Feb 15, 2017

नोटबंदी के बाद 12 लाख करोड़ वापस ले गए एनआरआई

जनज्वार। मोदी जी लगातार विदेश यात्राओं पर रहे और देशवासियों से कहते रहे कि हम सूट—बूट पहनकर कांग्रेसियों की तरह मौज मारने नहीं, बल्कि विदेशों में भारत के लिए इनवेस्टमेंट का माहौल बनाने जाते हैं। पर यहां हालत उल्टी हुई और सिर्फ 50 दिन की नोटबंदी में एनआरआई 12 लाख करोड़ रुपया लेकर वापए चले गए। 

बैंकरों के आंकड़े के मुताबिक नोटबंदी के बाद से विदेशों में बसे एनआरआई ने निवेश से तो हाथ पीछे खींच ही लिए, वहीं अक्टूबर—नवम्बर में 11.43 अरब डालर यानी तकरीबन 12 लाख करोड़ रुपए का कुल डिपॉजिट भुना लिया। नोटबंदी के बाद एनआरआई का भारतीय अर्थव्यवस्था पर से भरोसा कम हुआ है। एनआरआई ने फोरेन करेंसी नान रेजिडेंट बैंक यानी एफसीएनआर—बी को भुनाया है, जो कि एक बड़ा आंकड़ा है। अब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है और रुपए की तुलना में डालर अब और मजबूत होगा। 

नोटबंदी के बाद तो आम जनता परेशानी झेल ही रही है, अब डॉलर के और ज्यादा मजबूत होने की स्थिति में देश में महंगाई बेतरतीब बढ़ेगी। 

नए साल को छोड़ दें तो प्रधानमंत्री मोदी देश से ज्यादा विदेश में रहने के कारण सुर्खियां और जगहंसाई बटोरते रहे हैं। सरकार भी कहती रही है कि मोदी जी विदेश भ्रमण पिकनिक के ​लिए नहीं, ​बल्कि देश को पिछड़े के स्टेटस से विकसित की श्रेणी में लाने के लिए जाते रहे हैं।

पिछले वर्ष सरकार द्वारा जारी जानकारी के मुताबिक विश्व के कई देशों जापान, चीन, इंग्लैंड, कोरिया, यूएई, फ्रांस और जर्मनी ने मोदी जी के भ्रमण से प्रभावित होकर अगले पांच वर्षों में अरबों के निवेश करने का आश्वासन दिया था। सरकार ने मीडिया के माध्यम से देश को बताया कि इन देशों ने 22200 करोड़ डॉलर का पांच साल में निवेश का आश्वासन दिया है। पर नोटबंदी बाद सरकार यह बताने की हालत में नहीं है कि विदेशों से अब तक कितना इंवेस्टमेंट हुआ है। 

पर आर्थिक विशेषज्ञों की मानें तो निवेश का आश्वासन अब पूरा होता नहीं दिखता है। दुनिया भर में निवेश को प्रात्साहित करने के मानक तय करने वाली वैश्विक आर्थिक संस्था आईएमएफ ने नोटबंदी के बाद भारत को खराब निवेश का देश करार दिया है। 

भारत में निवेश को लेकर बने खराब माहौल के मद्देनजर आईएमएफ ने गिरती रेटिंग की है और आईएमएफ का कहना है कि भारत में निवेश के माहौल सामान्य होने में कमसे कम तीन साल और लग जाएंगे। यानी 2020 से पहले भारत की विकास दर 6.6 से उपर जाने में ​मुश्किल होगी। जबकि नोटबंदी से पहले भारत की विकास दर 7.6 थी जो नोटबंदी के बाद घटकर 6.6 रह गयी है।  

Feb 14, 2017

शहीदों को लेकर भ्रामक प्रचार बंद करो!

भगत सिंह और साथियों के मुकदमे के दस्तावेज मौजूद हैं जो कई किताबों में भी आ चुके हैं। लेकिन झूठ फैलाने वाली ब्रिगेड का दस्तावेजों से लेना-देना भी क्या है....

