दो वर्ष पूर्व ग्लोबल वार्मिंग के चलते जब श्री अमरनाथ गुफा में यात्रा के समय प्राकृतिक रूप से शिवलिंग निर्माण नहीं हो सका फिर वहां नकली शिवलिंग बनाने की क्या ज़रूरत थी...
निर्मल रानी
पिछले दिनों सामाजिक कार्यकर्ता और बंधुआ मज़दूर मुक्ति आंदोलन के अगुवा स्वामी अग्निवेश ने जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता सैय्यद अलीशाह गिलानी से हुई एक मुलाकात के दौरान अमरनाथ यात्रा पर अमर्यादित टिप्पणी कर डाली। उस टिप्पणी का नतीजा इस रूप में सामने आया कि गुजरात के अहमदाबाद शहर में नित्यानद नाम के संत ने उन्हें सरेआम चांटा मारा और उनकी पगड़ी उछाल दी. संत नित्यानंद अग्निवेश की अमरनाथ यात्रा पर की गयी टिप्पणी से विचलित था. स्वामी अग्निवेश ने अमरनाथ यात्रा को पाखंडपूर्ण आयोजन कऱार दिया था । उनका तर्क था कि दो वर्ष पूर्व ग्लोबल वार्मिंग के चलते जब श्री अमरनाथ गुफा में यात्रा के समय प्राकृतिक रूप से शिवलिंग निर्माण नहीं हो सका फिर वहां नकली शिवलिंग बनाने की क्या ज़रूरत थी? अग्निवेश ने इसे पाखंड का ही एक रूप बताया।
इसमें कोई शक नहीं कि शिवलिंग की संरचना चाहे वह पत्थरों की हो या बर्फ की यह सभी आकृतियां प्राकृतिक रूप से ही गढ़ी जाती हैं। लिहाज़ा शिवलिंग अथवा किसी अन्य देवी-देवता की आकृति के निर्माण में प्रकृति के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। लेकिन प्रश्न यह है कि जिस जनमानस का गहन विश्वास अमरनाथ गुफा में बनने वाले शिवलिंग से जुड़ा है उसे जागरुक करने के नाम पर भड़काने की क्या आवश्यकता है ?
ऐसे में जहां देश के लाखों श्रद्धालू अमरनाथ यात्रा के प्रति इतना भावुक, गंभीर व समर्पित रहते हों वहां स्वामी अग्रिवेश की अमरनाथ यात्रा के प्रति की गई टिप्पणी पर उन भक्तजनों का आक्रोशित होना स्वाभाविक है। अग्निवेश की इस अमर्यादित एवं आपत्तिजनक टिप्पणी ने कई अतिवादियों को भी प्रचारित होने को मौका दे दिया है। ऐसे ही किसी व्यक्ति ने अग्निवेश का सिर क़लम किए जाने तथा ऐसा काम करने वाले को इनाम दिए जाने का फतवा भी दे दिया है। अदालतों में भी अग्निवेश के विरुद्ध इसी मुद्दे को लेकर मुकद्दमे दर्ज किए जाने के भी समाचार हैं।
धार्मिक यात्राओं के दौरान यदि आप वैष्णोंदेवी, बद्रीनाथ, केदारनाथ,अमरनाथ, गंगोत्री अथवा यमनोत्री जैसे प्रसिद्ध व प्रतिष्ठित धार्मिक स्थलों की ओर जाएं तो आप देख सकते हैं कि कई भक्तजन दंडवत करने जैसी अति कष्टदायक मुद्रा में ही सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर अपने परम ईष्ट के समक्ष शीर्ष झुकाने पहुंचते हैं।
इसी तरह कहीं किसी समुदाय के लोग तलवारों व बर्छियों से अपनी छाती तथा पीठ पर वार कर इस कद्र लहू बहाते हैं कि पूरी ज़मीन रक्तरंजित हो जाती है। ईरान, इराक,पाकिस्तान तथा भारत जैसे कई देशों में शिया समुदाय के लोग दसवीं मोहर्रम के दिन अपने इमाम हज़रत इमाम हुसैन की याद में पूरी दुनिया में सैकड़ों टन खून बहा देते हैं। देखने वाला हो सकता है उनकी इस कुर्बानी को अंधविश्वास की संज्ञा दे।
लेकिन इस प्रकार सडक़ों पर खून बहाना,हुसैन की याद में खुद को घायल करना तथा रोना-पीटना व मातमदारी करना हज़रत हुसैन के प्रति उनकी गहन श्रद्धा व भक्ति का एक अहम हिस्सा है। बेशक इस प्रकार के खतरनाक तथा लहूलुहान कर देने वाले आयोजन में कई लोग अपनी जान भी गंवा बैठते हैं। परंतु इसके बावजूद आस्थावानों का यही विश्वास होता है कि इस प्रकार से मरने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से स्वर्ग का ही अधिकारी है।
इसी प्रकार अन्य समुदायों व कबीलों में कोई लोहे की छड़ को अपनी जीभ के आर-पार कर देता है तो कोई लोहे की छड़ों से अपने दोनों गालों को भेद डालता है। शरीर पर चोट व कष्ट पहुंचाने वाले इस प्रकार के सैकड़ों रीति-रिवाज पूरे विश्व में सदियों से प्रचलित हैं। यहां तक कि इन समुदायों व रीति-रिवाजों से जुड़े लोगों की यही ख्वाहिश होती है कि उनकी यह परंपराएं,रीति-रिवाज तथा धार्मिक विरासतें आगे भी हमेशा $कायम रहें। ऐसे लोग जो अपनी ऐसी धार्मिक परंपराओं के प्रति इस हद तक समर्पित हों वे आखिर अपनी इन्हीं धार्मिक परंपराओं व रीति-रिवाजों के विरुद्ध एक भी शब्द कैसे सुन सकते हैं?
