जनता ने महसूस किया वह एक ऐतिहासिक भूल थी तथापि फैसला आया कि वह धार्मिक उन्माद फैलाने वालों को संरक्षण प्रदान नहीं करेगी.जनता के इस निर्णय से उन्माद फैलाने वालों में बेचैनी फैल गयी और वे हुआं- हुआं करने लगे...
अजय प्रकाश
घटना प्राचीन है वर्णन अर्वाचीन। बहुत समय पहले की बात है,उस समय दक्षिण एशिया में एक धर्मदेश था। उस धर्म देश में धर्मांध लोग अपने-अपने धर्म के प्रति अंधभक्ति रखते। धर्मांध जन सामान्यतया एक-दूसरे के प्रति सहिष्णुता का परिचय देते। कभी-कभार मच्छरदानी के अंदर से या कमरे के ‘बिलोक’ से अपने धर्म को श्रेष्ठ साबित करने के चक्कर में दो-दो हाथ कर लेते। बाद में वे अफसोस भी करते। इस तरह वे अपने देश की दो महान नदियों के नाम पर बनी संस्कøति को समृद्ध करते।
प्रदेश में ज्ञानवान, ओजवान तथा बुद्धिमान लोगों की भी एक प्रजाति बसती, जो अनुदान, महादान या इसी तरह का कोई और दान लेकर देशभर में सहिष्णुता, सौहार्द बनाये रखने के लिए ‘कलमिया कसरत’ करते। जब कभी उन्हें यह लगता कि जनता ने उनको विलुप्त प्राय मान लिया है तो वे दो चार दिन जिंदाबाद-मुर्दाबाद की मौसमी कसरत भी कर लिया करते। इस प्रकार धर्मांध प्रदेश की जनता सुख-चैन से रहा करती।
परंतु एक अप्रत्याशित घटना ने धर्मांध प्रदेश समेत पूरे ‘धर्मदेश’ का ढांचा बदल कर रख दिया।
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कुछ साल पहले हुई एक घटना की सुनवायी चल रही थी। मामला एक धार्मिक संप्रदाय द्वारा दूसरे धार्मिक संप्रदाय की धर्मस्थली को ढहाये जाने का था। वैसे इस घटना के बाद धर्मांध जनता ने महसूस किया कि यह एक ऐतिहासिक भूल थी तथापि जनता ने यह फैसला किया कि वह धार्मिक उन्माद फैलाने वालों को संरक्षण प्रदान नहीं करेगी,जिसकी वजह से धार्मिक उन्माद फैलाने वालों में बेचैनी फैल गयी और वे हुआं-हुआं करने लगे.
जनता को उनकी प्रत्येक घोषणाओं,वायदों में धार्मिक उन्माद की ही बू आती। वह जहाँ भी जाते लोग अपनी जमात में लोग उन्हें शामिल नहीं करते.अतः इस संकट से उबरने के लिए धर्मांवादियों ने चिंतन बैठक की। जिसमें यह फरमान जारी किया गया कि ‘जनता का संरक्षण प्राप्त करने के लिए जनता से सच्चाई बयान करो।’
अतः सुनवायी के दौरान उन्मादी धर्मोन्मादी प्रमुख ने कहा-‘हे धर्मदेश की धर्मांध जनता!हम तुच्छ इंसानों में यह शक्ति कहां कि जो इतना बड़ा फसाद करायें। धर्म देश के मुक्त होने के पहले या बाद में जितने भी बंटवारे,दंगे, कत्लेआम हुए उसके हम साधन मात्र थे, साध्य होने की कूवत हममें कहां है? वह सब तो उस परमपिता परवदिगार---की बदौलत हो पाया। हे महान जनता,इसके साक्ष्य इतिहास से लेकर वर्तमान तक में भरे पड़े हैं। पिछले वर्षों में हमारे द्वारा कराये गये कत्लेआम की प्रेरणा भी वहीं से प्राप्त हुई थी।
अतः मैं महामहिम उच्चतम न्यायालय में पूर्ण आस्था रखते हुए गीता की कसम खाकर कहता हूं कि ‘मस्जिद हमने नहीं उसी ने गिरायी 'एक्ट आफ गॉड।’
धर्मोन्मादी की उक्त बातें सुनकर जनता की ओर से तत्काल एक सभा बुलायी गयी। जिसमें यह प्रस्ताव पारित हुआ कि ‘प्रदेश में ही नहीं, देश में ही नहीं दुनिया में चैन की जिंदगी बसर करने वाली जनता को बेचैन करने वाले मूल तत्व का पता चल गया है। अतः हम प्रदेश वासियों का नैतिक कर्तव्य है,चाहे वह स्त्री हो या पुरुष,बच्चा हो कि बूढ़ा, ‘उसको’ ढूंढ़ने में मदद करे।