धीरेश सैनी

भगत सिंह को फांसी की सजा के नाम पर झूठे मैसेज वायरल करने वालों का देश और देश के शहीदों से कैसा रिश्ता है, समझना मुश्किल नहीं है। भगत सिंह और साथियों की फांसी पर जहां द्रविड विचारक रामासामी पेरियार ने अपने तमिल रिसाले में संपादकीय लिखकर इस शहादत के प्रति सम्मान व्यक्त किया था, वहीं आरएसएस शहादत के औचित्य पर सवाल खड़े कर रहा था। 

जब भगत सिंह जैसे विचारक-क्रांतिकारी देश की जनता को एकजुट होकर अंग्रेजों, साम्राज्यवाद और हर तरह की गैरबराबरी से लड़ने के लिए प्रेरित कर रहे थे, संघ अपने साम्प्रदायिक अभियान के जरिये अंग्रेजों की मदद ही कर रहा था। ऐसे में शहीदों के नाम पर झूठ फैलाए जाने पर कोई हैरत भी नहीं है। वैलंटाइन डे के विरोध के नाम पर कई साल पहले मैसेज जारी किए गए थे कि इस दिन भगत सिंह को फांसी हुई थी, इसलिए शहीदों को सम्मान देते हुए वैलंटाइन डे का बहिष्कार किया जाए। चूंकि भगत सिंह की शहादत की तारीख 23 मार्च 1931 बेहद मशहूर है, इसलिए पिछले कुछ सालों से यह मैसेज वायरल किया जाने लगा कि 14 फरवरी को भगत सिंह, राजगुरू औऱ सुखदेव को अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। यह भी कोरा झूठ है। 

सच यह है कि स्पेशल ट्रिब्यूनल ने फैसला 14 फरवरी को नहीं, बल्कि 7 अक्तूबर 1930 को सुनाया था जिसके तहत भगत सिंह, शिवराम राजगुरु उर्फ `एम` और सुखदेव को सजा-ए-मौत तथा किशोरी लाल, महावीर सिंह, विजय कुमार सिन्हा, शिव वर्मा, गया प्रसाद उर्फ निगम, जयदेव और कँवलनाथ तिवारी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। कुंदन लाल को सात साल सश्रम कारावास और प्रेमदत्त को पांच साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी। तीन अभियुक्तों देशराज, अजय कुमार घोष और जतिन्द्र नाथ सान्याल को रिहा कर दिया गया था।

पांच अभियुक्त जयगोपाल, फणीन्द्र नाथ घोष, मनमोहन बनर्जी, हंसराज वोहरा और ललित कुमार मुखर्जी को इकबालिया गवाह हो जाने के कारण कैद मुक्त करने का फैसला सुनाया गया था। इकबालिया गवाह रामशरण दास और ब्रह्मदत्त के लिए अलग आदेश जारी किए जाने की घोषणा की गई थी।

भगत सिंह और साथियों के मुकदमे के दस्तावेज मौजूद हैं जो कई किताबों में भी आ चुके हैं। लेकिन झूठ फैलाने वाली ब्रिगेड का दस्तावेजों से लेना-देना भी क्या है?

(धीरेश सैनी की फेसबुक वॉल से)

Feb 13, 2017

मोदी सरकार ने प्रचार में खर्च किए 11 अरब

ग्रेटर नोएडा के आरटीआई एक्टिविस्‍ट रामवीर तंवर को सूचना कानून अधिकार के तहत आयोग ने बताया कि केंद्र सरकार ने मात्र सवा दो साल में प्रचार पर 11 अरब रुपए खर्च कर दिए।

गौरतलब है कि 29 अगस्त 2016 को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से सूचना के अधिकार के जरिए आरटीआई एक्टिविस्‍ट रामवीर तंवर ने पूछा था कि केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी ने सरकार बनाने से लेकर अगस्‍त 2016 तक विज्ञापन पर कितना सरकारी पैसा खर्च किया है। तब उन्हें आयोग ने सिलसिलेवार तरीके से अलग—अलग मद के खर्च का ब्योरा दिया था। ध्यान रहे कि यह आंकड़ा 7 महीने पहले का है, जिसे औसतन भी देखा जाए तो अब 15 अरब से उपर जा चुका होगा।

देखिए, गरीबों और किसानों की सरकार का दंभ भरने वाली भाजपा ने किस माध्यम में प्रचार के लिए कितने करोड़ रूपये खर्च किए...

एसएमएस – 2014-  9.07 करोड़, 2015- 5.15 करोड़, अगस्त 2016- 3.86 करोड़

इंटरनेट - 2014-6. 61 करोड़, 2015-14.13 करोड़, अगस्त 2016-1.99 करोड़

ब्राॅडकास्ट -2014-64. 39 करोड़, 2015-94.54 करोड़ , अगस्त 2016-40.63 करोड़

कम्‍युनिटी रेडियो-2014 -88.40 लाख, 2015-2.27 करोड़, अगस्त 2016-81.45 लाख

डिजिटल सिनेमा -2014 -77 करोड़, 2015-1.06 अरब, अगस्त 2016-6.23 करोड़

टेलीकास्ट-  2014-2.36 अरब, 2015-2.45 अरब, अगस्त 2016-38.71 करोड़

प्राॅडक्शन -2014-8.20 करोड़, 2015-13.90 करोड़, अगस्त 2016-1.29 करोड़

साल के अनुसार सालाना खर्च

    2014- एक जून 2014 से 31 मार्च 2015 तक करीब 448 करोड़ रुपए खर्च
    2015- 1 अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2016 तक 542 करोड़ रुपए खर्च
    2016- 1 अप्रैल 2016 से 31 अगस्‍त 2016 तक 120 करोड़ रुपए खर्च

यूपी में चुनावी खर्चे का हिसाब और ईमानदारी की बिसात

​कुल सीटें 403.

