May 6, 2011

मायावती ने अबकी हाथी पर टांगा कानून

अब माया राज में हकों के लिए होने वाले संघर्षों के दौरान जो क्षति होगी उसकी भरपाई राजनीतिक दलों के जिला, प्रदेश व राष्ट्रीय अध्यक्षों से होगी और सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी करेंगे...

डॉ. आशीष वशिष्ठ

उत्तर प्रदेश की मालकिन (मुख्यमंत्री) मायावती ने विरोध के स्वर को दबाने के लिए कानून के बहाने तुरूप का पत्ता चल दिया है। 'सर्वजन हिताय' की माला जपने वाली मायावती ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रास्ते में एक बड़ा रोड़ा इस आदेश के साथ अटका दिया है कि धरना-प्रदर्शन, रैली, जुलूस या सभा करने के लिए प्रशासन से विस्तृत अनुमति लेनी होगी।

प्रदेश में धरना-प्रदर्शन के लिये बने इस नये कानून से पहले तक एक साधारण अर्जी पर प्रशासन अनुमति दे दिया करता था। ज्यादातर मामलों में डीएम ऐसे कार्यक्रमों की अनुमति अपने स्तर से देते थे। कोई बड़ा कार्यक्रम होने की सूरत में डीएम स्थानीय अभिसूचना इकाई (एलआईयू) से रिपोर्ट लेकर फैसला करते थे, लेकिन नये नियमों के तहत धरना-प्रदर्शन या आंदोलन के लंबा-चौड़ा फार्म भरने से लेकर कई विभागों से एनओसी प्राप्त करने का प्रावधान है।

नये कानून के अनुसार उत्तर प्रदेश में धरना-प्रदर्शन, जुलूस, रैली आदि के आयोजन के लिए आयोजकों को अब कम से कम सात दिन पहले प्रशासनिक अधिकारियों को लिखित आवेदन देकर इसकी अनुमति हासिल करनी होगी। जिला प्रशासन ऐसे आयोजनों की वीडियोग्राफी भी करायेगा। ऐसे आयोजनों के दौरान सार्वजनिक अथवा निजी संपत्ति की क्षति होने पर आयोजक से क्षतिपूर्ति की वसूली करने के साथ उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही भी की जाएगी। राजनीतिक दलों के आयोजनों में निजी संपत्ति की क्षति होने पर उसकी वसूली दल के जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय अध्यक्ष से होगी।

सामाजिक,धार्मिक तथा अन्य आयोजनों की जिम्मेदारी संस्था के मुख्य पदाधिकारी की होगी। भुगतान न करने की दशा में क्षतिपूर्ति की राशि भू-राजस्व के बकाये की भांति की जायेगी। सरकार का पक्ष है कि धरना-प्रदर्शन, रैली, जुलूस आदि को लेकर कई बार अराजक स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक एवं निजी संपत्तियों को क्षति बनाम आंध्र प्रदेश सरकार एवं अन्य रिट याचिका की सुनवाई करते हुए 16 अप्रैल 2009 को पारित अपने आदेश में व्यापक दिशा-निर्देश दिये थे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश में व्यक्त की गईं अवधारणाओं के क्रम में राज्य सरकार ने 27अप्रैल 2011को दिशा-निर्देश जारी करते हुए इनका कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित कराने का निर्देश दिया है। अनुपालन न कराने पर अफसरों के खिलाफ कठोर कार्यवाही होगी।

शासनादेश के मुताबिक ऐसे आयोजनों में सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र प्रतिबंधित रहेंगे। जिला मजिस्ट्रेट जिले में ऐसे धरना-प्रदर्शन स्थलों को निर्धारित करके उनका व्यापक प्रचार-प्रसार करायेंगे, ताकि जनता को इसकी जानकारी हो सके। तहसील स्तरीय धरना-प्रदर्शन की अनुमति उप जिला मजिस्ट्रेट और अपर जिला मजिस्ट्रेट देंगे। जिला मुख्यालय स्तरीय धरना-प्रदर्शनों की अनुमति जिला मजिस्ट्रेट, अपर जिला मजिस्ट्रेट, सिटी मजिस्ट्रेट, उप जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी की जाएगी। इन आयोजनों के बारे में संबंधित थाने, स्थानीय अभिसूचना इकाई और अन्य विभागों से रिपोर्ट हासिल कर निर्धारित प्रारूप पर अनुमति दी जाएगी।

इसके अलावा धरना-प्रदर्शन, हड़ताल या जुलूस का आयोजन करने वाले पुलिस और प्रशासन से विचार-विमर्श करने के बाद ऐसे आयोजन का स्थल, मार्ग, समय, पार्किंग और अन्य शर्तें तय करेंगे। सड़क या रेलमार्ग से आने वाली जनता के आवागमन के लिए संबंधित विभाग द्वारा समय से संपर्क कर सुचारु व्यवस्था सुनिश्चित करायी जाएगी। आयोजक यह भी अंडरटेकिंग देंगे कि उनकी हड़ताल या धरना-प्रदर्शन शांतिपूर्ण होंगे।

