दलित वोट बैंक, पिछड़ा वोट बैंक, मुस्लिम वोट बैंक।
लेकिन आपने कभी सवर्ण वोट बैंक का नाम सुना है।
नहीं न!
लेकिन आपने कभी सवर्ण वोट बैंक का नाम सुना है।
नहीं न!
सवर्ण समझदार वोटर होते हैं। ये वोट बैंक नहीं है। हो भी नहीं सकते। यह
पढ़े—लिखे और खानदानी होते हैं। यह जाति, पैसे, क्षेत्र और विचारधारा के
आधार पर वोट नहीं देते। सिर्फ विकास, शांति, सुरक्षा, सुविधा, रोजगार देने
वाले नेताओं और पार्टियों को वोट देते हैं। सही और अच्छे प्रत्याशी चुनते
हैं।
लेकिन दलित, पिछड़े और मुसलमान वोट देने में पैसा, जाति, क्षेत्र, गोत्र, संप्रदाय, विचाारधारा देखते हैं। वह पिछड़ेपन, दंगा, हिंसा, असुरक्षा, असुविधा, महंगाई, बीमारी और बलात्कार फैलाने वाले नेताओं और पार्टियों को वोट देते हैं।
अब आप पूछेंगे, ये कौन कहता है?
भारतीय मीडिया कहता है जी। उन दफ्तरों में बैठे पत्रकार कहते हैं जी। जिसको भरोसा न हो वह हिंदी पत्रकारों की एक खुली डिबेट रखे पता चल जाएगा कि हमारी पत्रकारिता और पत्रकार किस खेत की मूली है।
लेकिन दलित, पिछड़े और मुसलमान वोट देने में पैसा, जाति, क्षेत्र, गोत्र, संप्रदाय, विचाारधारा देखते हैं। वह पिछड़ेपन, दंगा, हिंसा, असुरक्षा, असुविधा, महंगाई, बीमारी और बलात्कार फैलाने वाले नेताओं और पार्टियों को वोट देते हैं।
अब आप पूछेंगे, ये कौन कहता है?
भारतीय मीडिया कहता है जी। उन दफ्तरों में बैठे पत्रकार कहते हैं जी। जिसको भरोसा न हो वह हिंदी पत्रकारों की एक खुली डिबेट रखे पता चल जाएगा कि हमारी पत्रकारिता और पत्रकार किस खेत की मूली है।
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