मध्य प्रदेश के एक छोटे से इलाके राघोगढ़ के ठिकानेदार और चार -पांच सौ घरों के मुखिया के रूप में जाने जानेवाले इस राजपूत नेता को आगे लाने में दिवंगत अर्जुन सिंह ने अहम भूमिका निभायी थी...
एस.के. सिन्हा
उनकी निगाह में बाबा रामदेव एक ठग से ज्यादा कुछ नहीं हैं,भारतीय जनता पार्टी नचनियों का दल है,राष्ट्रमंडल खेलों के भ्रष्टाचार में फंसे सुरेश कलमाडी बेकसूर हैं,कुख्यात आतंकवादी ओसामा बिन लादेन ओसामा जी हैं,और राहुल गांधी अब इतने परिपक्व हो गये हैं कि अब उन्हें प्रधानमंत्री का पद संभाल लेना चाहिए। कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह का ताजा कारनामा यह बयान है कि पुलिस द्वारा पकड़ा गया हर हिंदू आतंकवादी राष्ट्र स्वयंसेवक संघ से जुड़ा हुआ है।
उन्होंने मुंबई में हुए बंमकांड के तार भी संघ से जुड़े होने की संभावना व्यक्त की जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी और उनके बीच घटिया आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हो गया। कुछ भाजपाई छात्रों ने जब दिग्विजय सिंह का घेराव कर लिया था उन्होंने एक छात्र को पकड़ कर तमाचे भी जड़ दिये।
राहुल गांधी के खास सलाहकार के रूप में उभरे दिग्विजय सिंह यानी दिग्गी राजा को विवादास्पद बयानों के कारण एक अलग पहचान मिल रही है। उनके बयानों का निशाना भले ही विपक्ष रहता हो,लेकिन अक्सर जब-तब वे अपनी ही पार्टी और सरकार के लिए मुश्किले पैदा करने से नहीं चूकते। उनके बयान कभी-कभी इतना बखेड़ा खड़ा कर देते हैं कि बचाव में खुद प्रधानमंत्री मनमोहन को बयान देना पड़ता है। यह और बात है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी या राहुल की ओर से उन्हें बयानबाजी करने के अभी तक नहीं रोका गया है।
आज दिग्विजय सिंह राहुल गांधी के मार्गदर्शक की तरह हैं। वे उन्हें राजनीति का ज्ञान दे रहे हैं। राहुल गांधी ने उन्हें उत्तर प्रदेश की पूरी जिम्मेदारी सौंप दी है। नोएडा में राहुल की यात्रा आयोजित करवाने में उनकी खास भूमिका रही। दिग्गी राजा का राजनीतिक एजेंडा भी काफी विशाल है। वे न केवल राहुल गांधी के माध्यम से पार्टी में अपनी जगह बनाने में जुटे हैं,बल्कि देश की राजपूत राजनीति में पैदा हुई नेतृत्व की शून्यता को भी भरना चाहते हैं।
मध्य प्रदेश के एक छोटे से इलाके राघोगढ़ के ठिकानेदार और 400-500घरों के मुखिया के रूप में जाने जानेवाले इस राजपूत नेता को आगे लाने में दिवंगत अर्जुन सिंह ने अहम भूमिका निभायी थी। अर्जुन सिंह के खेमे के मुताबिक दिग्विजय सिंह उनके यहां आने वालों को पानी पिलवाने तक का काम करते थे। लेकिन एक समय ऐसा आया कि उन्होंने अपने गुरू से ही पानी भरवा कर उन्हें राज्य की राजनीति में बेसहारा छोड़ दिया। जो स्थिति कभी अर्जुन सिंह ने राजीव गांधी के दरबार में हासिल की थी, वही आज राहुल गांधी के यहां दिग्विजय की है।
मध्य प्रदेश में लगातार दो बार सरकार बनाने के बाद जब इस इंजीनियर के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया तो उसकी सारी सोशल इंजीनियरिंग फेल हो गयी। कंप्यूटर नेटवर्क ही गांव तक को जोड़ देने वाले दिग्विजय शहरों तक को पानी,बिजली,सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने में असफल रहे और उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा की सभा का छींका फूट गया। कांग्रेस 2003के विधानसभा चुनाव में 230 में से महज तीन दर्जन सीटे ही जीत पायी।
इस हार के बाद दिग्विजय सिंह ने दस साल तक कोई पद न लेने का ऐलान कर दिया और दिल्ली में डेरा डाल दिया। अंबिका सोनी और अशोक गहलोत की परिक्रमा करके केंद्र में महासचिव बने। अहमद पटेल ने पुराने रिश्तों को ध्यान में रखते हुए उनकी विशेष मदद की और असम का प्रभारी बना दिया। दिल्ली में आने के बाद दिग्विजय सिंह को यह भांपने में देर नहीं लगी कि कांग्रेस का भविष्य तो राहुल गांधी के हाथों में है। वे हर रोज नोट बना कर भेजने लगे कि किस मसले पर पार्टी का क्या रुख होना चाहिए। राहुल गांधी ने उन्हें उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनवा दिया और संयोग से कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में अच्छी खासी सीटें मिल गयी। इसका श्रेय दिग्विजय को मिला। फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
