फिल्मी दुनिया को चमक देने वाले कुछ कलाकार ऐसे भी हैं जिनको पुरस्कार तो बहुत सारे मिले, लेकिन वह पुरस्कार इनकी 'उम्र' न बढ़ा सके...
विभा सचदेवा
संता -बंता का अदाकारों को मिलने वाले पुरस्कार को लेकर एक चुटकला काफी सुना गया था। उस चुटकुले में संता-बंता से कहता है कि आखिर यह फिल्मी सितारे अवॉर्ड लेकर इतना खुश क्यों होते हैं, तो उस पर बंता कहता है कि इन अवॉर्ड से इन सितारों की 'उम' बढ़ जाती है।
लेकिन अगर हम ग्लैमरस वर्ल्ड के कुछ सितारों के जीवन पर नजर डाले तो यह चुटकुला कतई सच नहीं लगता। फिल्मी दुनिया को चमक देने वाले कुछ कलाकार ऐसे भी हैं जिनको पुरस्कार तो बहुत सारे मिले, लेकिन वह पुरस्कार इनकी 'उम्र' न बढ़ा सके।
इसी का एक उदाहरण है हाल ही में ब्रिटिश गायिका एैमी वाइनहाउस की मौत। उनका सिर्फ 27 वर्ष का आयु में दुनिया छोड़ देना हतप्रभ कर देने वाली खबर थी, जिस पर सहसा यकीन नहीं होता।
ऐमी वाइनहाउस ब्रिटिश की जानी-मानी गायिका थी। वे फिल्मी दुनिया के प्रतिष्ठित कई ग्रैमी अवॉर्ड भी जीत चुकी थी। उनकी मौत ऐसे समय में हुई है, जब वह सफलता की ऊंचाइयों को छू रही थी। इसी तरह बालीवुड में भी कई सितारे हैं जो छोटी आयु में ही चल बसे, लेकिन आज भी वह अपने किरदार और प्रतिभा के लिए याद किये जाते हैं।
दिव्या भारती : ऐसी ही एक कलाकार हैं दिव्या भारती। वे 25 फरवरी, 1974 को मुंबई में पैदा हुईं थीं। इस कलाकार की मौत उस समय हुई जब वह शौहरत की बुलंदियों को छू रही थी और इनके चाहने वालों की संख्या बहुत ज्यादा थी। दिव्या भारती ने बॉलीवुड में अपने कैरियर की शुरुआत 'विश्वात्मा' फिल्म से की। इस फिल्म में अपने किरदार के लिए उन्हें बहुत सराहना मिली।
उसके बाद शोला और शबनम, रंग, दीवानगी, दिल का क्या कसूर,दिल ही तो है आदि फिल्मों ने इस अदाकारा को बालीवुड में एक अलग पहचान दिलवायी और यह लाखों-करोड़ों दर्शकों के दिलों की धड़कन बन गयी। लेकिन 5 अप्रैल 1993 को अपने अपार्टमैंट से गिरने के कारण हुई इनकी मौत ने इन करोड़ों प्रशंसकों को सकते में डाल दिया। और उनकी आने वाली फिल्म का इंतजार कर रहे इन प्रशंसकों का इंतजार यहीं खत्म हो गया।
गुरु दत्त : आज भी जब ‘वक्त ने किया क्या हसी सितम, तुम रहे न तुम हम रहे न हम’ सुनते हैं तो एक संजीदा अदाकार गुरुदत्त का चेहरा सामने आता है। गुरुदत्त ने फिल्म 'प्यासा' और 'कागज के फूल' में जिस तरह का किरदार निभाया था उससे उनकी जिंदगी की परेशानी साफ दिखती थी। इन फिल्मों को इनकी जिंदगी पर आधारित फिल्मों के रूप में भी देखा जाता था।
गुरुदत्त की रहस्यमय मौत से यह बात साबित भी हो गयी थी। 39 साल की छोटी उम्र में शराब में नींद की गोलिया मिलाकर खाने के कारण हुई इनकी मौत के पीछे का कारण आज तक किसी को पता नहीं चल पाया है। लेकिन इनकी मौत का एक कारण इनकी नाखुश शादीशुदा जिन्दगी और शादी के बाद भी वहीदा रहमान के साथ प्यार को माना जाता है। इस कलाकार की बतौर निर्देशक और अभिनेता बनायी गयी फिल्में बालीवुड के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ फिल्मों के रूप में आज भी दर्ज है। इनकी कुछ यादगार फिल्मों में 'कागज के फूल', 'चौदहवीं का चांद', 'साहिब बीवी और गुलाम' आदि शामिल हैं।
