May 7, 2011

एक बार फिर मारा गया ओसामा बिन लादेन !

बुश और ओबामा के जंगी कार्यकालों ने अमेरिका का दिवाला निकाल दिया है. उसे भारी घाटे और डॉलर की पतली होती हालत का सामना करना पड़ रहा है. और फिर चुनाव भी धीरे-धीरे नजदीक आ रहे हैं...

ओसामा बिन लादेन की हत्या की खबरें अनेक सवालों पर फिर से ध्यान खींचती हैं. इनमें सबसे बड़ा सवाल तोयह है कि क्या किसी भी देश को दूसरे देश में अवैध-अनैतिक-अमानवीय फौजी कार्रवाइयों का अधिकार है. ऐस हमले के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि लादेन, कथित तौर पर, उन हमलों के लिए जिम्मेदार था, जिनमें 3 हजार से अधिक लोगों की मौतें हुईं. इन हमलों और हमलावरों की वास्तविकताओं पर किये जानेवाले मजबूत संदेहों को छोड़ भी दें तब भी अगर बेगुनाह लोगों की हत्याओं का जिम्मेदार होना ही ऐसे हमलों के लिए वाजिब कारण है तब तो सारे हत्यारे बुशों और ओबामाओं को सैकड़ों बार गोलियों से मारना पड़ेगा.

यूनियन कार्बाइड के मुखिया और भोपाल गैस जनसंहार में मारे गये बीसियों हजार लोगों और दो दशकों में इसकी पीड़ा अब भी भुगत रहे लाखों लोगों के अपराधी वारेन एंडरसन को किसने पनाह दी है ? उसे कौन बचा रहा है? 2009 से लेकर अब तक श्रीलंका में लाखों तमिल निवासियों के कत्लेआम के दोषी राजपक्षे की मदद किसने की और अब भी उसकी पीठ पर किसका हाथ है? विदर्भ में पिछले 15 वर्षों में 2.5 लाख से अधिक किसानों की (आत्म)हत्याओं के लिए जो (निजीकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण की) नीतियां जिम्मेदार हैं, उन्हें किसने बनाया और उन्हें कौन लागू कर रहा है? इराक में पिछले दो दशकों में प्रतिबंधों और युद्ध में जो 14 लाख 55 हजार से अधिक लोग मारे गये हैं, उनके लिए कौन जिम्मेदार है?

पूरी दुनिया में लगातार युद्ध, प्रतिबंधों और सरकारी नीतियों के जरिए लोगों की जिंदगियों में संस्थागत हिंसा घोल रही साम्राज्यवादी नीतियां आखिर कौन लोग बनाते और थोपते हैं. अमेरिकी साम्राज्यवादी और उसके सहयोगी देश. इनके द्वारा की गयी हत्याएं 11 सितंबर को मारे गए लोगों की संख्या से सैकड़ों गुना अधिक हैं. इन्हें क्यों नहीं सजा मिलती? कब मिलेगी इन्हें सजा? फिर इन्हें क्या अधिकार है दूसरों को आतंकवादी कहने और मारने का?



इन सब सवालों के जवाब दुनिया की जनता खोज भी रही है और दे भी रही है. साम्राज्यवाद का ध्वस्त होना लाजिमी है. अपने इन हताशा में उठाये कदमों के जरिए ही वह अपने अंत के करीब भी आ रहा है. उसकी जीत का एक-एक जश्न, उसकी कामयाबी का एक-एक ऐलान उसकी कमजोरी और भावी अंत की ओर भी संकेत कर रहा है. ओसामा बिन लादेन की हत्या की खबर को भी इसी संदर्भ में देखना चाहिए. अमेरिकी अर्थशास्त्री, वाल स्ट्रीट जर्नल और बिजनेस वीक के पूर्व संपादक-स्तंभकार, अमेरिका की ट्रेजरी फॉर इकोनॉमिक पॉलिसी के सहायक सचिव पॉल क्रेग रॉबर्ट्स बता रहे हैं कि कैसे हत्या की इस खबर का सीधा संबंध विदेशी मुद्रा और व्यापार बाजार में डॉलर की पतली होती हालत और अमेरिकी अर्थव्यवस्था की डांवाडोल होती जा रही स्थिति से है. इन्फॉर्मेशन क्लियरिंग हाउस  की पोस्ट को आप खुद देखें ...रियाजुल हक़
अगर आज 2 मई के बजाय 1 अप्रैल होता तो हम ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में मारे जाने और तत्काल समुद्र में बहा दिये जाने को अप्रैल फूल के दिन के मजाक के रूप में खारिज कर सकते थे. लेकिन इस घटना के निहितार्थों को समझते हुए हमे इसे इस बात के सबूत के रूप में लेना चाहिए कि अमेरिकी सरकार को अमेरिकियों की लापरवाही पर बेहद भरोसा है.

