Feb 14, 2011

चाटुकारिता की प्रतियोगिता


उत्तर  प्रदेश  में चाटुकारिता की सभी हदें पार कर जाने वाले तमाम नेता और अधिकारी पंक्तिबद्ध हुए मायावती की चरण वंदना में एक के बाद खड़े हो रहे हैं ...

निर्मल रानी

देश का सबसे घना राज्य उत्तर प्रदेश अगले वर्ष विधानसभा चुनाव का सामना करेगा। ज़ाहिर है इन चुनावों में सत्तारुढ़ बहुजन समाज पार्टी जहाँ अपने आप को सत्ता में कायम रखने के लिए साम-दाम,दंड-भेद सरीखे सारे उपायों को अपनाना चाहेगी वहीं राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टियां कांग्रेस,समाजवादी पार्टी तथा भारतीय जनता पार्टी भी बहुजन समाज पार्टी को सत्ता से बेदखल किए जाने के अपने प्रयासों में कोई कसर बाकी नहीं रहने देना चाहेंगी।

बसपा प्रमुख एवं राज्य की मुख्यमंत्री मायावती ने अपने जन्मदिन के अवसर पर तमाम लोकलुभावनी योजनाएं घोषित कर इस बात की ओर इशारा कर दिया है कि स्वयं को सत्ता में वापस लाने के लिए यदि उन्हें राजकीय कोष खाली भी करना पड़ जाए अथवा प्रदेश को भारी कर्ज़ के बोझ तले दबना भी पड़े तो भी उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। इससे एक बात और भी ज़ाहिर होती है कि चुनाव की घोषणा होने से पूर्व मायावती अभी ऐसी कई घोषणाएं कर सकती हैं जो राज्य में उनकी व उनकी पार्टी की लोकप्रियता को और परवान चढ़ाए।
राज्य के आगामी विधानसभा चुनावों से पूर्व बहुजन समाज पार्टी ने अपना मीडिया हाऊस भी शुरु कर दिया है। पार्टी अब अपना दैनिक समाचार पत्र भी प्रकाशित करने जा रही है। अब यहां यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि इस मीडिया प्रतिष्ठान को स्थापित करने तथा बाद में इसे संचालित करते रहने के लिए धन तथा नियमित विज्ञापन कहां से उपलब्ध होगा। प्रदेश में कानून व्यवस्था की बदतरी एवं अराजकता के वातावरण के आरोपों के बीच मायावती विपक्षी दलों से संबंधित बाहुबलियों तथा दबंगों को तो दबाने या उन्हें कुचलने का प्रयास कर रही हैं.
दूसरी ओर चाटुकारिता की सभी हदें पार कर जाने वाले तमाम नेता और अधिकारी पंक्तिबद्ध हुए मायावती चरण वंदना में खड़े है.अभी देश वह नज़ारा भूल नहीं पाया है जबकि मायावती के एक मंत्रिमंडलीय सहयोगी ने मंत्री पद की शपथ लेने के पश्चात मायावती के चरणों में सिर रखकर साष्टांग दंडवत किया था।

इसी प्रकार एक मंत्री मायावती के पैरों को छूने के लिए उनका पांव तलाश कर रहा था तभी मायावती को यह कहते सुना गया था कि 'चल बस कर'। मायावती के जन्मदिन पर जब उन्होंने अपना बर्थडे केक काटा उस समय उसी केक की एक सलाईस तत्कालीन डी जी पी विक्रम सिंह अपने हाथों से मु यमंत्री को खिलाते देखे गए।
और अब इन सभी चाटुकारों से आगे जाते हुए एक वरिष्ठ पुलिस उपाधीक्षक पद्म सिंह जोकि मायावती का विशेष सुरक्षा अधिकारी भी है,ने मायावती की जूती पर पड़ी धूल अपने जेब में रखे रुमाल से साफ कर यह संदेश दे दिया है कि राज्य में मायावती की चाटुकारिता करने वालों में भी भीषण प्रतियोगिता चल रही है। यहां यह बताना भी ज़रूरी है कि सिपाही के रूप में भर्ती होकर पुलिस उपाधीक्षक के पद तक पहुंचा पदमसिंह राज्य का राष्ट्रपति पदक प्राप्त कर चुका एक दबंग पुलिस अधिकारी है।
गत् कई वर्षों से वह मायावती के एसपीओ के रूप में तैनात है। बताया जाता है कि पद्म सिंह बसपा के राजनैतिक मामलों में भी गहरी दिलचस्पी व दखल रखता है। यह भी कहा जाता है कि पद्म सिंह की मायावती के प्रति गहन निष्ठा एवं वफादारी के चलते कई मंत्री तथा विधायक पद्म सिंह को सलाम ठोकते हैं। कुछ राजनीतिक समीक्षक तो यहां तक लिख रहे हैं कि पद्म सिंह के स्तर की चाटुकारिता तथा इसको लेकर मची इस होड़ का कारण दरअसल मायावती सरकार द्वारा घोषित किया गया राज्य का सबसे बड़ा सम्मान अर्थात् कांशीराम पुरस्कार है।


बहरहाल इसमें कोई दो राय नहीं कि विगत् कुछ महीनों में बहुजन समाज पार्टी को उसके अपने ही कई मंत्रियों व सदस्यों के घृणित कृत्यों के चलते काफी बदनामी का सामना भी उठाना पड़ा है। और इसमें भी कोई शक नहीं कि विपक्ष ऐसी घटनाओं को अपने लिए एक 'शुभ अवसर के रूप में स्वीकार कर रहा है।

इन्हीं राजनैतिक उठापटक के बीच राज्य में एक नए चुनावी समीकरण के उभरने की भी संभावना व्यक्त की जा रही है। समझा जा रहा है कि बिहार के विधानसभा चुनावों में बुरी तरह मात खा चुकी कांग्रेस पार्टी अब संभवत:उत्तर प्रदेश में एकला चलो के अपने संकल्प से पीछे हट सकती है। लोकसभा में केवल उत्तर प्रदेश से 21सीटें जीतने के बाद कांग्रेस पार्टी राज्य में अब इस स्थिति में पहुंच चुकी है कि वह समाजवादी पार्टी के साथ एक बड़े जनाधार वाले राजनीतिक दल के रूप में बराबरी से हाथ मिला सके।

कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में राज बब्बर ने मुलायम सिंह यादव की बहु डिंपल यादव को फिरोजाबाद लोकसभा सीट से धूल चटाकर कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के बीच के अंतर का एहसास बखूबी करा दिया है। पिछले दिनों आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में मुलायम सिंह यादव के प्रति केंद्र सरकार द्वारा अपनाई गई नरमी को भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पूर्व बनने वाले नए संभावित राजनैतिक समीकरण के नज़रिए से देखा जा रहा है।

राज्य में कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन हो जाता है तो मायावती के लिए यह गठबंधन एक बार फिर अच्छी-खासी परेशानी खड़ी कर सकता है। उत्तर प्रदेश के इन ताज़ातरीन राजनैतिक हालात को देखकर यह आसानी से समझा जा सकता है कि प्रदेश में चुनाव घोषणा से पूर्व ही सत्ता हथियाने की जंग छिड़ चुकी है।




लेखिका सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर लिखती हैं, उनसे nirmalrani@gmail.com  पर संपर्क किया जा सकता है.






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