Mar 30, 2011

मुस्लिम देशों में तानाशाही के बीच साम्राज्यवादी दखल


अमेरिका की पहचान दुनिया में एक साम्राज्यवादी देश के रूप में स्थापित हो चुकी है, मगर सवाल तो यह है कि  युद्ध छिडऩे या किसी संघर्षपूर्ण स्थिति के उत्पन्न होने से पहले  मुस्लिम देश के तानाशाहों को इस्लाम व दुनिया के मुसलमानों की याद क्यों नहीं आती...

तनवीर जाफरी

कल तक अपनी सैन्य शक्ति तथा समर्थकों के बल पर मज़बूत स्थिति में दिखाई देने वाले गद्दाफी अब किसी भी क्षण सत्ता से बेदखल किए जा सकते हैं। पश्चिमी देशों द्वारा अमेरिका के नेतृत्व में लीबिया के तानाशाह कर्नल मोअमार गद्दाफी को सत्ता से बेदखल किए जाने की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है। नाटो भी लीबिया में लागू उड़ान निषिध क्षेत्र की कमान संभालने को तैयार हो गया है। गठबंधन सेनाओं द्वारा लीबिया की वायुसेना तथा थलसेना की कमर तोड़ी जा चुकी है।

गद्दाफी के एक पुत्र के मारे जाने का समाचार है। स्वयं गद्दाफी के भविष्य को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। गद्दाफी के ही कथन को माना जाए तो वे स्वयं लीबिया में ही शहीद होने को प्राथमिकता देंगे। अब देखना यह होगा कि सत्ता के अंतिम क्षणों में गद्दाफी का अंत किस प्रकार होता है? क्या वे लीबिया छोड़कर अन्यत्र पनाह लेने के इच्छुक होंगे? यदि हां तो क्या नाटो सेनाएं तथा विद्रोही उन्हें वर्तमान स्थिति में देश छोड़कर जाने की अनुमति देंगे? या फिर वे भी अपने पुत्र की तरह विदेशी सेनाओं का निशाना बन जाएंगे? या उनका हश्र सद्दाम हुसैन जैसा होगा? या फिर वे आत्महत्या करने जैसा अंतिम रास्ता अख्तियार   करेंगे?

बहरहाल, कल तक जिस कर्नल गद्दाफी की लीबिया की सत्ता से बिदाई आसान प्रतीत नहीं हो रही थी, आज वही तानाशाह न केवल अपनी सत्ता के लिए बल्कि अपनी व अपने परिवार की जान व माल की सुरक्षा के विषय में भी अनिश्चित नज़र आ रहा है । इन परिस्थितियों में गद्दाफी ने भी एक बार फिर उसी 'धर्मास्त्र' का प्रयोग किया है, जिसका प्रयोग ओसामा बिन लादेन,  मुल्ला उमर तथा  एमन-अल जवाहिरी जैसे आतंकी से लेकर सद्दाम हुसैन तक  करते रहे हैं.


ऐसे में सवाल यह उठता है कि  युद्ध छिड़ने या किसी संघर्षपूर्ण स्थिति के उत्पन्न होने से पहले  आखिर  इन तानाशाहों को इस्लाम और दुनिया के मुसलमानों की याद क्यों नहीं आती? इसमें कोई दोराय नहीं कि अमेरिका की पहचान दुनिया में एक साम्राज्यवादी देश के रूप में स्थापित हो चुकी है। अमेरिका दुनिया में अपना वर्चस्व कायम रखने की लड़ाई लड़ रहा है। दुनिया में चौधराहट बनाए रखना अमेरिकी विदेश नीति का एक प्रमुख हिस्सा है। विश्व का सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता होने के नाते निश्चित रूप से उसे तेल की भी सबसे अधिक ज़रूरत है। यही वजह है कि तेल उत्पादन करने वाले देशों में अमेरिकी दखलअंदाज़ी को प्राय: इसी नज़रिए से देखा भी जाता है।

दुनिया समझती है कि यह लड़ाई किसी तानाशाह को सत्ता से बेदखल करने या विद्रोही जनता का समर्थन करने की नहीं, बल्कि अमुक देश की तेल संपदा पर अमेरिकी नियंत्रण करने की है। परंतु दुनिया के लाख शोर-शराबा करने या वावैला करने के बावजूद अमेरिकी नीतियों में न तो कोई परिवर्तन आता है, न ही अमेरिका की ओर से इन आरोपों के जवाब में कोई ठोस खंडन किया जाता है। गोया अमेरिका ऐसे आरोपों की अनसुनी कर अपनी नीतियों पर आगे बढ़ते रहने में ही भलाई समझता है। ऐसे में उन चंद मुस्लिम नेताओं की इस्लाम पर 'अमेरिकी खतरे' जैसी ललकार स्वयं ही निरर्थक साबित हो जाती है।

ताज़ा उदाहरण लीबिया का ही देखा जाए तो यहां भी उड़ान निषिध क्षेत्र बनाने की हिमायत अरब लीग के सदस्य देशों द्वारा सर्वसम्मति से की गई। विदेशी सेनाओं द्वारा लीबिया पर बमबारी किए जाने का मार्ग अरब लीग के देशों ने ही प्रशस्त किया। और अब संयुक्त अरब अमीरात जैसा अरब देश गठबंधन सेनाओं के साथ मिलकर लीबिया पर बम बरसा रहा है। ऐसे में इस्लाम और ईसाईयत  की बात क्या बेमानी नहीं हो जाती? और इन सबके अलावा सबसे बड़ी बात यह है कि गद्दाफी व सद्दाम हुसैन जैसे तानाशाह उस समय इस्लामपरस्ती को कतई भूल जाते हैं, जब यह लोग सत्ता के नशे में चूर होकर अपने-अपने देशों में मनमानी करने की सभी हदों को पार कर जाते हैं।

जब ये तानाशाह अपनी बेगुनाह और निहत्थे अवाम पर ज़ुल्म ढा रहे होते हैं, उस वक्त उन्हें यह नहीं सूझता कि हम जिन पर ज़ुल्म ढा रहे हैं, वे भी मुसलमान हैं तथा हमारे यह कारनामे इस्लाम विरोधी हैं। यह क्रूर तानाशाह उस समय तो इस्लामी इतिहास के राक्षस प्रवृति के सबसे बदनाम शासक यज़ीद की नुमाईंदगी करते नज़र आते हैं। परंतु जब इन्हें मौत के रूप में अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद्, संयुक्त राष्ट्र संघ तथा नाटो जैसे संगठनों के फैसलों का सामना करना होता है तब इन्हें इस्लाम याद आता है। मुस्लिम इत्तेहाद भी, जेहाद भी और  संघर्ष भी।

प्रश्र यह है कि मुस्लिम राष्ट्रों को इन परिस्थितियों से उबरने के लिए आखिर  क्या करना चाहिए? सर्वप्रथम तो तमाम मुस्लिम राष्ट्रों में इस समय मची खलबली का ही पूरी पारदर्शिता तथा वास्तविकता के साथ अध्ययन कर अवाम द्वारा विद्रोह के रूप में लिखी जा रही इबारत को पूरी ईमानदारी से पढऩे की कोशिश की जानी चाहिए। अफगानिस्तान, इराक और लीबिया जैसे देश मुल्ला उमर, सद्दाम और गद्दाफी जैसे सिरफिरे शासकों की गलत व विध्वंसकारी नीतियों के चलते बरबाद हुए हैं। इस वास्तविकता को सभी देशों विशेषकर मुस्लिम जगत को समझना चाहिए। गोया किसी देश में विदेशी सेनाओं अथवा पश्चिमी सेनाओं के नाजायज़ हस्तक्षेप का कारण वहां की अवाम नहीं, बल्कि वहां का सिरफिरा शासक ही देखा गया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने संघर्ष की अफवाहों पर पूर्ण विराम लगाने की गरज़ से ही शर्म-अल-शेख में मुस्लिम राष्ट्रों के प्रमुखों को अस्लाम-अलैकुम कहा था तथा मुस्लिम देशों को साथ लेकर चलने का आह्वान किया था। परंतु तब से लेकर अब तक मुस्लिम राष्ट्रों में सुधारवाद की कोई बयार चलती तो हरगिज़ नहीं दिखाई दी। हां विद्रोह, क्रांति तथा बगा़वत के बिगुल कई देशों में बजते ज़रूर दिखाई दे रहे हैं।

कारण कि सत्ताधीश मुस्लिम तानाशाह कहीं ज़ालिम हैं तो कहीं निष्क्रिय। कहीं अकर्मण्यता का प्रतीक हैं तो किसी के राज में भुखमरी, बेरोज़गारी और गरीबी ने अपने पांव पसार लिए हैं। कोई अपने व्यक्तिगत धन या संपत्ति के संग्रह में जुटा है तो किसी को अपनी खाऩदानी विरासत के रूप में अपनी सत्ता को सुरक्षित रखने या हस्तांतरित करने की फिक्र है। कोई शासक जनता की आवाज़ को चुप कराने के लिए ज़ुल्म व अत्याचार के किसी भी उपाय को अपनाने से नहीं कतराता तो कई ऐसे हैं जिन्हें अपने देश के विकास, प्रगति या अर्थव्यवस्था में कोई दिलचस्पी नहीं।

ऐसे में जनविद्रोह का उठना भी स्वाभाविक है तथा विदेशी सेनाओं द्वारा उस जनविद्रोह का लाभ उठाना भी स्वाभाविक है।




लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी के भूतपूर्व सदस्य और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मसलों के प्रखर टिप्पणीकार हैं.उनसे tanveerjafari1@gmail.कॉम पर संपर्क किया जा सकता है.





 

ठगों का स्वर्ग बनता इंटरनेट


शादी का प्रस्ताव  देते हुए एक महिला लिखती है,'मेरा करोड़ों डॉलर बैंक में है,मैं यह धनराशि आपके खाते में स्थानान्तरित करना चाहती हूं। अत:आप मुझे अपना नाम,पता,खाता व अपने बैंक का स्विफ्ट  कोड भेजिए...

निर्मल रानी

ठगों द्वारा अत्याधुनिक वैज्ञानिक तकनीक  इंटरनेट का सहारा लिया जा रहा है. ठगी का शिकार भी उन्हीं को बनाया जा रहा है जो कंप्यूटर और इंटरनेट का प्रयोग करते हैं। अपने शिकार को ठगने के लिए वे मात्र प्रलोभन को ही अपने धंधे का मुख्य  आधार बनाते हैं। जाहिर है कि  लालच का शिकार होना या किसी प्रलोभन में आना केवल गरीबों का ही काम नहीं,किसी पैसे वाले व्यक्ति को शायद धन की कुछ ज्य़ादा ही आवश्यकता होती है। इसी सूत्र पर अमल करते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ठगों का  यह विशाल नेटवर्क लगभग पूरी दुनिया में छा चुका है।


दान लीजिये : ठगी के अनेक रूप

पहले  यह  काला  धंधा  मुख्य रूप से दक्षिण  अफ़्रीकी  देशों से संचालित हो  रहा था,परंतु अब इन्होंने  दुनिया के लगभग सभी देशों में अपने जाल फैला दिए हैं। यह इंटरनेट ठग गूगल अथवा याहू या किन्ही  अन्य सर्च साइट्स के माध्यम से या फिर किसी अन्य तरीके  से विश्व के तमाम लोगों के ई-मेल पते इकट्ठा करते हैं।

वे बाकायदा अपने पूरे नाम,टेलीफोन नंबर व पते के साथ-साथ किसी भी ई-मेल पर अपना भारी भरकम परिचय देते हुए प्रलोभन वाले मेल भेजते हैं। उदाहरण के तौर पर आपको  उनका  यह संदेश आ सकता है, 'बधाई हो, आप जैकपॉट का पुरस्कार जीते हैं। यह लॉटरी इन्टरनेट प्रयोग करने वाले ई-मेल खाताधारको के मध्य आयोजित की गई थी। इसमें आपको 14लाख डॉलर  पुरस्कार  निकला है। कृपया इसे ग्रहण करने के लिए अमुक ई-मेल पर संपर्क करें.'