हर सीट पर औसत प्रत्याशियों की संख्या 17 से 20.

इनमें से जीतने के लिए लड़ते हैं कम से कम 5.

जीतने के लिए लड़ने वाले प्रत्याशियों में प्रति प्रत्याशी औसत खर्च 2 करोड़ यानी 10 करोड़ लगाकर लड़ते हैं 5 प्रत्याशी.

शेष 10 से 15 प्रत्याशी निपट लेते हैं 5 करोड़ में.

यानी कुल मिलाकर एक विधानसभा में सभी प्रत्याशियों ने मिलकर खर्च किया 15 करोड़. 15 करोड़ को 403 सीटों से गुणा करते हैं तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का खर्च सिर्फ प्रत्याशियों के लिए 6045 करोड़ बैठता है. पर विधानसभा पहुंचा एक और मंत्री बना औसत 60 में से एक. विधानसभा त्रिशंकु हो गयी, तो फिर मातम ही सहारा। राष्ट्रपति शासन लग गया तो चौतरफा नुकसान. यानी रिस्क बहुत बड़ा और लाभ के खेल में सिर्फ कोई एक शामिल.

तीन बार विधायक और दो बार मंत्री रह चुके नेता ने जब चुनावी खर्चे का हिसाब सिलसिलेवार सुना दिया तो आखिर मुझसे पूछा, ''क्या यह खर्चा किसी को ईमानदार रहने देगा. अगर आप कह रहे हैं कि हम लूट का प्रतिनिधित्व करते हैं तो क्या कोई एक विधायक 5 साल में 15 करोड़ लूट पाता है? नहीं न। फिर फायदे में कौन रहा नेता या नेता को बनाने वाले.'' 

मंत्री आगे बोले, ''भारत में नेता बनाया जाता है, कोई नेता बनता नहीं है. आसपास के लोग आपको लाभ लायक समझते हैं, वही नेता बनाते हैं नहीं तो बहारकर फेंक देते हैं. राहुल गांधी नेता​गिरी नहीं करना चाहते, उनको शउर भी नहीं पर लट्ठ लेकर उनसे नेतागिरी करवाई जा रही है, क्योंकि करवाने वाले जानते हैं वह लाभ लायक हैं. रही बात ईमानदारी से चुनाव लड़ने की तो पूरे प्रदेश में सामान्य सीट पर कोई एक प्रत्याशी बताइए जो करोड़पति न हो और मुकाबले में हो। सिर्फ एक सीट पर.'' 

मंत्री आखिर में बोले, ''चुनाव में ईमानदारी की बात करना भी एक बाजार है. बेईमानी से वसूली का बाजार। क्या नाम बताउं, मेरे एक मित्र हैं. उनसे मैंने राजनीति का पाठ पढ़ा. वह भी चुनाव लड़े, पर कभी जीते नहीं. एक बार संयोग से मैं और वो दोनों एक ही विधानसभा से खड़े हुए. हम दोनों उस बार हार गए, पर एक राज की बात कहूं, मैंने अपना वोट उन्हीं को दिया था।''

Jan 29, 2017

पंजाब हारेंगे तो केजरीवाल जिम्मेदार


पंजाब में चुनाव प्रचार अपने पूरे चरम पर है । किसी समय इकतरफा आम आदमी पार्टी की झोली में जाते दिख रहे पंजाब में कांग्रेस ने तेजी से ना सिर्फ वापसी की है, बल्कि पंजाब के राजनीतिक हलकों और जनता की  बहस में कांग्रेस की सरकार बनने के भी कयास  लगाए जा रहे हैं।

आप कार्यकर्ताओं की मानें तो पंजाब में आम आदमी पार्टी की इस हालत के लिए अरविन्द केजरीवाल खुद जिम्मेवार हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में  जब अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी थी, यहां तक कि दिल्ली में भी उनकी पार्टी बुरी तरह हारी, ऐसे में पंजाब ने अप्रत्याशित रूप से 4 लोकसभा सांसद देकर मरणासन्न पड़ी पार्टी में न सिर्फ  संजीवनी बूटी देकर बचाने का काम किया, बल्कि कांग्रेस और अकाली में से किसी एक को हर बार चुनने को मजबूर जनता के सामने एक नया विकल्प पेश किया.

