Feb 17, 2011

महाशिवरात्रि का आनंद लेने बराड़ा आयें

अम्बाला.सबसे ऊंचा रावण बनाए जाने का विश्व कीर्तिमान स्थापित करने के बाद अब हरियाणा के अंबाला जिले के  बराड़ा कस्बे में महाशिवरात्रि का विशाल एवं भव्य आयोजन दो मार्च को होने  जा रहा है। बराड़ा के श्रीरामलीला क्लब एवं ओंकार कलामंच के संयुक्त प्रयास से  आगामी दो मार्च को निकाली जाने वाली महाशिवरात्रि की विशाल शोभायात्रा की तैयारियां इन दिनों चरम पर हैं।

आयोजक  संस्था के संस्थापक अध्यक्ष राणा तेजिंद्र सिंह चौहान ने महाशिवरात्रि की तैयारियों के बारे में बताया कि अपने निरंतर आयोजन के दो दशक पूरे कर चुकने के बाद इस वर्ष भी शोभा यात्रा में तमाम प्रमुख विशालकाय प्रतिमाएं एवं आकर्षक झांकियां जनता एवं भक्तजनों के दर्शनार्थ प्रस्तुत की जाएंगी।



इन विशालकाय प्रतिमाओं एवं झांकियों में शिव  परिवार,शेर सहित दुर्गा माता,पंचमुखी हनुमानजी,जल प्रवाह करती गंगा मैया,शिव जटाओं से निकलती शिवगंगा,शिरडी वाले साईं बाबा,मूषक पर सवार गणेश जी,कृष्ण-बकासुर,विष्णु-गरुड,शिवलिंग,कमल में विराजमान ब्रह महाकाल,बाल्मीकि जी,राधा-कृष्ण,गऊ माता आदि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त शंकर जी बारात की झांकी भी प्रस्तुत की जाएगी। विशेषरूप से इस बार आगरा के शंकर जादूगर शोभायात्रा में अपने जादू के शानदार करतब भी दिखलाएंगे।

तेजिंद्र चौहान ने बताया कि इस वर्ष महाशिवरात्रि में शोभायात्रा की रौनक बढाऩे हेतु देश की जिन सुप्रसिद्ध बैंड पार्टियों को आमंत्रित किया गया है वे हैं,रवि बैंड मेरठ,अशोक बैंड सहारनपुर,पंजाब बैंड सहारनपुर,हीरा बैंड शामली,पंजाब बैंड ज्वालापुर,सुंदर बैंड मुजफ्फरनगर ,सोनू बैंड रुड़की,लक्ष्मी बैंड करनाल,हीरा बैंड यमुना नगर,रवि बैंड अंबाला,न्यू हीरा बैंड पंचकुला,लक्ष्मी बैंड कुरुक्षेत्र,हीरा बैंड सरसावा आदि।

इसके अतिरिक्त मेरठ के प्रसिद्ध शहनाई वादक रूपाशंकर और साथी शोभायात्रा में जहां अपनी शहनाई पेश करेंगे,वहीं मेरठ के रविशंकर शहनाई वादक,रविशंकर ताशा पार्टी मेरठ तथा शमशाद एंड पार्टी,पंजाबी ढोल चंडीगढ़ भी महाशिवरात्रि के अवसर पर अपने हुनर व कला का शानदार प्रदर्शन करेंगे।

राणा तेजिंद्र चौहान के अनुसार महाशिवरात्रि की यह विशाल शोभा यात्रा बराड़ा स्थित नई अनाज मंडी से दो मार्च को प्रात:10बजे आरंभ होकर अपने निर्धारित मार्गों से होते हुए लगभग तीन किलोमीटर का मार्ग तय कर बराड़ा गांव में पहुंचेगी जहां इस कार्यक्रम का समापन होगा।

चंद्रकांत देवताले को कविता समय सम्मान


''पहला कविता समय सम्मान हिंदी के वरिष्ठतम कवियों में एक चंद्रकांत देवताले को और पहला कविता समय युवा सम्मान  युवा कवि कुमार अनुपम को दिया जायेगा.“दखल विचार मंच”और “प्रतिलिपि” के सहयोग से हिंदी कविता के प्रसार, प्रकाशन और उस पर विचार विमर्श के लिए की गयी पहल कविता समय के अंतर्गत दो वार्षिक कविता सम्मान स्थापित करने का निर्णय संयोजन समिति द्वारा लिया गया.