जाहिर है इस मेल को प्राप्त करने वाला व्यक्ति बड़ी खामोशी के साथ एक  कदम आग बढ़ाते हुए ठगों द्वारा भेजे गए उनके ई-मेल पते पर संपर्क साधता है। मात्र 24घंटों के भीतर ही आपको उस ठग का उत्तर भी मिल जाएगा। उसका उत्तर होता है, 'हां मैं बैरिस्टर अमुक हूं तथा आप वास्तव में लॉटरी के विजेता हैं। आपको बधाई।'

उसके बाद वह तथाकथित बैरिस्टर आपसे आपका नाम, पूरा पता, व्यवसाय, टेलीफोन नम्बर, बैंक अकाऊंट नम्बर तथा आपके  बैंक  स्विफट कोड नं आदि जानकारी मांगता है।  इसके बाद यदि आपने उनके द्वारा मांगी गई सभी सूचनाएं उपलब्ध करवा दीं, फिर न तो वे दोबारा आपसे संपर्क साधेंगे, न ही आपके  किसी अगले ई-मेल का जवाब देंगे। यह ठग इलेक्ट्रोनिक उपायों का प्रयोग कर किसी भी प्रकार से आपके खाते से पैसे निकालने का  भरसक  प्रयास करने में जुट जाते हैं। और किसी न किसी शिकार  व्यक्ति के  बैंक  खाते से पैसे निकालने में कामयाब हो जाते हैं।

लॉटरी निकलने की  सूचना देने के अतिरिक्त और भी तरीके से ई-मेल ठगों का यह नेटवर्क पूरी दुनिया में ई-मेल धारकों को भेजता रहता है। जैसे किसी ठग द्वारा यह सूचित किया जाता है कि  अमुक परिवार विमान हादसे में मारा गया है। उस परिवार का क्योंकि कोई वारिस नहीं है तथा यदि आप उसके वारिस बन जाएं तो उसकी  जमा धनराशि यथाशीघ्र आप पा सकते हैं।

कोई महिला शादी का प्रलोभन देते हुए लिखती है,'मेरा करोड़ों डॉलर बैंक में है,मैं यह धनराशि आपके खाते में स्थानान्तरित करना चाहती हूं। अत:आप मुझे अपना नाम,पता,खाता व अपने बैंक का स्विफट कोड आदि भेजिए।' कई ठग तो सीधे तौर पर यही लिख देते हैं,  मैं अमुक बैंक में गुप्त दस्तावेज डील करने वाले विभाग में अधिकारी हूं। मेरे एक जानकार व्यक्ति की  मृत्यु हो गई है। उनका करोड़ों डॉलर मेरे ही बैंक में जमा है। यदि आप इस धनराशि को लेने में रुचि रखते हैं तो अपना और अपने बैंक अकाऊंट का विस्तृत ब्यौरा यथाशीघ्र भेजें ताकि  मैं यह धनराशि आपके  खाते में स्थानान्तरित कर सकूँ.'

तैब्लो : हैकिंग  का उस्ताद   
अपने आपको चीन का बताने वाले एक ठग ने भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने की  तो हद ही कर दी। उसने स्वयं को कैंसर  का मरीज बताते हुए यह लिखा, वह चीन का एक नामी-गिरामी उद्योगपति है। चूंकि वह अपने जीवन की  अन्तिम सांसें ले रहा है अत: वह चाहता है की  उसकी  नकद धनराशि  का एक बड़ा हिस्सा गरीब व बेसहारा लोगों में बांट दिया जाए। फिर उस तथाकथित उद्योगपति ने इस काम के लिए सहयोग मांगते हुए अपने तथाकथित बैरिस्टर का ई-मेल पता दे दिया। उधर उस तथाकथित बैरिस्टर ने अन्य ठगों की भांति विस्तृत पता तथा बैंक खाते का विस्तार मांगना शुरु कर दिया।

एक अफ़्रीकी ठग ने तो किसी झूठ-सच में पडऩे तथा निरर्थक कहानी सुनाने से बचते हुए अपनी बात कहने का एक अनूठा तरीका अपनाया। उसने ई-मेल द्वारा सीधे यह सूचित किया आपके नाम का फंड जो  बारह करोड़ रुपए है,मेरे बैंक में जमा है। कृपया अपना बैंक अकाऊंट नंबर तथा बैंक स्विफट कोड भेजें ताकि आपकी यह धनराशि आपके खाते में अविलम्ब स्थानान्तरित कर दी जाए।

कुछ ठग तो धार्मिक  व जातिगत भावनाओं को भी जगाने का प्रयास अपने इस ठग व्यवसाय में करते हैं। परन्तु भारतीय संस्कृति की स पूर्ण जानकारी न होने की वजह से उन्हें बारीकी से परखा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर यदि आपका नाम संजय चौधरी है तो जाहिर है आपने अपना ई-मेल भी लगभग संजय चौधरी के नाम से या इससे मिलता जुलता ही बनाया होगा। यह अंतर्राष्ट्रीय ठग चौधरी शब्द को तो यह समझ कर चुन लेते हैं कि हो न हो, यह किसी व्यक्ति का सरनेम ही होगा।

ठगानन्द जी आपके ई-मेल पर जो संदेश भेजते हैं उसमें लगभग यह लिखा होता है कि 'कार एक्सीडेंट में अथवा विमान हादसे में अथवा किसी समुद्री जहाज के डूबने में फलां देश का एक परिवार मारा गया। उसका मुखिया राबर्ट चौधरी था। चूंकि आप संजय चौधरी हैं अत:आप राबर्ट चौधरी के भाई के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करते हुए उसके खाते में जमा 22 करोड़ डॉलर की नक़द धनराशि प्राप्त कर सकते हैं।'

यहां यह ठग चौधरी शब्द का तो बड़ी आसानी से महज इसलिए प्रयोग कर लेता है क्योंकि वह उसे सरनेम ही समझता है, परन्तु संजय के स्थान पर दूसरे भारतीय शब्द का अभाव होने के चलते उसे राबर्ट नाम का सहारा लेना पड़ता है। इन ठगों द्वारा दिए जाने वाले इन सभी प्रलोभन में जो कहानी तथा अनुबन्ध उल्लिखित किया जाता है उसमें बाकायदा 30 अथवा 40 या 50 प्रतिशत का उनका अपना हिस्सा भी बताया जाता है ताकि कोई भी व्यक्ति अचानक यह न समझ बैठे कि अमुक व्यक्ति को मेरे ही साथ इतनी हमदर्दी आखिर क्योंकर है?

इंटरनेट के माध्यम से तरह-तरह की योजनाएं बताकर ठगी करना, गन्दे व अशलील ई-मेल भेजना, किसी का ई-मेल हैक करना,वायरस भेजना दूसरों को डराना-धमकाना तथा आतंकवाद संबंधी गतिविधियों की सूचनाओं का गैर कानूनी आदान-प्रदान व अवैध रूप से गुप्त दस्तावेजों का हस्तान्तरण करना भी इसी कंप्यूटर माध्यम से हो रहा है।

जहां हमें कंप्यूटर के  तमाम सकारात्मक व लाभप्रद पहलुओं को स्वीकार करना तथा उन्हें अपने प्रयोग में लाना है वहीं इससे होने वाले नुकसान व दुष्परिणामों से भी पूरी तरह चौकस व सचेत रहने की जरूरत है। इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त होने वाले किसी भी अंजान व्यक्ति के किसी भी लालचपूर्ण प्रस्ताव को पढऩे में समय गंवाने के बजाए ऐसे मेल को डिलीट कर देना ही ठगी से बचने का सबसे सुरक्षित उपाय है।



लेखिका उपभोक्ता मामलों की विशेषज्ञ हैं और सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर भी  लिखती हैं. इनसे nirmalrani@gmail.com  पर संपर्क किया जा सकता है.




Mar 29, 2011

देह दलाली का मेडिकल कॉलेज


प्रोफेसर, वार्डेन, परीक्षा नियंत्रक और सीनियर मिलकर यहाँ मेडिकल छात्राओं को नंबर दिलाने के बदले मोटी कीमत वसूलते हैं और  हमबिस्तरी के लिए मजबूर करते हैं.उच्च शिक्षा का सपना लिए आयीं इन छात्राओं को कैरियर के लिए क्या कुछ नहीं झेलना पड़ता  है...

चैतन्य भट्ट

मध्य प्रदेश। नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल  कालेज में पास कराने के नाम पर चल रहे एक सेक्स रेकैट कांड के पर्दाफाश ने जबलपुर के शिक्षा जगत के माथे पर कलंक का एक ऐसा टीका लगा दिया है जिसको मिटाना अब नामुमकिन सा हो चला है। रैकेट में शामिल लोगों और परतों को उधरते देख ऐसा लग रहा है कि यहां डॉक्टर नहीं देह के दलाल रहते हैं।

बाएं  से गिरफ्तार राजू खान,  राणा और ककोडिया                        फोटो- सनत सिंह
अपनी जूनियर छात्रा को परीक्षा में पास कराने के नाम पर एक दलाल के साथ हम बिस्तर होने के लिये पे्ररित करने वाली उसकी सीनियर छात्रा ही इस रेकैट की मुख्य पात्र थी। हालांकि उसकी अबतक गिरफ्तारी नहीं हो सकी है। वहीं इस सेक्स रेकेट के पर्दाफाश होने के बाद कांड के मुख्य आरोपी राजू खान,रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक एसएस राणा और सहायक कुलसचिव रवीन्द्र काकोड़िया सलाखों के पीछे पहुंच गये है।

इस मामले में संदिग्ध भूमिका निभाने वाली मेडीकल कालेज की वार्डन नेत्र रोग विभाग अध्यक्ष डा0 मीता श्रीवास्तव और उनके पति एनाटामी विभाग के अध्यक्ष डा० एसएस श्रीवास्तव को निलम्बन का आदेश थमा दिया गया है और मामले में उनकी संलिप्तता को देखते हुये उन्हें भी गिरफतार करने के मामले में पुलिस विचार कर रही है। एजुकेशन हब के रूप में मशहूर जबलपुर में हुई इस घटना की अगर ईमानदारी से खोजबीन की जाये तो कई प्रोफेसर, राजनेताओ, अधिकरियों के चेहरो पर पड़ा नकाब उठते देर नहीं लगेगी।

नेताजी सुभाष चंद्र मेडीकल कालेज के कुछ प्राध्यापकों,रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों और इनके बीच दलाल के रूप में  काम कर रहे एक पूर्व छात्र नेता की इस कारगुजारी का भंडा अब भी नहीं फूट पाता,यदि एमबीबीएस प्रथम बर्ष की छात्रा संधू आर्य इसके खिलाफ आवाज न उठाती। छात्रावास में रह रही संधू आर्य ने वार्डन डॉ मीता श्रीवास्तव को बताया कि उसकी सीनियर छात्रा प्रेरणा ओटवाल अक्सर उससे झगड़ा करती है और उसके साथ मारपीट भी करती है।

संधू आर्य ने यह भी बताया कि प्रेरणा ओटवाल उससे गंदा काम करने के लिये भी कहती है और धमकी देती है कि यदि उसने उसकी बात नही मानी तो वह परीक्षा में कभी पास नहीं हो पायेगी। छात्रा की इस शिकायत पर डा0 मीता श्रीवास्तव कोई कार्यवाही करतीं, उल्टे उन्होंने संधू को डांटडपट कर चुप करवा दिया। धीरे-धीरे जब संधू आर्य को प्रेरणा अटवाल ने ज्यादा परेशान करना शुरू किया,तब संधू आर्य ने मेडीकल कालेज के डीन डा0केडी बघेल को एक लिखित शिकायत सौंपी जिसमें उसने एक अत्यंन्त सनसनीखेज आरोप लगाया।

संधू आर्य ने अपनी इस शिकायत में कहा कि उसकी सीनियर पे्ररणा ओटवाल उससे किसी राजू खान नामक व्यक्ति के साथ हमबिस्तर होने के लिये दबाव डाल रही हैं। संधू आर्य ने आगे लिखा कि ओटवाल बताती हैं कि अगर मैं राजू खान के साथ हमबिस्तर हुई तो उसे कोई फेल नहीं करा सकता। संधू ने अपनी शिकायत में यह भी कहा कि इसकी शिकायत उसने वार्डन डा0मीता श्रीवास्तव से भी की थी परतु उन्होंने उल्टा उसे ही चुप रहने की हिदायत दे दी.

