दुराचार की तहकीकात करने के बाद जब बालिका का मेडिकल जांच कराया गया तो बर्थ सर्टीफिकेट में महज 13वर्ष की मीरा को बालिग करार दिया गया...
आशीष सागर
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पे्रस क्लब सभागार में 26मार्च को एक नये सामूहिक बलात्कार कांड का खुलासा हुआ है। यह खुलासा ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क व यूरोपीयन यूनियन की संयुक्त जनसुनवाई कार्यक्रम में मानवाधिकार के हनन् मामलों की बैठक में हुआ।
बांदा के शीलू बलात्कार कांड के बाद प्रदेश में दलितों और गरीबों की स्थिति का यह दूसरा नमूना है जहां उनके साथ अत्याचार होने के बाद सुनवाई नहीं होती। इस जनसुनवाई में अपने पिता पुन्ना के साथ आयी बलात्कार पीड़िता मीरा(13 वर्षीय) ने जब सबके सामने 11 दिनों तक हुए बलात्कार का उल्लेख करना शुरू किया तो रोंगटे खड़े हो गये।
मामला बुंदेलखंड के चिल्ला थाना के महेदु गांव का है। लगभग पांच महीने पहले 22 नवंबर को पीड़िता को उसके गांव महेदू से शाम 4.30 बजे उसके पड़ोसी और मुख्य आरोपी बिज्जू ने अपने 4 अन्य साथियों के साथ मिलकर मीरा को अगवा कर लिया था। अगवा कर मीरा को दरिंदे टैम्पों से मकरी गांव ले गये, जहां एक रात रुकने के बाद उसे बन्धक बनाकर भरूवां सुमेरपुर में दो रात हवस का शिकार बनाया गया।
फिर जनपद बांदा के खाईपार मुहल्ला में आरोपियों ने अपने ही परिचित के यहां पीड़िता से 8रात तक लगातार सामूहिक बलात्कार किया। मीरा के गायब होने के 9दिनांे बाद लिखी एफआईआर के बाद हरकत में आई पुलिस पीड़िता को बलात्कारियों के कब्जे से छुड़ा पायी।
दुराचार की तहकीकात करने के बाद जब बालिका का मेडिकल जांच कराया गया तो बर्थ सर्टीफिकेट में महज 13वर्ष की मीरा को बालिग करार दिया गया। शुक्र यह रहा कि मेडिकल रिपोर्ट में डॉक्टरों ने बलात्कार की पुष्टि की थी। अन्यथा कई बार प्रदेश में ऐसे मामले सामने आते रहे हैं जहां पीड़ित यहीं नही साबित कर पाती कि उसके साथ बलात्कार हुआ है।
बावजूद इसके बलात्कार की यह जघन्य वारदात बहुचर्चित शीलू काण्ड़ की तरह प्रदेश या देश में मुद्दा नहीं बन सकी है। शायद इसलिए कि इस बलात्कार से किसी नेता का कैरियर बनना या तबाह होना नहीं था। 11 दिनों की पुलिसिया आंख मिचैली और घटना के 9 दिनो बाद लिखी गई एफआईआर रिपोर्ट के बाद भी यह मामला किसी चैनल या अखबार की सुर्खियों में नहीं आ सका।
बहरहाल,बलात्कार पीड़िता मीरा जिस जन सुनवाई में अपने दुख का बयान कर आयी है उससे कुछ उम्मीद जरूर है। क्योंकि उसमें बतौर ज्यूरी सदस्य डॉ रूप रेखा वर्मा,पूर्व पुलिस महानिरिक्षक एसआर दारापुरी, रूहेलखंड विश्वविद्यालय के वीसी प्रदीप कुमार, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता केके रॉय और पीवीसीएचआर के डॉ लेलिन रघुवंशी मौजूद थे।
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