जनता ने आप को हाथोंहाथ लिया। हजारों की संख्या में नए कार्यकर्ता बने, जिन्होंने पंजाब में अपने स्थानीय नेतृत्व में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए काम करना शुरू किया। इनमें से जस्सी जसराज भगवंत मान ,एच एस फुलका, डॉ. धर्मवीर गांधी लोकप्रिय नेता बनके उभरे।  वहीं से आगामी मुख्यमंत्री पद का दावेदार कौन होगा, इसको लेकर चर्चाएं और गुटबाजी शुरू हो गई । पार्टी के पिछले लोकसभा चुनावों में प्रत्याशी रहे पार्टी के एक सदस्य ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि कुछ एक हिस्सों को छोड़कर  पंजाब में किसी पार्टी की लहर नहीं है और इस समय पार्टी को कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिल रही है ।

केजरीवाल को पिछले 2 सालों से एक ही चिंता सताए जा रही है कि कहीं ऐसा न हो कि आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद पंजाब का नेतृत्व उन्हें दरकिनार कर दे। उनका सारा ध्यान इसी में लगा रहा कि पंजाब के उभर रहे नेताओं का कद किस तरह कम किया जाए और कैसे चुनावों के बाद पंजाब सरकार हर काम  दिल्ली हाईकमान के निर्देशानुसार करे। इन्हीं सब कारणों से पार्टी को पंजाब में गंभीर नुकसान पहुँचने के कयास लगाए जा रहे हैं।

केजरीवाल की सबसे बड़ी गलती थी पंजाब के स्थानीय नेतृत्व को बड़े कद का होने से रोकना और पंजाब के हर निर्णय को खुद बिना स्थानीय नेतृत्व से सलाह किए बिना पंजाब पर थोपना। इसी से नाराज होकर पंजाब के एक बड़े नेता एच एस फुल्का जिनका नाम उस समय मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में था पार्टी के सभी पदों  व सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। पंजाब के इस समय पार्टी के सबसे बड़े नेता भगवंत मान का एक ऑडियो क्लिप आया था, जिसमें वे पटियाला के सांसद धर्मवीर गांधी को पंजाब और स्थानीय नेतृत्व को लेकर केजरीवाल की जमकर आलोचना कर रहे हैं।

पंजाब को पूरी तरह दिल्ली के नियंत्रण में रखने के लिए पंजाब के आब्जर्वर संजय सिंह और दुर्गेश पाठक को ख़ास निर्देशों के तहत ऐसे नए चेहरों की तलाश करने के लिए कहा गया, जो किसी भी तरह से स्थानीय नेताओं के प्रभाव में न हो। यहां तक कि युवाओं का घोषणापत्र जिसमें स्वर्ण मंदिर पर झाड़ू की तस्वीर थी, पंजाब में बिना किसी को दिखाए बिना पंजाब में  किसी से सलाह मशविरा किए दिल्ली से जारी किया गया और नाराजगी दिखाने पर प्रदेश संयोजक सुचा सिंह छोटेपुर को दिल्ली की टीम ने साजिश के तहत बाहर किया गया । 

आप पंजाब के एक बड़े नेता और भटिंडा से लोकसभा के उम्मीदवार जस्सी जसराज ने इन दोनों पर बड़ा आरोप लगाया। पार्टी के पुराने मेहनतकश कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर सिर्फ पैसे और रसूख के दम पर लोगों को पार्टी में ऊँचे पद देने का इल्जाम लगाया. उन्होंने टिकट वितरण में भी इन दोनों नेताओं पर बड़े पैमाने पर भ्र्ष्टाचार करने और पैसे के बदले टिकट देने का आरोप लगाया ।

उन्होंने आरोप लगाया कि बड़ी संख्या में  पुराने कांग्रेस और अकाली नेताओं जिन्होंने  पूरी उम्र भ्र्ष्टाचार करके पैसा कमाया है और जिनका जनसंघर्षों से दूर दूर तक कोई नाता नहीं रहा जो चुनाव से थोड़ा वक़्त पहले ही टिकट के लिए आए हैं और जिन्होंने लोकसभा चुनावों में पार्टी को वोट देना तो दूर आम आदमी पार्टी के खिलाफ जनता में जमकर जहर उगला था वे कैसे ईमानदार हो गए । पार्टी में 50 से ज्यादा ऐसे लोगों को टिकट दिया गया है जो या तो लंबे समय तक  अकाली या कांग्रेस पार्टी और सरकार में मलाईदार पदों पर रहे हैं या बस अपने पैसे और रसूख के दम पर टिकट के आश्वासन पर चुनावों से कुछ समय  पहले पार्टी में आए हैं 

