Aug 20, 2010

वे अनन्य हैं, पुरुषोत्तम हैं और आलोचनाओं से परे हैं


'सहारा' अख़बार ने कात्यायनी के लिए जब मादा शब्द का इस्तेमाल किया था तब आपने इतना बड़ा आन्दोलन चला दिया कि जेल हुई,लाठियां चली,खून बहा लेकिन नोयडा में एक महिला साथी  का प्रयोग  आपने जिस तरह किया उससे क्या आपका परिवारवाद और स्त्री विरोधी चरित्र का पता नहीं चलता.

अरुण  यादव 

मेरे बेबाक -बेलौस साथियों,
आपने बड़ी सफाई से अपने को क्रन्तिकारी साबित करने का प्रयास किया है.साथ ही मेरे हिजड़े वाले साहस से मेरी नैतिक घटियाई के बारे में जानने की जुगुप्सा भी आप लोगों में काफी बलवती हो उठी है.ऐसे मसाले से राजनीति को कमान में रखने की शशिप्रकाश की पुरानी लाइन है,इसका सबसे बड़ा उदाहरण सम्मेलन था.जिसमें शशि प्रकाश ने अपनी एक महिला साथी से अपने ही राजनीतिक गुरु की नैतिकता पर आरोप लगवा दिया था.

ये चरित्र-चित्रण आपको मुबारक और इसके बिना यदि गैस बाहर न निकल पा रही हो तो राजेन्द्र यादव की तरह अपनी पत्रिकाओं में नैतिक पतन पर एक कालम चला दें.उसमें हम अपना जवाब जरुर भेज देंगे.संगठन से बाहर होने वाले सभी पर चूँकि आपका ये आरोप है तो 'हिजड़ों'और 'मऊगों'के नैतिक पतन पर आपको काफी सामग्री मिल जाएगी.शशिप्रकाश कात्यायनी के साथ आप लोग अपने नैतिक पतन पर लिखेंगे तो मर्दानों और गैर मऊगों के नैतिक पतन के बारे में भी लोग समझ पाएंगे.

आइये! थोड़ी उस इतिहास की भी चर्चा कर ली जाय, जिसे आपने छोड़ दिया है :-

गोरखपुर,करावल नगर और लुधियाना के आन्दोलन के व्यापक प्रचार-प्रसार में अपने ही बीस सालों के आन्दोलन की नाकामी को आप लोग जिस सफाई से छुपा ले गये हैं उस भोली अदा पे मर जाने को जी चाहता है.थोड़ी बानगी देखते हैं -बिगुल जून 2005 में इस्टर खटीमा आन्दोलन पर आपने लिखा है -इस आन्दोलन में दोनों सहयोगी संगठनों की अलग अलग लाइनों की टकराहट खुल कर सामने आई.

एक थी क्रन्तिकारी सर्वहारा लाइन जिसकी नुमाइंदगी  बिगुल मजदूर दस्ता कर रहा था और दूसरी थी आपके  अनुसार  निम्न बुर्जुआ (मध्यवर्गीय )क्रांतिकारिता की लाइन जिसकी नुमाइंदगी क्रन्तिकारी लोकाधिकार संगठन कर रहा था .कदम कदम पर दोनों लाइने टकरा रही थी .........समूचे आन्दोलन के दौरान क्रालोस ने जो अपनी लाइन चलाई ...अर्थवाद और अराजकतावादी संघधिपत्यवादी की लाइन है.

