हमारे लिए यह कमाल का सवाल था। पर जिसने हमसे यह बात कही वह सनी लियोनी को लेकर तार्किक था और उसका कहना था कि चुनाव शुद्ध लोकप्रियता का खेल है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 73 सीटों पर 11 फरवरी को चुनाव है। उसके मद्देनजर हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विधानसभा क्षेत्र गाजियाबाद, मेरठ, शामली और कैराना गए।
इस क्षेत्र में हमारी खास दिलचस्पी इसलिए थी कि पिछले 2014 लोकसभा चुनावों में इस इलाके के भरोसे ही संसद में भाजपा के सांसद भर गए। तो हमारे मन में सवाल यह था कि क्या तीन साल बाद इस क्षेत्र में आज भी वह जुनून बचा है जिसके बूते भाजपा उत्तर प्रदेश विधानसभा के 403 सीटों में से जीत के लिए 205 पास सीटें हासिल कर सके।
या फिर कांठ की हांड़ी दुबारा नहीं चढ़ेगी और भाजपा को उत्तर प्रदेश में भी वोट के लिए वैसे ही संघर्ष करना होगा जैसा उसको बिहार में करना पड़ा।
हम थानाभवन कस्बे निकलकर कैराना की ओर बढ़े। थानाभवन से सुरेश राणा बीजेपी के विधायक हैं। पर उनकी पार्टी में इज्जत मामूली विधायक की नहीं है बल्कि विधायक से अधिक वह पार्टी के लिए वे उन महत्वपूर्ण व्यक्तियों में हैं जिनके भरोसे भाजपा यूपी में माहौल बना सकी और 73 सांसद जिता सकी। सुरेशा राणा मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी हैं और उन पर दंगा, हत्या समेत कई गंभीर मकदमें चल रहे हैं।
पर इन विवादों और हिंदू—मुस्लिम तनाव के बदौलत लोकसभा में भाजपा के पक्ष में एकतरफा वोटिंग हुई। इसी वोटिंग एक नेमत कैराना लोकसभा सीट भी है, जहां के सांसद हुकुम सिंह हैं। हुुकुम सिंह पिछले वर्ष तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने मुजफ्फरनगर जिले से मुसलमान माफियाओं के डर से हिंदुओं के पलायन की एक लिस्ट जारी की थी।
हालांकि वह लिस्ट फर्जी पाई गयी। इस फर्जीवाड़े पर हुकुम सिंह की काफी छिछालेदर भी हुई। राज्य प्रशासन ने भी उन्हें झूठा करार दिया। पर वही झूठ वोटरों को हुकुम सिंह के और करीब लाई।
मैंने इस हवाले सेे कैराना कस्बे में सवाल की तरह पूछा कि आपका सांसद झूठ बोलता है, लोगों को दंगे के लिए उकसाता है, फिर भी आप हुकुम सिंह को क्यों पसंद करते हैं? क्या आप नहीं चाहते कि इलाके में शांति और सद्भाव कायम रहे।
जवाब मिला, 'देखो जी। सब सोचने का अपना—अपना नजरिया है। जिसको आप उकसाना कहते हैं उसको हम ठाठ कहते हैं और जिसको आप झूठ कहते हैं, उसको हम समाज के हित में किया गया काम कहते हैं।'
हमारी यह बातचीत एक दुकान पर हो रही थी। लोगों का कहना था यहां उत्तम क्वालिटी वाला मिल्क केक का मिलता है। लोग आ रहे थे और मिल्क केक और चाय पी रहे थे। एक हाथ में मिल्क केक और दूसरे मेें चाय। यह दृश्य आप हरियाणा, पंजाब के कुछ हिस्सों, राजस्थान और पश्चिमी यूपी में ही देख सकते हैं, जहां मीठे संग मीठा लेने चलन है।
हम इससे वाकिफ थे इसलिए बहुत गौर किए बगैर मैंने अपनी बातचीत लोगों से पूरी की। फिर चलने को हुआ तो एक आदमी मेरे आगे आधा किलो के करीब मिल्क केक रखते हुए बोला, 'बैठो पत्रकार साहब। हमसे भी कुछ जान लो।'
मैं मुस्कुराया। वह मिल्क केक का प्लेट मेरे हाथ तक लाते हुए बोला, 'आपके लिए ही है, खाओ जी। दूर—दूर से लोग आते हैं यहां जे मिठाई खाने।'