समिति के चारों सदस्यों –बोधिसत्व,पवन करण,गिरिराज किराडू और अशोक कुमार पाण्डेय –ने सर्वसहमति से वर्ष २०११ के सम्मान चंद्रकांत देवताले और कुमार अनुपम को देने का फैसला लिया. कविता समय सम्मान के तहत एक प्रशस्ति पत्र और पाँच हजार रुपये की राशि तथा कविता समय युवा सम्मान के तहत एक प्रशस्ति पत्र और ढाई हजार रुपये की राशि प्रदान की जाएगी.
कविता समय सम्मान हर वर्ष ६० वर्ष से अधिक आयु के एक वरिष्ठ कवि को दिया जायेगा जिसकी कविता ने निरंतर मुख्यधारा कविता और उसके कैनन को प्रतिरोध देते हुए अपने ढंग से,अपनी शर्तों पर एक भिन्न काव्य-संसार निर्मित किया हो और हमारे-जैसे कविता-विरोधी समय में निरन्तर सक्रिय रहते हुए अपनी कविता को विभिन्न शक्तियों द्वारा अनुकूलित नहीं होने दिया हो.

कविता समय युवा सम्मान ४५ वर्ष से कम आयु के एक पूर्व में अपुरस्कृत ऐसे कवि को दिया जायेगा जिसकी कविता की ओर, उत्कृष्ट संभावनाओं के बावजूद, अपेक्षित ध्यानाकर्षण न हुआ हो. इस वर्ष के सम्मान ग्वालियर में २५-२६ फरवरी को हो रहे पहले कविता समय आयोजन में प्रदान किये जायेंगे.''

Feb 16, 2011

वे घसीटते रहे ... मैं गिड़गिड़ाती रही



ये आदिवासी लड़की एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता है.इसे बालों से बांधकर केंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों ने गाँव की गालियों में घसीटा था. इस  इंटरव्यू की एक प्रति राष्ट्रीय  महिला आयोग की अध्यक्ष और कांग्रेसी सांसद गिरिजा व्यास के हाथ में भी सौंपी गयी थी. परन्तु न्याय मिलना तो दूर, कोई जाँच करने की भी जहमत नहीं की गयी.

आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार की बातचीत











Feb 15, 2011

साम्राज्यवादी स्थिरता का जनतांत्रिक विकल्प


होस्नी मुबारक का सबसे परममित्र व सहयोगी अमेरिका भी इस समय मिस्र की जनता-जनार्दन के सुर से अपना सुर मिलाने में अपनी भलाई समझ रहा है...

तनवीर जाफरी

मिस्र में 11फरवरी 2011 का दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. देश की सत्ता पर 30 वर्षों तक क़ब्ज़ा जमाए 82 वर्षीय राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को भारी जन आक्रोश के चलते राजधानी क़ाहिरा स्थित अपने आलीशान महल अर्थात राष्ट्रपति भवन को छोड़ कर शर्म-अल-शेख़ भागना पड़ा। तमाम अन्य देशों के स्वार्थी, क्रूर एवं सत्ता लोभी तानाशाहों की तरह ही मिस्र में भी राष्ट्रपति होस्नी मुबारक ने अपनी प्रशासनिक पकड़ बेहद मज़बूत कर रखी थी।

ऐसा प्रतीत नहीं हो पा रहा था कि मुबारक को अपने जीते जी कभी सत्ता से अपदस्थ भी होना पड़ सकता है। परंतु यह सारे कयास उस समय धराशायी हो गए जबकि शांतिपूर्ण एवं अहिंसक राष्ट्रव्यापी जनाक्रोश के साथ 18 दिनों तक चले लंबे टकराव के बाद अखिऱकार मुबारक को अपनी गद्दी छोडऩी ही पड़ी। मुबारक के तीन दशकों के शासन के दौरान देश में जहां भ्रष्टाचार,बेरोज़गारी,भूखमरी तथा गरीबी ने पूरे देश में पैर पसारा वहीं राष्ट्रपति मुबारक स्वयं दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बनने में पूरी तरह सफल रहे।

होस्नी मुबारक और ओबामा : नहीं काम आयी अमेरिकी सलाह

मुबारक के धन कुबेर होने का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे इस समय लगभग 70 अरब डालर की संपत्ति के स्वामी हैं। जबकि माईक्रो सॉफ्ट कंपनी के प्रमुख बिल गेटस तथा मैक्सिको के व्यवसायी कार्लोस स्लिम हेल जैसे विश्व के सबसे बड़े उद्योगपति 52 से लेकर 53 अरब डॉलर तक के ही मालिक हैं। खबरें आ रही हैं कि मुबारक की लंदन,मैनहट्टन तथा रेडियोड्राईवे में भी काफी संपत्तियां हैं तथा स्विस बैंक सहित अन्य कई देशों में इनके खाते भी हैं। यह भी समाचार है कि स्विस बैंक ने उन खातों को बंद करने की घोषणा की है जिनपर होस्नी मुबारक के खाते होने का संदेह है।