यह वही आन्दोलन है जिसमें मुकुल शशि प्रकाश के साथ थे और इस आन्दोलन की अगुआई कर रहे थे,लेकिन जब मुकुल इनके संगठन से बाहर निकल गये तब इसी आन्दोलन पर शशि प्रकाश के सदविचार सुन लीजिये जिसे उन्होंने बिगुल के अगस्त-सितम्बर 2008में लिखा था -''2005में जब खटीमा में इस्टर कारखाने के मजदूरों का आन्दोलन चल रहा था तो गतिरोध तोड़कर नई दिशा देने के लिए का.अरविन्द वहां गये ....मुकुल की लम्बे समय से जारी घिसी-पिटी अर्थवादी वादी ट्रेड यूनियनवादी लाइन के विरुद्ध संघर्ष को तीखा बनाकर निर्णायक मुकाम पर पहुंचा दिया.'' इस  आन्दोलन में  140 महिला पुरुष साथियों में एक महिला सहित चार साथी बिगुल के थे. जेल में आठ दिनों तक अनशन चला था लेकिन इस दौरान अगर क्रालोस के साथी जेल में चीजे नहीं पहुचाते तो बिगुल के साथी गमछा और साबुन भी नहीं पाते क्योकि शशि प्रकाश केवल धुल धुसरती आलोचना कर सकते थे मदद नहीं ..

'सहारा' अख़बार ने कात्यायनी के लिए जब मादा शब्द का इस्तेमाल किया था तब आपने इतना बड़ा आन्दोलन चला दिया कि जेल हुई,लाठियां चली,खून बहा लेकिन नोयडा में समीक्षा का प्रयोग अपने बचाव में आपने जिस तरह किया उससे क्या आपका परिवारवाद और स्त्री विरोधी चरित्र का पता नहीं चलता.का.अरविन्द की शादी के बाद लगभग पन्द्रह साल तक संगठन में प्रेम हत्यायों का शानदार इतिहास भी आपके नाम दर्ज है.हरियाणा के एक साथी की शादी हुई भी तो आपने उनका बच्चा नहीं आने दिया इस बीच अपना पोता आप जरुर खिलाने लगे. महाशय दोहरे राजनीतिक और सांस्कृतिक आचरण के ऐसे कई उदाहरण हैं जिनसे आपकी नीयत और चरित्र दोनों को समझा जा सकता है.

अब आइये,थोडा और पीछे चलते हैं.इंडियन रेलवे टेक्नीकल एंड आर्टीजन इम्प्लाइज एशोसिएसन और 'बगावत रंग लाएगी' नाम और नारा आप भूले नहीं होंगे. इसी समय आपने लम्बी-चौड़ी घोषणाएं की थी और 7 दिसम्बर को लखनऊ में रेल मजदूर अधिकार मोर्चा का गठन भी कर दिया गया था.इसकी असफलता का ठीकरा भी संगठनकर्ताओं के सर पर डालकर शशि प्रकाश साफ बचकर निकल गये.जनता को आपका क्या जवाब है जरुर बताइयेगा.

अब नोएडा आन्दोलन की भी बात कर ली जाये जहाँ झुग्गी से फैक्ट्री घेरने की पूरी तैयारी के साथ प्रकाश उतरे थे.वहाँ के कामों के मुख्य जिम्मेदार का.अरविन्द सिंह थे,लेकिन याद कीजिये सम्मलेन जिसमें शशि प्रकाश ने अपने ही मुखार बिन्दुओं में कहा था कि अरविन्द ने नोएडा के काम को दलदल में फंसा दिया था.

अरविन्द सिंह: मारे गए
इसी सम्मलेन में सुखविंदर ने अरविन्द की आलोचना करते हुए कहा था कि अरविन्द सिंह पुनर्जागरण प्रबोधन पर चार लाइन से ज्यादा नहीं बोल सकते और उनके कार्यक्षेत्र में जाते हैं तो सोते रहते हैं.इस आलोचना के बाद उन्हें उत्तरांचल के आन्दोलन में भेज दिया गया.जिसके बारे में आप ऊपर जान चुके हैं और फिर सीधे उन्हें गोरखपुर भेज दिया गया.वे अपने कपडे तक दिल्ली से नहीं ले सके थे. गोरखपुर में भी वे काफी परेशानी से गुजर रहे थे.ये बात मै खुद जानता हूँ,क्योंकि मैं खुद उनके साथ वहाँ था और इस बात की पुष्टि बेबाक बेलौस के साथियों ने मेरे निकलने के बाद मुझसे और मुकुल से खुद की थी.