पार्टी के अन्य  नेताओं का कहना है केजरीवाल से इस तरह की बेवकूफियों और गलतियों  की उम्मीद नहीं थी. पंजाब में नियुक्त 52 ओबजरवेर्स में से 50 को पंजाबी न बोलनी आती है ,न वे समझ सकते हैं, न ही उन्हें पंजाब की राजनीति के बारे में कुछ पता है। जिस कारण यहां के कार्यकर्ताओं और दिल्ली से भेजे गए आब्जर्वर के बीच एक बड़ी संवादहीनता रही है और वो कार्यकर्ताओं व आम जनता में काम करने की बजाए चमचों के साथ सैर सपाटा और अय्याशी करते रहे।

 यही नहीं जो भी कार्यकर्ता दिल्ली फ़ोन करके अपनी समस्या बताते रहे या दिल्ली अपनी बात रखने के लिए गए, पार्टी के उदासीन और दिल्ली के सरकारी नौकरशाही जैसे रवैये से वो नाराज होकर घर बैठ गए.  अभी भी पार्टी के कार्यकर्ताओं में संजय सिंह और दुर्गेश पाठक के प्रति जमकर गुस्सा है, जिनके  कार्यकर्ताओं के लिए दर्शन हमेशा दूभर रहे।  अपने पूरे प्रवास के दौरान पांच सितारा सुविधाओं वाली जगह पर ही रुकते थे। दोनों में से शायद ही किसी ने दलित बस्ती या आम गरीब जनता के बीच रात बिताई हो। खबर ये भी है चुनावों के बाद इन दोनों को पंजाब की राजनीति से अलग कर दिया जाएगा।

पर केजरीवाल के लिए इस समय  सबसे बड़ी चिंता भगवंत मान हैं, जो केजरीवाल की लाख कोशिशों के बाद भी कार्यकर्ताओं में मुख्यमंत्री का सबसे बड़ा और लोकप्रिय चेहरा हैं। चुनाव कुछ दिन दूर हैं, पर अभी भी मुख्यमंत्री कौन होगा, ये आम आदमी पार्टी की राजनीति का सबसे बड़ा सवाल है। पार्टी के सूत्रों का कहना है केजरीवाल या तो खुद मुख्यमंत्री बनेंगे या दिल्ली के अपने किसी ऐसे कृपापात्र को बनाएंगे, जिसके जरिए वो स्थानीय नेतृत्व को हमेशा अपने नियंत्रण में रख सकें, ताकि पार्टी व पंजाब के वही सुप्रीमो बने रहें।


वैसे उनका दिल्ली के विधायक जरनैल सिंह को पंजाब में चुनाव लड़वाना इसी ओर इशारा करता है । आम आदमी पार्टी पंजाब जीते या हारे, दोनों स्थितियों में पंजाब का स्थानीय नेतृत्व केजरीवाल से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार है । 

Jan 24, 2017

चुनाव प्रचार के लिए सनी लियोनी भी डिमांड में !

हमारे लिए यह कमाल का सवाल था। पर जिसने हमसे यह बात कही वह सनी लियोनी को लेकर तार्किक था और उसका कहना था कि चुनाव शुद्ध लो​कप्रियता का खेल है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 73 सीटों पर 11 फरवरी को चुनाव है। उसके मद्देनजर हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विधानसभा क्षेत्र गाजियाबाद, मेरठ, शामली और कैराना गए।

इस क्षेत्र में हमारी खास दिलचस्पी इसलिए थी कि पिछले 2014 लोकसभा चुनावों में इस इलाके के भरोसे ही संसद में भाजपा के सांसद भर गए। तो हमारे मन में सवाल यह था कि क्या तीन साल बाद इस क्षेत्र में आज भी वह जुनून बचा है जिसके बूते भाजपा उत्तर प्रदेश विधानसभा के 403 सीटों में से जीत के लिए 205 पास सीटें हासिल कर सके।

या फिर कांठ की हांड़ी दुबारा नहीं चढ़ेगी और भाजपा को उत्तर प्रदेश में भी वोट के लिए वैसे ही संघर्ष करना होगा जैसा उसको बिहार में करना पड़ा।

हम थानाभवन कस्बे निकलकर कैराना की ओर बढ़े। थानाभवन से सुरेश राणा बीजेपी के विधायक हैं। पर उनकी पार्टी में इज्जत मामूली विधायक की नहीं है बल्कि विधायक से अधिक वह पार्टी के लिए वे उन महत्वपूर्ण व्यक्तियों में हैं जिनके भरोसे भाजपा यूपी में माहौल बना सकी और 73  सांसद जिता सकी। सुरेशा राणा मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी हैं और उन पर दंगा, हत्या समेत कई गंभीर मकदमें चल रहे हैं।