मिस्र  में आए इस भारी जनतांत्रिक परिवर्तन की और भी ऐसी कई विशेषताएं रहीं जो काबिले ग़ौर हैं । मध्यपूर्व एशिया के सबसे मज़बूत देश होने के बावजूद यहां आए राजनैतिक परिवर्तन में न तो कोई सैनिक क्रांति हुई न ही किसी प्रकार की खूनी क्रांति.जनता भी पूरी तरह अहिंसा व शांति के रास्तों पर चलते हुए 18दिनों तक लगातार किसी हथियार व लाठी डंडे के बिना क़ाहिरा के तहरीर चौक सहित मिस्र के अन्य कई प्रमुख शहरों में मुबारक विरोधी प्रर्दशन करती रही। जनता की केवल एक ही मांग थी कि मुबारक गद्दी छोड़ो और देश में जनतंत्र स्थापित होने दो।

राष्ट्रपति मुबारक ने इन अट्ठारह दिनों के प्रदर्शन के दौरान ऐसी कई चालें चलीं जिनसे कि वे स्वयं को कुछ दिनों तक और राष्ट्रपति के पद पर बनाए रख सकें। उन्होंने अपने अधिकार भी उपराष्ट्रपति को हस्तांरति करने की बात कही। बाद में उन्होंने अपने एक संबोधन में मिस्रवासियों से यह वादा भी किया कि वे अगला राष्ट्रपति चुनाव भी नहीं लड़ेगें। परंतु जनता की तो बस एक ही मांग थी -मुबारक फौरन गद्दी छोड़ दो। आखिऱकार मुबारक ने जनाक्रोश को दबाने के लिए हिंसा का रास्ता चुनने का भी एक असफल प्रयास किया।

पहले तो मुबारक ने सेना से प्रदर्शनकारियों से निपटने को कहा। जब सेना ने जनतंत्र की मांग करने वाले प्रदर्शनकारियों के विरूद्ध बल प्रयोग से इंकार कर दिया उसके बाद मुबारक ने स्थानीय पुलिस कर्मियों को सादे लिबास में घोड़ों व ऊंटों पर सवार होकर प्रदर्शनकारियों से मुठभेड़ कर उन्हें खदेडऩे को कहा। इसके परिणामस्वरूप क़ाहिरा में थोड़ा बहुत तनाव ज़रूर पैदा हुआ लेकिन मुट्ठीभर सरकारी मुबारक समर्थकों को भारी जनसैलाब के मुकाबले पीछे हटना पड़ा।

मिस्र में आए इस ऐतिहासिक बदलाव के पीछे इंटरनेट पर चलने वाली फेसबुक जैसी कई सोशल नेटवर्किंग साईट की भी बहुत अहम भूमिका रही। यही वजह थी कि आम जनता एक दूसरे के सीधे संपर्क में आकर सड़कों पर निकल आई। इस आंदोलन को न तो किसी विशेष राजनैतिक दल ने संचालित किया न ही इस ऐतिहासिक परिवर्तन के पीछे किसी नेता विशेष का कोई हाथ नज़र आया। हां टयूनीशिया की उस घटना ने मिस्रवासियों को अवश्य प्रेरणा दी जिसमें कि जनक्रांति के कारण ही कुछ दिनों पूर्व ही वहां के तानाशाह एवं प्रमुख ज़ैनुल आबदीन बिन अली को देश छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा।

मिस्रवासी होस्नी मुबारक द्वारा की जाने वाली लगातार उपेक्षा से तंग आ चुके थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि मुबारक जब 1975 में उपराष्ट्रपति बने तथा उसके बाद 1981 में अनवर सादात की हत्या के बाद राष्ट्रपति की कुर्सी पर विराजमान हुए,उस शुरुआती दौर में मिस्री अवाम उन्हें बेहद प्यार करती थी। यहां तक कि अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने अपने सैकड़ों विरोधियों,विरोधी नेताओं,धार्मिक नेताओं तथा अपने विरुद्ध साजि़श रचने का संदेह करने वालों को मौत के घाट उतारा। उन्होंने अपने शासन के दौरान अपने विपक्षी दलों को सिर नहीं उठाने दिया। परंतु जनता यह सब कुछ देखती व सहन करती रही।

मिस्र के आम लोग अमेरिकी नीतियों के आमतौर पर विरोधी थे। परंतु होस्नी मुबारक मध्यपूर्व एशिया में अमेरिका के सबसे परम मित्र बने रहे। फिर भी जनता खा़मोश रही। 1979 में मिस्र-इज़राईल के मध्य एक संधि हुई। यह भी मिस्री अवाम ने न चाहते हुए भी स्वीकार किया लेकिन अपनी बदहाली,बेरोज़गारी तथा अपने बच्चों के भविष्य के प्रश्रचिन्ह को वह सहन नहीं कर सकी।

