जनज्वार.तीन दशकों से भी अधिक समय का सफर तय कर चुके उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद के एक मात्र प्रतिष्ठित महाविद्यालय जेएनपीजी की शाख पर बट्टा लगने को है। शिक्षा के गुरूकुल में भ्रष्टाचार को पनाह दी जा रही है। यूं तो साल दर साल महाविद्यालय में प्राचार्य आते और जाते रहे मगर वर्ष 2003 से 31 जुलाई 2011 तक के कार्यकाल में रहे प्राचार्य ने जिस तरह से यूजीसी ग्रान्ट कमीशन,विधायक सांसद निधि से प्राप्त बजट को कौड़ियों के भाव कागज के आंकड़ों में गर्त कर दिया है। इसके खिलाफ महाविद्यालय से जुड़े रहे कई पूर्व छात्र संघ नेता भी भ्रष्टाचार के मामले को लेकर अनशन और धरना प्रदर्शन कर चुके हैं।
वर्ष 1964 से महाविद्यालय में छात्र-छात्राओं से ली जाने वाली काशनमनी नियमित जमा होती रही है और महाविद्यालय के छात्रों को डिग्री लेने के बाद टीसी कटवाने के समय वापस कर दी जाती थी। वर्ष 2003से मई 2011के बीच छात्रों से वसूली गई लाखों रूपये की काशनमनी को न तो छात्र-छात्राओं को वापस किया गया और न ही इस धनराशि को महाविद्यालय के कोष मे जमा किया गया है। नाम नहीं लिखने की शर्त पर महाविद्यालय के एक लिपिक ने बताया कि नये भवन के खेल मैदान में जो इलाहाबाद ग्रामीण बैंक को किराये पर जो भवन और हाल दिया गया है,उससे मिलने वाले हजारों रूपये का किराया भी प्राचार्य के निजी खर्चा में चला जाता है।
वहीं करोड़ों रूपयों की लागत से महाविद्यालय में बने हुये टीटी हॉल, बाउण्ड्रीवाल, छात्र संघ अध्यक्ष भवन, क्रीड़ा विभाग की बिल्डिंगों और पुराने भवन के निर्माण कार्य में बड़े स्तर पर धांधली हुई है। निजी सूत्रों की माने तो महाविद्यालय के साईकिल स्टैण्ड से ही हर साल तकरीबन 20 से 25 लाख रूपये की वसूली की जाती है। साइकिल स्टैण्ड की फीस देने वालों में सभी छात्र छात्रायें शामिल होते हैं फिर चाहें वह विकलांग हो या आंख से अन्धा।
इधर महाविद्यालय के पुस्तकालय भवन के पीछे लगाये गये पूर्व प्राचार्यों द्वारा पुराने वृक्षों को तत्कालिक प्राचार्य ने वन विभाग की सांठ-गांठ से जिस तरह रातों रात ठिकाने लगा दिया उसकी ही एक बानगी महाविद्यालय के मैदान में लगाये गये 82 हजार के पौधे जो आज बीएड आवासीय भवन की बिल्डिंग की भेंट चढ़ चुके हैं।
महाविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष सुशील त्रिवेदी ने प्राचार्य नन्दलाल शुक्ला के खिलाफ कम्प्यूटर शुल्क के नाम पर कम्प्यूटर संचालक द्वारा की गयी तकरीबन 52लाख की वसूली पर मोर्चा खोल दिया है और कई दिनों से राजनीतिक दलों के साथ अनशन और धरना प्रदर्शन पर थे। इधर हाईकोर्ट इलाहाबाद के शासनादेश के बाद से पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के शासन में शिक्षा निदेशक द्वारा नियुक्त किये गये प्रदेश में 13महाविद्यालयों के प्राचार्यों को उच्च न्यायालय ने अवैध नियुक्ति करार देते हुये महाविद्यालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
मगर जेएनपीजी कालेज के प्राचार्य और अन्य प्राचार्यों ने उच्चतम न्यायालय की शरण में जाकर बड़ी ही साफगोई से जिला प्रशासन और महाविद्यालय स्टाफ की आंखों में धूल झोंकने की तैयारी कर दी है। मिली जानकारी के अनुसार में 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिये एक अहम आदेश में 11 जुलाई को कार्य कर रहे प्राचार्य के मुताबिक ही महाविद्यालय की गतविधियां संचालित करने के आदेश दिये हैं। इस आदेश के मुताबिक प्राचार्य नन्दलाल शुक्ला के हटाये जाने के बाद प्राचार्य नियुक्त हुये डॉ0 एपी सक्सेना को ही उच्चतम न्यायालय के शासनादेश के मुताबिक प्राचार्य की कुर्सी पर होना चाहिए।
लेकिन सत्ता की दबंगई और अपने क्षेत्र प्रभाव के बल पर निलम्बित हुये प्राचार्य ने महाविद्यालय में न ही पूर्व में हाईकोर्ट से निलम्बन के बाद प्राचार्य की कुर्सी छोड़ी और न ही अपना चार्ज किसी अन्य को लिखित रूप में हस्तांरित किया था,इसी बात का लाभ लेते हुये उन्होनें एक बार फिर जिला प्रशासन की शार्गिदी में प्राचार्य पद नही छोड़ने का पूरा प्रबन्ध कर लिया है।
इधर सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर ने जनसूचना अधिकार 2005के तहत महाविद्यालय में वर्ष 2003 से 31 जुलाई 2011 तक प्राचार्य के कार्यकाल में किये गये तमाम तरह के कामों और निर्माण कार्यों की सूचना मांगी थी। उनके अनुसार तीस दिवस गुजर जाने के बाद भी जनसूचना अधिकारी ने सूचना उपलब्ध नहीं करायी। उन्होनें जिला उपभोक्ता फोरम जनसूचना अधिकारी,प्राचार्य पर 90 हजार रू0 का मुकदमा दायर किया है।
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