पर इन विवादों और हिंदू—मुस्लिम तनाव के बदौलत लोकसभा में भाजपा के पक्ष में एकतरफा वोटिंग हुई। इसी वोटिंग एक नेमत कैराना लोकसभा सीट भी है, जहां के सांसद हुकुम सिंह हैं। हुुकुम सिंह पिछले वर्ष तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने मुजफ्फरनगर जिले से मुसलमान माफियाओं के डर से हिंदुओं के पलायन की एक लिस्ट जारी की थी।

हालांकि वह लिस्ट फर्जी पाई गयी। इस फर्जीवाड़े पर हुकुम​ सिंह की काफी छिछालेदर भी हुई। राज्य प्रशासन ने भी उन्हें झूठा करार दिया। पर वही झूठ वोटरों को हुकुम सिंह के और करीब लाई।

मैंने इस हवाले सेे कैराना कस्बे में सवाल की तरह पूछा कि आपका सांसद झूठ बोलता है, लोगों को दंगे के लिए उकसाता है, फिर भी आप हुकुम सिंह को क्यों पसंद करते हैं? क्या आप नहीं चाहते कि इलाके में शांति और सद्भाव कायम रहे।

जवाब मिला, 'देखो जी। सब सोचने का अपना—अपना नजरिया है। जिसको आप उकसाना कहते हैं उसको हम ठाठ कहते हैं और जिसको आप झूठ कहते हैं, उसको हम समाज के हित में किया गया काम कहते हैं।'

हमारी यह बातचीत एक दुकान पर हो रही थी। लोगों का कहना था ​यहां उत्तम क्वालिटी वाला मिल्क केक का मिलता है। लोग आ रहे थे और मिल्क केक और चाय पी रहे थे। एक हाथ में मिल्क केक और दूसरे मेें चाय। यह दृश्य आप हरियाणा, पंजाब के कुछ हिस्सों, राजस्थान और पश्चिमी यूपी में ही देख सकते हैं, जहां मीठे संग ​मीठा लेने चलन है।

हम इससे वाकिफ थे इसलिए बहुत गौर किए बगैर मैंने अपनी बातचीत लोगों से पूरी की। फिर चलने को हुआ तो एक आदमी मेरे आगे आधा किलो के करीब मिल्क केक रखते हुए बोला, 'बैठो पत्रकार साहब। हमसे भी कुछ जान लो।'

मैं मुस्कुराया। वह मिल्क केक का प्लेट मेरे हाथ तक लाते हुए बोला, 'आपके लिए ही है, खाओ जी। दूर—दूर से लोग आते हैं यहां जे मिठाई खाने।'

उसके बाद मेरी उससे कुछ बात हुई। लगा कि यह काफी कुछ जानता है इलाके के राजनीतिक गणित और समाजशास्त्र के बारे में।

पर उसका कुछ और मकसद था। वह मेरे सवालों को बार—बार टाल रहा था। उसने अपना नाम चौधरी रणविजय बताया। कहा कि मेरी यहां सभी पार्टियों के नेताओं से नज​दीकियां हैं। और मैं आपसे एक फेवर चाहता हूं।

मैंने कहा, 'बोलिए।' उसने कहा, एक कॉन्टैक्ट चाहिए। आप पत्रकार लोग हैं आपके पास नहीं होगा तो किसके पास होगा।'

मैंने पूछा, 'किसका चाहिए।' उसने तपाक से कहा, 'सनी लियोनी का।'
मैं हंस पड़ा और बोला, 'आप शाहरूख खान से ले ​लीजिए। इन दिनों पह उन्हीं के साथ हैं। पर उनका नंबर आप क्या करेंगे।'

उसने कहा, 'प्रचार के लिए चाहिए जी। जितना उसको फिल्म रईस से नहीं मिला होगा, उससे ज्यादा दिलवाएंगे।'

मैं, 'क्या बात करते हैं। कौन नेता है जो बुला रहा है प्रचार के लिए। कितना बवाल होगा, लोग बुरा मानेंगे कि आप एक पोने स्टार को प्रचार के लिए बुला रहे हैं। आप तो इस क्षेत्र को जानते हैं।'

पर वह अपनी बात से ​तनिक डिगा नहीं। उसने मेरे लिए चाय मंगवाई और समझाना जारी रखा।

कहा कि आप पार्टियों के प्रचार में नाच—गाने का वाले ​वीडियो पर टीवी में बहस—विवाद होते देखते होंगे न। नाच वाली पार्टियां बुलाई जाती हैं भीड़ जुटाने के लिए। सब नेता बुलाते हैं। नहीं तो नेताओं को कौन सुनने आएगा। फिर मोदी हों या सोनिया या अखिलेश या मायावती, इनके आने से कमसे कम तीन घंटे पहले से भीड़ को रो​क के रखना होता है। उससे पहले भीड़ छुटभैया नेताओं से रूकती नहीं। पहले लोग मुजरा डांस, रागिनी से रूक जाते थे लेकिन अब नहीं रूकते।