माया सरकार के इस तुगलकी फरमान ने इमरजेंसी के दिनों की याद ताजा कर दी है। वहीं सरकार का यह कदम देश के आम आदमी को संविधान प्रदत्त स्वतंत्रता के अधिकार का भी हनन करता है। विरोधी दलों ने सरकार के नादिरशाही फरमान की घोर निंदा की है, लेकिन हमेशा की तरह माया की कान पर जूं तक नहीं रेंगी। असल में मायावती भलीभांति ये जानती है कि उनके मंत्रियों और चमचों की कुकृत्यों के कारण उनकी सरकार की छवि को गहरी धक्का लगा है। सरकार डैमेज कंट्रोल की कार्रवाई तो कर रही है,लेकिन जो बदनामी होनी थी वो तो हो चुकी। ऐसे में आगामी निकाय चुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों में भ्रष्टाचार विपक्षी दलों के लिए माया के विरूद्व सबसे बड़ा हथियार होगा। ऐसे में विपक्षी दल मायावती सरकार की काली तस्वीर प्रदेश की जनता के सामने रखेंगे तो चुनावों में तस्वीर बदल भी सकती है।

बसपा सरकार के विधायकों और मंत्रियों के कारनामे प्रदेश के आम आदमी से छिपे नहीं हैं। ऐसे में विरोधी दलों के लगातार तीखे तेवरों, धरने-प्रदर्शनों और आंदोलनों से घबराई माया सरकार ने चिर-परिचित अंदाज में अपने विरोधियों और आम आदमी के स्वर को दबाने के लिए कानून की आड़ ली है। सरकार और उसका  पालतू सरकारी अमला इस कानून को लागू करने के पीछे सर्वोच्च और उच्च न्यायालय के आदेशों की दुहाई दे, लेकिन मायावती सरकार और उनके चमचे न्यायालयों की आदेशों के पालन में कितने गंभीर हैं, ये बताने की जरूरत नहीं है।


कानपुर : प्रदेश पुलिस  प्रदर्शनकारियों से ऐसे निपटती है
 पिछले चार वर्षों में कई मौकों पर माया सरकार ने न्यायालय के आदेशों  की अवेहलना और अवमानना की है। जाट आरक्षण आंदोलन के तहत न्यायालय के आदेश के उपरांत भी प्रदर्शनकारियों को रेलवे  ट्रैक से न हटाने की जो हिमाकत माया सरकार ने की थी, वो सरकार की नीति और नीयत को भली-भांति दर्शाता है।

सत्ता के मद में चूर मायावती के लिए आम आदमी के दुःख-दर्द और समस्याएं शायद कोई मायने नहीं रखती हैं। अंदर ही अंदर माया सरकार के प्रति जनता के मन में गुस्सा भर चुका है और स्वयं माया भी इस बात से अंजान नहीं है। मार्च महीने में प्रदेश के समस्त जिलों के दौरे पर निकली सीएम मायावती को कई स्थानों पर जनता के गुस्से का शिकार होना पड़ा था, उस वक्त भी सरकार ने सुरक्षा का बहाना बनाकर मुख्यमंत्री के दौरे के दौरान नागरिकों को घरों में बंधक बनाकर जनता के गुस्से से बचने की कोशिश की थी। पिछले कुछ समय में माया सरकार के विरूद्व राजनीतिक, सामाजिक, व्यापारिक, शिक्षकों या फिर वकीलों का स्वर उभरा, तो उसे दबाने के लिए सरकारी मशीनरी ने मानवाधिकार के हनन में से भी कोई परहेज नहीं किया।

दरअसल,  2007में बहुमत मिलने के बाद से ही मायावती ने आम आदमी से दूरी बनाई हुई है। अगर बसपा सरकार के कामों का पिछले चार सालों का रिर्काड खंगाला  जाए तो पार्टी की दो-चार बड़ी रैलियों और जनसभाओं के अलावा सूबे के आमजन से संपर्क करने की कोई कोशिश मायावती ने नहीं की है। सत्ता के नशे में चूर मायावती को लगता है कि उनका सिंहासन हिलाने की ताकत किसी में नहीं है। शुरू से अपनी दबंग छवि और कारनामों के लिए मशहूर रही मायावती को कानून तोड़ने और उसे मनमाफिक बनाने में मजा आता है। धरना-प्रदर्शन  का कानून बनाने से पहले माया सरकार राज्य अतिथि नियमावली में भी फेरबदल कर चुकी है, ताकि केन्द्रीय मंत्रियों को उनकी औकात बताई जा सके।

किसी जमाने में प्रदेश में मुख्यमंत्री जनता दरबार के माध्यम से प्रदेश की जनता से रू-ब-रू होते थे, लेकिन माया सरकार में जनता दरबार की ये व्यवस्था लागू नहीं है। सरकार के अदने से अधिकारी से मिलने के लिए आपको सैंकड़ों पापड़ बेलने पड़ते हैं ऐसे में सीएम से मिलना तो बडे़-बड़ों की औकात से बाहर है। चुनावी बेला सिर पर है और ऐसे में माया हर कदम फूंक-फूंककर रख रही हैं, क्योंकि वो जानती हैंकि उनका एक भी गलत कदम उन्हें सत्ता से दूर कर सकता है और विपक्षी भी उनकी सरकार को पटकनी देने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकते हैं।

माया को भलीभांति मालूम है कि  उनके खाते में स्मारक, पार्क, मूर्तियां लगाने के अलावा कोई और बड़ी उपलब्धि शामिल नहीं है। ऐसे में माया सरकार प्रदेश के आम आदमी की आवाज दबाने की जो गलती कर रही है उसका खामियाजा उन्हें  भुगतना ही होगा।



स्वतंत्र पत्रकार और उत्तर प्रदेश के राजनीतिक- सामाजिक मसलों के लेखक .






1 comment:

  1. rohit jakhad, jaipurMonday, May 09, 2011

    sahi vishleshan, sacchi baten

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