कार्रवाई की मांग करते अवाभिप के छात्र
 मामला गंभीर होने के कारण कॉलेज प्रशासन ने इसे पूरी तरह गोपनीय बनाकर रखा। लेकिन अचानक मीडिया में लीक हो जाने से जबलपुर के शिक्षा जगत में भूचाल आ गया.एक छात्रा को परीक्षा में पास कराने के लिये अपना शरीर देने के इस आरोप ने मेडीकल के जूनियर डाक्टरों को उद्धेलित कर दिया। इधर अखिल विद्यार्थी परिषद भी इस मामले में कूद गया तो पता लगा कि जिस राजू खान का संधू आर्य ने अपनी शिकायत में उल्लेख किया था,वह रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय का पूर्व छात्र नेता रह चुका है और वर्तमान में मेडीकल कालेज और रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में ठेकेदारी करता है।

मामला अब बेहद गरमा गया था। महिला और छात्र संगठनों के दबाव में डीन डॉ बघेल ने एक जांच समीति बना दी जिसमें उन्होंने डा0 मीता श्रीवास्तव को भी शामिल का दिया,जिसका जम कर विरोध हुआ। तब संभागीय आयुक्त प्रभात पाराशर ने एडीशनल कलेक्टर मनीषा सेतिया की अध्यक्षता में एक दूसरी जांच समीति बनाई जिसमें स्त्री रोग विभाग की अध्यक्ष डॉ शशि खरे, कैन्सर विभाग की अध्यक्ष डॉ पुष्पा किरार और अस्पतमाल की अधीक्षिका डॉ सविता वर्मा को शामिल किया गया। जिसका असर हुआ कि राजू खान ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया, मगर प्रेरणा अटवाल फारार ही रही.

राजू खान की गिरफ्तारी पुलिस के लिये महत्वपूर्ण थी। पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह ने राजू खान से पूछताछ की तो पता लगा कि यह पुराना रैकेट है, जिसमें वह कई वर्षों से काम कर रहा था। राजू खान ने बताया कि,‘पहले मेडीकल कालेज की छात्राओं को फेल कर दिया जाता था। फिर प्रेरणा ओटवाल के माध्यम से उन फेल छात्राओं को राजू खान से मिलवाया जाता था और ये लोग उसे पास कराने के नाम पर पचास हजार से लेकर एक लाख रूपये वसूल लेते थे। बाद में पुनर्मूल्यांकन का आवदेन लगा कर उन्हें पास कर दिया जाता था। इसमें कई छात्राओं की अस्मत का सौदा भी किया जाता था। यह सारा कुछ मेडिकल छात्राओं के भविष्य से जुड़ा होता था,इसलिये इसकी कभी कोई शिकायत नहीं होती थी।

दूसरी तरफ एमबीबीएस की कांपियां रानी दुर्गावती विश्वविद्याल के के मार्फत ही जंचने के लिये जाती थी, इसलिये परीक्षा और गोपनीय विभाग का संदेह के घेरे में आना लाजमी था। पुलिस ने राजू खान के बयानों के आधार पर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालस के परीक्षा और गोपनीय विभाग में एक साथ छापा मारा और परीक्षा नियंत्रक एसएस राणा और सहायक कुलसचिव रवीन्द्र काकोड़िया को गिरफतार कर लिया। जबलपुर के शिक्षा जगत के इतिहास में यह पहला मौका था जब परीक्षा नियंत्रक और सहायक कुलसचिव स्तर के अधिकरियों को ऐसे मामले में गिरफतार किया गया हो।

इधर बढ़ते दबाव को देखते हुए स्वास्थ मंत्री महेन्द्र हार्डिया ने सेक्स रैकेट में शामिल डॉ मीता श्रीवास्तव और उनके पति डॉ एसएस श्रीवास्तव दोनों को ही निलंबित कर दिया। डॉ एसएस श्रीवास्तव पर आरोप था कि वे छात्राओं की रात में कक्षाएं  लगाया करते थे, जिसमें कुछ छात्राओं को सारी सुविधायें मुहैया करवाते थे और कुछ छात्राओं को कोई मदद नहीं दी जाती थी। बहरहाल इस मामले की कई और परतें अभी खुलनी बाकी हैं।



राज एक्सप्रेस और पीपुल्स समाचार में संपादक रह चुके चैतन्य भट्ट फिलहाल स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम कर रहे हैं। वे तीस बरसों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।







रमन सिंह की जानकारी में हुआ हमला - अग्निवेश


जनज्वार.छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा  इलाके में सलवा जुडूम कार्यकर्ताओं और सुरक्षा बलों द्वारा 11 से 14 मार्च के बीच आदिवासियों के गांवों को फूंक दिये जाने के बाद राहत सामग्री ले जा रहे लोगों पर जानलेवा हमले हुए हैं। राहत सामग्री ले जाने वालों में सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश भी थे,जिन पर स्थानीय पुलिस के इशारे पर जानलेवा हमला किया गया।

आदिवासियों के जलाये गए घर : अभी सबूत चाहिए
 वहां से बाल-बाल बचकर आये स्वामी अग्निवेश ने दिल्ली में 26मार्च को आयोजित एक प्रेस वार्ता में कहा कि,‘मैं किसी तरह जान बचाकर भागा हूं,नहीं तो बलवाईयों की कोशिश हमें गाड़ी में ही जिंदा फूंकने की थी।’ हालांकि जाने से पहले अग्निवेश   ने छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्वरंजन से इस बावत बात की तो उन्होंने इसे माओवादी पत्रकारों का हौवा बताया था और कहा कि पत्रकारिता   में माओवादियों के एजेंट भरे हैं।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के  ताड़मेटला इलाके में 14मार्च को सलवा जुडूम के बलवाईयों ने आदिवासियों के 300सौ घरों को जलाकर खाक कर दिया था। यह वही इलाका है जहां पिछले वर्ष 6 अप्रैल को सुरक्षा बलों के 76 जवानों को माओवादियों ने एक हमले में मार डाला था। ऐसे में माना जा रहा है कि हमले के दोषी माओवादियों को पकड़ पाने में असमर्थ पुलिस ने सलवा-जुडूम कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर उन गांवों को बदले की कार्यवाही में जला डाला है जिन गांवों की सीमा से माओवादियों ने कार्यवाई की थी।

बहरहाल, 14 मार्च के इस हमले का जिन आदिवासियों ने विरोध किया उन आदिवासियों को जान से मार दिया गया और 3महिलाओं से सामूहिक बलात्कार किया गया। घटना के तकरीबन 7 दिन बाद यह सूचना पहली बार अखबारों में तब आयी जब वनवासी चेतना आश्रम के हिमांशु कमार ने दिल्ली के पत्रकारों को मोबाइल के जरिये सूचित किया। इसी सूचना को पढ़कर 25 मार्च को राहत सामग्री लेकर पहुंची स्वामी अग्निवेश की टीम ताड़मेटला के उन जलाये गये गावों में पहुंच पाती उससे पहले सलवा जुडूम के लोगों ने वहां के एससएसपी कल्लूरी के इशारे पर हमला जानलेवा हमला किया और राहत सामग्री पहुंचाये बगैर वहां से स्वामी अग्निवेश का जान बचाकर भागना पड़ा।

सरकार कहती है : कुछ नहीं हुआ  
स्वामी अग्निवेश के मुताबिक वे अपने साथियों के साथ राहत सामग्री लेकर मोरपल्ली जाना चाहते थे। ये उन गांवों का इलाका था जहां 14 मार्च को आदिवासियों के घर जलाये गये थे, हत्याएं हुईं थीं और महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ था। यह कृकत्य सरकारी सुरक्षा बल कोबरा फोर्स और कोया कमांडों ने किया था। अग्निवेश आगे कहते हैं कि,‘उस इलाके में हमें न सिर्फ जाने से रोका गया बल्कि सुनियोजित योजना के तहत मुझपर और साथ गये लोगों पर जानलेवा हमला किया गया।

 इन सबके पीछे दंतेवाड़ा के एसएसपी एसआरपी कल्लूरी का हाथ था। गाड़ियों के शीशे  तोड़े,अंडे और पत्थर फेंककर प्राणघातक हमले किये। वह तो ईश्वर की कृपा है कि दिल्ली वापस आ गया हूं अन्यथा वहां हमें मार दिया जाता या फिर हमें गाड़ी समेत जिंदा जला दिया जाता।’  यह पूछने पर कि, क्या यह हमला मुख्यमंत्री रमन  सिंह की  जानकारी  के बगैर हुआ होगा, तो अग्निवेश ने कहा कि, 'ऐसा नहीं है. इन सभी वारदातों से मुख्यमंत्री पूरी तरह परिचित होंगे और उनकी जानकारी में हुआ होगा.'
इस जघन्य वारदात को अंजाम देने वाले कल्लुरी को सिर्फ दंतेवाड़ा से सरगुजा जिले में तबादला कर मुख्यमंत्री रमन सिंह अपने कर्तव्य की इती श्री कर ली है। जबकि कल्लूरी पर पहले से कई आपराधिक मामले हैं। इसी के मद्देजनर 7 जंतर-मंतर रोड दिल्ली में आयोजित प्रेस वार्ता में अग्निवेश ने कहा कि, ‘कल्लूरी जैसे अपराधी को तत्काल निलंबित किया जाना चाहिए और एफआइआर दर्ज होनी चाहिए। लेकिन कल्लूरी को पिछले कई वर्षों से आखिर किन मजबूरियों में रमन सिंह की सरकार सह दे रही है। दूसरा जिसके खिलाफ एफआइआर दर्ज कर जेल में डाला जाना चाहिए उसे सरकार सरगुजा का डीआइजी बनाकर भेज दी है।’