उसी समय शशि प्रकाश,कात्यायनी और मीनाक्षी को जिन जिन गालियों से इन लोगों ने नवाजा था वह भी जान लीजियेगा,आपके साथ ही हैं.इस हालातों को जानने के बाद जय सिंह के 'मऊगा'वाली परिभाषा पर पाठक खुद विचार कर लें.मुझे कुछ नहीं कहना.हाँ विवेक उसी समय गोरखपुर में अरविन्द से मिले थे और उसी आधार पर उन्होंने अरविन्द की परेशानियों को शेयर किया था.ये फिर भी पुनर्जागरण प्रबोधन वाली लाइन के प्रैक्टिस का सवाल था,लेकिन असली सवाल इससे आगे नोएडा के काम पर है.अरविन्द को वहाँ से हटाने के वाद वहाँ के कामों की जिम्मेदारी खुद शशि प्रकाश ने अपने एक कुशल चंदाजुटाऊ भक्त के साथ ली थी.क्या हुआ उस काम का ?उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?ये न तो सवाल बनेगा और न ही इसकी जिम्मेदारी शशि प्रकाश लेंगे.न किसी कार्यकर्ता की हिम्मत है कि उनसे पूछ सकता है. वे अनन्य हैं, पुरुषोत्तम हैं, आलोचनाओं  से परे है.

अनुराग ट्रस्ट के नाम पर गोरखपुर में मोहल्ला में आधार बनाने और नई पीढ़ी को क्रन्तिकारी बनाने की थीसिस का क्या हुआ?अपने साथियों के बच्चों को भी आप नहीं रोक पाए और वे उस घुटन से अपने अपने घर चले गये. उन पर आप किस नैतिक पतन का आरोप तय करेंगे,ये आप खुद सोच लीजियेगा.मोहल्लाकरण के नाम पर कात्यायनी की पैतृक दाई ही आपको जानती है जिसके साथ आप उस टीन वाले एक कमरे का मुकदमा लड़ रहें है. शेष मुहल्ले के लिए संस्कृति कुटीर रहस्य ही है.

अब आइये 'हरी अनंत हरी कथा अनंता'वाले अभियान लोक स्वराज्य पर.इस अभियान का मुख्य मकसद लोक स्वराज्य पंचायतों का गठन और उनके माध्यम से क्रांतिकारी काम को आगे बढ़ाना था, लेकिन पिछले लगभग पंद्रह सालों में एक भी लोक स्वराज्य पंचायत नहीं बनी. मगर यह अभियान लगातार जारी है. पैसे आने लगातार जारी हैं. कहाँ जाते हैं, किसी को नहीं मालूम ...ठीक यही हाल पिछले तीन साल चले स्मृति संकल्प यात्रा का भी है .प्रचार-प्रसार के साथ मूल रूप में यह पैसे जुटाने और नए चंदा जुटाने वाले भक्तों की तलाश का ही अभियान था ...

बेबाक बेलौस के साथियों का पेट फूल रहा होगा कि उनके आरोपों का जवाब मैंने अभी तक नहीं दिया.आइये! आपके राजनीतिक आरोपों को थोडा समझने का प्रयास कर लिया जाये. आप लिखते हैं :- अपने को 'दिशा' का पूर्व संयोजक बताने वाले अरुण कुमार यादव को कुछ समय के लिए वि. वि. इकाई का संयोजक बनाया गया था जिसमें मैं महीनो छुट्टी पर था.