होस्नी मुबारक का सबसे परममित्र व सहयोगी अमेरिका भी इस समय मिस्र की जनता-जनार्दन के सुर से अपना सुर मिलाने में ही अपनी भलाई समझ रहा है। कल तक स्थिर सरकार की बात कह कर होस्नी मुबारक को समर्थन देने वाला अमेरिका अब जनतांत्रिक व्यवस्था को ही मिस्र में ज़रूरी समझ रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा जो कि अपनी अहिंसक विचारधारा के लिए भी दुनिया में जाने जाते हैं तथा मिस्र में ही क़ाहिरा में असलामअलैकुम कह कर अमेरिका व दुनिया के मुस्लिम देशों के बीच फैले मतभेद को दूर करने का प्रयास किया था,उन्होंने भी क़ाहिरा की शांतिपूर्वक एवं अहिंसक जनक्रांति पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा है कि 'प्रदर्शनकारियों ने इस विचार को झूठा साबित कर दिया है कि इंसाफ हिंसा के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।

प्रदर्शनकारी बार-बार यह नारे लगा रहे थे कि वे शांति बनाए रखेंगे। मिस्र में अहिंसा का नैतिक बल था। आतंकवाद नहीं, बिना सोचे-समझे मारकाट नहीं, और इसी इतिहास ने न्याय की ओर करवट ली। अपने इस वक्तव्य से अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने मिस्र की नीतियों को लेकर भविष्य में होने वाले अमेरिकी परिवर्तन की ओर साफ इशारा कर दिया है कि अब अमेरिका मिस्र में मुबारक सरकार जैसी तथाकथित स्थिरता की नहीं बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों व मानवाधिकारों की रक्षा की दुहाई देता हुआ नज़र आ रहा है।

मुबारक के गद्दी छोडऩे व क़ाहिरा छोड़कर जाने के बाद मिस्र को लेकर कई तरह की चिंताएं ज़ाहिर की जा रही हैं। इस समय मिस्र की सेना की आलाकमान के प्रमुख फ़ील्ड मार्शल मोह मद हुसैन तंतावी हैं। इन्होंने शीघ्र ही देश में निष्पक्ष चुनाव कराने तथा देश की बागडोर जनता के हाथों में सौंपने का संकेत दिया है। परंतु मिस्र तथा टयूनीशिया के हालात के बाद अब सबसे बड़ी चिंता अमेरिकी व यूरोपीय देशों के साथ-साथ उन मध्यपूर्व एशियाई देशों को भी है जोकि छोटी-मोटी सैन्य शक्ति के बल पर अपनी राजशाही या तानाशाही का शासन चला रहे हैं।

इनमें सबसे अधिक चिंता सऊदी अरब जैसे धनी एवं तेल संपन्न देश को है तो अरब-इज़राईल शांति प्रक्रिया पर पडऩे वाले संभावित प्रभाव को लेकर भी दुनिया में चिंता बनी हुई है। अमेरिका व उसके सहयोगी देशों को अब इस बात की फिक्र भी सताने लगी है कि कहीं मिस्र में आया यह परिवर्तन ईरान के बढ़ते प्रभाव को भी और अधिक उर्जा न प्रदान करे। इसके अतिरिक्त पश्चिमी देशों की चिंता इस बात को लेकर भी है कि मिस्र की क्रांति इस्लामी कट्टरपंथ के विरुद्ध चल रहे पश्चिमी देशों के संघर्ष को भी प्रभावित कर सकते हैं।

उधर मुस्लिम ब्रदरहुड अथवा इवानुल मुस्लमीन जैसे कट्टरपंथी संगठनों के मिस्र की राजनीति में पडऩे वाले संभावित प्रभाव को लेकर भी चिंता जताई जा रही है। उधर यूरोपीय देशों को इस बात की फिक्र सता रही है कि नई मिस्री शासन व्यवस्था अथवा नई निर्वाचित सरकार मिस्र से होकर गुज़रने वाली उस स्वेज़ नहर को कहीं बंद न कर दे जिससे होकर प्रतिदिन लगभग 50तेलवाहक जहाज़ यूरोप की ओर गुज़रते हैं। और यह रास्ता यूरोप व मध्यपूर्व एशियाई देशों के मध्य की 6हज़ार किलोमीटर की दूरी कम करता है। बहरहाल मिस्र में आए इस राजनैतिक परिवर्तन का मध्य पूर्व एशिया तथा पश्चिमी देशों पर वास्तव में क्या प्रभाव पड़ेगा यह तो मिस्र में गठित होने वाली नई जनतांत्रिक सरकार द्वारा घोषित नीतियों के बाद ही पता चल सकेगा।

होस्नी मुबारक की बिदाई के बाद लगभग पूरी दुनिया में जश्र तथा जनआंदोलन के प्रति समर्थन का वातावरण देखा जा रहा है.समर्थन को देख यह समझने में परेशानी नहीं होनी चाहिए कि दुनिया के लोग अब जागरुक हैं. ऐसा लग रहा है कि जनता अब तानाशाहों द्वारा विश्वस्तर पर मचाई जाने वाली लूट-खसोट तथा धन-संपत्ति के अथाह संग्रह को भी और अधिक सहन करने के मूड में नहीं हैं। इसलिए संभव है कि टयूनीशिया तथा मिस्र जैसे हालात का सामना अभी कुछ और देशों को करना पड़े जो जनता की आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं।



 लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी के भूतपूर्व सदस्य और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मसलों के प्रखर टिप्पणीकार हैं.उनसे tanveerjafri1@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.