जरा सोचिए. एक आदमी जो कथित रूप से गुरदे की बीमारी से पीड़ित हो और जिसे साथ में डायबिटीज और लो ब्लड प्रेशर भी हो, और उसे डायलिसिस की जरूरत हो, उसकी एक दशक तक खुफिया पहाड़ी इलाकों में छुपे रह सकने की कितनी गुंजाईश है? अगर बिन लादेन अपने लिए जरूरी डायलिसिस के उपकरण और डाक्टरी देख-रेख जुटा लेने में कामयाब भी हो गया था तो क्या इन उपकरणों को जुटाने की कोशिशें इस बात का भंडाफोड़ नहीं कर देतीं कि वह वहां छुपा हुआ है? फिर उसे खोजने में दस साल कैसे लग गए?

बिन लादेन की मौत का जश्न मना रहे अमेरिकी मीडिया के दूसरे दावों के बारे में भी सोचें. उनका दावा है कि बिन लादेन ने अपने दसियों लाख रुपए खर्च करके सूडान, फिलीपीन्स, अफगानिस्तान में आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर खड़े किए, ‘पवित्र लड़ाकुओं’ को उत्तरी अफ्रीका, चेचेन्या, ताजिकिस्तान और बोस्निया में कट्टरपंथी मुसलिम बलों के खिलाफ लड़ने और क्रांति भड़काने के लिए भेजा. इतने सारे कारनामे करने के लिए यह रकम तो ऊंट के मुंह में जीरे की तरह है (शायद अमेरिका को उसे पेंटागन का प्रभार सौंप देना चाहिए था), लेकिन असली सवाल है कि बिन लादेन अपनी रकम भेजने में सक्षम कैसे हुआ? कौन-सी बैंकिंग व्यवस्था उनकी मदद कर रही थी? अमेरिकी सरकार तो व्यक्तियों और पूरे के पूरे देशों की संपत्तियां जब्त करती रही है. लीबिया इसका सबसे हालिया उदाहरण है. तब बिन लादेन की संपत्ति क्यों जब्त नहीं की गयी? तो क्या वह 100 मिलियन डॉलर की अपनी रकम सोने के सिक्कों के रूप में लेकर चलता था और अपने अभियानों को पूरा करने के लिए दूतों के जरिए रकम भेजता था?

मुझे इस सुबह की सुर्खियों में एक नाटक की गंध आ रही है. यह गंध जीत के जश्न में डूबी अतिशयोक्तियों से भरी खबरों में से रिस रही है, जिनमें जश्न करते लोग झंडे लहरा रहे हैं और ‘अमेरिका-अमेरिका’ का मंत्र पढ़ रहे हैं. क्या ऐसी कोई घटना सचमुच हो रही है?

इसमें कोई संदेह नहीं है कि ओबामा को जीत की बेतहाशा जरूरत है. उन्होंने अफगानिस्तान में युद्ध को फिर से शुरू करके मूर्खतापूर्ण गलती की और अब एक दशक लंबी लड़ाई के बाद अमेरिका अगर हार नहीं रहा तो अपने आप को गतिरोध में फंसा हुआ जरूर पा रहा है. बुश और ओबामा के जंगी कार्यकालों ने अमेरिका का दिवाला निकाल दिया है. उसे भारी घाटे और डॉलर की पतली होती हालत का सामना करना पड़ रहा है. और फिर चुनाव भी धीरे-धीरे नजदीक आ रहे हैं.

पिछली अनेक सरकारों द्वारा ‘व्यापक संहार के हथियारों’ जैसे तरह-तरह के झूठों और हथकंडों का नतीजा अमेरिका और दुनिया के लिए बहुत भयानक रहा है. लेकिन सभी हथकंडे एक तरह के नहीं थे. याद रखें, अफगानिस्तान पर हमले की अकेली वजह बतायी गयी थी- बिन लादेन को पकड़ना. अब ओबामा ने ऐलान किया है कि बिन लादेन अमेरिकी विशेष बलों द्वारा एक आजाद देश में की गयी एक कार्रवाई में मारा गया है और उसे समुद्र में दफना दिया गया है, तो अब युद्ध को जारी रखने की कोई वजह नहीं रह गयी है.

शायद दुनिया के विदेश विनिमय बाजार में अमेरिकी डॉलर में भारी गिरावट ने कुछ वास्तविक बजट कटौतियों के लिए मजबूर किया है. यह सिर्फ तभी मुमकिन है जब अंतहीन युद्धों को रोका जाए. ऐसे में जानकारों की राय में बहुत पहले मर चुके ओसामा बिन लादेन को डॉलर के पूरी तरह धूल में लोट जाने से पहले एक उपयोगी हौवे के रूप में अमेरिकी फौजी और सुरक्षा गठजोड़ के मुनाफे के लिए इस्तेमाल किया गया.
(हाशिया ब्लॉग से साभार)



 

2 comments:

  1. sahi saval uthaya riyajul sahab aapne. is tarah osama ko mara jana kahin se uchit nahin thajraya ja sakta. kal ko america bharat ya kisi aur desh ke sath aisa hi kar sakta hai.

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  2. दीक्षा सिंह ठाकुर, रोहतकMonday, May 09, 2011

    शांत मगर सलीके का विश्लेषण. बहुत जरुरी लेख भारतीय पाठकों के लिए. बहुत अच्छा रियाजुल.

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