Jan 24, 2016

पुरस्कार - डिग्रियां लौटा देना ही त्याग का महाभियान

एक ब्राम्हण कवि ने
बेहद आत्मीय पलों में कहा
मैंने दलितों पर कभी कोई कविता नहीं लिखी
उनका दुख नहीं लिख पाया

संघर्ष कम नहीं हैं उनके
जीत का सिलसिला भी कम नहीं
पर मैं नहीं लिख पाया

नहीं लिख पाने की आत्मस्विकारोक्ति पर
दशकों तक
खूब तालियां पीटी गयीं संस्कृति के सभागारों में
वर्षों तक
भावविह्वल श्रोताओं से कालीनें होती रहीं गिलीं
आज भी
पुर्नजागरण के सिपाही आंसू पोछने के लिए बांटते फिरते हैं रूमाल

बहरहाल
कुछ ने इसे सदी की महाआत्मस्विकारोक्ति कहा
कुछ ने कहा जातिवाद के विघटन का महाआख्यान
बात निकली तो दूर तलक गई और
दलितों पर एक हर्फ न लिखने वाला कवि
महाकवि बना
उस देश में जिस देश में 80 फीसदी रहते हैं शूद्र, म्लेच्छ और नीच

अब वही
कविता का प्रतिमान है
संघर्ष का नया नाम है
विद्रोहियों की शान है
जातिवाद ख़त्म करने की पहली पहचान है...
भक्त कहते हैं
उसके बिना साहित्य बियाबान है

मैं पूछता हूँ,
सदियों बाद स्वीकार कर लेना ही
बराबरी का कीर्तिमान है
और
पुरस्कार - डिग्रियां लौटा देना ही त्याग का महाभियान !