डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस 6 दिसम्बर पर
राजाराम विद्यार्थी
भारत में बहुत से लोग पैदा हुए और मर गये। दुनिया में भी बहुत से लोग पैदा हुए और मर गये। कौन किसको याद करता है?किसको जीते जी याद किया जाता है किसको मरने के बाद?कितने लोगों को राश्ट्र याद करता है कितने लोगों को संसार?और कितने लोगों को दो-चार पीढ़ी के बाद उन्हीं का परिवार?लेकिन बाबा साहब डॉ0 भीमराव राम जी अम्बेडकर को सारा विष्व ही श्रेश्ठ विधि वेत्ता तथा संविधान निर्माता के रूप में याद करता है।
विश्व उन्हें एक दूसरे रूप में भी याद करता है। वह रूप है उनका मानव-मानव के बीच उत्पन्न गैर बराबरी, वह चाहे सामाजिक हो (यथा जाति, रंग तथा लिंग भेद के कारण उपजी असमानता हो),धर्म के नाम पर उपजी असमानता हो यो आर्थिक गैर बराबरी हो!राजनैतिक गैर बराबरी हो,इन सब के कारण अम्बेडकर की प्रासंगिकता कार्ल मार्क्स ,बुकर टी वाशिंगटन ,महात्मा गांधी आदि को काफी पीछे छोड़ मुखर होकर संसार के सम्मुख प्रकट होती है।
ऐसा इसलिए होता है कि अम्बेडकर के जमाने में उनकी पीढ़ी तथा उनकी जाति के लोगों के लिए शिक्षा नहीं थी, वह कक्षा कक्ष के बाहर बैठकर पढ़ते थे। नाई ने जातिगत कारणों से उनके बाल नहीं काटे तो उनकी बहन उनके बाल काटकर स्कूल भेजती थीं। बिल्कुल साफ सुथरे कपड़ों में नहला-धुला कर।
स्कूल के माली के नल को नहीं छू पाने के कारण वह प्यास को रोक लेते थे या पानी मांग कर पी लेते थे। और बाद में,महाड़ तालाब सत्याग्रह में वह जल पर सबके हक के लिए आन्दोलन चलाते हैं। षिक्षा धन से नहीं अपितु अपनी योग्यता से इतनी ग्रहण करते हैं कि भारत के विश्वविद्यालयों में उनके लायक उपाधियां नहीं होती हैं,जिन उपाधियों को वह इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी, कोलम्बिया से प्राप्त करके लाये। अपार षिक्षा ज्ञान चिन्तन,मनन के कारण तथा सफल नेतृत्व क्षमता के कारण महाड़ सत्याग्रह में 25 हजार दलित जन समुदाय के बीच ‘मनुस्मृति’ जो कि दलित तथा महिलाओं के जीवन के लिए अभिषाप है,उस मनुस्मृति की प्रतियों की होली जलाई।
शायद इसी दिन से मिली प्रेरणा के कारण आज साहित्य,समाज,राजनीति में दलित एवं महिला विमर्ष तथा हक अधिकारों की लड़ाई का सूत्रपात हुआ है। इसका दूसरा आधार अम्बेडकर के द्वारा निर्मित संविधान के अलावा सदन में प्रस्तुत किया गया हिन्दू कोड बिल, प्रथम तथा द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में रखे विचार भी हो सकते हैं।
किन्तु हिन्दू कोड बिल का सदन द्वारा बहिश्कार जिसका कारण हिन्दू धर्म का जाति तथा वर्ण व्यवस्था के प्रति हठधर्मिता पागलपन की हद तक रही जिसके परिणामस्वरूप बाबा साहब भीमराव राम जी अम्बेडकर को अपनी मृत्यु के मात्र तीन माह पूर्व हिन्दू धर्म का परित्याग कर (14 अक्टूबर 1956) तथा 6 दिसम्बर 1956 को उन्हें महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ।
तब से लेकर बाबा साहब अम्बेडकर का नाम कुछ गिने-चुने लोगों, कुछ गिनी-चुनी किताबों तक ही सीमित हो गया। भले ही बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर द्वारा गठित की गई राजनैतिक पार्टी भारतीय रिपब्लिकन पार्टी भी धीरे-धीरे अस्तांचल में पहुंच गई। जिन दलितों के हकों की बाबा साहब ने लड़ाई लड़ी तथा जिनको हक दिलाये भी,वे लोग गांधी,लोहिया,हेडगवार सरीखे नेताओं की यशोगाथा गाने लगे।
परन्तु सन् 1980के बाद बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम जी के अथक प्रयासों से बाबा साहब अम्बेडकर के अस्तित्व का पुनर्जन्म हुआ!उनकी जन्म शताब्दी वर्श 14अप्रैल 1991को उन्हें मरणोपरान्त ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया गया। तभी से 14 अप्रैल अम्बेडकर जयन्ती को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया। तभी से दलित 14 अप्रैल, 6 दिसम्बर, 14 अक्टूबर को पर्व के रूप में मनाने लगे हैं।
इनके देखा-देखी सवर्ण लोग भी अपने राजनैतिक बैनर तले (कांग्रेस,भाजपा आदि)भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने लगे हैं। किन्तु उस निष्ठा और विश्वास के साथ नहीं,जिस निष्ठा और विश्वास के साथ दलित जन समुदाय कृष्ण जन्माष्टमी ,रामनवमी तथा गाँधी जयन्ती जैसे पर्व मनाते हैं।
कहना गलत न होगा कि आज भी बहुसंख्यक दलित 14 अप्रैल तथा 6 दिसम्बर से अधिक महत्व 2 अक्टूबर और 30 जनवरी को देते हैं। उनके मन मानसिकता में आज भी अम्बेडकर तथा अम्बेडकर के समस्त जाति समुदाय (दलितों)से अधिक योग्यता,त्याग भावना,वचनबद्धता, कर्तव्यपरायणता गाँधी तथा उनके जाति धर्म के लोगों में अधिक है।
ऐसी सोच की उपज वाले व्यक्तियों की अपनी व्यक्तिगत अयोग्यताएं हैं या सवर्ण मानसिकता के अन्त के लिए शायद दोबारा एक अदद अम्बेडकर की जरूरत है जो ऐसे लोगों की मन मानसिकता से,हम अयोग्य कमजोर हैं, की भावना को निकाल बाहर कर सके।
'नाई ने जातिगत कारणों से उनके बाल नहीं काटे तो उनकी बहन उनके बाल काटकर स्कूल भेजती थीं। बिल्कुल साफ सुथरे कपड़ों में नहला-धुला कर।'
ReplyDelete- अब सवर्णों के साथ अब उन 'नाई' सरीखी पिछड़ी जातियों के बारे में खुलकर बात होनी चाहिए जो आंबेडकर के ज़माने से ही दलितों को लेकर सवर्ण अप्रोच रखते हैं. तब समझ में आएगा की नए सवर्णों में बड़ी संख्या पिछाड़ी जाति समूहों की है.
jo jati janaganana ka virodh kare hai, unhe ye lekh jarur padhana chahiye. good article
ReplyDeleteराजाराम विद्यार्थी बड़ी नामचीन लेखकों में नहीं हैं मगर बहुत अच्छा लिखा है. देश को वाकई ब्रह्माण वाद और दलित ब्रह्माण वाद से उबरने के लिए एक नए अब्बेदाकर की जरूरत है.
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