पर माफ़ कीजियेगा मुझे याद नहीं कि मुझे ये पद कब दिया था और किसने दिया था.इस पर हमें सिर्फ ये कहना है कि शशि प्रकाश के बेटे अभिनव सिन्हा को 'दिशा'का राष्ट्रीय संयोजक किसने बनाया,किस चुनावी प्रक्रिया से उन्होंने ये पद धारण किया और छोटे में कहें तो आपके सभी जन संगठनो का चुनाव कैसे होता है, कहाँ होता है, कौन कर्ता हैं, जरुर बता दे ....

दूसरा आरोप कि मुझे किन नैतिक आरोपों के तहत निकाला गया था, तो मेरे 'हिजड़े' साहस से ये भी जान लें.

1 . आठ साल के राजनीतिक जीवन में मैंने कुछ नहीं किया.
2 . मैंने संगठन विरोधी बयान दिया था.
3 . मेरा सांस्कृतिक स्तर नीचा है

यही तीन आरोप लगाकर मुझे 6 महीने के लिए निकाला गया था. शर्त थी अगर इस दौरान मै पतितों, भगोड़ों और गद्दारों से नहीं मिला और स्वदेश की दुकान पर नहीं गया तो लिखित आत्मालोचना के साथ मेरी वापसी हो सकती है ये आरोप क्यों लगे थे, आप लोगों सहित पाठक भी समझदार हैं ./..

बदलाव के औजार बनने थे,   धंधे बन गए.
अपने आठ सालों में मैंने चंदा माँगा था.ट्रेन में डेली चलने वाले यात्रियों की गालियां सुनी थी. आप लोगों को जोड़ने के काम में भूमिका निभाई थी और सारा पैसा शशि प्रकाश के ब्लैकहोल में जमा कर दिया था . जहाँ तक विरोधी बयान की बात है उसका एकमात्र उदाहरण ये था कि उत्तराखंड, हरियाणा की पूरी इकाई और ढेरों साथियों के बाहर होने के कारण मैंने कहा था कि एक एक विकेट गिर रहें है.इन्कलाब कैसे होगा और तीसरा सवाल जिसके साथ आपकी जुगुप्सा जुड़ी है उसका मैंने उचित मंच आपको बता दिया है. शुरू करें जबाब मिल जायेगा. वैसे आपके नेता की लाइन है जो भी बाहर जाये उस पर चरित्र हनन और गबन का आरोप जरुर लगा देना चाहिए और इसका पालन अनवरत जारी है.इसके नया उदाहरण हैं गोरखपुर इकाई से उदयभान और दिल्ली से राकेश.राकेश चूँकि शशि के सोने का अंडा देने वाली मुर्गी हैं इसलिए उन्हें हलाल करने के बजाय आजकल अज्ञातवास में रखा गया है.
पूरे देश में चलने वाले राजनीतिक संघर्षो में आप कहा खड़े हैं. इसकी बानगी तो आपको डॉ. विवेक ने अपने लेख में दे दी है. लेकिन आप लोग छाती पीट रहें है कि हम राजनितिक बहस नहीं कर रहे बल्कि कुत्सा प्रचार कर रहे हैं. वैसे आप लोगों को याद होगा कि आपके यहाँ किसी साथी की गैस भी निकल जाये उस पर मीटिंग और बात शुरू हो जाती है.वह भी शशि प्रकाश राजनीतिक ही मानते हैं.मीनाक्षी जी हमारे और आपकी पोस्टों से जनता को फैसला करने दें, क्या राजनीतिक है क्या गाली है. याद आ गया. एक उदाहरण भी सुन लीजिये आपको गोरखपुर में वकीलों के बीच काम करने के लिए भेजा गया था. आप वहां से यह कहते हुए भाग आई थी कि वकील बदबूदार गैस छोड़ते हैं...आप जिन साथियों को इतनी गालिया दे रही हैं उन्होंने आपका जितना सम्मान किया,वह अपने आपमें एक मिसाल है यह सिर्फ एक स्त्री होने के नाते आपको मिला था. आप उनकी राजनीतिक गुरु नहीं थी.
आप आर्थिक सहयोग सिर्फ पॉँच स्रोतों से जुटाने पर इतना घमंड दिखा रही हैं. उसके अंदर की बानगी भी लोगों को बता दीजिये.आप अपने पार्टी लेबी और नाटक नौटंकी द्वारा प्रचार के जरिये निकाल लिए गये रुपयों का अनुपात निकाल लें. आपकी राजनीतिक लाइन का असली रूप निकल जायेगा. आपके यहाँ जनता की जेब से रूपया निकालने की कला सिखाई जाती है. इसकी सबसे मजेदार मशक्कत ट्रेनों में कोई भी देख सकता है .
अब आप लोगों को साफ हो जाना चाहिए कि आपके हजारों रहस्यों को ठीक से जान लेने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँच चुके हैं कि आप लोग क़ानूनी धंधा फ़ैलाने वाले जनता और आन्दोलन के अपराधी लोग हैं.इसलिए सांगठनिक बहस की सीमा लगाने का भी कोई कारण नहीं है.तात्कालिक प्रदर्शनों पर इतराकर अतीत पर गोली मत दागिए. बीस सालों के इतिहास में एक कार्यकता सम्मलेन है, वो भी आनन फानन में इसलिए कर लिया गया था कि विरोधी आप पर सवाल खड़ा करने लगे थे.इस बहस का एक ही दुखद परिणाम है कि जवाब कार्यकर्ताओ से दिलाकर आप उनसे कुछ ज्यादा समय तक चंदा जुटवा सकेंगे भरोसा रखिये,अभी तमाम रहस्य खुलने बाकी हैं. जरुरत पड़ने पर वो भी खोले जायेंगे.डरिए मत,हम इंसानी गरिमा की सीमा हिजड़े वाले साहस के साथ बनाये रखेंगे.


