आगरा में पांच लड़कियां सेक्स परिवर्तन कराके लड़का बनी हैं। दिल्ली में दो लड़कियों ने ऐसा किया है. यह महज इत्तफाक नहीं है कि भारत में लिंग परिवर्तन कराने वालों में लड़कियों की संख्या ज्यादा है...
हाल ही में इंदौर की इंडियन अकेडमी ऑफ पीडियट्रिक्स ने खुलासा किया है कि इंदौर में प्रतिवर्ष सैकड़ों ऐसे आपरेशन किये जाते हैं जिनमें एक से पांच साल तक की बच्चियों के जननांगों को पुरुष जननांगों मं बदला जाता है। निश्चित तौर पर वैज्ञानिकों ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि लिंग परिवर्तन विश्व के किसी कोने में लिंगभेदी तत्वों द्वारा अपने गलत इरादों की पूर्ति का जरिया बन के रह जाएगा।
गायत्री आर्य
जून 2010 में भुवनेश्वर की एक महिला वकील ने लिंग परिवर्तन कराया। उम्र के तीसरे दशक में जी रही इस महिला वकील का कहना है कि उस पर परिवार का शादी के लिए बहुत दबाव था और वह समाज द्वारा लड़कियों पर थोपी जाने वाली पारिवारिक जिंदगी नहीं जीना चाहती। लड़का बन कर वह खुश है क्योंकि अब कोई उसे शादी के लिए तंग नहीं करेगा।
उसका मानना है कि औरत के रुप में तकलीफें झेलते जाने से ज्यादा बेहतर है पुरूष बनकर जीना। विज्ञान और आधुनिकता मिलकर भी स्त्रियों के लिए जीने लायक माहौल नहीं बना पाए। अब स्त्रियों ने स्वयं ही विज्ञान को सीढ़ी बनाकर मनचाही जिंदगी का विकल्प ढूंढ़ लिया है,लेकिन काश वह लड़की बने रहकर ही मनचाहा जीवन जी सकती!
हाल ही में इंदौर की इंडियन अकेडमी ऑफ पीडियट्रिक्स ने खुलासा किया है कि इंदौर में प्रतिवर्ष सैकड़ों ऐसे आपरेशन किये जाते हैं जिनमें एक से पांच साल तक की बच्चियों के जननांगों को पुरुष जननांगों मं बदला जाता है। निश्चित तौर पर वैज्ञानिकों ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि लिंग परिवर्तन विश्व के किसी कोने में लिंगभेदी तत्वों द्वारा अपने गलत इरादों की पूर्ति का जरिया बन के रह जाएगा।
पहली बार १९३० में जर्मन डॉक्टर ने लिंग परिवर्तन का आपरेशन किया था एक पुरुष को स्त्री में बदलकर,लेकिन वह सफल नहीं हुआ था। लिंग परिवर्तन का पहला सफल ऑपरेशन 1950 में डैनिश डॉक्टर द्वारा किया गया। इसमें भी पुरुष को एक स्त्री में बदला गया। आजकल थाइलैंड और यू.एस. में इस तरह के लिंग परिवर्तन के ऑपरेशन काफी संख्या में हो रहे हैं। लिंग परिवर्तन की पहली शर्त व्यक्ति की स्वेच्छा है, दूसरी शर्त व्यक्ति का युवा होना है। कम से कम 18 वर्ष का होना जिसमें कि सामाजिक स्थितियों को समझने का समार्थ्य हो।
भारत व विदेशों में होने वाले लिंग परिवर्तन में मूलतः फर्क यह है कि वहां व्यक्ति स्वेच्छा से यह निर्णय लेता है,जबकि भारत में लिंग परिवर्तन के पीछे समाज में लड़के की चाहत का वर्चस्व और स्त्री जीवन की भयानक चुनौतियां हैं। भारत में यह खोज पितृसत्तात्मक मूल्यों की पोषक बनती नजर आ रही है। लड़कियां स्वयं ही स्त्री जीवन से तौबा करके पुरूष बनकर बिंदास जीवन जीने का विकल्प चुन रही हैं। वहीँ मां-बाप बेटे की अंतहीन चाहत के चलते अपनी बच्चियों के लड़का बनवाने के ऑपरेशन करा रहे हैं।
हाल ही में आगरा में पांच लड़कियां सेक्स परिवर्तन कराके लड़का बनी हैं। दिल्ली में दो लड़कियों द्वारा लिंग परिवर्तन के द्वारा लड़का बनने की खबर है। यह महज इत्तफाक नहीं है कि भारत में लिंग परिवर्तन कराने वालों में लड़कियों की संख्या ज्यादा है । निःसंदेह लड़कियों के प्रति बढ़ रही हिंसा, हमले, अमानवीयता, असंवेदनशीलता, अश्लीलता और सिर्फ भोग्या के रुप में देखने वाली मानसिकता और लिंगभेदी संस्कार, परंपरा व मान्यताएं भी कहीं न कहीं लिंग परिवर्तन में अपनी अहम भूमिका निभाती हैं। भुवनेशवर की महिला वकील द्वारा पुरूष बनने के कारणों की सहज-सच्ची स्वीकारोक्ति इस तथ्य पर प्रकाश डालती है।
लिंग परिवर्तन द्वारा लड़का बना व्यक्ति पिता नहीं बन सकता। उसी प्रकार लिंग परिवर्तन द्वारा लड़के से बनी लड़की भी मां नहीं बन सकती क्योंकि उसमें गर्भाशय नहीं बनाया जा सकता। इस तथ्य को जानने के बाद भी मां-बाप द्वारा अपने पांच साल की उम्र तक की बच्चियों को लड़का बनाने का बेहद अमानवीय काम जारी है। कहा तो जा रहा है कि जिन लड़कियों का लिंग परिवर्तन किया जा रहा है वे मूलतः इंटरसेक्स हैं।
समझदार मां-बाप लिंग परिवर्तन की बुनियादी शर्त ‘व्यक्ति की स्वेच्छा‘ का खुला उल्लंघन कर रहे हैं। बेटे की अंधी चाह में वे इस तथ्य को भी नकार रहे हैं कि सर्जरी के बाद उनका जीवन बदतर भी हो सकता है। ऐसे लोग जानबूझकर समाज की ‘बेटा ही सबकुछ‘जैसी लिंगभेदी और घटिया मानसिकता को बढावा देने के दोषी हैं।
बच्चियों को बचपन में ही लड़का बनाकर उनके मां-बाप खुश हैं। बच्चियां तो खैर अभी बहुत छोटी हैं ये समझने के लिए कि उनके साथ क्या हो रहा है। पितृसत्ता खुश है कि सभी क्षेत्रों में लड़कियों द्वारा अपनी सशक्त मौजूदगी दर्ज करते जाने के बाद भी माता-पिताओं की रुह सिर्फ लड़कों के लिए ही प्यासी है । पितृसत्ता खुश है कि तमाम पढ़ाई-लिखाई, शोध, विज्ञान, तकनीक और आधुनिकता मिलकर भी पुरूष लिंग के वर्चस्व को चुनौती नहीं दे पा रहे। समानता-समानता चिल्लाने वाले अल्पसंख्यकों को सोचना होगा,कि विज्ञान और तकनीक की मदद से सुपर पावर बनती जा रही पितृसत्ता को कैसे काबू में किया जाए?