 

एक अंग्रेज की ईमानदार स्वीकारोक्ति

इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता  लार्ड  एंथनी   लेस्टर ने सवा सौ करोड़ भारतीयों को अवसर प्रदान किया है कि वे देश के नकाबपोश कर्णधारों से सीधे सवाल करें...

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

जहाँ  तक मुझे याद है,मैं 1977से एक बात को बड़े-बड़े नेताओं से सुनता आ रहा हूँ.नेता कहते हैं   भारतीय कानूनों में अंग्रेजी की मानसिकता छुपी हुई है,इसलिये इनमें आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है,लेकिन परिवर्तन कोई नहीं करता है.

चौधरी चरण सिंह से लेकर मोरारजी देसाई, जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, चन्द्र शेखर, विश्‍वनाथ प्रताप सिंह, मुलायम सिंह, लालू यादव, रामविलास पासवान और मायावती तक सभी दलों के राजनेता सत्ताधारी पार्टी या अपने प्रतिद्वन्दी राजनेताओं को सत्ता से बेदखल करने या खुद सत्ता प्राप्त करने के लिये आम चुनावों के दौरान भारतीय कानूनों को केवल बदलने ही नहीं,बल्कि उनमें आमूलचूल परिवर्तन करने की बातें करते रहे हैं. लेकिन इनमें से जो-जो भी, जब-जब भी सत्ता में आये, सत्ता में आने के बाद वे भूल ही गये कि उन्होंने भारत के कानूनों को बदलने की बात भी जनता से कही थी

अब आजादी के छ: दशक बाद एक अंग्रेज ईमानदारी दिखाता है और भारत में आकर भारतीय मीडिया के मार्फत भारतीयों से कहता है कि भारतीय दण्ड संहिता में अनेक प्रावधान अंग्रेजों ने अपने तत्कालीन स्वार्थ साधन के लिये बनाये थे, लेकिन वे आज भी ज्यों की त्यों भारतीय दण्ड संहिता में विद्यमान हैं, जिन्हें देखकर आश्‍चर्य होता है

इंग्लैण्ड  के लार्ड एंथनी लेस्टर ने कॉमनवेल्थ लॉ कांफ्रेंस के अवसर पर स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारतीय दण्ड संहिता के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये पर्याप्त और उचित संरक्षक प्रावधान नहीं हैं .  केवल इतना ही नहीं, बल्कि लार्ड एंथनी लेस्टर ने यह भी साफ शब्दों में स्वीकार किया कि भारतीय दण्ड संहिता में अनेक प्रावधान चर्च के प्रभाव वाले इंग्लैंड के तत्कालीन मध्यकालीन कानूनों पर भी आधारित है,जो बहु आयामी संस्कृति वाले भारतीय समाज की जरूरतों से कतई भी मेल नहीं खाते हैं, फिर भी भारत में लागू हैं

भारतीय प्रिंट  एवं इलेक्ट्रानिक   मीडिया अनेक बेसिपैर की बातों पर तो खूब हो-हल्ला मचाता है,लेकिन इंग्लैण्ड के लार्ड एंथनी लेस्टर की उक्त महत्वूपर्ण स्वीकारोक्ति एवं भारतीय दण्ड संहिता की विसंगतियों के बारे में खुलकर बात कहने को कोई महत्व नहीं दिया जाना किस बात का संकेत है?

इससे हमें यह सोचने को विवश होना पड़ता है कि मीडिया भी भारतीय राजनीति और राजनेताओं की अवसरवादी सोच से प्रभावित है जो चुनावों के बाद अपनी बातों को पूरी तरह से भूल जाता है लगता है कि मीडिया भी जन सरोकारों से पूरी तरह से दूर हो चुका है.