8 comments:

  1. आका जबाब बेबाक और बेलौस पर स्वयं कात्यायनी ने लिख दिया अब ये मत पूछियेगा भत्ता कब और किसको दिया गया था दुर्ग द्वार पर दस्तक किसने लिखा यहाँ आप लोग है की ग्रुप मानाने पर ही सवाल खड़ा कर रहें और वे है लेनिन स्टालिन और क्रुप्स्काया से नीचे बात करना अपनी हेठी मानते है शालिनी अपने पिता को चाहे जीतनी गाली दे वो क्रन्तिकारी शान है आप कुछ कह देंगे दो तो क़ानूनी केश दर्ज हो जायेगा मिनाक्षी साहित्यकारों को कोई गाली दे उनका अधिकार है कात्यायनी को कोई कुछ कह दे तो आन्दोलन पर हमला जबाब पढ़कर ही दोहरा चरित्र बेनकाब हो गया है ........

    ReplyDelete
  2. सहारा की घटना के बारे में यह और बताता चलूं कि उसमें कात्यायनी या शशिप्रकाश को एक खरोंच भी नहीं आई थी।

    ReplyDelete
  3. Praveen kumar, delhiFriday, August 20, 2010

    yah baodata meri taraf se bhi-

    जनज्वार को लख -लख बधाइयाँ- थोड़े दिन पहले आजाद और पत्रकार हेमचंद पाण्डेय की श्रन्धांजलि सभा में सत्यम आये थे. पहुंचे भी देर १० मिनट रूककर चले गए. जाते वक्त मैंने पूछने पर कि इतनी जल्दी कहाँ तो कह गए बहूत जरूरी काम है, अब पता चला कि यह बेसब्री अनुवाद की थी, सोचने पर नाम याद आ जायेगा कामरेड.


    Satyam Varma


    Freelance Translator, English-Hindi
    Native language: Hindi
    I am working as a professional translator since 1991. I have translated more than 10 million words in areas as diverse as Literature, IT, Medical, Legal Documents, Patents, Business and Journalism.