जाहिर यह सब करके कल्लूरी अपने काले कारनामों का ही छुपाने की कोशिश कर रहे थे,जिसमें वह अबतक सफल भी हैं। क्योंकि जलाये गये आदिवासियों के गांवों से जो सूचनाएं आ रही हैं वह सच कितना प्रतिशत हैं कहना मुश्किल है। एक जानकारी के मुताबिक वहां 14 मार्च के बाद पांच से अधिक लोग भूख से मर चूके हैं और दो आदिवासी किसानों ने आत्महत्या कर ली है।


डीजीपी कहते हैं, माओवादी पत्रकारों का हौवा  है

दूसरा जिला प्रशासन की कल्लूरी के आगे क्या औकात है उसका अंदाजा यहां तक कि पत्रकारों को रोक रहे थे। हमारे साथ गये पत्रकारों को पीटा और उनके कैमरे तोड़ दिये। इससे जाहिर है कि रमन सिंह कल्लूरी के प्रति नरमदिल हैं और उनको बचाये रखने की लगातार जुगत में है।

मैं मांग करता हूं कि मुख्यमंत्री इस पूरे घटनाक्रम की नैतिक जिम्मेदारी लें और उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत न्यायधीश से जांच करायें। उससे पहले वह अपने हेलीकाप्टरों से जलाये और तबाह किये गये गांवों में राहत सामग्री पहुंचाये जाने की गारंटी भी करें। खबर आ रही है कि उन गांवों में 5लोग भूख से मर चुके हैं और दो और लोगों ने आत्महत्या कर ली है। यह सब कुछ ठीक से हो इसके लिए जरूरी है कि कल्लूरी जैसे अपराधी अधिकारी को तत्काल निलंबित कर मुख्यमंत्री दंडित करें।

फोटो- यशवंत रामटेके

बाग बगीचा दिखे हरियर



वरिष्ठ पत्रकार और रविवार डॉट कॉम के संपादक अलोक पुतुल के जरिये एक प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ी गीत हमें सुनने को मिला. अब इसके  ऑडियो को आप भी सुनें...आलोक जी ने हिंदी पाठकों की सुविधा के लिए छत्तीसगढ़ी से अनुवाद कर हमतक कुछ इस तरह से प्रेषित किया था... 



एक थे केदार यादव. छत्तीसगढ़ी में अपनी तरह की आवाज़ वाले केदार यादव ने सैकड़ों गीत गाये. 70 के दशक में गांव-गांव में उनकी धमक थी. आज बहुत दिनों के बाद उनका एक गीत मिला. शायद आप सबको  भी अच्छा लगे.


गीत के बोल हैं-

बाग बगीचा दिखे ल हरियर

दुरूग वाला नई दिखे बदे हव नरियर

मोर झूल तरी

मोर झूल तरी गेंदा इंजन गाड़ी सेमर फूलगे

सेमर फूलगे अगास मन चिटुको घड़ी नरवा मा

नरवा मा अगोर लेबे नयानी


बाग और बगीचे हरे-भरे दिख रहे हैं। पर दुर्ग (छत्तीसगढ़ का एक शहर) वाला नहीं दिख रहा है। मैंने उसके लिए मन्नत मांगी है, नारियल चढ़ाया है। मेरे सर पर कलँगी है, गले में गेंदे का फुल है। हृदय रेल के इंजन की तरह धड़क रहा है। जिस तरह सेमल के ऊँचे ऊँचे पेड़ों में फुल आ गए हैं उसी तरह मेरे होठों पर सेमल फुल सी लाली है। मेरे प्रिय थोड़ी देर के लिए नाले पर मेरी प्रतीक्षा कर लेना।

आगे आप खुद ही सुनें...




Mar 28, 2011

नक्सली कहने की 'महाछूट'


मानवाधिकार आयोग की जांच कहती है कि गांव के दो नौजवान अपने पशुओं को खोजने घर से बाहर निकले थे, जबकि  पुलिस दल ने उन पर अंधाधुंध फ़ायरिंग की...

अनिल मिश्र

पश्चिम बंगाल के लालगढ़  इलाके के नेताई गांव में 7 जनवरी को  सत्ताधारी राजनीतिक दल के सशस्त्र कैडरों ने बारह ग्रामीणों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. उच्चतम न्यायालय की एक खंडपीठ ने इस मामले की याचिका पर 16 मार्च को सुनवाई करते हुये जो टिप्पणी की, वह बहुत महत्त्वपूर्ण है.

पश्चिम  बंगाल सरकार के पब्लिक प्रॉस्क्यूटर ने कहा कि मारे गए सभी लोग ’नक्सली’ थे. उच्चतम न्यायालय ने इस पर पश्चिम बंगाल सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा  ’हम इस तथ्य से वाक़िफ़ हैं कि सुविधा संपन्न लोग सुविधाविहीन लोगों की मांगों को अवैधानिक ठहराने के लिए ’नक्सली’ ब्रांड का इस्तेमाल करते हैं.’ अदालत  ने आगे कहा कि ’देश के आधे से अधिक हिस्सों में क़ानून विहीनता (लॉ लेसनेस) है. ’नक्सली’ शब्द का ऐसे इस्तेमाल कर  हत्याओं को उचित नहीं ठहराया जा सकता.’

उच्चतम न्यायालय की यह टिप्पणी और भी अहमियत इसलिए रखती है क्योंकि सरकारें लगातार कॉर्पोरेट तंत्र के दबाव में झुकती चली जा रही हैं और एक से बढ़कर एक जनविरोधी क़दम उठा रही हैं. मौलिक अधिकारों की जो गारंटी संविधान में प्रदान की गई है उसकी रक्षा कर पाने में सरकारें पूरी तरह विफल साबित हो रही हैं. उदारीकरण के वर्तमान, तीसरे चरण में ’विकास’ के नाम पर सत्ताधारी वर्ग की असहिष्णुता अब एक सनक की शक्ल अख़्तियार कर चुकी है.

इसके पहले,  उच्चतम न्यायालय ने ’विकास’ के बारे में जो टिप्पणी की थी उसका भी आशय कुछ इस तरह का था कि 'ग़रीबों की आजीविका, मकान और पर्यावरण को तहस नहस करने वाला कोई विकास अपेक्षित नहीं है. निश्चित ही, विदेशी पूंजी के खेल के आगे नतमस्तक हमारे राजनीतिक नेतृत्व के लिए यह टिप्पणी किरकिरी जैसी रही होगी. हाल ही में ओडिशा के मानवाधिकार आयोग ने अपनी एक स्वतंत्र जांच रिपोर्ट में कहा है कि 2008 में कोरापुट जिले में पुलिस ने जिन दो लोगों को ’नक्सली’ कहकर मारा था वे ग्रामीण थे, जो अपने पशुओं को घर से बाहर बाड़े में बांधने निकले थे.

मानवाधिकार आयोग ने मृतकों के परिजनों को मुआवज़ा देने की भी सिफ़ारिश की है. मानवाधिकार आयोग की जांच के मुताबिक़ जिला पुलिस के नेतृत्व में सीआरपीएफ़ के गश्ती दल ने इस फ़ायरिंग की जो कहानी गढ़ी थी वह परस्पर अंतर्विरोधी और बेबुनियाद दिखती है.पुलिस दल के प्रभारी थानाध्यक्ष के मुताबिक़ उन्हें ’विश्वस्त’ सूचना मिली थी कि इलाक़े में कुछ ’माओवादी नक्सली’ तत्व आए हैं. गश्त के दौरान रात के अंधेरे में जब उन्होंने ’नाइट विज़न’ यंत्र से देखा कि कुछ लोगों का समूह उनकी ओर बढ़ा चला आ रहा है और गोलियां चला रहा है तो पुलिस ने जवाबी कारवाई में दो ’नक्सलियों’ को मार गिराया.

मानवाधिकार आयोग की जांच कहती है कि गांव के दो नौजवान अपने पशुओं को खोजने के लिए घर से बाहर निकले थे, क्योंकि उनके बैल रस्सी तुड़ाकर भाग गए थे. पुलिस दल ने उन पर अंधाधुंध फ़ायरिंग की, जिसमें दो युवकों की मौत हो गई और कई बैलों ने घटनास्थल पर ही दम तोड़ दिया. एक ग्रामीण इस हमले मे बुरी तरह घायल हुआ था, जिसने किसी तरह परिवार वालों को घटना की ख़बर दी.

जाहिर है, देश के आधे से भी अधिक हिस्सों में क़ानून नहीं है. आगे का सच यह है कि देश के अधिकांश हिस्सों में या तो कोई क़ायदे-क़ानून नहीं हैं या फिर ऐसे नियम-क़ानून हैं जिनके आधार पर सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को भी अगर कभी ’देशद्रोही’ क़रार दिया जाए तो कोई ख़ास हैरानी नहीं होनी चाहिए. 'छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम' एक ऐसा ही अंधा क़ानून है जिसमें (नक्सली जैसे) शब्दों के झोलदार इस्तेमाल द्वारा किसी भी तरह के अपराध करने की आधिकारिक छूट हासिल की गई है.



महात्मा गाँधी हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से मीडिया में शोध और स्वतंत्र लेखन. इनसे   anamil.anu@gmail.com   पर संपर्क किया जा सकता है.


 
 
 
 
 

बुंदेलखंड में एक और बलात्कार कांड


दुराचार की तहकीकात करने के बाद जब बालिका का मेडिकल जांच कराया गया तो बर्थ सर्टीफिकेट में महज 13वर्ष की मीरा को बालिग करार दिया गया...

आशीष  सागर

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पे्रस क्लब सभागार में 26मार्च को एक नये सामूहिक बलात्कार कांड का खुलासा हुआ है। यह खुलासा ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क व यूरोपीयन यूनियन की संयुक्त जनसुनवाई कार्यक्रम में मानवाधिकार के हनन् मामलों की बैठक में हुआ।

बांदा के शीलू बलात्कार कांड के बाद प्रदेश में दलितों और गरीबों की स्थिति का यह दूसरा नमूना है जहां उनके साथ अत्याचार होने के बाद सुनवाई नहीं होती। इस जनसुनवाई में अपने पिता पुन्ना के साथ आयी बलात्कार पीड़िता मीरा(13 वर्षीय) ने जब सबके सामने 11 दिनों तक हुए बलात्कार का उल्लेख करना शुरू किया तो रोंगटे खड़े हो गये।

मामला बुंदेलखंड के चिल्ला थाना के महेदु गांव का है। लगभग पांच महीने पहले 22 नवंबर को पीड़िता को उसके गांव महेदू से शाम 4.30 बजे उसके पड़ोसी और मुख्य आरोपी बिज्जू ने अपने 4 अन्य साथियों के साथ मिलकर मीरा को अगवा कर लिया था। अगवा कर मीरा को दरिंदे टैम्पों से मकरी गांव ले गये, जहां एक रात रुकने के बाद उसे बन्धक बनाकर भरूवां सुमेरपुर में दो रात हवस का शिकार बनाया गया।

फिर जनपद बांदा के खाईपार मुहल्ला में आरोपियों ने अपने ही परिचित के यहां पीड़िता से 8रात तक लगातार सामूहिक बलात्कार किया। मीरा के गायब होने के 9दिनांे बाद लिखी एफआईआर के बाद हरकत में आई पुलिस पीड़िता को बलात्कारियों के कब्जे से छुड़ा पायी।

दुराचार की तहकीकात करने के बाद जब बालिका का मेडिकल जांच कराया गया तो बर्थ सर्टीफिकेट में महज 13वर्ष की मीरा को बालिग करार दिया गया। शुक्र यह रहा कि मेडिकल रिपोर्ट में डॉक्टरों ने बलात्कार की पुष्टि की थी। अन्यथा कई बार प्रदेश में ऐसे मामले सामने आते रहे हैं जहां पीड़ित यहीं नही साबित कर पाती कि उसके साथ बलात्कार हुआ है।

बावजूद इसके बलात्कार की यह जघन्य वारदात बहुचर्चित शीलू काण्ड़ की तरह प्रदेश या देश में मुद्दा नहीं बन सकी है। शायद इसलिए कि इस बलात्कार से किसी नेता का कैरियर बनना या तबाह होना नहीं था। 11 दिनों  की पुलिसिया आंख मिचैली और घटना के 9 दिनो बाद लिखी गई एफआईआर रिपोर्ट के बाद भी यह मामला किसी चैनल या अखबार की सुर्खियों में नहीं आ सका।

बहरहाल,बलात्कार पीड़िता मीरा जिस जन सुनवाई में अपने दुख का बयान कर आयी है उससे कुछ उम्मीद जरूर है। क्योंकि उसमें बतौर ज्यूरी सदस्य डॉ रूप रेखा वर्मा,पूर्व पुलिस महानिरिक्षक एसआर दारापुरी, रूहेलखंड विश्वविद्यालय के वीसी प्रदीप कुमार, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता केके रॉय और पीवीसीएचआर के डॉ लेलिन रघुवंशी मौजूद थे।

छात्रा के साथ सपा नेता ने किया बलात्कार


लड़की अभी कोमा में है और पुलिस बयान के इंतज़ार  में है. उधर अपराधी खुले घूम  रहे हैं और पीड़ित परिवार से  बयान वापस लेने का दबाव बना रहे हैं...


