रूपम पाठक का मामला केवल बिहार, भाजपा, नीतीश कुमार या राजनीतिक ताकतों के मनमानेपन का प्रमाण नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा उदाहरण है जो हर छोटे-बडे व्यक्ति को यह सोचने पर विवश करता है कि नाइंसाफी से परेशान इंसान किसी भी सीमा तक जा सकता है...
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
सारे देश में लोगों के लिये यह खबर एक नया सन्देश लेकर आयी है कि बिहार विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनकर आये बाहुबली विधायक राजकिशोर केसरी का जनता से मेलमिलाप के दौरान रूपम पाठक ने सार्वजनिक रूप से चाकू घोंपकर बेरहमी से कत्ल कर दिया। मौके पर तैनात पुलिसवालों ने रूपम को घटनास्थल पर ही पकड लिया और पीट-पीटकर अधमरा कर दिया।
घटनास्थल पर उपस्थित अधिकांश लोगों और विशेषकर पुलिसवालों को इस बात की पूरी जानकारी थी कि विधायक पर हमला क्यों किया गया है और हमला करने वाली महिला कितनी मजबूर थी। बावजूद इसके आक्रमण करने वाली महिला अर्थात् रूपम पाठक द्वारा किये गए आक्रमण के समय सुरक्षा गार्ड उसको नियन्त्रित नहीं कर सके । उसकी बेरहमी से पिटाई की गयी, जिसका पुलिस को कोई अधिकार नहीं था। जहाँ तक मुझे जानकारी है रूपम की पिटाई करने वाले पुलिसवालों के विरुद्ध किसी प्रकार का कोई प्रकरण तक दर्ज नहीं किया गया है। जबकि रूपम के विरुद्ध हत्या का अभियोग दर्ज करने के साथ-साथ, रूपम पर आक्रमण करने वाले पुलिसवालों के विरुद्ध भी मामला दर्ज होना चाहिये था।
हिरासत में रूपम पाठक: विधायक को मारने का अफ़सोस नहीं |
विधायक राजकिशोर केसरी की हत्या के बाद यह बात सभी के सामने आ चुकी है कि इस घटना से पहले रूपम पाठक ने बाकायदा लिखित में फरियाद की थी कि राजकिशोर केसरी विधायक चुने जाने के पूर्व से ही यानी पिछले तीन वर्षों से उसका यौन-शोषण करते आ रहे थे और उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित भी कर रहे थे।
रूपम पाठक ने नीतीश प्रशासन से कानूनी संरक्षण प्रदान करने और दोषी विधायक के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करने की मांग भी की थी। लेकिन पुलिस प्रशासन और नीतीश सरकार ने रूपम पाठक को न्याय दिलाना तो दूर, किसी प्रकार की प्राथमिक कानूनी कार्यवाही करना तक जरूरी नहीं समझा। आखिर सत्ताधारी गठबन्धन के विधायक के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही कैसे की जा सकती थी?
स्वाभाविक रूप से रूपम पाठक द्वारा पुलिस के पास शिकायत करने के बाद विधायक राजकिशोर केसरी एवं उनकी चौकडी ने रूपम पाठक एवं उसके परिवार को तरह-तरह से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। सूत्र यह भी बताते हैं कि रूपम पाठक से राजकिशोर केसरी के लम्बे समय से सम्बन्ध थे, जिन्हें बाद में रूपम ने यौन शोषण का नाम दिया है।
हालांकि इन्हें रूपम ने अपनी नियति मानकर स्वीकार करना माना है, लेकिन पिछले कुछ समय से राजकिशोर केसरी ने उस की 17-18 वर्षीय बेटी पर कुदृष्टि डालनी शुरू कर दी थी, जो रूपम पाठक को मंजूर नहीं था। इसी कारण रूपम पाठक ने पहले पुलिस में गुहार की और जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो खुद ही विधायक एवं विधायक के आतंक का खेल खतम कर दिया।