उसने मुझे मिल्क केक खाने के लिए जोर दिया और बोलना जारी रखा, 'फिर अब रागिनी या नाच बहुत आम हो चुका है। कुछ नया आइटम चाहिए। तो मुझे यह आइडिया समझ में आया। मैं बड़े दिनों से किसी कान्टैक्ट के कोशिश में था। दिल्ली भी गया था। पर कुछ हो नहीं पाया। अभी समय है। प्लीज आप कुछ करवा दीजिए। आप जो कहेंगे मैं आपके लिए भी कर दुंगा।'

मैंने जानना चाहा, 'सनी लियोनी तो पोर्न स्टार है। नाचने—गाने वाली फिर भी चल जाती हैं लेकिन वह, वह भी चुनाव में। लोग वोट देंगे कि गालियां।'

उसका मिल्क केक और चाय बेकार गया था, क्योंकि मैं उसके किसी काम न आ सका। मगर उसका सनी लियोनी को बुलाने और डांस कराकर भीड़ जुटाने का दुस्साहस मे​रे लिए एक नया अनुभव था।

चलते हुए उसने मुझे लगभग चुनौती देते हुए कहा, 'समय कम है इसलिए मैं शायद न बुला पाउं। पर आप इसे मजाक मत स​मझिए। आप देखिएगा इस चुनाव या अगले में मैं लियोनी को जरूर बुलाउंगा। मैं न बुलाया तो कोई और बुलाएगा, क्योंकि लोकप्रियता और विवाद ही प्रत्याशी की जान होती है। जो चर्चा में है, उसी की बोली लगती है, चाहे अच्छे वजह से हो या बुरी वजह से।'

मैंने पूछा, 'आपके पास कोई उदाहरण।'

उसने कहा, 'हुकुम सिंह, सुरेश राणा और संगीत सोम से बड़ा उदाहरण क्या है। प्रदेश में इनकी जितनी बीजेपी में चर्चा है, वह किसी दूसरे बीजेपी जनप्रतिनिधि की है। नहीं। यही होता है। जो विरोधी हैं उनके लिए ये दंगाई, अपराधी और समाजविभाजक हैं। मगर जो समर्थक हैं उनके लिए हीरो, कौम के रक्षक और सबसे बढ़कर मोदी जी के पहली पंक्ति में हैं। आदर्श हैं आदर्श। इसलिए आप नंबर दिलवाइए, बाकि हम पर छोड़ दीजिए।' 

मुझे आज भी इस चुनावी रणनीतिकार पर संदेह है पर वह ऐसा सोच पा रहा है तो ​जाहिर तौर पर उसका एक स्पेस इस चुनावी राजनीति ने बना दिया हैै।

Jan 23, 2017

तारेक फतेह जी न्यूज पर क्यों, उसके पीछे की कहानी सुनिए!


बीजेपी चुनाव से बहुत पहले ही उत्तर प्रदेश में लव जेहाद, गो हत्या, घर वापसी जैसे सारे बम फोड़ चुकी है। भाजपा कार्यकारिणी इस समय मुश्किल में है। कोई मुद्दा नहीं मिल रहा कि भाजपा प्रदेश स्तर पर बीच बहस में सबसे उपर दिखे या टीवी वाले यह भी बोल सकें कि जी, भाजपा की लहर है। 

कल परचा दाखिला का पहला दिन है। 11 फरवरी को 73 सीटों पर चुनाव है लेकिन मोदी जी ने जैसी हवा का बहाने का टार्गेट संघ और पार्टी को दिया है, उसकी हवा निकल चुकी है। कार्यकर्ताओं को बुस्टअप करने की सारी तरकीबें बेकार जा रही हैं।

ऐसे में मुद्दा बनाने के लिए भाजपा को अपने पार्टनर चैनल 'जी न्यूज' का सहारा लेना पड़ रहा है।

संघ के एक छुटभैया नेता 'भाईजी' के शब्दों में, 'कार्यकारिणी को क्या समझ में आता है? वह तो बस विधायक—सांसद बनने की तेजी में रहते हैं, अपनी गोट सेट करते हैं। आइडिया तो हमलोग देते हैं भाई जी। और हमने दिया भी। अब आप देखिएगा ​कैसे कल से यूपी चुनाव के बहस की दिशा बदलते हैं।'

करीब सप्ताह भर पहले मैं अपने एक नेता मित्र के साथ था, 'मैंने पूछा किया क्या? दंगा कराएंगे क्या?'

