अक्सर हिंदी के पत्रकारों और पाठकों को अंग्रेजी के मुकाबले अपने दोयम
होने का एहसास सालता रहता है। आज उनके लिए इस गुत्थी को समझने का सुनहरा
मौका है।
करना सिर्फ इतना है कि एक बार वे अपने हिंदी के अखबार
देखें, फिर अंग्रेजी के। बात फिर भी न समझ में आए तो उदाहरण के तौर पर
दैनिक हिंदुस्तान और हिंदुस्तान टाइम्स अगल—बगल रख के देख लें।
ये
दोनों एक ही मालिक के अखबार हैं। पर भाषा, अभिव्यक्ति, पेशगी और तरीके का
फर्क देखिएगा। मेरा भरोसा है आपको आज आत्मज्ञान हो के रहेगा और इतनी बात
जरूर समझ में आ जाएगी कि अंग्रेजी में मालिक—संपादक खबरें परोसते हैं और हिंदी में हिस्टीरिया, सनकपन।
तो आप बताइए हिंदी की गरीब, मेहनतकश और बेकारी की मार झेल रही जनता को
अखबार का मालिक और संपादक सनकपन क्यों परोसता है, उसको दंगाई क्यों बनाना
चाहता है और वह क्यों नहीं चाहता कि जैसी बातें वह अंग्रेजी के लोगों का
परोस रहा है वह हिंदी वालों को भी दे। क्या वह सही और संतुलित बातें सिर्फ
अंग्रेजी वालों के लिए सुरक्षित रखना चाहता है?
अगर हां तो क्यों? इसका जवाब भी आपको ही ढुंढना है। इस बारे में मैं बस इतना कह सकता हूं कि अंग्रेजी सिर्फ भाषा के रूप में हिंदी की मालिक नहीं है, बल्कि हम जिन दफ्तरों में काम करते है और जो उनके अधिकारी—मालिक हैं, उनकी भी भाषा अंग्रेजी है। यानी मालिक वो हैं जिनकी भाषा अंग्रेजी है, मालिक वो हैं जिनकी जानकारी सही और संतुलित है।
इसलिए दोस्तों हमारी भाषा कमजोर नहीं है और हम इस वजह से दोयम नहीं हैं, बल्कि हमें अपनी भाषा को सही और संतुलित जानकारी देने वाली भाषा बनानी है। हमें तथ्यहीन, पर्वूग्रहित और मनगढ़ंत खबरों की हिंदी पत्रकारिता से बाहर निकलने की तैयारी करनी है, हिंदी से नहीं। यही जिद हमें बराबरी का सम्मान दिलाएगी, अंग्रेजी वालों के राज का अंत करेगी।
अगर हां तो क्यों? इसका जवाब भी आपको ही ढुंढना है। इस बारे में मैं बस इतना कह सकता हूं कि अंग्रेजी सिर्फ भाषा के रूप में हिंदी की मालिक नहीं है, बल्कि हम जिन दफ्तरों में काम करते है और जो उनके अधिकारी—मालिक हैं, उनकी भी भाषा अंग्रेजी है। यानी मालिक वो हैं जिनकी भाषा अंग्रेजी है, मालिक वो हैं जिनकी जानकारी सही और संतुलित है।
इसलिए दोस्तों हमारी भाषा कमजोर नहीं है और हम इस वजह से दोयम नहीं हैं, बल्कि हमें अपनी भाषा को सही और संतुलित जानकारी देने वाली भाषा बनानी है। हमें तथ्यहीन, पर्वूग्रहित और मनगढ़ंत खबरों की हिंदी पत्रकारिता से बाहर निकलने की तैयारी करनी है, हिंदी से नहीं। यही जिद हमें बराबरी का सम्मान दिलाएगी, अंग्रेजी वालों के राज का अंत करेगी।
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