हिमांशु कुमार
केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री की ओर से चिदंबरम साहब ने घोषणा की है,' नक्सल प्रभावित जिलों में विकास को बढ़ा कर नक्सलवाद को समाप्त किया जायेगा.जिसके लिए नक्सल प्रभावित,प्रत्येक जिले को पहले साल में पच्चीस करोड़ रुपिया दिया जाएगा.'इन जिलों में दंतेवाड़ा भी शामिल है. अभी हम इस बात की बिलकुल चर्चा नहीं करेंगे की इसके साथ ही साथ उन्होंने छत्तीसगढ़ में कितने सौ करोड़ रुपये हथियार खरीदने के लिए भी बिना किसी शोर शराबे के चुपचाप दे दिए जबकि पच्चीस करोड़ का व्यापक प्रचार किया गया.
पच्चीस करोड़ की इस घोषणा को सुनते समय मेरे मन में दंतेवाडा घूमने लगा ओर इस पैसे का वहां कैसे इस्तेमाल किया जाएगा इस की तस्वीर मेरे सामने बनने लगी.दंतेवाडा इस समय पुलिस और सुरक्षा बलों की छावनी बना हुआ है.वहां क्या काम हो सकता है,कहाँ काम किया जायेगा ,कौन करेगा आदि बातें ये बंदूकधारी एजेंसियां तय करती हैं . अब जो गाँव नक्सल प्रभावित है, यानी जहां के लोग सलवा जुडूम कैम्पों में नहीं आये या जो पुलिस के पास जाकर नक्सलियों की मुखबिरी नहीं करते वो सब नक्सल गाँव मान लिए गए हैं.
इन गावों को ये सरकारी सुरक्षा बंदूकधारी एजेंसियां बदमाश गाँव कहती हैं और वहां कोई भी काम जो लोगों को राहत देने वाला हो वो नहीं होने देतीं, जैसे स्कूल, राशन दूकान,स्वास्थ्य सुविधाएं आदि. इसके पीछे वो ये तर्क भी देती हैं की ये राहत गाँव वालों के मार्फ़त नक्सलियों तक पहुँच जायेगी. तो अब पहले तो ये पच्चीस करोड़ की राशि नक्सल प्रभावित गावों में खर्च ही नहीं होगी और गैर नक्सल प्रभावित गावों में इस मद का प्रयोग दिखाया जायेगा. खर्च दिखाई जायेगी. यानी सरकार के मंसूबे पहले कदम पर ही ओंधे मुंह गिर जायेंगे.और नक्सलियों का इससे कोई नुकसान नहीं होगा, (नक्सलियों को इसके लिए सरकारी बलों का शुक्रगुजार होना चाहिए).
दूसरा ये नक्सल उन्मूलन का पैसा खर्च कौन करेगा?ये फैसला भी सुरक्षा बल ही करेंगी.और इन सुरक्षा बलों के कुछ अपने कुछ ख़ास लोग होते हैं. ये वो लोग होते हैं जिनका काम सलवा जुडूम में ना जुड़े गाँव वालों, सलवा जुडूम को पसंद ना करने वाले आदिवासी जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरुद्ध सुरक्षा बलों के कान भरते रहते हैं. कान भरने वाले यही चुगलखोर सरकार के मित्र माने जाते हैं.
ये लोग मुख्यतः गैर आदिवासी हैं और बस्तर में बाहर से आये हैं. ये लोग सलवा जुडूम के नेता हैं, कुछ कांग्रेस में जुड़े हैं, कुछ भाजपा में. इनमें से कई उद्योगपतियों के लिए दलाली का भी काम करते हैं और मुख्यतः ठेकेदारी करते हैं.यही लोग साइड बिजनेस के रूप मैं पत्रकारिता का भी काम करते हैं और सरकार का गुणगान करते हैं और जनता की तकलीफों से जुडी खबरों को छिपाने का काम करते हैं.
नक्सल उन्मूलन का ये पच्चीस करोड़ रुपिया इन्ही लोगों के मार्फ़त खर्च किया जाएगा और वास्तविकता में विकास के लिए तरसते लोग तरसते ही रह जायेंगे.ये जनता के दुश्मन लोग और पैसे वाले हो जायेंगे.लोगों का गुस्सा सरकार के प्रति और बढेगा,आदिवासी और अधिक नक्सलियों की तरफ चले जायेंगे.तो सोचा तो ये गया था की इन पच्चीस करोड़ से नक्सलवाद कम होगा, लेकिन इन पच्चीस करोड़ के खर्च का परिणाम उल्टा आएगा.
अन्य आदिवासी इलाकों की तरह दंतेवाड़ा में भी सरकारी भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाले गैर सरकारी संगठन योजनाबद्ध तरीके से समाप्त कर दिए गए हैं और जो भी सरकारी गड़बड़ियों के बारे मैं प्रश्न करता है उसे नक्सली कह कर जेलों में डाल दिया जाता है. कोपा कुंजाम,करतम जोगा और बहुत सारे जन नेता जेलों में बंद कर दिए गए हैं. तो इस पच्चीस करोड़ रुपयों की बंदरबांट पर अब बोलने वाला कोई नहीं बचा. सारा पैसा पुलिस, अधिकारी और सलवा जुडूम के नेता मिल कर डकार जायेंगे और नक्सलवाद पहले ही की तरह चलता रहेगा.