रूपम पाठक ने जिस विधायक को मारा है, उस विधायक के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही न करने के लिये बिहार पुलिस के साथ-साथ नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली संयुक्त सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है। विशेषकर भाजपा इस कलंक को धो नहीं सकती, क्योंकि राजकिशोर केसरी को भाजपा ने यह जानते हुए भी टिकट दिया कि वह पूर्णिया जिले में आपराधिक छवि के व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे। इस बात की पुष्टि चुनाव लडने के लिये पेश किये गये स्वयं राज किशोर केसरी के शपथ-पत्र से ही होती है।
पवित्र चाल,चरित्र एवं चेहरे तथा भय, भूख एवं भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने का नारा देने वाली भाजपा का यह भी एक चेहरा है, जिसे बिहार के साथ-साथ पूरे देश को ठीक से पहचान लेना चाहिये। नीतीश कुमार को देश में सुशासन की शुरूआत करने वाला जननायक सिद्ध करने वालों को भी अपने गिरेबान में झांकना होगा। इससे उन्हें ज्ञात होना चाहिये कि बिहार के जमीनी हालात कितने पाक-साफ हैं।
जो सरकार एक महिला द्वारा दायर मामले में संज्ञान नहीं ले सकती, उससे किसी भी नयी शुरूआत की उम्मीद करना दिन में सपने देखने के सिवा कुछ भी नहीं है। रूपम पाठक का मामला केवल बिहार, भाजपा, नीतीश कुमार या राजनीतिक ताकतों के मनमानेपन का ही प्रमाण नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा उदाहरण है जो हर छोटे-बडे व्यक्ति को यह सोचने पर विवश करता है कि नाइंसाफी से परेशान इंसान किसी भी सीमा तक जा सकता है।
बलात्कार के आरोपी विधायक केसरी |
पुलिस, प्रशासन एवं लोकतान्त्रिक ताकतें आम व्यक्ति के प्रति असंवेदनशील होकर अपनी पदस्थिति का दुरूपयोग कर रही हैं और देश के संसाधनों का मनमाना उपयोग तथा दुरूपयोग कर रही हैं। सत्ता एवं ताकत के मद में चूर होकर आम व्यक्ति के अस्तित्व को ही नकार रही हैं।
ऐसे मदहोश लोगों को जगाने के लिये रूपम ने फांसी के फन्दे की परवाह नहीं करते हुए अन्याय एवं मनमानी के विरुद्ध एक आत्मघाती कदम उठाया है। हालांकि इसे न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन रूपम का यह कदम न्याय एवं कानून-व्यवस्था की विफलता का ही प्रमाण एवं परिणाम है।
जब कानून और न्याय व्यवस्था निरीह, शोषित एवं दमित लोगों के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं तो रूपम पाठक तथा फूलनदेवियों को अपने हाथों में हथियार उठाने पडते हैं। जब आम इंसान को हथियार उठाने पड़ते हैं तो उसे कानून अपराधी मानता है और सजा भी सुनाता है, लेकिन देश के कर्णधारों के लिये और विशेषकर जनप्रतिनिधियों तथा अफसरशाही के लिये यह मनमानी के विरुद्ध एक ऐसी शुरूआत है, जिससे सर्दी के कडकडाते मौसम में अनेक लोगोंका पसीना छूट रहा है।
अत: बेहतर होगा कि राजनेता, पुलिस एवं उच्च प्रशासनिक अधिकारी रूपम के मामले से सबक लें और लोगों को कानून के अनुसार तत्काल न्याय देने या दिलाने के लिये अपने संवैधानिक और कानूनी फर्ज का निर्वाह करें। अन्यथा हर गली-मोहल्ले में आगे भी अनेक रूपमों को पैदा होने से रोका नहीं जा सकेगा। समझने वालों के लिये रूपम एक चेतावनी है!
अच्छे सवाल उठाये हैं, इनपर सरकार और पार्टियों को ध्यान देना चाहिए.
ReplyDeleteजब आदमी के पास कोई उपाय नहीं बचता तो आत्मघाती कदम उठता है और रूपम पाठक ने वही किया. लेकिन क्या इसे जनता अगर तामील करने लगे तो कोई नेता बचेगा क्या.
ReplyDeletebahut hi badhiya likha hai
ReplyDeleteशायद रूपम पाठक की जगह मैं होता तो मैं भी यही करता । रूपम ने एकदम ठीक किया। ऐसे राजनीतिज्ञों की यही सज़ा है।
ReplyDeleteअपनी-अपनी मार्गदर्शक टिप्पणी देने के लिये सभी का हृदय से आभार। आशा है कि आगे भी आप सभी का मार्गदर्शन मिलता रहेगा।
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