जनज्वार. उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में समाजवादी पार्टी के जिला कोषाध्यक्ष ने बीए प्रथम वर्ष की छात्रा के साथ कथित रूप से बलात्कार किया है. लेकिन पुलिस ने अभीतक इस मामले में कोई कदम नहीं  उठाया है.आरोपी अप्पू मणि  त्रिपाठी  सपा विधायक ब्रह्मा शंकर तिवारी का रिश्तेदार बताया जा  रहा  है. 

समाजवादी पार्टी के जिला कोषाध्यक्ष अप्पू मणि  ने कथित तौर पर अगवा कर 19 वर्षीय लड़की के साथ दुष्कर्म किया है। मामले की शिकायत दर्ज करा दी गई है लेकिन अभी तक किसी को हिरासत में नहीं लिया गया है। इस मामले में पुलिस की निष्क्रियता को लेकर अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (एपवा )  जिला मुख्यालय पर सोमवार को धरना प्रदर्शन करेगी ।


सपा प्रमुख मुलायम सिंह : किसके पक्ष में

आरोपी सपा जिला कोषाध्यक्ष अप्पू मणि त्रिपाठी कसया विधानसभा क्षेत्र के विधायक ब्रह्माशंकर तिवारी का रिश्तेदार बताया जा रहा है। इसकी वजह से पुलिस महकमे पर दबाव देखा जा रहा और अभी तक इस सिलसिले में कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

घटना 20मार्च होली के दिन की है। बाबा राघवदास स्नातकोत्तर महाविद्यालय में स्नातक प्रथम वर्ष की छात्रा बबली (बदला हुआ नाम) अपने रिश्तेदार के घर जा रही थी। उसी दौरान रास्ते में कुछ लोगों ने उसे रोका और मुंह पर कुछ लगा दिया,जिससे लड़की बेहोश हो गई। होश आने के बाद लड़की ने खुद को अस्पताल में पाया। उक्त बातें पीड़िता के मामा जेपी मिश्रा ने लड़की के हवाले से बताया।

लड़की के मामा ने बताया कि  बबली 20 मार्च से लापता थी। 21 मार्च को पुलिस के पास गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई। इसके बाद 23 मार्च को एक शख्स का फोन आया कि अपनी लड़की को लेने के लिए देवरिया खास इलाके में कौशल्या भवन आ जाइए। वहां पहुंचने के बाद अप्पू के चाचा व कांग्रेस नेता मुकुल मणि त्रिपाठी ने लड़की के अपने घर में होने से इंकार कर दिया। बबली जिले के भटनी थाना क्षेत्र में मिश्रौली दीक्षित गांव की रहने वाली है।

उसके बाद लड़की के मामा को फोन करने वाले ने  दुबारा  बताया कि आपकी लड़की बीआरडी कॉलेज के पीछे रेलवे लाइन पर बेहोश पड़ी हुई है। फोन करने वाले के बातचीत के आधार पर बबली के मामा रेलवे लाइन के किनारे पहुँचते उससे पहले फिर एक बार फोन आया और अबकी सदर अस्पताल में लड़की के होने की बात बताई गयी. 

इस मामले में कार्रवाई के बावत पूछने पर भटनी थाना के थानाध्यक्ष  ने बताया कि अक्कू मणि और बड़े मिश्र के खिलाफ  एफआइआर  दर्ज कर ली गयी है,लड़की के ठीक होने के बाद उसका बयान दर्ज किया जाएगा और कोई कार्रवाई होगी।

ऐसे में सूबे की सरकार और खासकर महिला मुख्यमंत्री मायावती के प्रशासन पर सवाल खड़े होते हैं कि अगर लड़की बयां नहीं दे पायेगी तो क्या कार्रवाई नहीं होगी.    वहीं लड़की के परिजनों पर तमाम तरह से दबाव डाले जा रहे हैं और मामले को मोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं।



 
इस सम्बंध में और जानकारी के लिए इनसे बात की जा सकती है।

जेपी मिश्रा-08423752550

भटनी थानाध्यक्ष देवेंद्र सिंह-09454401409

संघर्ष की संस्कृति के कमांडर कमला प्रसाद


कमलाजी की प्रतिष्ठा आलोचक के रूप में, लेखक व संपादक के रूप में भी खूब रही है। लेकिन मेरा मानना है कि उन्होंने सांगठनिक कार्य का चयन अपनी प्राथमिकता के तौर पर कर लिया था...


विनीत तिवारी
उनसे आप लड़ सकते थे, नाराज हो सकते थे, लेकिन वो लड़ाई और नाराजगी कायम नहीं रह सकती थी। वो आलोचक थे इसलिए विश्लेषण उनका सहज स्वभाव था,और साथ ही वे संगठनकर्ता थे इसलिए अपनी आलोचना सुनने,काम करने के दौरान हुई खामियों को दुरुस्त करने और दूसरों को गलतियाँ सुधारने का भरपूर मौका देने का जबर्दस्त संयम उनके पास था।

कोई अगर एक अच्छे कार्यक्रम की अस्पष्ट सी आकांक्षा भी प्रकट कर दे तो वे उसके सामने ही संसाधनों के प्रबंध से लेकर वक्ता, विषय आदि सबका पूरा विस्तृत खाका खींच निश्चित कर देते थे कि कार्यक्रम हो। सक्रियता और गतिविधि में उनका गहरा यकीन था। वे कहते भी थे कि अगर कुछ हो रहा है तो उसमें कुछ गलत भी हो सकता है और उसे ठीक भी किया जा सकता है। पूरी तरह पवित्र और सही तो वही बने रह सकते हैं जो कुछ करते ही न हों।

मध्य प्रदेश के प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव होने के नाते मेरा अनेक इकाइयों में जाना हुआ और हर जगह कोने-कोने में छोटे-बड़े अनेक साहित्यकार कमलाजी के साथ अपने परिचय का जिक्र करते। ये देखने का तो मौका नहीं मुझे मिला लेकिन अंबुजजी, हरिओम, योगेश वगैरह से कितनी ही बार ये जाना कि कमलाजी ने एक संगठनकर्ता के नाते कितनी ही असुविधाजनक यात्राएँ कीं। कहीं से इकाई बनाने का संकेत मिलते ही शनिवार-रविवार की छुट्टी में चल देते थे। रिजर्वेशन तो दूर की बात, कभी-कभी सीट न मिलने पर भी घंटों खड़े रहकर संगठन के विस्तार की चाह में दूर-दूर दौड़े जाते थे।

वे अपने वैचारिक और सांगठनिक गुरू परसाईजी को कहा करते थे और कमलाजी ने अपने गुरू के नाम और काम को आगे ही बढ़ाया। नामवरजी से लेकर होशंगाबाद के गोपीकांत घोष तक उन्हें कमांडर कहते थे और कार्यक्रम व योजना वे कमांडर की ही तरह बनाते भी थे और फिर एक साधारण कार्यकर्ता की तरह काम में हिस्सा भी बँटाते थे,लेकिन कभी शायद ही किसी ने उन्हें आदेशात्मक भाषा में बात करते सुना हो।

उल्टे हम कुछ साथियों को तो कई बार कुछ अयोग्य व्यक्तियों के प्रति उनकी उतनी विनम्रता भी बर्दाश्त नहीं होती थी। लेकिन सांस्कृतिक संगठन बनाने का काम तुनकमिजाजी और अक्खड़पन से नहीं बल्कि तर्क, विनय और दृढ़ता के योग से बनता है - ये सीख हमने उनके काम को देखते-देखते हासिल की। उनको याद करते हुए राजेन्द्र शर्मा की याद न आये,ये मुमकिन ही नहीं। राजेन्द्रजी ने जैसे कमलाजी के काम के वजन में जितना हो सके उतना हिस्सा बँटाने को ही अपना मिशन बना लिया था।

कमलाजी की प्रतिष्ठा आलोचक के रूप में, लेखक व संपादक के रूप में भी खूब रही है। लेकिन मेरा मानना है कि उन्होंने सांगठनिक कार्य का चयन अपनी प्राथमिकता के तौर पर कर लिया था और इसलिए अपनी लेखकीय क्षमताओं के भरपूर दोहन के बारे में वे बहुत सजग कभी नहीं रहे। उनका अपना लेखन,किसी हद तक पठन-पाठन भी संगठन के रोज के कामों के चलते किसी न किसी तरह प्रभावित होता ही था। फिर भी उन्होंने खूब लिखा।

‘वसुधा’ में उनके संपादकीय तो अनेक रचनाकारों के लिए राजनीतिक व संस्कृतिकर्म के रिश्तों की बुनियादी शिक्षा और अनेक के लिए रचनात्मक असहमति व लेखन के लिए उकसावा भी हुआ करते थे। लेकिन वो ऐसे लोगों की बिरादरी में थे जिन्होंने संगठन के लिए,और नये रचनाकार तैयार करने के लिए अपने खुद के लेखक की महत्त्वाकांक्षा को कहीं पीछे छोड़ दिया था।

प्रगतिशील लेखक संगठन का देश भर में विस्तार। पहले हिन्दी क्षेत्र में संगठन को एक साथ सक्रिय करना, फिर उर्दू के लेखकों से संपर्क और हिन्दी-उर्दू की प्रगतिशील ताकतों को इकट्ठा करना, फिर कश्मीर में, उत्तर-पूर्व में, बंगाल में और दक्षिण भारत में संगठन का आधार तैयार करना, और फिर समान विचार वाले संगठनों से भी संवाद कायम करना, इस सबके साथ-साथ ‘वसुधा’ का संपादन - दरअसल इतना काम आदमी कर ही तब सकता है जब उसके सामने एक बड़ा लक्ष्य हो। ये एक बड़े विज़न वाले व्यक्ति की कार्यपद्धति थी।