विज्ञान और आधुनिकता के चरम दौर में भी दुनिया का कोई भी विकिसत या विकासशील देश अपने समाज के लिंगभेद से मुक्त होने का दावा नहीं कर सकता! ये कैसी आधुनिकता है जो औरत-आदमी को बराबरी का दर्जा दिलाने में हांफ रही है?पितृसत्ता ने कितने सहज तरीके से विज्ञान को अपने हित में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। लड़कियों द्वारा स्त्री जीवन से तंग आकर लिंग परिवर्तन कराना और मां-बाप द्वारा पुत्र मोह की चाहत में लिंग परिवर्तन कराना ये दोनों ही उदाहरण हमारी नैतिकता,मानवीयता और लोकतंत्र के लिए खुली चुनौती है। देखना यह है कि हम कब तक इन चुनौतियों से मुंह चुरा के रहते हैं?
स्वतंत्र पत्रकार व जेएनयू में शोधार्थी
hamesha ki tarah sahi mudda uthaya arya madam ne
ReplyDeleteअच्छी रिपोर्ट लिखने के लिए बधाई।
ReplyDeleteविषय रोचक है। इसलिए इसके अन्य पहलुओं पर भी चर्चा होनी चाहिए थी।
यदि संभव हो तो लेखिका इस बात को स्पष्ट करें कि यदि किसी लिंग परिवर्तन होता है तो बाद में उसके अन्य शारीरिक बदलाव पर क्या असर पड़ेगा। जैसे लड़का लड़की बनता है तो क्या उसे दाड़ी मूंद आएगी।
हालांकि रिपोर्ट लड़कियों के लड़का बनने पर केंद्रीत है। तो कृपया बताने का कष्ट करें कि यदि लड़की को लड़का बना दिया जाता है तो क्या बड़े होने होने पर उसे वक्ष भी बढेÞगे और दाड़ी-मूछ भी आएगी?
एक पाठक
Please read properly and then write because the kind of thing you are saying is not possible in medical science. Please read this article
ReplyDeletehttp://www.thehindu.com/news/national/article2296797.ece
गायत्री आर्य जी,कृपया अपने लेख के इस पैरे पर गौर करें,'हाल ही में इंदौर की इंडियन अकेडमी ऑफ पीडियट्रिक्स ने खुलासा किया है कि इंदौर में प्रतिवर्ष सैकड़ों ऐसे आपरेशन किये जाते हैं जिनमें एक से पांच साल तक की बच्चियों के जननांगों को पुरुष जननांगों मं बदला जाता है।' आपने जिस तथ्य का उल्लेख किया है वह पूरी तरह मनगढ़ंत और फर्जी है. इसे अंग्रेजी और हिंदी के एक स्वनामधन्य राष्ट्रीय अखबार ने प्रकाशित किया था. इस खबर की पड़ताल हिंदी और अंग्रेजी के कई अखबारों ने की थी जिसमें यह खबर झूठी और मनगढ़ंत पाई गई थी. इसकी जांच मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने की थी.उसकी जांच में भी खबर गलत पाई गई थी. इसे आप इस लिंक पर जाकर इसे पढ़ सकती हैं. http://www.bhadas4media.com/print/12132-2011-07-20-06-38-32.html
ReplyDeleteजनज्वार में जिस तरह की ख़बरें प्रकाशित हो रही है उससे लगता है कि इसके दिन लद चुके. मुझसे यह देखा नहीं जा रहा. अलविदा जनज्वार
ReplyDeleteayra medum ki bato mai jyada dam nhi hai. apki jankari ke liye bata doo ki apke lekha mai khi bhee yah saf nahi ho raha hai ki femel se male bani ladki mansik dasha kya hogi. dusari bat ki keval dabav ke liye mool pravatti ko kho dena, bhut muskil hai.
ReplyDeleteyes i agree with ARYA AND ANNONYMUS.hindu aur bhadas ke alawa HT me bhi is baare me aaya tha ki ye khabre galat thi...lekhak ne bhale hi nhi jaaanch padtaal kare likha kam se kam moderator ko to thoda gyan hona chahiye..kyon?
ReplyDeletekuchh bhi ho achha tha...
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