महेंद्र मिश्र
लीजिए भाई । अब राष्ट्रवाद भी बिकाऊ हो गया है । पहली बोली मुम्बई में लगी है । कीमत लगी है 5 करोड़ रुपये । यह एक फ़िल्म को रिलीज करने देने के एवज में लगी है ।
यह सौदा मुख्यमन्त्री देवेन्द्र फड़नवीस की मध्यस्थता में उनके घर पर हुआ है । इस बैठक में सूबे की मशीनरी को बंधक बनाने वाले राज ठाकरे भी शामिल थे । साथ ही फ़िल्म के निर्माता निर्देशक के साथ बिरादरी के दूसरे वरिष्ठ लोग मौजूद थे । इसमें तय हुआ कि फ़िल्म के निर्माता सेना के कल्याण कोष में 5 करोड़ रुपये जमा करेंगे ।
साथ ही ठाकरे ने इसकी भी घोषणा कर दी कि आइन्दा कोई 5 करोड़ रुपये देकर पाक कलाकारों को फ़िल्म में रख सकता है । यानी 5 करोड़ में दुश्मन दोस्त में बदल जाएगा । और राष्ट्रवाद की गरिमा भी अक्षुण हो जायेगी । पहली बात तो हमारी सेना और उसका कल्याण इस तरह के किसी सौदे और फिरौती के पैसे के मोहताज नहीं है । और यह खुद उसके सम्मान के साथ खिलवाड़ है । साथ ही एक ऐसे अंदरूनी राजनीतिक मामले में उसको ले आना देश के भविष्य और उसकी राजनीति के लिए बहुत घातक है ।
इस मामले में केंद्र सरकार और खासकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह की भूमिका भी संदिग्ध रही । फ़िल्म के निर्माता और निर्देशक ने राजनाथ से मुलाकात की थी । उसके बाद देवेन्द्र फडनवीश भी उनसे मिले थे । यानी सब कुछ उनके संज्ञान में हुआ । ऐसे में अगर केंद्र ने इस समस्या का यही समाधान निकाला तो यह बहुत अफसोसनाक है ।
यह बिल्कुल कानून और व्यवस्था का मामला था । और फ़िल्म को शांतिपूर्ण तरीके से पर्दे पर दिखाये जाने की जिम्मेदारी सरकार की थी । लेकिन अपना यह कर्तव्य निभाने में वह पूरी तरह से नाकाम रही है। उसने एमएनएस के गुंडों के सामने समर्पण किया है । कल एक दूसरा गुंडा अपराधी इसी तरह से किसी मामले में सामने आए तो उसके लिए यह एक नजीर होगा । और हालात जिस तरफ जा रहे हैं कल को यह राष्ट्रवाद अगर चुरमुरे के भाव बिके तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए ।
बहरहाल कांधार कांड में आतंकियों के सामने घुटने टेकने वालों से इससे ज्यादा उम्मीद भी नहीं की जा सकती है । बस अंतर यही है कि तब इन लोगों ने समर्पण बाहरी अपराधियों और गुंडों के सामने किया था । इस बार देश के भीतर के गुंडों के सामने किया है ।
लीजिए भाई । अब राष्ट्रवाद भी बिकाऊ हो गया है । पहली बोली मुम्बई में लगी है । कीमत लगी है 5 करोड़ रुपये । यह एक फ़िल्म को रिलीज करने देने के एवज में लगी है ।
यह सौदा मुख्यमन्त्री देवेन्द्र फड़नवीस की मध्यस्थता में उनके घर पर हुआ है । इस बैठक में सूबे की मशीनरी को बंधक बनाने वाले राज ठाकरे भी शामिल थे । साथ ही फ़िल्म के निर्माता निर्देशक के साथ बिरादरी के दूसरे वरिष्ठ लोग मौजूद थे । इसमें तय हुआ कि फ़िल्म के निर्माता सेना के कल्याण कोष में 5 करोड़ रुपये जमा करेंगे ।
साथ ही ठाकरे ने इसकी भी घोषणा कर दी कि आइन्दा कोई 5 करोड़ रुपये देकर पाक कलाकारों को फ़िल्म में रख सकता है । यानी 5 करोड़ में दुश्मन दोस्त में बदल जाएगा । और राष्ट्रवाद की गरिमा भी अक्षुण हो जायेगी । पहली बात तो हमारी सेना और उसका कल्याण इस तरह के किसी सौदे और फिरौती के पैसे के मोहताज नहीं है । और यह खुद उसके सम्मान के साथ खिलवाड़ है । साथ ही एक ऐसे अंदरूनी राजनीतिक मामले में उसको ले आना देश के भविष्य और उसकी राजनीति के लिए बहुत घातक है ।
इस मामले में केंद्र सरकार और खासकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह की भूमिका भी संदिग्ध रही । फ़िल्म के निर्माता और निर्देशक ने राजनाथ से मुलाकात की थी । उसके बाद देवेन्द्र फडनवीश भी उनसे मिले थे । यानी सब कुछ उनके संज्ञान में हुआ । ऐसे में अगर केंद्र ने इस समस्या का यही समाधान निकाला तो यह बहुत अफसोसनाक है ।
यह बिल्कुल कानून और व्यवस्था का मामला था । और फ़िल्म को शांतिपूर्ण तरीके से पर्दे पर दिखाये जाने की जिम्मेदारी सरकार की थी । लेकिन अपना यह कर्तव्य निभाने में वह पूरी तरह से नाकाम रही है। उसने एमएनएस के गुंडों के सामने समर्पण किया है । कल एक दूसरा गुंडा अपराधी इसी तरह से किसी मामले में सामने आए तो उसके लिए यह एक नजीर होगा । और हालात जिस तरफ जा रहे हैं कल को यह राष्ट्रवाद अगर चुरमुरे के भाव बिके तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए ।
बहरहाल कांधार कांड में आतंकियों के सामने घुटने टेकने वालों से इससे ज्यादा उम्मीद भी नहीं की जा सकती है । बस अंतर यही है कि तब इन लोगों ने समर्पण बाहरी अपराधियों और गुंडों के सामने किया था । इस बार देश के भीतर के गुंडों के सामने किया है ।
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