करीब एक महीना पहले जब कालीकट, केरल में हम लोग राष्ट्रीय कार्य परिषद की बैठक में साथ में थे तभी देश भर से आये संगठन के प्रतिनिधियों ने बेहद प्यार और सम्मान के साथ उनका 75वाँ जन्मदिन वहीं सामूहिक रूप से मनाया था। कैंसर के उनके शरीर पर असर भले दिखने लगे थे लेकिन कैंसर उनके मन पर बिल्कुल बेअसर था। वहाँ बैठक में और बाद में केरल से भोपाल तक के सफर के दौरान उनके पास ढेर सारे सांगठनिक कामों की फेहरिस्त थी,ढेर सारी योजनाएँ थीं। साम्प्रदायिक और साम्राज्यवादी ताकतों से अपने सांस्कृतिक औजारों से किस तरह मुकाबला किया जाए,किस तरह हम समाजवादी दुनिया के निर्माण में एक ईंट लगाने की अपनी भूमिका ठीक से निभा सकें, ये सोचते उनका मन कभी थकता नहीं था।

उनके जाने से उस पूरी प्रक्रिया में ही एक अवरोध आएगा जो कमलाजी ने शुरू की थी लेकिन हम उम्मीद करें कि देश में उनके जोड़े इतने सारे लेखक मिलकर उसे रुकने नहीं देंगे, आगे बढ़ाएँगे, यही उनके जाने के बाद उन्हें उपने साथ बनाये रखने का तरीका है और यही उनके प्रति श्रद्धांजलि भी।



(लेखक प्रगतिशील लेखक संघ के  मध्य प्रदेश इकाई के महासचिव हैं,उनसे  comvineet@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)



Mar 27, 2011

उत्तराखंड में दबंगों ने की दलित की हत्या


लक्ष्मण राम एक जागरुक व्यक्ति थे,उन्हें यह कतई बर्दाश्त नहीं था कि उनके गांव व क्षेत्र का अनियमित विकास हो...

नरेन्द्र देव सिंह

पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट विकास खण्ड क्षेत्र में पिछले 19 मार्च को दो दबंगो ने एक दलित की पीट-पीट कर हत्या कर दी। बीच-बचाव करने आई मृतक की पत्नी को भी दबंग सवर्णों ने लात-घूसों से मारा।

मृतक लक्ष्मण राम अपने भाई का बेरीनाग में दाह संस्कार करके शुक्रवार की शाम करीब साढ़े सात बजे चैली गांव में वाहन से उतरे तो वहां पर नशे में धुत चैली गांव के ही निवासी विक्की और नरेन्द्र ने उनके साथ मारपीट शुरू कर दी। दोनों युवकों ने लक्ष्मण राम को लाठी-डंडों से बुरी तरह पीटने के बाद 500 मीटर नीचे खेतों में फेंक  दिया, जिससे लक्ष्मण राम की मौत हो गयी।

इस घटना से गांव में दहशत का माहौल बन गया है। राजस्व पुलिस ने दोनों हत्यारोपी युवकों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया है। जांच-पडताल करने के बाद पता चला है कि हत्या का कारण पुरानी रंजिश थी,जिस कारण दोनों  युवकों ने लक्ष्मण राम की हत्या कर दी। लेचुराल जोशी गांव में अनुसूचित जाति की संख्या कम है और सामान्य जाति की संख्या ज्यादा है।
लक्ष्मण की पत्नी हरूली  देवी : कहाँ है न्याय  

लक्ष्मण राम एक जागरुक व्यक्ति थे,उन्हें यह कतई बर्दाश्त नहीं था कि उनके गांव व क्षेत्र का अनियमित विकास हो। हत्यारोपी विक्की चैली गांव का उपप्रधान है। नाम न छापने की शर्त पर एक ग्रामीण ने बताया कि विक्की शुरु से ही आपराधिक किस्म का व्यक्ति है। विक्की और इसके साथी मिलकर गांव में अवैध खनन भी करते हैं,इसके साथ ही यह लोग विकास के पैसों की भी बंटरबांट करते हैं। लक्ष्मण राम पूर्व में भी इन सब के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। कुछ दिन पूर्व ही लक्ष्मण राम ने ग्राम विकास अधिकार व अन्य सरकारी कर्मचारियों के सामने इन लोगों की करतूतों का खुलासा किया था।

अधिकारियों के सामने निडर होकर लक्ष्मण राम ने कहा कि यह लोग अवैध खनन करते हैं। यह बात विक्की और उसके साथियों का नागवार गुजरी,इसलिए विक्की और नरेंद्र ने शराब के नशे में धुत होकर 19 मार्च को लक्ष्मण राम को लाठी-डंडो से पीट-पीट कर मार डाला। बदमाशों ने मृतक की पत्नी हरूली देवी को भी नहीं छोड़ा, उन्हें भी लात-घूसों से मारा और जाति सूचक गालियां दीं। हरूली देवी ने जब मदद के लिए गांव वालों को पुकारा तो उनकी मदद को कोई नहीं आया। हरूली देवी अपनी पति के लाश के पास पूरी रात अकेली बैठे रही।

हरूली देवी कहती हैं, ‘पति को पिटते देख जब मैं बीच-बचाव के लिए गयी तो उन लोगों ने मुझे भी मारा-पीटा। उन लोगों ने मुझसे कहा ‘तुझे भी जान से मार देंगे, तु यहां से चली जा, हम किसी से भी नहीं डरते‘। मैंने गांव वालों को मदद के लिए आवाज लगाई लेकिन गांव में इन लोगों का इतना आतंक है कि डर के मारे कोई भी मदद को आगे नहीं आया। मैं शाम साढ़े सात बजे से लेकर सुबह तक अपने पति की लाश के पास बैठी लेकिन कोई नहीं आया। इन लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

इस मामले में जिला पुलिस और जनप्रतिनिधि मौन साधे हुए हैं। पहले भी इस प्रकार की घटनायें घट चुकी हैं। ऐसे में साफ है कि राज्य में होने वाले दलित उत्पीड़न के मामलों में पुलिस कैसे अपने राजनीतिक आकाओं के का मूंह ताक रही है।



लेखक युवा पत्रकार है, उनसे  narendravagish@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।

 
 
 
 
 

मेरी मम्मी को न छीनो !


दो माएं और बीच में अदालत. मामला एक बेटी का. दोनों माँ  का दावा,  बेटी उनकी है. जाहिर है  होगी तो किसी एक की ही.इस जिरह में बीत गए सात साल और अंत में अदालत ने  जो फैसला दिया, उसने  एक माँ  से बेटी को अलग  कर दिया. फ़िल्मी लगने वाली इस कहानी के पीछे का सच, समाज और अदालत दोनों के लिए सवाल छोड़ जाता है....  

चैतन्य भट्ट

‘मुझे बचा लो मम्मी, मुझे अपने से दूर मत करो, मैं कहीं जाना नही चाहती, मैं आपके साथ ही रहूंगी'- जबलपुर के जिला अदालत परिसर में मासूम वंशिका की आवाज हर उस इंसान को द्रवित कर रही थी जो उस वक्त वहां मौजूद था.सात साल की वंशिका बार-बार वकीलों और पुलिस के हाथों से छूटकर उसे पालने वाली मां आशा पिल्ले की गोद में आ गिरती थी,पर देश की सबसे बड़ी अदालत का आदेश उसे जन्म देने वाली मां के पक्ष में था इसलिये पुलिसकर्मी और अधिवक्ता भी मजबूर थे.उन्हें आदेश मिला था कि वे वंशिका को उसको जन्म देने वाली मां के हाथों में सौप दें.


कोर्ट परिसर में बिलखती आशा पिल्लै
 पुलिस की मदद से जब वंशिका को तबस्सुम की गोद में डाला गया, तब उसे सात साल तक अपने सीने से लगाकर रखने वाली और उसका लालन पोषण करने वाली आशा पिल्ले और उसके पति रवि पिल्र्ले की आँखों से आसुंओं की अविरल धारा बह निकली. आशा पिल्ले तो अदालत परिसर में ही बेहोश हो गई.

सात साल की वंशिका की यह कहानी किसी फिल्मी कथानक से कम नहीं है.मानवीय भावनाओं से लबरेज दो माँओं के बीच फंसी वंशिका को तो इस बात का इल्म ही नहीं था कि उसे जन्म देने वाली कोई और है और उसे पालने वाली कोई और.उसने तो जबसे होश संभाला था, खुद को आशा पिल्ले की गोद में ही पाया था. वह उसकी मां थी. जो उस पर रात-दिन अपनी ममता लुटाती रहती थी.पर वक्त ने सात साल बाद ऐसा पलटा खाया कि वंशिका को अपनी उस मां के पास जाना पड़ा जो उसे जन्म देने के बाद लावारिस हालात में उत्तर प्रदेश के जालौन के एक अस्पताल में छोडकर न जाने कहां चली गई थी.

उरई की रहने वाली तबस्सुम का विवाह उस्मान मंसूरी के साथ हुआ था. विवाह के चार महीने बाद ही उस्मान मंसूरी की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. उस वक्त तबस्सुम के पेट में अपने पति की निशानी पल रही थी.चूंकि विवाह के चार महीने बाद ही उसका पति उसे इस दुनिया में अकेला छोडकर चला गया था. इसलिये उसकी मानसिक दशा गड़बड़ा गई. इस बीच तबस्सुम के  दिन पूर हो गये और उसे उरई के डॉ. गुप्ता के अस्पताल में उसके किसी परिचित ने भरती करवा दिया,जहां तबस्सुम ने एक बच्ची को जन्म दिया.


ऐसी थी वंशिका                फोटो - सतन  सिंह
 बच्ची को जन्म देने के दो-चार दिन बाद ही वह अचानक अस्पताल से न जाने कहां चली गई.एक नवजात शिशु को अस्पताल में कैसे रखा जाये, इस बात की चिन्ता डा. गुप्ता को थी. तभी उन्हें याद आया कि उनके एक परिचित मनोज गुप्ता ने उनसे कहा था कि उनके जबलपुर में रहने वाले मित्र रवि पिल्ले और उनकी पत्नी आशा पिल्ले विवाह के सत्रह साल बाद भी संतान का मुंह नहीं  देख पाये हैं. यदि उनकी निगाह में कोई बच्चा हो जिसे वे गोद ले सकें, तो उन्हें सूचना दे देना.

डॉ.गुप्ता ने इस बात की सूचना मनोज गुप्ता को दी कि एक नवजात बच्ची उनके अस्पताल में है जिसकी मां उसे छोडकर चली गई है. यदि उनके मित्र उसे गोद लेना  चाहें तो जालौन आकर ले जायें. मनोज गुप्ता ने यह खबर जब जबलपुर के यादगार चौक में रहने वाले रवि पिल्ले को दी तो वे और उनकी पत्नी आशा पिल्ले खुशी से झूम उठे.उसी रात वे दोनों जालौन के लिये रवाना हो गये और उस बच्ची को लेकर जबलपुर आ गये. उस वक्त यह बच्ची मात्र एक महीने की थी.

पिल्ले दम्पति को संतान की बेहद लालसा थी, अतः उन्होंने उस पर अपना पूरा प्यार लुटा दिया. वे उसे अपने कलेजे से लगाकर रखते. इसका नाम भी उन्होंने रखा ‘वंशिका.’आशा रात रातभर जागकर उसकी सेवा करती, रूई के फोहे  से उसे दूध पिलाती.अपनी पत्नी के चेहरे पर खुशी देखकर रवि पिल्ले को भी संतोष होता.