Feb 14, 2011

भोपाल में जश्ने फैज़ का आयोजन


फैज़ के विचारों को समझना है, तो उनकी रचनाओं को समझना एवं पढ़ना जरूरी है। फैज़ इंकलाब के लिए न केवल दूसरों को प्रेरित करते थे,बल्कि वे स्वयं भी दुनिया में इंकलाब के लिए आंदोलनों में बढ़-चढ़ के हिस्सा लेते थे। आज उनकी रचनाएं इंकलाब में हमारे साथ हैं। गहरी हताशा के दौर में भी उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी थी। सही मायने में वे सदी के शायर हैं। ये बातें आज इंकलाबी शायर फैज़ अहमद फैज़ की जन्म सदी पर युवा संवाद द्वारा रोटरी क्लब सभागार में आयोजित जश्न-ए- फैज़ कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. आफाक अहमद ने कही।
  
कार्यक्रम की शुरुआत में साथी महेंद्र ने फैज़ के नज्मों को आवाज दी। फिर युवा संवाद की राज्य पत्रिका ‘तरकश’ के फैज़ पर विशेषांक का विमोचन किया गया।

’जिक्र-ए- फैज़‘ में समकालीन जनमत पत्रिका के संपादक मंडल सदस्य एवं युवा आलोचक सुधीर सुमन ने कहा किफैज़ की ताकत उनकी रचनाएं हैं,जो इंकलाब के लिए प्रयासरत आवाम की ताकत बन कर आज भी साथ हैं। उनकी रचनाएं इश्क की भाषा में जनविरोधी राज व्यवस्था से जिरह करते हुए इंकलाब की बातें करती हैं। फैज़ की रचनाएं किसी भी तरह के अन्याय का प्रतिकार करते हुए आज भी प्रासंगिक हैं। कार्यक्रम का संचालन करते हुए भोपाल के रीजनल कॉलेज में सहायक प्राध्यापक डॉ.रिजवानुल हक ने कहा कि फैज़ अपने विचारों एवं वसूलों को लेकर सख्त थे और उनकी रचनाएं हमें समाजवाद की ओर प्रेरित करती हैं। फैज़ ने आवाम की भाषा में रचनाएं लिखी और इंकलाब के लिए उन प्रतीकों का इस्तेमाल किया, जिन्हें आवाम आसानी से समझ सकती हैं।

अंतिम कड़ी में साथी महेंद्र,उस्ताद जमीर हुसैन खां एवं अलका निगम ने फैज़ की रचनाओं की प्रस्तुति की। सभागार में भोपाल के युवा चित्रकार हैरी द्वारा फैज़ की रचनाओं पर आधारित पोस्टरों का प्रदर्शन किया गया। इस अवसर युवा संवाद के सभी कार्यकताओं सहित शहर के वरिष्ठ साहित्यकार,पत्रकार,समाजसेवी,संस्कृतिकर्मी एवं विभिन्न कॉलेजों के विधार्थी बड़ी संख्या में शामिल हुए।

 (युवा संवाद  की  प्रेस विज्ञप्ति)

चाटुकारिता की प्रतियोगिता


उत्तर  प्रदेश  में चाटुकारिता की सभी हदें पार कर जाने वाले तमाम नेता और अधिकारी पंक्तिबद्ध हुए मायावती की चरण वंदना में एक के बाद खड़े हो रहे हैं ...

निर्मल रानी

देश का सबसे घना राज्य उत्तर प्रदेश अगले वर्ष विधानसभा चुनाव का सामना करेगा। ज़ाहिर है इन चुनावों में सत्तारुढ़ बहुजन समाज पार्टी जहाँ अपने आप को सत्ता में कायम रखने के लिए साम-दाम,दंड-भेद सरीखे सारे उपायों को अपनाना चाहेगी वहीं राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टियां कांग्रेस,समाजवादी पार्टी तथा भारतीय जनता पार्टी भी बहुजन समाज पार्टी को सत्ता से बेदखल किए जाने के अपने प्रयासों में कोई कसर बाकी नहीं रहने देना चाहेंगी।

बसपा प्रमुख एवं राज्य की मुख्यमंत्री मायावती ने अपने जन्मदिन के अवसर पर तमाम लोकलुभावनी योजनाएं घोषित कर इस बात की ओर इशारा कर दिया है कि स्वयं को सत्ता में वापस लाने के लिए यदि उन्हें राजकीय कोष खाली भी करना पड़ जाए अथवा प्रदेश को भारी कर्ज़ के बोझ तले दबना भी पड़े तो भी उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। इससे एक बात और भी ज़ाहिर होती है कि चुनाव की घोषणा होने से पूर्व मायावती अभी ऐसी कई घोषणाएं कर सकती हैं जो राज्य में उनकी व उनकी पार्टी की लोकप्रियता को और परवान चढ़ाए।
राज्य के आगामी विधानसभा चुनावों से पूर्व बहुजन समाज पार्टी ने अपना मीडिया हाऊस भी शुरु कर दिया है। पार्टी अब अपना दैनिक समाचार पत्र भी प्रकाशित करने जा रही है। अब यहां यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि इस मीडिया प्रतिष्ठान को स्थापित करने तथा बाद में इसे संचालित करते रहने के लिए धन तथा नियमित विज्ञापन कहां से उपलब्ध होगा। प्रदेश में कानून व्यवस्था की बदतरी एवं अराजकता के वातावरण के आरोपों के बीच मायावती विपक्षी दलों से संबंधित बाहुबलियों तथा दबंगों को तो दबाने या उन्हें कुचलने का प्रयास कर रही हैं.
दूसरी ओर चाटुकारिता की सभी हदें पार कर जाने वाले तमाम नेता और अधिकारी पंक्तिबद्ध हुए मायावती चरण वंदना में खड़े है.अभी देश वह नज़ारा भूल नहीं पाया है जबकि मायावती के एक मंत्रिमंडलीय सहयोगी ने मंत्री पद की शपथ लेने के पश्चात मायावती के चरणों में सिर रखकर साष्टांग दंडवत किया था।