संघ के नेता मेरा हाथ थामते हुए, 'भाई जी दंगा नहीं अबकी विमर्श होगा, बहस होगा और जो उचित होगा उसपर फैसला होगा। हां, वे दंगा चाहेंगे तो दंगा भी होगा। पर हम हिंसा विरोधी हैं।'

फिर मैंने अपना सवाल दोहराया, 'किया क्या?'

संघ के नेता, 'तारेक फतेह को खड़ा कर दिया? अब जवाब दें मुसलमान। अब देखें कौन पार्टी है जो हिंदुओं को एकजुट होने से रोक पाती है।'

मैं, 'लेकिन वह तो भारत का ना​गरिक ही नहीं। फिर कैसे आपने खड़ा किया?'

संघ के नेता, 'चुनाव में नहीं भाई जी। टीवी में। उसमें कोई नागरिकता की जरूरत नहीं।'

मैं, 'मतलब गेस्ट बनाया। किस चैनल पर। क्या​ डिबेट है, कब है।'

संघ के नेता, 'देख लीजिएगा, खुद की पता चल जाएगा?'

फिर भी, 'क्या जी न्यूज पर।'

फिर वह और नेता मित्र हंस पड़े। तो मुझे समझ में आ गया ​कि तारेक फतेह जी न्यूज पर मसला बदलने आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने आ रहे हैं।

मैंने खुद से सवाल किया कि क्या कोई चैनल या मीडिया माध्यम ऐसा हो सकता है कि वह एक पार्टी का मुखपत्र ही माना जाने लगे। क्या इस प्रवृत्ति के रहते कल को वह अपने व्यावसायिक रूप बनाए रख पाएगा या उसे लोग मीडिया मानने को तैयार होंगे?

फिर याद आया कि जी न्यूज कर भी और क्या सकता है। आखिर भाजपा सरकार ने जो 7770 करोड़ को जो अहसान लादा है, आखिर उसको उतारने का और कोई क्या तरीका हो सकता है।

आप सबको याद होगा कि जी न्यूज की मालिक कंपनी 'एस्सेल ग्रुप' को हरियाणा और केंद्र सरकार ने मिलकर 7750 हजार करोड़ रुपए का ठेका दिया है। यह ठेका केेंद्रीय परिवहन मंत्रालय और हरियाणा सरकार ने दिया है।

ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि उत्तर प्रदेश की जनता एक मीडिया ग्रुप के व्यावसायिक लाभ के चक्रव्यूह और पार्टी के शातिराना तैयारी में फंसती है या इनको नोटिस ही नहीं करती!!!

Jan 20, 2017

जैसी भाजपा की चाहत वैसी मीडिया की सोच...

1. भाजपा चाहती है कि हर कीमत पर उत्तर प्रदेश में टक्कर में भाजपा—सपा दिखे, मीडिया ऐसा ही पेश कर रही है।

2. भाजपा चाहती है कि प्रदेश में धर्मनिरपेक्षता ही असल सवाल बने, मीडिया उसे ही मुद्दा बना रही है।

3. भाजपा चाहती है​ कि सांप्रदायिक तनाव की एक स्यूडो स्थिति पैदा हो, जिससे दूसरी पार्टियां सांप्रदायिकता पर केंद्रीत हों, मीडिया ऐसा ही कर रही है।

4. भाजपा चाहती है कि लोग नोटबंदी के बाद बढ़ी बेकारी और पलायन को भूल जाएं, उसकी असफलता मुद्दा न बने, मीडिया ऐसा ही कर रही है।

5. भाजपा चाहती है कि उत्तर प्रदेश में बसपा सीन में नहीं दिखे, मीडिया ऐसा ही कर रही है

6. भाजपा चाहती है कि नोटबंदी से तबाह हुए गरीब यूपी में मायावती के पक्ष में एकजुट न हों, उन पर स्टोरी न हो, मीडिया ऐसा ही कर रही है।

7. भाजपा चाहती है कि प्रदेश में बस दो ही मुद्दे हों हिंदू और मुसलमान, परिवार और पहलवान, मीडिया ऐसा ही कर रही है।

फिर भी आप मीडिया से कुछ एक्स्ट्रा की उम्मीद में इस चैनल से उस चैनल को टप—टप दाबे जा रहे हैं तो मेरी एक सुकुमार राय है मानिए...बी फोर म्यूजिक लगाइए और सुनिए...

'साजन मेरा उस पार है, मिलने को दिल बेकरार है...बेकरार...बेकरार है