जनज्वार.छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा इलाके में सलवा जुडूम कार्यकर्ताओं और सुरक्षा बलों द्वारा 11 से 14 मार्च के बीच आदिवासियों के गांवों को फूंक दिये जाने के बाद राहत सामग्री ले जा रहे लोगों पर जानलेवा हमले हुए हैं। राहत सामग्री ले जाने वालों में सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश भी थे,जिन पर स्थानीय पुलिस के इशारे पर जानलेवा हमला किया गया।
आदिवासियों के जलाये गए घर : अभी सबूत चाहिए |
वहां से बाल-बाल बचकर आये स्वामी अग्निवेश ने दिल्ली में 26मार्च को आयोजित एक प्रेस वार्ता में कहा कि,‘मैं किसी तरह जान बचाकर भागा हूं,नहीं तो बलवाईयों की कोशिश हमें गाड़ी में ही जिंदा फूंकने की थी।’ हालांकि जाने से पहले अग्निवेश ने छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्वरंजन से इस बावत बात की तो उन्होंने इसे माओवादी पत्रकारों का हौवा बताया था और कहा कि पत्रकारिता में माओवादियों के एजेंट भरे हैं।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के ताड़मेटला इलाके में 14मार्च को सलवा जुडूम के बलवाईयों ने आदिवासियों के 300सौ घरों को जलाकर खाक कर दिया था। यह वही इलाका है जहां पिछले वर्ष 6 अप्रैल को सुरक्षा बलों के 76 जवानों को माओवादियों ने एक हमले में मार डाला था। ऐसे में माना जा रहा है कि हमले के दोषी माओवादियों को पकड़ पाने में असमर्थ पुलिस ने सलवा-जुडूम कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर उन गांवों को बदले की कार्यवाही में जला डाला है जिन गांवों की सीमा से माओवादियों ने कार्यवाई की थी।
बहरहाल, 14 मार्च के इस हमले का जिन आदिवासियों ने विरोध किया उन आदिवासियों को जान से मार दिया गया और 3महिलाओं से सामूहिक बलात्कार किया गया। घटना के तकरीबन 7 दिन बाद यह सूचना पहली बार अखबारों में तब आयी जब वनवासी चेतना आश्रम के हिमांशु कमार ने दिल्ली के पत्रकारों को मोबाइल के जरिये सूचित किया। इसी सूचना को पढ़कर 25 मार्च को राहत सामग्री लेकर पहुंची स्वामी अग्निवेश की टीम ताड़मेटला के उन जलाये गये गावों में पहुंच पाती उससे पहले सलवा जुडूम के लोगों ने वहां के एससएसपी कल्लूरी के इशारे पर हमला जानलेवा हमला किया और राहत सामग्री पहुंचाये बगैर वहां से स्वामी अग्निवेश का जान बचाकर भागना पड़ा।
सरकार कहती है : कुछ नहीं हुआ |
इन सबके पीछे दंतेवाड़ा के एसएसपी एसआरपी कल्लूरी का हाथ था। गाड़ियों के शीशे तोड़े,अंडे और पत्थर फेंककर प्राणघातक हमले किये। वह तो ईश्वर की कृपा है कि दिल्ली वापस आ गया हूं अन्यथा वहां हमें मार दिया जाता या फिर हमें गाड़ी समेत जिंदा जला दिया जाता।’ यह पूछने पर कि, क्या यह हमला मुख्यमंत्री रमन सिंह की जानकारी के बगैर हुआ होगा, तो अग्निवेश ने कहा कि, 'ऐसा नहीं है. इन सभी वारदातों से मुख्यमंत्री पूरी तरह परिचित होंगे और उनकी जानकारी में हुआ होगा.'
इस जघन्य वारदात को अंजाम देने वाले कल्लुरी को सिर्फ दंतेवाड़ा से सरगुजा जिले में तबादला कर मुख्यमंत्री रमन सिंह अपने कर्तव्य की इती श्री कर ली है। जबकि कल्लूरी पर पहले से कई आपराधिक मामले हैं। इसी के मद्देजनर 7 जंतर-मंतर रोड दिल्ली में आयोजित प्रेस वार्ता में अग्निवेश ने कहा कि, ‘कल्लूरी जैसे अपराधी को तत्काल निलंबित किया जाना चाहिए और एफआइआर दर्ज होनी चाहिए। लेकिन कल्लूरी को पिछले कई वर्षों से आखिर किन मजबूरियों में रमन सिंह की सरकार सह दे रही है। दूसरा जिसके खिलाफ एफआइआर दर्ज कर जेल में डाला जाना चाहिए उसे सरकार सरगुजा का डीआइजी बनाकर भेज दी है।’
जाहिर यह सब करके कल्लूरी अपने काले कारनामों का ही छुपाने की कोशिश कर रहे थे,जिसमें वह अबतक सफल भी हैं। क्योंकि जलाये गये आदिवासियों के गांवों से जो सूचनाएं आ रही हैं वह सच कितना प्रतिशत हैं कहना मुश्किल है। एक जानकारी के मुताबिक वहां 14 मार्च के बाद पांच से अधिक लोग भूख से मर चूके हैं और दो आदिवासी किसानों ने आत्महत्या कर ली है।
डीजीपी कहते हैं, माओवादी पत्रकारों का हौवा है |
दूसरा जिला प्रशासन की कल्लूरी के आगे क्या औकात है उसका अंदाजा यहां तक कि पत्रकारों को रोक रहे थे। हमारे साथ गये पत्रकारों को पीटा और उनके कैमरे तोड़ दिये। इससे जाहिर है कि रमन सिंह कल्लूरी के प्रति नरमदिल हैं और उनको बचाये रखने की लगातार जुगत में है।
मैं मांग करता हूं कि मुख्यमंत्री इस पूरे घटनाक्रम की नैतिक जिम्मेदारी लें और उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत न्यायधीश से जांच करायें। उससे पहले वह अपने हेलीकाप्टरों से जलाये और तबाह किये गये गांवों में राहत सामग्री पहुंचाये जाने की गारंटी भी करें। खबर आ रही है कि उन गांवों में 5लोग भूख से मर चुके हैं और दो और लोगों ने आत्महत्या कर ली है। यह सब कुछ ठीक से हो इसके लिए जरूरी है कि कल्लूरी जैसे अपराधी अधिकारी को तत्काल निलंबित कर मुख्यमंत्री दंडित करें।
फोटो- यशवंत रामटेके
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