उसके बाद मेरी उससे कुछ बात हुई। लगा कि यह काफी कुछ जानता है इलाके के राजनीतिक गणित और समाजशास्त्र के बारे में।
पर उसका कुछ और मकसद था। वह मेरे सवालों को बार—बार टाल रहा था। उसने अपना नाम चौधरी रणविजय बताया। कहा कि मेरी यहां सभी पार्टियों के नेताओं से नजदीकियां हैं। और मैं आपसे एक फेवर चाहता हूं।
मैंने कहा, 'बोलिए।' उसने कहा, एक कॉन्टैक्ट चाहिए। आप पत्रकार लोग हैं आपके पास नहीं होगा तो किसके पास होगा।'
मैंने पूछा, 'किसका चाहिए।' उसने तपाक से कहा, 'सनी लियोनी का।'
मैं हंस पड़ा और बोला, 'आप शाहरूख खान से ले लीजिए। इन दिनों पह उन्हीं के साथ हैं। पर उनका नंबर आप क्या करेंगे।'
उसने कहा, 'प्रचार के लिए चाहिए जी। जितना उसको फिल्म रईस से नहीं मिला होगा, उससे ज्यादा दिलवाएंगे।'
मैं, 'क्या बात करते हैं। कौन नेता है जो बुला रहा है प्रचार के लिए। कितना बवाल होगा, लोग बुरा मानेंगे कि आप एक पोने स्टार को प्रचार के लिए बुला रहे हैं। आप तो इस क्षेत्र को जानते हैं।'
पर वह अपनी बात से तनिक डिगा नहीं। उसने मेरे लिए चाय मंगवाई और समझाना जारी रखा।
कहा कि आप पार्टियों के प्रचार में नाच—गाने का वाले वीडियो पर टीवी में बहस—विवाद होते देखते होंगे न। नाच वाली पार्टियां बुलाई जाती हैं भीड़ जुटाने के लिए। सब नेता बुलाते हैं। नहीं तो नेताओं को कौन सुनने आएगा। फिर मोदी हों या सोनिया या अखिलेश या मायावती, इनके आने से कमसे कम तीन घंटे पहले से भीड़ को रोक के रखना होता है। उससे पहले भीड़ छुटभैया नेताओं से रूकती नहीं। पहले लोग मुजरा डांस, रागिनी से रूक जाते थे लेकिन अब नहीं रूकते।
उसने मुझे मिल्क केक खाने के लिए जोर दिया और बोलना जारी रखा, 'फिर अब रागिनी या नाच बहुत आम हो चुका है। कुछ नया आइटम चाहिए। तो मुझे यह आइडिया समझ में आया। मैं बड़े दिनों से किसी कान्टैक्ट के कोशिश में था। दिल्ली भी गया था। पर कुछ हो नहीं पाया। अभी समय है। प्लीज आप कुछ करवा दीजिए। आप जो कहेंगे मैं आपके लिए भी कर दुंगा।'
मैंने जानना चाहा, 'सनी लियोनी तो पोर्न स्टार है। नाचने—गाने वाली फिर भी चल जाती हैं लेकिन वह, वह भी चुनाव में। लोग वोट देंगे कि गालियां।'
उसका मिल्क केक और चाय बेकार गया था, क्योंकि मैं उसके किसी काम न आ सका। मगर उसका सनी लियोनी को बुलाने और डांस कराकर भीड़ जुटाने का दुस्साहस मेरे लिए एक नया अनुभव था।
चलते हुए उसने मुझे लगभग चुनौती देते हुए कहा, 'समय कम है इसलिए मैं शायद न बुला पाउं। पर आप इसे मजाक मत समझिए। आप देखिएगा इस चुनाव या अगले में मैं लियोनी को जरूर बुलाउंगा। मैं न बुलाया तो कोई और बुलाएगा, क्योंकि लोकप्रियता और विवाद ही प्रत्याशी की जान होती है। जो चर्चा में है, उसी की बोली लगती है, चाहे अच्छे वजह से हो या बुरी वजह से।'
मैंने पूछा, 'आपके पास कोई उदाहरण।'
उसने कहा, 'हुकुम सिंह, सुरेश राणा और संगीत सोम से बड़ा उदाहरण क्या है। प्रदेश में इनकी जितनी बीजेपी में चर्चा है, वह किसी दूसरे बीजेपी जनप्रतिनिधि की है। नहीं। यही होता है। जो विरोधी हैं उनके लिए ये दंगाई, अपराधी और समाजविभाजक हैं। मगर जो समर्थक हैं उनके लिए हीरो, कौम के रक्षक और सबसे बढ़कर मोदी जी के पहली पंक्ति में हैं। आदर्श हैं आदर्श। इसलिए आप नंबर दिलवाइए, बाकि हम पर छोड़ दीजिए।'
