Oct 4, 2016

जो सुबह—शाम गौ को कहते हैं माता

जिन किसानों के घर गाय है
उनके लिए चार—पांच बार बच्चा दे चुकी गाय एक भार है
जर्सी का बछड़ा पैदा होते ही उनके ​जी का जंजाल है
और ट्रैक्टरों के आने के बाद से देसी का बछड़ा भी बेकार का माल है

इसलिए पूछो
गौरक्षक गुंडों के उस राष्ट्रीय सरगना से
कि किसके बापों के जेबों में इतना माल है
जो पालेगा इन्हें और तुम्हारे वोट के लिए अपने बच्चों को रखेगा भूखा
कौन है वह देशभक्त और गौरक्षक
पेश करो उन्हें गरीब किसानों के बीच
जो पानी, बिजली, डीजल और खाद की महंगाई से तंग आकर
छोड़ रहे हैं खेती और भाग रहे खेत की मेड़ों से सीेधे शहरों की संकरी गलियों की ओर
वह कहां से लाएंगे पंद्रह रुपए किलो का रोज पांच—दस किलो भूसा
जिनकी कमाई नहीं है हर रोज की पचास रुपए 

इसलिए
उन्हें भी जनअदालत में ला पटको  
जो सुबह—शाम गौ को कहते हैं माता
और इंजैक्शन से निचोड़ते हैं दूध
नहीं भ्ररता जी तो मार देते हैं बछड़े को
और उसकी चमड़ी में भर देते हैं भूसा
खड़ा कर देते हैं गाय के सामने
और बड़ी फक्र से अपनी मां को ही बुरबक  बना
निचोड़ लेते हैं बछड़े के हिस्से का एक-एक बूंद

इसलिए
इसी मजमें में उन्हें भी बुलाओ
जो शहरों में देते हैं संस्कृति की दुहाई
और बात—बात में कहते हैं गाय है हमारे धरम की माई
उछलकर पकड़ो उनकी गिरेबां
ध्यान रहे भागने न पाएं
​थमाओ उनको ठठहरा हो चुकी गायों का पगहा
और बांध आओ उनके फ्लैटों में 
गलियों, नुक्कड़ों पर तांडव मचा रहे सांडों को
साथ में ले जाओ उन बछड़ों को भी

देखते हैं हम
जिनके दिलों में अपनी मां, भाई और बहन को रखने की जगह नहीं
जिनके घरों में इतनी जगह नहीं कि दो रोज दो मेहमान रोक सकें
अलबत्ता बच्चों की खेलने की फर्लांग भर जमीन भी नहीं है जिनके पास
वह कहां बांधते हैं अपनी माई को
कैसे करते हैं धरम की रक्षा
किसका काटते हैं सर और किसको लटका देते हैं सूली पर
देखते हैं हम भी
सरगना तुम भी देखना...देखना तुम भी

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