इसी प्रकार एक मंत्री मायावती के पैरों को छूने के लिए उनका पांव तलाश कर रहा था तभी मायावती को यह कहते सुना गया था कि 'चल बस कर'। मायावती के जन्मदिन पर जब उन्होंने अपना बर्थडे केक काटा उस समय उसी केक की एक सलाईस तत्कालीन डी जी पी विक्रम सिंह अपने हाथों से मु यमंत्री को खिलाते देखे गए।
और अब इन सभी चाटुकारों से आगे जाते हुए एक वरिष्ठ पुलिस उपाधीक्षक पद्म सिंह जोकि मायावती का विशेष सुरक्षा अधिकारी भी है,ने मायावती की जूती पर पड़ी धूल अपने जेब में रखे रुमाल से साफ कर यह संदेश दे दिया है कि राज्य में मायावती की चाटुकारिता करने वालों में भी भीषण प्रतियोगिता चल रही है। यहां यह बताना भी ज़रूरी है कि सिपाही के रूप में भर्ती होकर पुलिस उपाधीक्षक के पद तक पहुंचा पदमसिंह राज्य का राष्ट्रपति पदक प्राप्त कर चुका एक दबंग पुलिस अधिकारी है।
गत् कई वर्षों से वह मायावती के एसपीओ के रूप में तैनात है। बताया जाता है कि पद्म सिंह बसपा के राजनैतिक मामलों में भी गहरी दिलचस्पी व दखल रखता है। यह भी कहा जाता है कि पद्म सिंह की मायावती के प्रति गहन निष्ठा एवं वफादारी के चलते कई मंत्री तथा विधायक पद्म सिंह को सलाम ठोकते हैं। कुछ राजनीतिक समीक्षक तो यहां तक लिख रहे हैं कि पद्म सिंह के स्तर की चाटुकारिता तथा इसको लेकर मची इस होड़ का कारण दरअसल मायावती सरकार द्वारा घोषित किया गया राज्य का सबसे बड़ा सम्मान अर्थात् कांशीराम पुरस्कार है।


बहरहाल इसमें कोई दो राय नहीं कि विगत् कुछ महीनों में बहुजन समाज पार्टी को उसके अपने ही कई मंत्रियों व सदस्यों के घृणित कृत्यों के चलते काफी बदनामी का सामना भी उठाना पड़ा है। और इसमें भी कोई शक नहीं कि विपक्ष ऐसी घटनाओं को अपने लिए एक 'शुभ अवसर के रूप में स्वीकार कर रहा है।

इन्हीं राजनैतिक उठापटक के बीच राज्य में एक नए चुनावी समीकरण के उभरने की भी संभावना व्यक्त की जा रही है। समझा जा रहा है कि बिहार के विधानसभा चुनावों में बुरी तरह मात खा चुकी कांग्रेस पार्टी अब संभवत:उत्तर प्रदेश में एकला चलो के अपने संकल्प से पीछे हट सकती है। लोकसभा में केवल उत्तर प्रदेश से 21सीटें जीतने के बाद कांग्रेस पार्टी राज्य में अब इस स्थिति में पहुंच चुकी है कि वह समाजवादी पार्टी के साथ एक बड़े जनाधार वाले राजनीतिक दल के रूप में बराबरी से हाथ मिला सके।

कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में राज बब्बर ने मुलायम सिंह यादव की बहु डिंपल यादव को फिरोजाबाद लोकसभा सीट से धूल चटाकर कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के बीच के अंतर का एहसास बखूबी करा दिया है। पिछले दिनों आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में मुलायम सिंह यादव के प्रति केंद्र सरकार द्वारा अपनाई गई नरमी को भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पूर्व बनने वाले नए संभावित राजनैतिक समीकरण के नज़रिए से देखा जा रहा है।

राज्य में कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन हो जाता है तो मायावती के लिए यह गठबंधन एक बार फिर अच्छी-खासी परेशानी खड़ी कर सकता है। उत्तर प्रदेश के इन ताज़ातरीन राजनैतिक हालात को देखकर यह आसानी से समझा जा सकता है कि प्रदेश में चुनाव घोषणा से पूर्व ही सत्ता हथियाने की जंग छिड़ चुकी है।




लेखिका सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर लिखती हैं, उनसे nirmalrani@gmail.com  पर संपर्क किया जा सकता है.