    Working with major national and international agencies and direct clients including The World Bank, Unicef, Mapi Research Institute, Indian Institute of Technology, Lionbridge, Transperfect, Crimson Languages, The Big Word, Sajan, Aquent, Acclaro, Aset International Services, Comms_multilingual, CompuMark, Lexxicorp, International Language Bank, Edge Translations, Ultra Translate, ATT, Lyric Labs, Crystal Hues, Cosmic Global and several others.

    Creatively translated and edited numerous posters, brochures, booklets, advertisements and other publicity materials for several organizations and ad-agencies.

    Co-Editor of Translation Project of World Classics brought out by premier Hindi publisher Rajkamal Prakashan Pvt. Ltd., New Delhi.
    Translated books:

    Some Completed Projects

    Medical
    1. Patient interviews, consent documents, vignettes for trial of a schizophrenia drug. (145,000 words.)
    2. Rating scales, instructions and worksheets for Department of Psychiatry & Behavioral Sciences, University of Washington. (6,700 words.)
    3. Patient information sheet and informed consent form for clinical trial of a lung cancer drug. (7,200 words.)
    4. Operations manual for a Kala-Azar treatment access study. (12,000 words.)
    5. Linguistic validation (2 forward translations + 1 back-translation + cognitive debriefing) of questionnaires and instructions regarding epilepsy for a French research institute. (3,400 words.)

    Finance and Marketing
    1. Annual Report of the World Bank, 2005-06. (26,500 words.)
    2. Financial Reports of Oil and Natural Gas Corporation, India, 2004-06. (55,000 words.)
    3. Marketing manual for sales agents of an insurance company. (17,500 words.)
    4. Publicity materials of a direct sales company. (18,000 words.)
    5. Textbook on political economy. (2,10,000 words.)



    Training Manuals
    1. Manual for employees of a property management company. (20,000 words.)
    2. Manual for Incidence and Injury Free Orientation of Contractors. (6400 words.)
    3. Diamond Best Practice Principles Assurance Programme Manual & Workbook 26,400 words.)
    4. Manual for driving training institute, USA. (19,000 words.)
    5. Manual for fork lift operators, Dubai. (8,000 words.)

    Legal
    1. Notice of a Canadian Class Action Lawsuit (10,000 words.)
    2. License terms for MICROSOFT iCAFE E-LEARNING PROGRAM (3500 words.)
    3. Software License Agreement for PeerMeSetup Installation Suite (3000 words.)
    4. Terms and conditions document for Corum eCommerce Pty Ltd (2 000 words)
    5. 'Dalits and the Law,' a book published by Human Rights Law Network (415 pages)

    I.T.
    1. Mobile phone - PC studio user's guide. (17,500 words.)
    2. Mobile phone user's manual. (4,600 words.)
    3. Part of Google Adwords software localization. (8,800 words)
    4. Part of Gmail software localization. (9,400 words)
    5. Linux localization. (180,000 words.)

    Medical Dictionaries:
    Black's Medical Dictionary
    Medical Dictionary (Merriam Webster) hosted by NIH
    English-Hindi Dictionary of Scientific and Medical terms published by Govt. of India
    Websites of NIH, WHO, clinicaltrials.gov, and other online resources.
    Black's Law Dictionary
    English-Hindi Dictionary of Legal Terms

    SEE DETAILS

    (Satyam Varma)
    http://Sat_v.Translatorscafe.com
    http://www.proz.com/profile/93690