एक समय था जबकि देश में अनेक राजपूत नेता हुआ करते थे। इनमें चंद्रशेखर, भैरोसिंह शेखावत,अर्जुन सिंह खासे अग्रणी थे। भैरोसिंह शेखावत की राजपूतों में लोकप्रियता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि जब उन्होंने उपराष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा तो तमाम दलों के राजपूत सांसदों ने उन्हें दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर अपने वोट दिये और वे भाजपा और उनके सहयोगी दलों के अलावा 32 अतिरिक्त वोट हासिल करने में कामयाब हो गये। ये तीनों राजपूत नेता अब इस दुनिया में नहीं है।
भाजपा में राजनाथ सिंह राजपूत होने के बावजूद उत्तर प्रदेश तक में पार्टी का जनाधार बना पाने में नाकाम रहे। उन्होंने तो जानेमाने डॉन राजा भैया के बारे में सार्वजनिक रूप से यह बयान दिया था कि राजा भैया कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन देशद्रोही नहीं हो सकते। समाजवादी पार्टी से अलग होने के बाद अमर सिंह ने भी खुद को राजपूतों का नेता साबित करने की कोशिश की, लेकिन वे दलालों के नेता होने की छवि से आज तक मुक्त नही हो पाये हैं। उनकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि उन्होंने हर दल में अपने दुश्मन पैदा कर लिये हैं। ऐसे में दिग्विजय सिंह के लिए राजनीति का मैदान खाली पड़ा है।
कांग्रेस के बुजुर्ग नेता याद दिलाते हैं कि एक समय था जब पहले संजय गांधी और बाद में राजीव गांधी को राजपूत नेता अपने मोहपाश में जकड़ने में कामयाब हो गये थे। संजय गांधी के समय में संजय सिंह, वीरभद्र सिंह, वीर बहादुर सिंह, अर्जुन सिंह, वीपी सिंह सरीखे नेताओं का अभ्युदय हुआ। वीपी सिंह की राजीव गांधी से निकटता कितना ज्यादा थी,यह तथ्य भी किसी से छिपा नही है। यह बात अलग है कि बाद में उन्होंने ही राजीव गांधी की सरकार के पतन में अहम भूमिका अदा की। वीपी सिंह के बारे में राजीव गांधी ने वोट क्लब की रैली में कहा था कि उन्हें इस बात का खेद है कि पार्टी में ‘जयचंद’घुस गये हैं। अर्जुन सिंह को तो उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए पूरी पार्टी की ही जिम्मेदारी सौंप दी थी।
दिग्विजय सिंह को लगता है कि नेतृत्व-शून्यता वही भर सकते हैं। इसके साथ ही उनकी नजर मुस्लिम वोट बैंक पर भी है। कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि दिग्विजय सिंह जो कुछ कर रहे हैं,उसके पीछे सोनिया और राहुल गांधी को पूरी सहमति है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कामकाज से नाखुश यह परिवार यूपीए सरकार के लगाता घोटालों में घिरते जाने के कारण बेहद परेशान है। उनका मानना है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाये गये तो कांग्रेस को बहुत ज्यादा नुकसान होगा। इसलिए वे उनकी निर्भरता दिग्विजय सिंह पर बढ़ती जा रही है।
दिग्विजय सिंह के करीबियों के मुताबिक उन्होंने हाईकमान को यह सलाह दी है कि सरकार के भ्रष्टाचार और घोटालों से ध्यान हटाने के लिए जरूरी है कि विपक्ष का ध्यान और ऊर्जा कही और केंद्रित की जाये। असली मुद्दों से विपक्ष को भटकाने के लिए ही वे ऐसे बयान दे रहे हैं,जिनसे कि विपक्ष खंडन-मंडन में ही फंस कर रह जाये। उनका दावा है कि इस काम में दिग्गी राजा को महारत हासिल है। जिस नेता ने माधव राव सिंधिया, अर्जुन सिंह, विद्या चरण शुक्ल सरीखे धुरंधरों को मध्य प्रदेश की राजनीति में धूल चटाने में कामयाबी हासिल की हो,उसके लिए विपक्ष को उलझाना कोई मुश्किल काम नहीं है। वे बताते हैं कि इसके साथ ही उनका लक्ष्य अहमद पटेल हैं। उनका मानना है कि राजनीति के शीर्ष पर पहुंचने में बड़ी उनके लिए अंतिम बाधा साबित हो सकते हैं।
द पब्लिक एजेंडा से साभार
No comments:
Post a Comment