Feb 12, 2011

कचरा पात्र बने कुएं और बावड़ी


लोगों की जीवन रेखा सींचने वाले प्राचीन कुएं,बावड़ियां जो हर मौसम में लोगों की प्यास बुझाने थे कचरा डालने के काम के हो गये है...

रघुवीर शर्मा


किसी दौर में एक गाना चला था -...सुन-सुन रहट की आवाजें यूं लगे कहीं शहनाई बजे,आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे...जिस दौर का यह गाना है उस वक्त गांवों के कुएं बावड़ियों पर ऐसा ही नजारा होता था। शायद यही नजारा देख गीतकार के मन में यह पंक्तियां लिखने की तमन्ना उठी होगी। लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई है,गांवों में पनघटों पर पानी भरने वाली महिलाओं की पदचाप और रहट की शहनाई सी आवाज शांत है, और पनघट पर पसरा सन्नाटा है।

लोगों की जीवन रेखा सींचने वाले प्राचीन कुएं,बावड़ियां जो हर मौसम में लोगों की प्यास बुझाने थे कचरा डालने के काम के हो गये है। इन परंपरागत जलस्त्रोतों की इस हालत के लिए आधुनिक युग के तकनीक के साथ-साथ सरकारी मशीनरी और हम स्वयं जिम्मेदार है जिन्होंने इनका मोल  नहीं समझा। आज भी इनकी कोई फिक्र नहीं कर रहा है।


ना तो आम नागरिकों को भी इनकी परवाह है,और नाही सरकार व पेयजल संकट के लिए आंदोलन करने वाले जनप्रतिनिधियों और नेताओं को इनकी याद आती है। सभी पेयजल समस्या को सरकार की समस्या मान कर ज्ञापन saunpate  है चक्काजाम करते है, और अपनी जिम्मेदारी की इति मान कर चुप बैठ जाते है। सरकार भी जहां पानी उपलब्ध है वहां से पानी मंगाती है, लोगों में बंटवाती है और अपने वोट सुरक्षित कर अपनी जिम्मेदारी पूर्ण कर अगले साल आने वाले संकट का इन्तजार करती रहती है।

राजस्थान के कई-कई कुओं,बावड़ियों में लोग कूड़ा-कचरा फेंक रहे हैं। सरकारी बैठकों में पानी समस्या पर चर्चा के समय कभी-कभी जनप्रतिनिधि और अधिकारी इन कुओं और बावड़ियों की उपयोगिता इसकी ठीक से सार सम्भाल पर बतिया तो लेते हैं,लेकिन बैठक तक ही उसे याद रखतें हैं। बाद में इन कुओं, बावड़ियों को सब भूल जाते हैं।

पेयजल स्त्रोत देखरेख के अभाव में बदहाल हो गए है व अब महज सिर्फ कचरा-पात्र बनकर के काम आ रहे है। वैसे तो राज्य व केन्द्र सरकार ने प्राचीन जलस्त्रोतों के रखरखाव के लिए कई योजनाएं बना रखी है लेकिन सरकारी मशीनरी की इच्छा शक्ति और राजनैतिक सुस्ती के चलते यह महज कागजी साबित हो रही हैं। इसी कारण क्षेत्र में प्राचीन जलस्त्रोतों का अस्तित्व समाप्त सा होता जा रहा है।

हाड़ोति समेत राजस्थान के हजारों प्राचीन कुएं,बावड़ियां जर्जर हालत में है। इनका पानी भी दूषित हो चुका है। बावड़ी जैसे जलस्त्रोतों का समय-समय पर होने वाले धार्मिक आयोजनों में भी विशेष महत्व होता था। शादी विवाह और बच्चों के जन्म के बाद कुआं पूजन की रस्म अदा की जाती थी लेकिन अब लोग कुओं की बिगड़ी हालत के कारण धार्मिक आयोजनों के समय हेण्डपंपों व ट्यूबवेलों को कुआं मान पूजन करने लगे है।

क्षेत्र में यह कुंए करीब डेढ सौ -दो सौ वर्ष पुराने हैं। कस्बे के बुजुर्ग लोगों ने बताया कि सन 1956के अकाल में जब चारों और पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची थी,उस समय भी इन कुंओ में पानी था और लोगों ने अपनी प्यास बुझाई थी।


बचपन अभावों और संघर्षों के बीच गुजरा.ऑपरेटर के रूप में दैनिक नवज्‍योति से काम शुरू कियाऔर मेहनत के बल पर संपादकीय विभाग में पहुंचे. उनसे   raghuveersharma71@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.