    ReplyDelete
  4. पुष्पम जी का पत्र पढ़ा, न जाने कितने किस्से ,कितना दर्द लौट आया. पुष्पम जी! मै आप की मनोदशा समझ सकता हूँ. मै भली-भांति परिचित हूँ ये लोग किस तरह काम करते हैं.... आपका जवाब पढ़ते पढ़ते न जाने क्यूँ दूसरे कुछ साथियों की बातें याद आ रही हैं. संगठन से निकलने के बाद किसी ने कहा था ''मुझे ऐसा लगता है जैसे मै किसी गैस चेम्बर से निकला हूँ.... '' काश मै कह सकता की ये सवाल सिर्फ एक पुष्पम का है लेकिन न जाने कितने लोग हैं जो गैस चेम्बर से निकले तो फिर कभी अपने पैरों पर ठीक से खड़े भी नहीं हो पाए. इस वेदना को शायद की कोई शब्दों में बयान कर पाए कि कुछ युवा निकले थे बेहतर दुनिया बनाने और बेहतर इंसान बनने को लेकिन उनके माझी ने उन्हें कहाँ डुबोया.... मै सलाम करता हूँ उन सभी कार्यकर्ताओं के ज़ज्बे को जो परवर्तन के नाम पर उस गैस चेंबर में भी खड़े रहे, उन कदमो को भी सलाम जो आज लड़खड़ा कर बैठ गए हैं(ये सोच कर कि उनका उद्देश्य जिस दुनिया को बनाना था वो मेरे लिए भी थी) ... लेकिन आने वाले युवाओं को ये भी कहूँगा संवेदनशील होने का मतलब मूर्ख होना नहीं होता है. इसका मतलब ये नहीं है कि पहले के लोग मूर्ख थे. वो वाकई बहादुर सिपाही ही थे. कुछ ने अपना पूरा जीवन होम करके जाना है कि कम से कम ये वो रास्ता नहीं जो मंजिल को जाता हो. पर अब फिर कोई इससे परिचित हो कर भी वही सब दुहराता है तो मै उसे कम से कम बहादुर तो नहीं ही कहूँगा.
    शायद इसीलिए जरुरी था इस सारी गन्दगी को प्रगट कर देना..... आखिर कभी तो रोकी ही जानी थी मार्क्सवाद के नाम पर मार्क्सवाद कि हत्या. यही कारण है कि मै जनज्वार के इस कदम को पूरी तरह राजनैतिक कार्यवाही मानता हूँ.

    ReplyDelete
  5. पुष्पम जी का पत्र पढ़ा, न जाने कितने किस्से ,कितना दर्द लौट आया. पुष्पम जी! मै आप की मनोदशा समझ सकता हूँ. मै भली-भांति परिचित हूँ ये लोग किस तरह काम करते हैं.... आपका जवाब पढ़ते पढ़ते न जाने क्यूँ दूसरे कुछ साथियों की बातें याद आ रही हैं. संगठन से निकलने के बाद किसी ने कहा था ''मुझे ऐसा लगता है जैसे मै किसी गैस चेम्बर से निकला हूँ.... '' काश मै कह सकता की ये सवाल सिर्फ एक पुष्पम का है लेकिन न जाने कितने लोग हैं जो गैस चेम्बर से निकले तो फिर कभी अपने पैरों पर ठीक से खड़े भी नहीं हो पाए. इस वेदना को शायद की कोई शब्दों में बयान कर पाए कि कुछ युवा निकले थे बेहतर दुनिया बनाने और बेहतर इंसान बनने को लेकिन उनके माझी ने उन्हें कहाँ डुबोया.... मै सलाम करता हूँ उन सभी कार्यकर्ताओं के ज़ज्बे को जो परवर्तन के नाम पर उस गैस चेंबर में भी खड़े रहे, उन कदमो को भी सलाम जो आज लड़खड़ा कर बैठ गए हैं(ये सोच कर कि उनका उद्देश्य जिस दुनिया को बनाना था वो मेरे लिए भी थी) ... लेकिन आने वाले युवाओं को ये भी कहूँगा संवेदनशील होने का मतलब मूर्ख होना नहीं होता है. इसका मतलब ये नहीं है कि पहले के लोग मूर्ख थे. वो वाकई बहादुर सिपाही ही थे. कुछ ने अपना पूरा जीवन होम करके जाना है कि कम से कम ये वो रास्ता नहीं जो मंजिल को जाता हो. पर अब फिर कोई इससे परिचित हो कर भी वही सब दुहराता है तो मै उसे कम से कम बहादुर तो नहीं ही कहूँगा.
    शायद इसीलिए जरुरी था इस सारी गन्दगी को प्रगट कर देना..... आखिर कभी तो रोकी ही जानी थी मार्क्सवाद के नाम पर मार्क्सवाद कि हत्या. यही कारण है कि मै जनज्वार के इस कदम को पूरी तरह राजनैतिक कार्यवाही मानता हूँ.