मुझे आज भी इस चुनावी रणनीतिकार पर संदेह है पर वह ऐसा सोच पा रहा है तो जाहिर तौर पर उसका एक स्पेस इस चुनावी राजनीति ने बना दिया हैै।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 73 सीटों पर 11 फरवरी को चुनाव है। उसके मद्देनजर हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विधानसभा क्षेत्र गाजियाबाद, मेरठ, शामली और कैराना गए।
इस क्षेत्र में हमारी खास दिलचस्पी इसलिए थी कि पिछले 2014 लोकसभा चुनावों में इस इलाके के भरोसे ही संसद में भाजपा के सांसद भर गए। तो हमारे मन में सवाल यह था कि क्या तीन साल बाद इस क्षेत्र में आज भी वह जुनून बचा है जिसके बूते भाजपा उत्तर प्रदेश विधानसभा के 403 सीटों में से जीत के लिए 205 पास सीटें हासिल कर सके।
या फिर कांठ की हांड़ी दुबारा नहीं चढ़ेगी और भाजपा को उत्तर प्रदेश में भी वोट के लिए वैसे ही संघर्ष करना होगा जैसा उसको बिहार में करना पड़ा।
हम थानाभवन कस्बे निकलकर कैराना की ओर बढ़े। थानाभवन से सुरेश राणा बीजेपी के विधायक हैं। पर उनकी पार्टी में इज्जत मामूली विधायक की नहीं है बल्कि विधायक से अधिक वह पार्टी के लिए वे उन महत्वपूर्ण व्यक्तियों में हैं जिनके भरोसे भाजपा यूपी में माहौल बना सकी और 73 सांसद जिता सकी। सुरेशा राणा मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी हैं और उन पर दंगा, हत्या समेत कई गंभीर मकदमें चल रहे हैं।
पर इन विवादों और हिंदू—मुस्लिम तनाव के बदौलत लोकसभा में भाजपा के पक्ष में एकतरफा वोटिंग हुई। इसी वोटिंग एक नेमत कैराना लोकसभा सीट भी है, जहां के सांसद हुकुम सिंह हैं। हुुकुम सिंह पिछले वर्ष तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने मुजफ्फरनगर जिले से मुसलमान माफियाओं के डर से हिंदुओं के पलायन की एक लिस्ट जारी की थी।
हालांकि वह लिस्ट फर्जी पाई गयी। इस फर्जीवाड़े पर हुकुम सिंह की काफी छिछालेदर भी हुई। राज्य प्रशासन ने भी उन्हें झूठा करार दिया। पर वही झूठ वोटरों को हुकुम सिंह के और करीब लाई।
मैंने इस हवाले सेे कैराना कस्बे में सवाल की तरह पूछा कि आपका सांसद झूठ बोलता है, लोगों को दंगे के लिए उकसाता है, फिर भी आप हुकुम सिंह को क्यों पसंद करते हैं? क्या आप नहीं चाहते कि इलाके में शांति और सद्भाव कायम रहे।
जवाब मिला, 'देखो जी। सब सोचने का अपना—अपना नजरिया है। जिसको आप उकसाना कहते हैं उसको हम ठाठ कहते हैं और जिसको आप झूठ कहते हैं, उसको हम समाज के हित में किया गया काम कहते हैं।'
हमारी यह बातचीत एक दुकान पर हो रही थी। लोगों का कहना था यहां उत्तम क्वालिटी वाला मिल्क केक का मिलता है। लोग आ रहे थे और मिल्क केक और चाय पी रहे थे। एक हाथ में मिल्क केक और दूसरे मेें चाय। यह दृश्य आप हरियाणा, पंजाब के कुछ हिस्सों, राजस्थान और पश्चिमी यूपी में ही देख सकते हैं, जहां मीठे संग मीठा लेने चलन है।
हम इससे वाकिफ थे इसलिए बहुत गौर किए बगैर मैंने अपनी बातचीत लोगों से पूरी की। फिर चलने को हुआ तो एक आदमी मेरे आगे आधा किलो के करीब मिल्क केक रखते हुए बोला, 'बैठो पत्रकार साहब। हमसे भी कुछ जान लो।'
मैं मुस्कुराया। वह मिल्क केक का प्लेट मेरे हाथ तक लाते हुए बोला, 'आपके लिए ही है, खाओ जी। दूर—दूर से लोग आते हैं यहां जे मिठाई खाने।'
उसके बाद मेरी उससे कुछ बात हुई। लगा कि यह काफी कुछ जानता है इलाके के राजनीतिक गणित और समाजशास्त्र के बारे में।