इसी रिश्ते की वजह से राज बब्बर ने अपनी पहली बीवी को छोड़कर इनसे शादी की। इनकी अच्छी फिल्मों में भूमिका, चक्कर, बाजार, मंडी, अर्थ और आज की आवाज शामिल हैँ। सराहनाओं और आलोचनाओं के उस दौर में 13 दिसंबर, 1986 को समिता पाटिल की प्रतीक बब्बर को जन्म देने के दो हफ्ते बाद ही मौत हो गयी। लेकिन आज भी जब पैरलर सिनेमा की बात होती है, समिता पाटील का नाम जरूर लिया जाता है।
मीना कुमारी : 1 अगस्त, 1932 को मुंबई में मध्यवर्ग परिवार में पैदा हुई एक लड़की ने कभीी सोचा भीी न होगा कि एक दिन वह बॉलीवुड की 'ट्रैजडी क्वीन' के नाम से जानी जायेगी। बालीवुड की 'ट्रैजडी क्वीन' मीना कुमारी एक अच्छी अदाकारा के साथ-साथ बेहतरीन कवियत्री भी थी। वह हर गम और खुशी को वह अपनी कविता के माध्यम से बयाँ करती थी।
अपने तलाक के समय भी उन्होंने अपने गम को बयाँ करने के लिए एक कविता लिखी थी - ‘तलाक तो दे रहे हो नजर-ए-कहर के साथ, जवानी भी मेरी लौटा दो मेहर के साथ।’ एक अच्छी कवियत्री के साथ-साथ अभिनय के मामले में भी उस समय की प्रतिष्ठित अभिनेत्रियों में से मीना कुमारी एक थी। चाहे 'छोटी बहू' फिल्म में उनके निभाए गए किरदार की बात करें या फिर 'परीणिता'की, हर किरदार को इन्होंने बखूबी निभाया था।
मीना कुमारी की यादगार फिल्मों में साहिब बीवी और गुलाम, शारदा, दिल अपना प्रीत परायी, शरारत और कोहिनूर समेत कई फ़िल्में शामिल हैं। इस अभिनेत्री ने अपने प्रशंसकों का साथ तब छोड़ा, जब वह पांच महीने बाद आने वाले इनके जन्मदिन की तैयरियों में लगे थे। इनकी मौत उस समय हुई, जब उनकी फिल्म 'पाकीजा' सिनेमा हॉल में दर्शकों की अपार सराहना बटोर रही थी।
मधुबाला : हिंदी सिनेमा की सबसे प्रतिभावान अभिनेत्री मधुबाला के जीवन का अंत केवल 36 साल की उम्र में ही हो गया था। 9 साल की उम्र में बाल कालाकार के रूप में इनकी पहली फिल्म 'बसंत' बहुत बड़ी बॉक्स आफिस हिट रही । उसके बाद 14 साल की उम्र में इस अभिनेत्री को 'नील कमल' फिल्म के लिए राजकपूर के अपोजिट कास्ट किया गया।
नीलकमल के बाद तो इस अभिनेत्री की फिल्मों की कतार लग गयी। इनकी फिल्मों में ज्वाला, शराबी, हॉफ टिकट, ब्वायफ्रेंड , महल, जाली नोट, बरसात की रात आदि शामिल हैं। इनके सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए याद की जाने वाली फिल्म 'मुगल-ए-आजम' ने इस अभिनेत्री को बॉलीवुड में अनारकली के रूप में एक अलग पहचान दिलवायी।
'मुगल-ए-आजम' से जहां एक तरफ बॉलीवुड को अनारकली मिली, वहीं दूसरी तरफ इस फिल्म के समय ही यह बात सामने आई कि मधुबाला अब और काम करने की स्थिति में नहीं हैं। उसके बाद काफी जगह पर इनका इलाज हुआ और लगातार 9 साल तक जिंदगी से संघर्ष करने बाद 1969 में मधुबाला ने आखिरी सांस भरी।
फिल्मी दुनिया के यह कलाकार तो सालों पहले चले गए, लेकिन आज भी इनको बेहतरीन अभिनय के लिए याद किया जाता है। इसलिए ही कहा जाता है कि इंसान मर जाते है, लेकिन उनकी प्रतिभा की नहीं मरती।
Bhai inhee logo ke saath Sudhir Kumar
ReplyDeleteaur Sushil Kumar ko bhi yaad kar lete jinhone dosti jaisee filme me umdaa adaakaari kee thee /
are ye bhai ne nahin bahna ne likha hai...vibha sachdeva
ReplyDeletekshamaa kijiyega bahanji.
ReplyDeletekisi ke jiwan ki awadhi ka uske shohrat se kya sambandh hai, mritu shoharat ya kaamyaabi to nhi dekhti hai....lekh ka uddeshya clear nhi hua...
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