समय के साथ बच्ची बढ़ती गई, उसे उन्होंने स्कूल में भरती करवा दिया.वंशिका सुबह स्कूल  जाती और जब तक वापस नही लौट आती आशा दरवाजे पर बैठी उसकी राह तकती रहती.पर उसे पता नहीं था कि उसकी इस खुशी पर ग्रहण लगने वाला है.वंशिका को गोद लेने के चार साल बाद 28 जून 2008 को एक महिला पुलिसकर्मी के साथ पिल्ले दम्पति के  घर आई और उसने कहा ‘‘मेरा नाम तबस्सुम है. मैं उरई की रहने वाली हूं, आप लोग जिस बच्ची को लेकर आये हैं वह मेरी बच्ची है. मैं उसे वापस लेने आई हूं.’’

इतना सुनते ही पिल्ले दम्पति के पैरों तले की जमीन खिसक गई. उन्हें सपने में भी इस बात कर अंदाजा नही था कि चार साल बाद ऐसी कोई परिस्थिति पैदा हो जायेगी.पुलिसकर्मी ने उन्हें बताया कि तबस्सुम ने जबलपुर एसडीएम की अदालत में धारा 97 के तहत एक आवेदन लगाया है, जिसमें उसने कहा है कि पिल्ले दम्पति उसकी बच्ची को चुराकर ले आये हैं. एसडीएम ने तबस्सुम के आवदेन पर कार्यवाही करते हुये आदेश पारित किया है कि वंशिका को उसकी मां तबस्सुम की अभिरक्षा में सौप दिया जाये.

 इस आदेश के खिलाफ पिल्ले दम्पति ने जिला न्यायालय में एक अरजी लगाई. जिला न्यायालय ने एसडीएम कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुये निर्देश दिये कि वंशिका को पिल्ले दम्पति की अभिरक्षा में ही रहने दिया जाये.

अंशिका को पैदा करने वाली मां तबस्सुम : जीत की ख़ुशी!  फोटो-  सतन सिंह
 मगर तबस्सुम ने हार नहीं मानी और मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर आरोप लगाया कि पिल्ले दम्पति में उसकी बेटी को अवैध रूप से अपने पास रखा हुआ है. जबकि वह उसकी मां है और उसने वंशिका को जन्म दिया है.

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने इस याचिका को स्वीकार करते हुये मामले की सुनवाई शुरू की.तबस्सुम की ओर से उनके अधिवक्ता संजय अग्रवाल ने न्यायालय को बताया कि बच्ची पर सबसे बडा और पहला हक उसे जन्म देने वाली मां का है. अब वह मानसिक रूप से स्वस्थ है तथा अपनी बच्ची का भरण पोषण कर सकती है,जबकि पिल्ले दम्पति की ओर से उनके अधिवक्ता जयंत नीखरा ने तर्क देते हुये कहा कि पिल्ले दम्पति बच्ची का लालन पोषण बेहतर तरीके से कर रहे हैं.उन्होंने कहा कि तबस्सुम के पास रोजगार को कोई साधन नहीं है और वह बच्ची की देखरेख  नहीं कर पायेगी.

चूंकि मामला बेहद संवदेनशील था, इसलिए न्यायमूर्ति द्वय दीपक मिश्रा और आरके गुप्ता ने कैमरा प्रोसीडिंग का सहारा लिया. इस प्रक्रिया के तहत उन्होंने पहले वंशिका और तबस्सुम को अपने चेम्बर में बुलाकर वंशिका से कहा, ‘ये तुम्हारी मां है तुम्हे  इसके साथ जाना होगा.’यह सुनते ही वंशिका रोने लगी.तब न्यायमूर्तियों ने आशा को अपने चेम्बर में बुलाया और वंशिका से पूछा,‘क्या तुम इसके साथ रहना चाहती हो.’यह सुनते ही वंशिका दौड़कर आशा पिल्ले की  गोद में जाकर  छिप  गई.

एक मासूम बच्ची की इच्छा जानते हुये न्यायमूर्ति गण ने अपने आदेश में कहा कि यह प्रमाणित नहीं होता कि रवि पिल्ले और आशा पिल्ले ने वंशिका को अवैध रूप से अपने पास रखा हुआ है इसलिये बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का कोई आधार नहीं बनता.बालिका जन्म के बाद से पिल्ले दम्पति के पास है. उसका लालन पोषण अच्छी तरह से हो रहा है. वह स्कूल जा रही है.

पर न्यायालय केवल यह स्थापित कर रहा है कि बच्ची अवैधानिक रूप से नहीं रखी गई है, लेकिन बच्ची के पालन पोषण का अधिकार और दायित्व का प्रश्न किसी सक्षम न्यायालय में ही निर्णित होगा. उच्च न्यायालय के इस निर्णय से तबस्सुम की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकर स्वतः ही खारिज हो गई तथा वंशिका रवि पिल्ले की ही अभिरक्षा में बनी रही.


पिल्लै दंपति और अंशिका : बिछड़ने से पहले                            फोटो- सतन सिंह
 उच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ तबस्सुम ने उच्चतम न्यायालय में विशेष अवकाश याचिका दायर की और नवंबर 2009 में उच्चतम न्यायालय ने पिल्ले दम्पति को नोटिस जारी किये.मामले की सुनवाई 17 फरवरी को जस्टिस जीएस सिंघवी और जस्टिस अशोक गांगुली की खंडपीठ ने की.

सुनवाई के दौरान तबस्सुम ने बताया कि उसे आशंका है कि उसे उसकी बच्ची नही दी जायेगी. दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद अदालत ने उसकी अंतरिम राहत की अर्जी स्वीकार करते हुये वंशिका को तबस्सुम की अभिरक्षा में सुपुर्द करने के आदेश जारी कर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. यह आदेश शाम को फैक्स के जरिये मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय पहुंचा. इसके तारतम्य में दोनों ही प़क्षों को 18 फरवरी को जिला न्यायालय में बुलाया गया,जहां वंशिका को तबस्सुम के हवाले कर दिया गया.अदालती आदेश में यह भी कहा गया  कि पुलिस तबस्सुम और वंशिका को पूरी सुरक्षा दे. जालोन एसपी को भी ये निर्देश दिये गये हैं कि वे तबस्सुम और वंशिका की पूरी हिफाजत करें.


अदालती आदेश के बाद अपनी बेटी को उरई ले जाने वाली तबस्सुम ने इस संवाददाता से कहा कि 'मुझे न्याय पर पूरा भरोसा था. अपनी कोख से जन्मी बच्ची को पाने के लिये मुझे इतनी लम्बी लडाई लड़नी पड़ी. खुदा करे ऐसा किसी और मां के साथ न हो.'

दूसरी तरफ वंशिका से बिछड़ने के बाद आशा पिल्ले कहती है,'मैंने तबस्सुम से उसकी बच्ची छीनी नहीं थी, वह उसे छोडकर चली गई थी. सात साल मैंने उसे अपने कलेजे से लगाकर रखा. मैंने उसे किन नाजों से पाला है यह मेरा दिल ही जानता है. मुझे हर पल वंशिका की याद सतायेगी. मैं क्या करूं मुझे कुछ समझ में नही आता. मैंने भले ही उसे जन्म नहीं दिया, पर मैं भी एक औरत  हूं और वंशिका पर  मैंने अपनी पूरी ममता लुटाई है.




राज एक्सप्रेस और पीपुल्स समाचार में संपादक रह चुके चैतन्य भट्ट फिलहाल स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम कर रहे हैं। वे तीस बरसों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।






Mar 26, 2011

खदानों की लूट में बसपा- सपा दोनों शामिल



जनज्वार. उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में फिर एक बार खदानों की खुली लूट का मामला सामने आया है.सुचना के अधिकार के तहत प्राप्त हुई जानकारी में उजागर हुआ है कि ज्यादातर  खनन  करने  वालों  में वे जनप्रतिनिधि ही शामिल हैं जिनके कंधे पर उन खदानों को बचाने की जिम्म्मेदारी थी. 

खनन कर्ताओं की सूची जारी करते हुए जन संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता दिनकर कपूर ने बताया कि सूचना अधिकार कानून के तहत जिले के खान अधिकारी से प्राप्त वैध खनन कर्ताओं की सूची के अनुसार जनपद में गिट्टी बोल्डर के मात्र 155,सैण्ड़ स्टोन के मात्र 107, लाल मोरम के मात्र 4 और बालू मोरम के मात्र 25खनन कर्ता  ही वैध पट्टाधारक है। लेकिन इस जिले में हजारों की संख्या में अवैध खनन हो रहा है।

उदाहरण देते हुए उन्होनें बताया कि राकेश गुप्ता का सलखन गांव में क्रशर चल रहा है और पटवध गांव में कैमूर सेंचुरी एरिया में मुरैया पहाड़ी में पत्थर का खनन कार्य हो रहा है। जबकि इन दोनों ही कार्यो की उन्हे अनुमति प्राप्त नहीं है। पर्यावरण विभाग ने उन्हे क्रशर चलाने की अनुमति नहीं दी है और खनन विभाग ने उन्हे खनन हेतु पट्टा नही दिया बावजूद इसके उनका यह गैरकानूनी कार्य खुलेआम चल रहा है।

इसी प्रकार दुद्धी तहसील में कनहर नदी पर बालू खनन हेतु मात्र एक जगह कोरगी में ही खनन की लीज मिली हुई है पर वहां पोलवां और पिपरडीह समेत तमाम गांवों में खुलेआम कनहर नदी से बालू का खनन कराया जाता है। राष्ट्रीय सम्पत्ति की इस लूट पर रोक के सम्बंध में जन संघर्ष मोर्चा द्वारा बार-बार उत्तर प्रदेश शासन व जिला प्रशासन को पत्रक देने और दो माह से जिला मुख्यालय पर जारी अनिश्चितकालीन धरने अनशन के बाद भी प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं की।

दरअसल राष्ट्रीय सम्पत्ति की इस लूट में सत्ताधारी दल के बड़े पदाधिकारी और नेता सीधे तौर पर शामिल है इसलिए स्थानीय प्रशासन भी इन पर हाथ डालने से कतरा रहा है। खान विभाग से प्राप्त सूची को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस लूट की मलाई खाने में सभी शामिल रहे है चाहे वह वर्तमान विधायकगण हो या सत्ता के विरूद्ध लाठी खाने की बात करने वाले प्रमुख विपक्षी दल के नेतागण।

सूची पर गौर करें तो आप देखेगें कि बसपा के राबर्ट्सगंज विधानसभा से विधायक सत्यनारायण जैसल ने अपनी पत्नी मीरा जैसल के नाम वर्ष 2010 में  2020 तक के लिए सैण्ड स्टोन की 4 एकड़ में लीज करायी है. बसपा के ही राजगढ़ विधानसभा से विधायक अनिल मौर्या ने बिल्ली मारकुण्ड़ी में वर्ष 2003 में दस साल के लिए लीज करायी है। इन्ही अनिल मौर्या द्वारा मिर्जापुर के अहरौरा के सोनपुर गांव में लगाये गये क्रशर प्लान्ट में तो बस्ती के निकट ही ब्लास्टिंग करायी जा रही है।