पर उसका कुछ और मकसद था। वह मेरे सवालों को बार—बार टाल रहा था। उसने अपना नाम चौधरी रणविजय बताया। कहा कि मेरी यहां सभी पार्टियों के नेताओं से नजदीकियां हैं। और मैं आपसे एक फेवर चाहता हूं।
मैंने कहा, 'बोलिए।' उसने कहा, एक कॉन्टैक्ट चाहिए। आप पत्रकार लोग हैं आपके पास नहीं होगा तो किसके पास होगा।'
मैंने पूछा, 'किसका चाहिए।' उसने तपाक से कहा, 'सनी लियोनी का।'
मैं हंस पड़ा और बोला, 'आप शाहरूख खान से ले लीजिए। इन दिनों पह उन्हीं के साथ हैं। पर उनका नंबर आप क्या करेंगे।'
उसने कहा, 'प्रचार के लिए चाहिए जी। जितना उसको फिल्म रईस से नहीं मिला होगा, उससे ज्यादा दिलवाएंगे।'
मैं, 'क्या बात करते हैं। कौन नेता है जो बुला रहा है प्रचार के लिए। कितना बवाल होगा, लोग बुरा मानेंगे कि आप एक पोने स्टार को प्रचार के लिए बुला रहे हैं। आप तो इस क्षेत्र को जानते हैं।'
पर वह अपनी बात से तनिक डिगा नहीं। उसने मेरे लिए चाय मंगवाई और समझाना जारी रखा।
कहा कि आप पार्टियों के प्रचार में नाच—गाने का वाले वीडियो पर टीवी में बहस—विवाद होते देखते होंगे न। नाच वाली पार्टियां बुलाई जाती हैं भीड़ जुटाने के लिए। सब नेता बुलाते हैं। नहीं तो नेताओं को कौन सुनने आएगा। फिर मोदी हों या सोनिया या अखिलेश या मायावती, इनके आने से कमसे कम तीन घंटे पहले से भीड़ को रोक के रखना होता है। उससे पहले भीड़ छुटभैया नेताओं से रूकती नहीं। पहले लोग मुजरा डांस, रागिनी से रूक जाते थे लेकिन अब नहीं रूकते।
उसने मुझे मिल्क केक खाने के लिए जोर दिया और बोलना जारी रखा, 'फिर अब रागिनी या नाच बहुत आम हो चुका है। कुछ नया आइटम चाहिए। तो मुझे यह आइडिया समझ में आया। मैं बड़े दिनों से किसी कान्टैक्ट के कोशिश में था। दिल्ली भी गया था। पर कुछ हो नहीं पाया। अभी समय है। प्लीज आप कुछ करवा दीजिए। आप जो कहेंगे मैं आपके लिए भी कर दुंगा।'
मैंने जानना चाहा, 'सनी लियोनी तो पोर्न स्टार है। नाचने—गाने वाली फिर भी चल जाती हैं लेकिन वह, वह भी चुनाव में। लोग वोट देंगे कि गालियां।'
उसका मिल्क केक और चाय बेकार गया था, क्योंकि मैं उसके किसी काम न आ सका। मगर उसका सनी लियोनी को बुलाने और डांस कराकर भीड़ जुटाने का दुस्साहस मेरे लिए एक नया अनुभव था।
चलते हुए उसने मुझे लगभग चुनौती देते हुए कहा, 'समय कम है इसलिए मैं शायद न बुला पाउं। पर आप इसे मजाक मत समझिए। आप देखिएगा इस चुनाव या अगले में मैं लियोनी को जरूर बुलाउंगा। मैं न बुलाया तो कोई और बुलाएगा, क्योंकि लोकप्रियता और विवाद ही प्रत्याशी की जान होती है। जो चर्चा में है, उसी की बोली लगती है, चाहे अच्छे वजह से हो या बुरी वजह से।'
मैंने पूछा, 'आपके पास कोई उदाहरण।'
उसने कहा, 'हुकुम सिंह, सुरेश राणा और संगीत सोम से बड़ा उदाहरण क्या है। प्रदेश में इनकी जितनी बीजेपी में चर्चा है, वह किसी दूसरे बीजेपी जनप्रतिनिधि की है। नहीं। यही होता है। जो विरोधी हैं उनके लिए ये दंगाई, अपराधी और समाजविभाजक हैं। मगर जो समर्थक हैं उनके लिए हीरो, कौम के रक्षक और सबसे बढ़कर मोदी जी के पहली पंक्ति में हैं। आदर्श हैं आदर्श। इसलिए आप नंबर दिलवाइए, बाकि हम पर छोड़ दीजिए।'
मुझे आज भी इस चुनावी रणनीतिकार पर संदेह है पर वह ऐसा सोच पा रहा है तो जाहिर तौर पर उसका एक स्पेस इस चुनावी राजनीति ने बना दिया हैै।
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