दुनिया अक्सर देखती रहती है कि कभी कुरान शरीफ को जलाए जाने की घटना को लेकर विश्वव्यापी विरोध प्रदर्शन किए जाने की खबरें आती हैं तो कभी कुछ सिरफिरे लोग पैगम्बर का कार्टून बनाकर मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का काम करते हैं। पिछले दिनों आस्ट्रेलिया में एक फैशन शो में भारतीय देवी-देवताओं के चित्रों को लेडीज़ बिकनी,ब्रा व चप्पलों पर उकेरा हुआ देखा गया। ऐसी घटनाएं पहले भी कई बार हो चुकी हैं। मकबूल फि़दा हुसैन जैसे प्रतिष्ठित भारतीय पेंटर स्वयं धार्मिक भावनाएं भडक़ाने वाली एक पेंटिंग को लेकर विवादों में घिर चुके हैं। क्या किसी भी विश्वास व धर्म के लोगों की भावनाओं को इस प्रकार से ठेस पहुंचाने को हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहकर ऐसी बातों को दरगुज़र या नज़रअंदाज़ कर सकते हैं?
पिछले दिनों अन्ना हज़ारे ने जनलोकपाल विधयेक संसद में लाए जाने की मांग को लेकर भ्रष्टाचार के विरुद्ध जब आंदोलन छेड़ा उस समय स्वामी अग्रिवेश को पूरे देश ने अन्ना हज़ारे के खास सहयोगी के रूप में देखा। इसके पूर्व भी अग्निवेश को पूरा देश एक समर्पित,गरीबपरवर, मज़दूरों व दीन-दुखियों के हितैषी तथा एक वास्तविक त्यागी के रूप में जानता, मानता व पहचानता है। अंधविश्वास का विरोध करने वालों के रूप में भी उनकी पहचान बन चुकी है। परंतु किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली टिप्पणी कर अग्निवेश विवादों में घिर गए हैं और उनपर गुजरात के एक महात्मा ने हमला किया है .
बेहतर होता यदि अग्निवेश जैसा साफ-सुथरी तथा बेदाग छवि का व्यक्ति ऐसी अमर्यादित टिप्पणी न करता. और यदि उन्होंने ऐसा कह भी दिया है तो एक योगी होने के नाते उन्हें स्वयं ऐसी अशोभनीय टिप्पणी के पर क्षमा मांग लेनी चाहिए.
लेख काफी अच्छा है. अंध विश्वास पर की गयी आपकी टिपण्णी काबिले तारीफ है.
ReplyDeleteअग्निवेश द्वारा दिया गया बयान हो सकता है की गलत हो मगर सच तो है . दुनिया भर में चल रहे इस अंध विश्वास को ख़त्म करना जरूरी है.. अपने आप को कष्ट पंहुचा कर स्वर्ग का टिकेट ले लेना कहीं न कहीं संकीर्ण मानसिकता का भी dyotak है. इस लिए मेरा मानना है की अग्निवेश ने सिर्फ इस सोच का विरोध किया है जो की किसी न किसी रूप में हिन्दू संगठनो द्वारा हिन्दुओ पर थोपा जा रहा है. हाँ ये और बात है की स्वामी अग्निवेश यही बात दुसरे तरीके से कह सकते..
आर्य समाज में अन्धविश्वास व पोंगापंथी का मखौल उडाए जाने की परम्परा रही है. स्वामी दयानंद ने 'सत्यार्थ प्रकाश' में इस किस्म की काफी टिप्पणियाँ की हैं. लेखिका ने संघी नजरिये ये इस घटना को देखा है. अग्निवेश की राजनीति जिस किस्म की है - उससे संघी और माओवादी दोनों नाराज हैं.
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