उससे उड़ रही घूल ने ग्रामवासियों को टी0बी0 का बड़े पैमाने पर शिकार बना लिया है, हमारी टीम ने वहां जाकर देखा कि दलित जाति के एक ही परिवार के दो भाई छैवर व जय सिंह की टी0बी0से मौत हो गयी और बालकिशुन, राधेश्याम, मल्लां, रामधनी, शारदा, जसवन्त, बल्ली जैसे दर्जनों दलित परिवार टी0बी0 के मरीज बन जिन्दगी और मौत से जूझ रहे है, जबकि इस क्रशर प्लान्ट का नाम भी वैध क्रशरों में नहीं है।

बसपा के पूर्व सांसद रहे नरेन्द्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी मालती देवी के नाम पटवध गांव में 2003 में दस साल की पत्थर खनन की लीज करायी हुई है। बसपा के जिला महासचिव दाराशिकोह की तो दो खनन लीज है और कुलडोमरी क्षेत्र से जिला पंचायत का चुनाव लड़ चुके मनोज पाण्डेय, सुभाष पाल, सड़क निर्माण क्षेत्र में पूरे जनपद में एकाधिकार कायम कर रहे उमाशंकर सिंह की दो लीजे है तो लखनऊ के गोमती नगर की आई0वी0आर0सी0एल0 इन्फ्रास्ट्रक्चर एण्ड प्रोजेक्ट लिमिटेड ने बालू खनन के सात पट्टे हासिल किए है।

इस पट्टों के बारे में लोगों का कहना है कि यह सीधे बसपा के नेताओं द्वारा संचालित किया जा रहा है। राष्ट्रीय सम्पत्ति की इस लूट में बसपा के साथ-साथ उसकी विपक्ष बनने का दावा करने वाली सपा के बडे़ नेतागण भी बराबर के साझेदार है। मुलायम सरकार के रहते इटावा निवासी सपा के नेता धर्मवीर सिंह यादव ने राबर्ट्सगंज के बिल्ली मारकुड़ी में 2007 जनवरी में दस साल के लिए पत्थर खनन की लीज प्राप्त कर ली। सपा के जिला महासचिव रमेश वैश्य की तीन लीज है तो बसपा छोड़ सपा में शामिल हुए रमेश दूबे भी खनन पट्टे के मालिक है।

इस जनपद में ऐसा लगता है कि नेताओं को राजनीति के तोहफे के रूप में इस क्षेत्र को कानूनी और गैर कानूनी दोनों तरीके से चैतरफा लूटने की अनुमति मिली हुई है। यहां की सोन नदी को बंधक बना लिया गया है और सर्वोच्च  न्यायालय के आदेशों के बाद भी नदी की धार को बांधकर बालू का खनन किया जा रहा है। सेंचुरी  एरिया और वाइल्ड जोन में जहां ताली बजाना भी मना है वहां ब्लास्टिंग की जा रही है।

इसके खिलाफ जन संघर्ष मोर्चा द्वारा विगत 20जनवरी से जिला मुख्यालय पर धरना दिया जा रहा है परन्तु आजतक प्रशासन ने यहां की जनता के जीवन से जुड़े इन महत्वपूर्ण सवालों को हल नही किया। प्रशासन की लोकतांत्रिक आंदोलनों की अवहेलना का यह रूख यहां बडे़ आक्रोश को जन्म दे रहा है। ग्रामीणों ने फैसला लिया है कि यदि प्रशासन राष्ट्रीय सम्पत्ति की इस लूट को नही रोकता तो इसकी रक्षा के लिए ग्रामीण खुद मार्च करेगें और अवैध खनन बंद करायेगें।



 

प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव का निधन



प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव रहे  कमला प्रसाद ने पूरे देश के प्रगतिशील और जनपक्षधरता वाले रचनाकारों को उस वक्त देश में इकट्ठा करने का बीड़ा उठाया जब प्रतिक्रियावादी, अवसरवादी और दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता, यश और पुरस्कारों का चारा डालकर लेखकों को बरगलाने का काम कर रहीं हैं।

उनके इस काम को देश की विभिन्न भाषाओं और विभिन्न संगठनों के तरक्कीपसंद रचनाकारों का मुक्त सहयोग मिला और एक संगठन के तौर पर प्रगतिशील लेखक संघ देश में लेखकों का सबसे बड़ा संगठन बना।

इसके पीछे दोस्तों, साथियो और वरिष्ठों द्वारा भी कमांडर कहे जाने वाले कमलाप्रसादजी के सांगठनिक प्रयास प्रमुख रहे। उन्होंने जम्मू-कश्मीर से लेकर, पंजाब, असम, मेघालय, प. बंगाल और केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में संगठन की इकाइयों का पुनर्गठन किया, नये लेखकों को उत्प्रेरित किया और पुराने लेखकों को पुनः सक्रिय किया।

उनकी कोशिशें अनथक थीं और उनकी चिंताएँ भी यही कि सांस्कृतिक रूप से किस तरह साम्राज्यवाद, साम्प्रदायिकता और संकीर्णतावाद को चुनौती और शिकस्त दी जा सकती है और किस तरह एक समाजवादी समाज का स्वप्न साकार किया जा सकता है। ‘वसुधा’ के संपादन के जरिये उन्होंने रचनाकारों के बीच पुल बनाया और उसे लोकतांत्रिक सम्पादन की भी एक मिसाल बनाया।

कमलाप्रसादजी रीवा विश्वविद्यालय  में हिन्दी के विभागाध्यक्षरहे,मध्य प्रदेश कला परिषद के सचिव रहे, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के अध्यक्ष रहे और तमाम अकादमिक-सांस्कृतिक समितियों के अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे, अनेक किताबें लिखीं, हिन्दी के प्रमुख आलोचकों में उनका स्थान है, लेकिन हर जगह उनकी सबसे पहली प्राथमिकता प्रगतिशील चेतना के निर्माण की रही।

उनके न रहने से न केवल प्रगतिशील लेखक संघ को,बल्कि वंचितों के पक्ष में खड़े होने और सत्ता को चुनौती देने वाले लेखकों के पूरे आंदोलन को आघात पहुँचा है। मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संगठन तो खासतौर पर उन जैसे शुरुआती कुछ साथियों की मेहनत का नतीजा है। उनके निधन से पूरे देश के लेखक, रचनाकार, पाठक, साहित्य व कलाओं का वृहद समुदाय स्तब्ध और शोक में है।

कमलाप्रसादजी ने जिन मूल्यों को जिया, जिन वामपंथी प्रतिबद्धताओं को निभाया और जो सांगठनिक ढाँचा देश में खड़ा किया,वो उनके दिखाये रास्ते पर आगे बढ़ने वाले लोग सामने लाएगा। और प्रेमचंद, सज्जाद जहीर, फैज, भीष्म साहनी, कैफी आजमी, परसाई जैसे लेखकों के जिन कामों को कमलाप्रसादजी ने आगे बढ़ाया था, उन्हें और आगे बढ़ाया जाएगा। मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ की राज्य कार्यकारिणी उन्हें अपनी श्रृद्धांजलि अर्पित करती है।

मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ का शोक प्रस्ताव

Mar 25, 2011

नहीं सुना राजगुरु और सुखदेव का नाम

संजय स्वदेश

भगत सिंह का बलिदान दिवस 23 मार्च अब   बीत चुका   है। हर साल की तरह इस बार भी एकाद संगठन के प्रेस नोट से अखबार के किसी कोने में भगत सिंह के  श्रद्धांजलि की खबर भी छप चुकी  होगी.शहर में कही धूल खाती भगत सिंह की मूर्ति पर माल्यपर्ण भी हो चुका होगा। कहीं संगोष्ठी हुई  होगी तो कहीं भगत सिंह के विचारों की प्रासंगिकता बता कर उनसे प्रेरणा लेने की बात कही गयी होगी. फिर सब कुछ पहले जैसे समान्य हो जाएगा और अगले वर्ष फिर बलिदास दिवस पर यही सिलसिला दोहराया जाएगा।

मगर भगत सिंह के विचारों से किसी का कोई लेना देना नहीं होगा. यदि लेना-देना होता तो आज युवा दिलों में भ्रष्टाचार के खिलाफ धधकने वाली ज्वाला केवल धधकती हुई घुटती नहीं। यह ज्वाला बाहर आती। सड़कों पर आती। सरकार की चूले हिला देती। फिर दिखती कोई मिश्र की तरह क्रांति। भ्रष्टाचारी सत्ता के गलियारे से भाग जाते। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है। युवाओं का मन किसी न किसी रूप में पूरी तरह से गतिरोध की स्थिति में जकड़ चुका है।
बाएं से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव : मुल्क के लिए कुर्बानी  

वह भगत सिंह को क्यों याद करें। उस क्या लेना-देना क्रांति से। आजाद भारत में क्रांति की बात करने वाले पागल करार दिये गये हैं। छोटे-मोटे अनेक उदहारण है। एक-दो उदाहरण को छोड़ दे तो अधिकतर कहां खो गये, किसी को पता नहीं।

गुलाम भारत में भगत सिंह ने कहा था-जब गतिरोधी की स्थितियां लोगों को अपने शिकंजे  में जकड़ लेती हैं तो किसी भी प्रकार की तब्दीली से वे हिचकिचाते हैं। इस जड़ता और निष्क्रियता को तोड़ने के लिए एक क्रांतिकारी स्पिरिट पैदा करने की जरुरत होती है। अन्यथा पतन और बर्बादी का वातावरण  छा जाता है। लोगों को गुमराह करने वाली प्रतिक्रियावादी शक्तियां जनता को गलत रास्ते पर ले जाने में सफल हो जाती है। इस परिस्थिति को बदलने के लिए यह जरूरी है कि क्रांति की स्पिरिट ताजा की जाए, ताकि इंसानियत की रूह में हरकत पैदा हो

शहीद भगत सिंह के नाम भर से केवल कुछ युवा मन ही रोमांचित होते हैं। करीब तीन साल पहले नागपुर में भगत सिंह के शहीद दिवस पर वहां के युवाओं से बातचीत कर स्टोरी की। केवल इतना ही पूछा भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को जानते हो, ये कौन थे। अधिकर युवाओं का जवाब था - भगत सिंह का नाम सुना है। उनके बाकी दो साथियों के नाम पता नहीं था। वह भी भगत सिंह को शहीद के रूप में इसलिए जानते थे,क्योंकि उन्होंने भगत सिंह पर अधारित फिल्में देखी थी या उस पर चर्चा की थी।

देश के अन्य शहरों में भी यदि ऐसी स्टोरी करा ली जाए तो भी शत प्रतिशत यही जवाब मिलेंगे। लिहाजा सवाल है कि आजाद भारत में इंसानियत की रूह में हरकत पैदा करने की जहमत कौन उठाये। वह जमाना कुछ और था जो भगत सिंह जैसे ने देश के बारे में सोचा। आज भी हर कोई चाहता है कि समाज में एक और भगत सिंह आए। लेकिन वह पड़ोसी के कोख से पैदा हो। जिससे बलिदान वह दे और राज भोगे कोई और।

भगत सिंह ने अपने समय के लिए कहा था कि गतिरोधी की स्थितियां लोगों को अपने शिकंजा में कसे हुए है। लेकिन आज गतिरोध की स्थितियां वैसी है। बस अंतर इतना भर है कि स्थितियों का रूप बदला हुआ है। मुर्दे इंसानों की भरमार आज भी है और क्रांतिकारी स्पिरिट की बात करने वाले हम जैसे पालग कहलाते हैं।
 
 
दैनिक नवज्योति के कोटा संस्करण से जुड़े संजय स्वदेश देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व पोटर्ल से लिए स्वतंत्र लेखन करते हैं.उनसे sanjayinmedia@rediffmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.