मुझे याद है दंतेवाड़ा में NEREGAके पैसे से पुलिस के आदेश पर सड़क किनारे का सैंकड़ों किलोमीटर जंगल साफ़ कर दिया गया था. लाखों सागौन के कीमती पेड़ काट डाले गए. उन पेड़ों की लकड़ी से सुरक्षा बलों के अधिकारियों ने फर्नीचर बनवा कर ट्रकों में कर अपने घर यु पी, राजस्थान, हरियाणा भिजवा दिया और कागजों में वृक्षारोपण का काम दिखा दिया गया.तो इस पच्चीस करोड़ से मुझे पूरा विश्वास है पुलिस के फायदे का काम ही किया जाएगा जनता के फायदे का तो बिलकुल नहीं. इसलिए श्रीमान चिदंबरम साहब जनता की आँखों मैं धूल मत झोंकिये और जनता को ये पता चलने दीजिये की जिन्हें वो अपना रक्षक मानती है,वही उसकी सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं.
अभी तो विकास का पैसा डकारने का एक नया तरीका दंतेवाडा में इजाद किया गया है.अब वहां विकास के काम क्रियान्वित करने की ज़िम्मेदारी पुलिस का एसपी खुद ही ले लेता है और आदिवासी विकास का पैसा एसपी को दे दिया जाता है.जो निश्चित न्यूनतम मजदूरी एक सौ के बजाय बीस रूपये रोज में सलवा जुडूम कैम्प में रहने वाले आदिवासियों से काम करवा कर देता है.
उदाहरण के लिए बीजापुर से गंगलूर की सीसी रोड बनाने की एजेंसी बीजापुर का एसपी था.ये वही लायक एसपी थे जिनके संरक्षण में 12महूआ बीनते हुए लोगों को कुल्हाड़ी से काट दिया गया था.संतसपुर-पोंजेर कांड के नाम से जो नरसंहार मशहूर हुआ था,पहले तो इन एसपी साहब ने सरकार की पालतू मीडिया के मार्फ़त प्रचार किया था की पुलिस ने 12नक्सलियों को मार दिया है मगर लाशें नक्सली उठा कर ले गए.
हमारी संस्था के कार्यकर्ताओं ने जाकर जाँच की और एक मित्र पत्रकार को भी ले गए जिसके वीडियो में सलवा जुडूम से जुड़ा सरपंच जो इस हत्याकांड में शामिल था,वह सच बयान करते हुए कैमरे पर दिख रहा है.बाद में जब और ज्यादा शोर हुआ तो कांग्रेस ने अपना जाँच दल वहां भेजा था,अंत में राज्य मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर इन्ही एसपी साहब को गाँव में जाकर वही लाशें खोदनी पडीं जिसे वो नक्सलियों द्वारा ले जाया गया बता चुके थे. उस समय गाँव वालों ने साफ़ साफ़ बयान दिया था कि उनके रिश्तेदारों को पुलिस ने मारा है.जबकि इन्ही एसपी साहब ने एफ़आईआर में लिख दिया था कि गाँव वालों का कहना है कि अज्ञात वर्दीधारियों द्वारा हमारे रिश्तेदारों की हत्या की गयी है.
वो मामला आज तक दबा ही हुआ है,और पुरस्कार स्वरुप इन एसपी साहब को राज्य मानवाधिकार आयोग का सचिव बना दिया गया था.इन्ही एसपी साहब ने सलवा जुडूम के एक नेता मधुकर राव को आदिवासी मानवाधिकार कार्यकर्ता कोपा कुंजाम को मारने की सुपारी दी थी और कोपा ने इस पर इन्ही एसपी साहब के खिलाफ एक एफआईआर भी दर्ज कराई थी और जिसके परिणाम स्वरुप कोपा जेल में है. ऐसे राज्य में विकास का पचीस करोड़ किसके हाथों में जायेगा, यह जरूरतमंद पहले से ही बखूबी जानते हैं हैं.
दंतेवाडा स्थित वनवासी चेतना आश्रम के प्रमुख और सामाजिक कार्यकर्त्ता हिमांशु कुमार का संघर्ष,बदलाव और सुधार की गुंजाईश चाहने वालों के लिए एक मिसाल है.उनसे vcadantewada@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
जनज्वार पर छपने वाले आपके लेख मैं पढता रहा हूँ और आपका लिखा अच्छा रहता है. लेकिन इस बार आपने नाम लिखने से अपने को क्यों बचा लिया. क्या पाठकों को हक़ नहीं कि वह जाने वह कौन सा अधिकारी है जो दो-दो फर्जी हत्याकांडों में शामिल रहता है और उसे मानवाधिकार आयोग का सचिव बना दिया जाता है.
ReplyDeleteयुद्ध क्षेत्रों में में इससे अधिक की उम्मीद बेमानी है, सर्काr अपना बचाव करेगी और माओवादी अपना.
ReplyDeleteवाकई जो हालात बस्तर में बने हुए हैं उससे कतई उम्मीद नहीं कि जा सकती कि माओवादी वहां और मजबूत नहीं होंगे. सरकार हर आवाज को बंद कर बस भ्रष्टाचार को जुबान दे रही है, देश का बेडागर्क हो के रहेगा.
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