देश के बाकि हिस्सों में जहाँ सुरक्षा के लिए पुलिस की कमी की बात होती है, वहीँ एक ऐसा गाँव भी है जहाँ लोग थाना स्थापित होने से अपनी जमीन और इज्जत खोने की आशंका जता रहे हैं...
हिमांशु कुमार
मैं कुछ दिनों पहले आदिवासी ग्रामीण महिलाओं से मिला था. उन्होंने मुझे बताया कि वह छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के एक आदिवासी गाँव से हैं . वे मुझे बता रही थीं कि उनके गाँव में सरकार बिना गाँववालों से चर्चा किये जबरन एक पुलिस थाना खोल रही है. वे कह रही थीं कि हम आदिवासी लोग गाँव के झगड़े गाँव में ही सुलझा लेते हैं. यही आदिवासियों की परम्परागत सामाजिक न्याय पद्धति है.
वे महिलाएं डरी हुई थीं कि पुलिस गाँव में रहेगी और उनके परिवारों के मर्द पर्व-त्यौहार में पीकर आपस में लडाई-झगड़ा कर लेंगे तो तुरंत पुलिस उन्हें पकड़कर ले जायेगी और उनको छोड़ने के लिए उनके परिवार से पैसा मांगेगी. इन महिलाओं को ये भी डर था कि ये पुलिस वाले गाँव की महिलाओं की इज्ज़त पर हमला करेंगे और इसका विरोध करने वाले गाँव के नौजवानों को नक्सली कहकर जेलों में डाल देंगे.
महिलाएं बता रहीं थी कि गाँव वालों ने छत्तीसगढ़ सरकार के ग्राम स्वराज्य अभियान के दौरान उनके गाँव में आये सरकारी दल को ग्रामसभा की इन आपत्तियों के बारे में बताया और एक लिखित प्रार्थनापत्र भी मुख्यमंत्री के नाम पर इन सरकारी अफसरों को सौंपा था. वे महिलाएं मुझसे सीजी नेट स्वर का फोन नंबर पूछ रही थीं. बाद में मैंने उनका सन्देश सीजी नेट स्वर पर सुना भी था.
लेकिन इसका परिणाम क्या हुआ? आज शाम को मेरे पास उन्हीं महिलाओं का फोन आया कि गाँव में पुलिस आयी हुई है और थाना खुलने का विरोध करने वालों के नाम-पते पूछ रही है.वे इस मामले में मुझसे मदद चाहती थीं. तभी से बैचैन हूँ, क्योंकि मैं जानता हूँ कि इनकी कोई मदद नहीं कर पाऊंगा. मुझे पता है कि अपने संवैधानिक अधिकार की मांग करने की जुर्रत करने की सज़ा के तौर पर इस गाँव के कुछ लोगों को फर्जी केस बनाकर जेल में डाल दिया जायेगा . बाकी गाँव वाले डर कर विरोध करना बन्द कर देंगे और वहां एक नया थाना गाँव की छाती पर खुल जाएगा.
लेकिन सवाल है कि सरकार ये सब कर क्यों रही है? असल में उस इलाके में बड़े पैमाने पर सरकार आदिवासियों से ज़मीन छीनकर जिंदल साहब (जिंदल स्टील ग्रुप) को देना चाहती है, ताकि वो वहां अपना कारखाना लगा लें. आदिवासी इस ज़मीन की लूट का विरोध कर रहे हैं. इस विरोध को कुचलने के लिए सरकार उस इलाके में ज्यादा से ज्यादा पुलिस भेज रही है . तो मेरा आप सबसे सवाल है कि क्या हम इन आदिवासियों को बचा सकते हैं?
दंतेवाडा स्थित वनवासी चेतना आश्रम के प्रमुख और सामाजिक कार्यकर्त्ता हिमांशु कुमार का संघर्ष बदलाव और सुधार की गुंजाइश चाहने वालों के लिए एक मिसाल है.
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