आज कथासम्राट मुंशी प्रेमचंद की 131वीं जयंती है। आइए इस मौके पर कुछ ज़रूरी बातें कर लें... प्रेमचंद को याद करने का मतलब है अपने समय की सच्चाई से रूबरू होना, उनसे मुठभेड़ करना। आज के यथार्थ को उकेरना। लेकिन आज का लेखक इसी सच्चाई से मुंह चुरा रहा है। सत्ता से और ज़्यादा करीब होने की होड़ में अपना कलम गिरवी रख रहा है..
मुकुल सरल
मुंशी प्रेमचंद को याद करने का क्या मतलब है? क्या मायने हैं? क्या महज़ एक रस्म अदायगी...कुछ रोना-गाना कि हाय मुंशी जी को भुला दिया गया, कि हाय उनका स्मारक अधूरा रह गया...कि लमही में यूं न हुआ, कि गोरखपुर, प्रतापगढ़ या इलाहाबाद में यूं न हुआ। या इससे अलग कुछ और...क्या मतलब है प्रेमचंद के होने या न होने का, उन्हें याद करने का।
प्रेमचंद को याद करने का मतलब है उस ग्रामीण भारत को याद करना जो उनकी कहानियों और उपन्यासों के केंद्र में रहा। उस ग्रामीण भारत को जिसकी दशा आज भी नहीं बदली।
भूमंडलीयकरण और आर्थिक उदारीकरण के दौर में जिस गांव को बर्बाद करने की पूरी तैयारी है। उस ग्रामीण भारत को जानना, उसकी आवाज़ बनना...यही है प्रेमचंद को याद करना।
प्रेमचंद को याद करने का मतलब है अपने समय की सच्चाई से रूबरू होना, उनसे मुठभेड़ करना। आज के यथार्थ को उकेरना। लेकिन आज का लेखक इसी सच्चाई से मुंह चुरा रहा है। सत्ता से और ज़्यादा करीब होने की होड़ में अपना कलम गिरवी रख रहा है।
आज प्रेमचंद का होरी आत्महत्या कर रहा है। आज की ही ख़बर है कि बुंदेलखंड के हमीरपुर में कर्ज़ से परेशान एक किसान ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। विदर्भ का उदाहरण हम सबके सामने है ही। कमोबेश पूरे देश में यही स्थिति है। कृषि प्रधान व्यवस्था बर्बाद की जा रही है।
किसान कर्ज़ के जाल में फंस गया है। कहीं सूखे ने उसे मार डाला है, कहीं बाढ़ ने। कहीं विकास के नाम पर उसकी ज़मीन सस्ते में छीनी जा रही है और बड़े-बड़े बिल्डरों और कंपनियों को कॉलोनी और मॉल बनाने के लिए दी जा रही है। जिससे वे भारी मुनाफा कमा सकें। भट्ठा-पारसौल से लेकर टप्पल तक यही हुआ। और ये सब कौन कर रहा है हमारी सरकारें। जो गांव और किसान के नाम पर सत्ता में आती हैं।
गोबर गांव से पलायन कर रहा है। धनिया की सुध लेने वाला कोई नहीं। ऐसे दौर में प्रेमचंद को याद करना इस स्थिति के खिलाफ कलम उठाना है, कदम बढ़ाना है।
प्रेमचंद को याद करना उस सांप्रदायिक एकता को भी याद करना है जिसकी उन्होंने पुरज़ोर वकालत की। उस उर्दू-हिन्दी के एका को याद करना है जिसने उनकी कलम को बेमिसाल बना दिया। लेकिन जिसके खिलाफ आज सांप्रदायिक ताकतें बंटवारे की राजनीति कर रही हैं।
दरअस्ल प्रेमचंद को याद करना साहित्य की उस प्रगतिशील धारा की मशाल को जलाए रखना है जिसकी रौशनी में ही नये भारत का निर्माण संभव है।
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