पत्रकार दीपक असीम को 12 दिन तक सिर्फ इसलिए जेल की सींखचों के पीछे रहना पड़ा क्योंकि उन्होंने बतौर विज्ञापन अपने अखबार में ओशो की चर्चित पुस्तक 'बिन बाती बिन तेल' का एक हिस्सा प्रकाशित कर दिया था.....
प्रेमा नेगी
अभिव्यक्ति की आजादी पर हो रहे हमलों के बीच प्रसिद्ध भारतीय विचारक—दार्शनिक ओशो का लिखा भी अब पुनर्प्रकाशित करने पर जेल हो जा रही है। मध्य प्रदेश के इंदौर से निकलने वाले अखबार खजराना लाइव के संपादक दीपक असीम को 12 दिन तक हिंदूवादियों की शिकायत पर सिर्फ इसलिए जेल की सींखचों के पीछे रहना पड़ा क्योंकि उन्होंने बतौर विज्ञापन के रूप में ओशो की चर्चित पुस्तक 'बिन बाती बिन तेल' का एक हिस्सा प्रकाशित कर दिया था।
ओशो के लेख का वह हिस्सा जिसके लिए दीपक असीम को जाना पड़ा जेल |
15 मार्च को दीपक असीम की जमानत हुई। उसके बाद उन्होंने सीनियर एडवोकेट आनंदमोहन माथुर के माध्यम से हाईकोर्ट में एक रिट दायर कर पूछा कि किसी पत्रकार के लिखने से शांति भंग कैसे हो सकती है। गौरतलब है कि एसडीएम ने धारा 107—16 में शांति भंग करने का हवाला देते हुए दीपक असीम को नोटिस थमाया था कि क्यों न आपसे 10 हजार रुपए का मुचलका और इतनी ही राशि की जमानत ली जाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि आप अगले 6 महीने तक शांति भंग करने वाला कोई काम नहीं करेंगे।
इंदौर के स्थानीय अखबार खजराना लाइव के 27 फरवरी के अंक में ओशो द्वारा लिखित एक लेख प्रकाशित हुआ। जिसके लिए दीपक असीम के खिलाफ धारा 295—ए के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया गया। प्रकाशित लेख में शिवपुराण के हवाले से ओशो ने शिव—पार्वती के बीच संभोग का वर्णन किया है। वर्णन में खास बात यह है कि शिव और पार्वती संभोग में इस कदर लिप्त होते हैं कि उनसे मिलने आए ब्रह्मा और विष्णु का वह गौर ही नहीं कर पाते। ओशो ने इस कथा में संभोग और समाधि के बीच एक तारतम्य बैठाने की कोशिश की है।
दीपक असीम कहते हैं, ''अखबार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए हम विज्ञापन के रूप में ओशो के प्रवचन छापते हैं। प्रवचन जिस स्पेस में छपता है उसका भुगतान जयदेव भट्ट अपने दादा स्वर्गीय भालचंद जी भट्ट की याद में करते हैं। इस बात का डिस्कलेमर भी हम अखबार के हर अंक में छापते हैं।
दीपक असीम ने कहा, ''ओशो की किताब 'बिना बाती बिन तेल' का अंश अपने अखबार में प्रकाशित करने के बाद जब हिंदुवादियों ने विरोध किया तो मैंने माफी मांग ली। न सिर्फ माफी मांगी बल्कि लिखित तौर पर पूरी सफाई अखबार में भी प्रकाशित की। बावजूद मुझे 3 से 16 मार्च तक जेल में रहना पड़ा। इसका कारण मैं अपनी शादी एक मुस्लिम लड़की से होना मानता हूं। हिंदू संगठनों के लोग मानकर चलते हैं कि मैंने मुस्लिम धर्म ज्वाइन कर लिया है, जबकि यह सच नहीं है। जिस तरह यह सच नहीं है कि मैंने हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए कोई लेख प्रकाशित किया है। मुझे बताया गया है कि ओशो ने अपनी पुस्तक 'बिना बाती बिन तेल' में उस किस्से का जिक्र प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक ग्रंथ 'शिवपुराण' से साभार किया है। ऐसे में मेरा मुस्लिम लड़की से शादी करना न होता तो ऐसा क्यों होता कि पहले से प्रकाशित, फिर पुनर्प्रकाशित को छापने के जुर्म में मुझे जेल क्यों जाना पड़ता।''
लेख पर माफ़ी मांगने के बावजूद नहीं मिली राहत |
मीडिया की भूमिका
दीपक असीम की गिरफ्तारी को लेकर ज्यादातर हिंंदी के बड़े अखबारों ने अभियोजन पक्ष, पुलिस और हिंदूवादियों का बयान छापा। प्रभात किरण नाम के अखबार को छोड़ बाकी किसी भी अखबार ने दीपक असीम की गलत गिरफ्तारी का विरोध नहीं किया। न ही यह सवाल उठाया किएक पौराणिक कहानी जो कि शताब्दियों पहले से शिवपुराण में प्रकाशित है, उसके सैकड़ों भाष्य हैं और उनका पुनर्भाष्य है फिर भी असीम दीपक को क्यों गिरफ्तार किया गया।
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने दीपक असीम का पक्ष रखा, वहीं दैनिक भास्कर के प्रसिद्ध और चर्चित स्तंभकार जयप्रकाश चौकसे ने भी दीपक असीम का अपने कॉलम में जिक्र करते हुए बचाव किया।
मीडिया की भूमिका पर दीपक असीम कहते हैं, ''अधिकांश पत्रकार इस मामले में खामोश रहे, लेकिन कुछ लोग थे जो साथ खड़े रहे। आनंदमोहन माथुर और सारिका जैसे लोगों के सहयोग के बिना जमानत तक मुश्किल थी। इनके साथ ही अभय नेमा, संजय वर्मा, अवधेश प्रताप सिंह, विनीत तिवारी और कुछ अन्य लोग भी 12 दिनों तक मेरी रिहाई की अनवरत कोशिश में लगे रहे। कुछ प्रगतिशील संगठन भी साथ रहे।''
मीडिया की भूमिका पर दीपक असीम कहते हैं, ''अधिकांश पत्रकार इस मामले में खामोश रहे, लेकिन कुछ लोग थे जो साथ खड़े रहे। आनंदमोहन माथुर और सारिका जैसे लोगों के सहयोग के बिना जमानत तक मुश्किल थी। इनके साथ ही अभय नेमा, संजय वर्मा, अवधेश प्रताप सिंह, विनीत तिवारी और कुछ अन्य लोग भी 12 दिनों तक मेरी रिहाई की अनवरत कोशिश में लगे रहे। कुछ प्रगतिशील संगठन भी साथ रहे।''
दीपक असीम के लेख पर विधवा विलाप करने वाले स्वनामधन्य बुद्धिजीवी एक सांसद द्वारा तमाम नियमों को ताक पर रखकर एअर इंडिया के कर्मचारी को हड़काने के प्रकरण पर कमाई की लालसा में मुंह सी लेते हैं। ऐसे भांड पत्रकार किसी राजनेता के तलुवे चाटें, वही ठीक रहेगा। ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर उनका कुछ कहना कोढ़ में खाज ही बढ़ाएगा।।...
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