपर चढ़ेगा..
तू आसमान से इद्रधनुष भर लेगा झोली में.
और मैं क्या नदी किनारे चमगादड़ गिनती बैठूं?
न बाबा ये अपुन को नहीं जमेगा बोल दिया..

क्या बोला, मैं तेरा रास्ता तकेगी?
मुन्ना भाई की मुन्नी?
छोड़ यार, आँखे खोल अपनी..
इस आसमान में सूरज कई, है पता?
माँ कसम, इस छोटी-सी जिन्दगानी में
तेरी बेरंग दुनिया मे सड़ती रहूंगी?
अरे, मैं खुद चांदनी बनके चमकेगी.
तेरी बिन्दनी, साल्ला नहीं बनूँगी.

क्या बोला..
तू खाना खायेगा और मै पंखा डलूंगी?
तू सोयेगा और मै तेरे सर की चम्पी करूँ?
क्या, क्या बोला..
तू हल चलाएगा और मैं रोटी सेकूँ?
तू लड़ाई लड़ेगा और मैं बर्तन चमकाऊँ?
तू टप टप घोड़े पर चढ़ के आएगा
मै सुन्दर रंगोली सजाऊँ
ताकि घोड़े के पाँवो तले उसे बेचिराख करे तू.
ये सब तेरे मुनाफे का धंधा
तुझे क्या लगा मैं मन ही मन में धुंधलाऊँ?
जा रे..
मुझे नहीं बनना तेरी बीवी फिवी..

मैंने देखे है न तेरे दादा दादी,
मेरे फूफा फुफ्फी, मासी मावसा,
काका काकी, मामा मामी..
दीदी जीजाजी,
परिवार का लुभावना रूप जिनका जिम्मा है
वो मैं पापा, तेरे और मेरे
जाने दे साले,
सबको चाहिए अपना एक गधा
मार खाने को
ये फँसने फँसाने का अफ़साना
भाग दौड़, छुपाछुपी का खेल-खेल खेलना
उस से अपुन अच्छा 'अपना काम' काम ही अच्छा.
मुझे नहीं बनना तेरी बीवी.

क्या बोलता रे..
बच्चे बहस करने से थोड़े होते हैं..
कभी तो माँ बनोगी न..
अरे, उसके लिए तेरी औलाद क्यों बढ़ाऊँ?
तेरे ही जैसी..
एक बता दे.. तेरे बाप की कसम..
किसी कुम्हार की या चमार की क्यों नहीं?
किसी भंगी-बामन की क्यों नहीं
पटेल-मोमिन की
पारसी-ख्रीस्ती की भी चलेगी न
जैन-बोरिकी क्यों नहीं

हाँ रे
बनूँगी क्यों नहीं माँ
गर मेरे बच्चों को अच्छा बाप मिलेगा
जरूर बनूँगी माँ
पर तय मैं करुँगी कौन भला कौन बुरा..
और सुन ले
माँ कसम
चाहे दुनिया भर की माँ बन जाऊँ
तेरी बीवी नहीं बनने का मेरे को.

अनुवाद : मीना त्रिवेदी। इस कविता को साहित्यकार  जन विजय ने फेसबुक पर शेयर किया है।

सही जानकारी का हक केवल अंग्रेजी वालों को ?

अक्सर हिंदी के पत्रकारों और पाठकों को अंग्रेजी के मुकाबले अपने दोयम होने का एहसास सालता रहता है। आज उनके लिए इस गुत्थी को समझने का सुनहरा मौका है। 

करना सिर्फ इतना है कि एक बार वे अपने हिंदी के अखबार देखें, फिर अंग्रेजी के। बात फिर भी न समझ में आए तो उदाहरण के तौर पर दैनिक हिंदुस्तान और हिंदुस्तान टाइम्स अगल—बगल रख के देख लें।

ये दोनों एक ही मालिक के अखबार हैं। पर भाषा, अभिव्यक्ति, पेशगी और तरीके का फर्क देखिएगा। मेरा भरोसा है आपको आज आत्मज्ञान हो के रहेगा और इतनी बात जरूर समझ में आ जाएगी कि अंग्रेजी में मालिक—संपादक खबरें परोसते हैं और हिंदी में हिस्टीरिया, सनकपन। 

तो आप बताइए हिंदी की गरीब, मेहनतकश और बेकारी की मार झेल रही जनता को अखबार का मालिक और संपादक सनकपन क्यों परोसता है, उसको दंगाई क्यों बनाना चाहता है और वह क्यों नहीं चाहता कि जैसी बातें वह अंग्रेजी के लोगों का परोस रहा है वह हिंदी वालों को भी दे। क्या वह सही और संतुलित बातें सिर्फ अंग्रेजी वालों के लिए सुरक्षित रखना चाहता है?

अगर हां तो क्यों? इसका जवाब भी आपको ही ढुंढना है। इस बारे में मैं बस इतना कह सकता हूं कि अंग्रेजी सिर्फ भाषा के रूप में हिंदी की मालिक नहीं है, बल्कि हम जिन दफ्तरों में काम करते है और जो उनके अधिकारी—मालिक हैं, उनकी भी भाषा अंग्रेजी है। यानी मालिक वो हैं जिनकी भाषा अंग्रेजी है, मालिक वो हैं जिनकी जानकारी सही और संतुलित है।

इसलिए दोस्तों हमारी भाषा कमजोर नहीं है और हम इस वजह से दोयम नहीं हैं, बल्कि हमें अपनी भाषा को सही और संतुलित जानकारी देने वाली भाषा बनानी है। हमें तथ्यहीन, पर्वूग्रहित और मनगढ़ंत खबरों की हिंदी पत्रकारिता से बाहर निकलने की तैयारी करनी है, हिंदी से नहीं। यही जिद हमें बराबरी का सम्मान दिलाएगी, अंग्रेजी वालों के राज का अंत करेगी।

Sep 28, 2016

कारगिल शहीद की बेटी का ​वीडियो हुआ वायरल

पाकिस्तान से युद्ध या गोलीबारी में मारे गए शहीदों को लेकर देश में जिस ढंग का माहौल बनाया जा रहा है, उसका जवाब है ​यह ​वीडियो। आप इस वीडियो को एक बार जरूर देखें और महसूस करें कि सही मायने में शहीदों के परिजन आपसे, देश से और मीडिया से क्या चाहते हैं। 4 मिनट 23 सेकेंड का यह वीडियो आपको कुछ नया सोचने पर मजबूर करेगा।