Jul 30, 2011

मांद में घुसकर लिया था बदला


क्रांतिकारी ऊधम सिंह की शहादत 31 जुलाई पर विशेष
ऊधम सिंह अनाथ थे और अनाथालय में रहते थे,लेकिन फिर भी जीवन की प्रतिकूलताएं उनके इरादों से उन्हें डिगा नहीं पाइ। उन्होंने 1919में अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जंग ए आजादी के मैदान में कूद पड़े...

संजय स्वदेश

नई दिल्ली। भारत के महान क्रांतिकारियों की सूची में ऊधम सिंह का विशेष स्थान है,जिन्होंने जलियांवाला बाग नरसंहार के दोषी माइकल ओड्वायर को गोली से उड़ा दिया था । पंजाब में संगरूर जिले के सुनाम गांव में 26 दिसंबर 1899 में जन्मे ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग में अंग्रेजों द्वारा किए गए कत्लेआम का बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी जिसे उन्होंने गोरों की मांद में ही घुसकर 21 साल बाद पूरा कर दिखाया।

पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओड्वायर के आदेश पर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांति के साथ सभा कर रहे सैकड़ों भारतीयों को गोलीबारी कर मौत के घाट उतार दिया था। जलियांवाला बाग की इस घटना ने ऊधम सिंह के मन पर गहरा असर डाला था और इसीलिए उन्होंने इसका बदला लेने की ठान ली थी।

ऊधम सिंह अनाथ थे और अनाथालय में रहते थे,लेकिन फिर भी जीवन की प्रतिकूलताएं उनके इरादों से उन्हें डिगा नहीं पाइ। उन्होंने 1919में अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जंग ए आजादी के मैदान में कूद पड़े। जाने माने नेताओं डॉ.सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में लोगों ने जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन एक सभा रखी थी,जिसमें ऊधम सिंह पानी पिलाने का काम कर रहे थे। पंजाब का तत्कालीन गवर्नर माइकल ओड्वायर किसी कीमत पर इस सभा को नहीं होने देना चाहता था और उसकी सहमति से ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर ने जलियांवाला बाग को घेरकर अंधाधुंध गोलीबारी कर दी।

अचानक हुई गोलीबारी से बाग में भगदड़ मच गई। बहुत से लोग जहां गोलियों से मारे गए वहीं बहुतों की जान भगदड़ ने ले ली। जान बचाने की कोशिश में बहुत से लोगों ने पार्क में मौजूद कुएं में छलांग लगा दी। बाग में लगी पट्टिका के अनुसार 120 शव तो कुएं से ही बरामद हुए। सरकारी आंकड़ों में मरने वालों की संख्या 379 बताई गई, जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोगों की इस घटना में जान चली गई। स्वामी श्रद्धानंद के मुताबिक मृतकों की संख्या 1500 से अधिक थी।

अमृतसरके तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ. स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से ज्यादा थी।ऊधम सिंह के मन पर इस घटना ने इतना गहरा प्रभाव डाला था कि उन्होंने बाग की मिट्टी हाथ में लेकर ओड्वायर को मारने की सौगंध खाई थी। अपनी इसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के मकसद से वह 1934 में लंदन पहुंच गए और सही वक्त का इंतजार करने लगे। ऊधम को जिस वक्त का इंतजार था, वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला जब माइकल ओड्वायर लंदन के कॉक्सटन हाल में एक सेमिनार में शामिल होने गया। भारत के इस सपूत ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवॉल्वर के आकार के रूप में काटा और उसमें अपनी रिवॉल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए।

चमन लाल के अनुसार मोर्चा संभालकर बैठे ऊधम सिंह ने सभा के अंत में ओड्वायर की ओर गोलियां दागनी शुरू कर दीं । सैकड़ों भारतीयों के कत्ल के गुनाहगार इस गोरे को दो गोलियां लगीं और वह वहीं मौत का शिकार हो गया। अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के बाद इस महान क्रांतिकारी ने समर्पण कर दिया। उन पर मुकदमा चला और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में यह वीर हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया। ब्रिटेन ने 1974 में ऊधम सिंह के अवशेष भारत को सौंप दिए। ओड्वायर को जहां ऊधम सिंह ने मौत के घाट उतार दिया,वहीं जनरल डायर जिन्दगी की अंतिम घड़ी में बीमारियों से तड़प-तड़प कर 23जुलाई 1927को बुरी मौत मर गया।

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