प्रदेश भर की जनता एकजुट होकर उसकी तलाश में जुट गयी। बच्चों,महिलाओं और पुरुषों की अलग-अलग टीमें बनायी गयीं। महिलाओं-बच्चों ने अपने घर में बने आस्थागृहों को तोड़ा, घर में लगे कैलेण्डरों, फोटो आदि को फांड़-फूड़, कूंच-कांचकर देखा कहीं उस आस्तीन के सांप का पता नहीं चला। बड़ों ने बड़े-बड़े स्थलों को ढहाया, नेव तक खोद डाले गये। इस प्रकार धर्मांध प्रदेश में ही नहीं पूरे ‘धर्म -देश’ में धर्म विशेष के धार्मिक स्थलों का सफाया कर दिया गया।
इस महाभियान में पूरे ‘धर्म देश’ की जनता शामिल हो गयी थी। परंतु पता न चल पाने के कारण लोग मायूस थे।
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चूंकि इन स्थलों में वैसे तामझाम नहीं थे इसलिए जनता ने इनका काम कम समय में ही तमाम कर दिया।
इन सबके बाद जो हुआ वह कहीं अधिक दिलचस्प था। इन स्थलों के ध्वसत होने के बाद धर्मांध प्रदेश के लोगों ने अपने प्रदेश का नाम बदल देने का फैसला किया तथा ‘जिम्मेदार’ संस्था को आवेदन लिखा। इसके बारे में लोगों का कहना था कि वे अब हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, से ‘इंसान’ हो गये हैं। अब वे नये तरह के कायदे-कानून बनायेंगे।
स्त्रियां अब सड़कों पर चलते समय किसी तरह का चिरकुट नही ओढ़ा करतीं। बच्चे आपस में मिल-जुलकर खेला-पढ़ा करते। लोग संगीत, साहित्य, कला, खेल में रुचि लेने लगे। और इस प्रकार ‘भगवान’ धीरे-धीरे इतिहास की किताबों में दर्ज हो गया।
लेकिन अचानक एक सुबह भारी भीड़ प्रदेश की तरफ बढ़ती हुई दिखी। प्रदेश की जनता ने उनको पहचान लिया।
लोग कहने लगे, ‘वो देखो-इनमें तो दाढ़ी वाले, चुरकी वाले, पगड़ी वाले सभी एक साथ हैं---ये तो सभी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं।’
ये तो नारे भी लगा रहे हैं----तख्ती पर कुछ---‘हमारे धार्मिक अड्डों को बसाओ,हम ईश्वर के प्रतिनिधि हैं।’
मगर ये अजायबघर से बाहर कैसे आये?इनको तो बच्चों के मनोरंजन के लिये रखा गया था-बाशिंदे सोचने लगे।
फिर लोगों ने सोचा जब ये आ ही गये हैं तो इनको सुधारगृहों में डाल दिया जाय तथा श्रम करके उपार्जन करने की मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा दी जाय। लोगों के इस फैसले के बाद से खबर लिखे जाने तक सबकुछ ठीक-ठाक होने की सूचना है और सरकार है कि फिर अमन बहाली नहीं कर पा रही है.
बहुत सुन्दर...पढ़कर मजा आ गया. काश ऐसा हो पाता. व्यंग्य अच्छा है भाई आपको बधाई.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है सर! बहुत जरूरी भी है इस वक्त...
ReplyDelete'फिर लोगों ने सोचा जब ये आ ही गये हैं तो इनको सुधारगृहों में डाल दिया जाय तथा श्रम करके उपार्जन करने की मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा दी जाय।' - इनके साथ यही किया जाना चाहिए. मजेदार व्यंग्य....थोडा और बड़ा होना चाहिए था.
ReplyDeleteaisa sochane vale ram ke virodhi hain. ram ke log unhe nahin chodenge.ajay prakash ke lekhan men musalmanon ke agent hone kee gandh aati hai.jai shree ram
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