    ReplyDelete
  6. पुष्पम जी का पत्र पढ़ा, न जाने कितने किस्से ,कितना दर्द लौट आया. पुष्पम जी! मै आप की मनोदशा समझ सकता हूँ. मै भली-भांति परिचित हूँ ये लोग किस तरह काम करते हैं.... आपका जवाब पढ़ते पढ़ते न जाने क्यूँ दूसरे कुछ साथियों की बातें याद आ रही हैं. संगठन से निकलने के बाद किसी ने कहा था ''मुझे ऐसा लगता है जैसे मै किसी गैस चेम्बर से निकला हूँ.... '' काश मै कह सकता की ये सवाल सिर्फ एक पुष्पम का है लेकिन न जाने कितने लोग हैं जो गैस चेम्बर से निकले तो फिर कभी अपने पैरों पर ठीक से खड़े भी नहीं हो पाए. इस वेदना को शायद की कोई शब्दों में बयान कर पाए कि कुछ युवा निकले थे बेहतर दुनिया बनाने और बेहतर इंसान बनने को लेकिन उनके माझी ने उन्हें कहाँ डुबोया.... मै सलाम करता हूँ उन सभी कार्यकर्ताओं के ज़ज्बे को जो परवर्तन के नाम पर उस गैस चेंबर में भी खड़े रहे, उन कदमो को भी सलाम जो आज लड़खड़ा कर बैठ गए हैं(ये सोच कर कि उनका उद्देश्य जिस दुनिया को बनाना था वो मेरे लिए भी थी) ... लेकिन आने वाले युवाओं को ये भी कहूँगा संवेदनशील होने का मतलब मूर्ख होना नहीं होता है. इसका मतलब ये नहीं है कि पहले के लोग मूर्ख थे. वो वाकई बहादुर सिपाही ही थे. कुछ ने अपना पूरा जीवन होम करके जाना है कि कम से कम ये वो रास्ता नहीं जो मंजिल को जाता हो. पर अब फिर कोई इससे परिचित हो कर भी वही सब दुहराता है तो मै उसे कम से कम बहादुर तो नहीं ही कहूँगा.
    शायद इसीलिए जरुरी था इस सारी गन्दगी को प्रगट कर देना..... आखिर कभी तो रोकी ही जानी थी मार्क्सवाद के नाम पर मार्क्सवाद कि हत्या. यही कारण है कि मै जनज्वार के इस कदम को पूरी तरह राजनैतिक कार्यवाही मानता हूँ.

    ReplyDelete
  7. अब आता हूँ जयसिघ जी पर, शुक्र है आपने मुझे गलियों से नहीं बींधा कम से कम राजनैतिक शब्दावली पर तो आये. किसी को मनोगत रोग से ग्रसित होना बताना वैसे भी आपके यहाँ सबसे छोटी गाली है क्योंकि वो तो आपके हिसाब से 'शशि प्रकाश को छोड़ कर' पूरी दुनिया ही है . क्या करें दोस्त तुम्हारी ट्रेनिग ही ऐसी है जहाँ बताया जाता है यही राजनीति है. आप को बता दूँ - मुझे कार्यकर्ता होने और प्रवक्ता होने का फर्क बखूबी मालूम है. पर क्या करूँ मै भी, मै ये फर्क भी जानता हूँ कि राजनैतिक पार्टी और प्रकाशन में क्या अंतर होता है. यदि आपको नहीं पता तो जरा बताएं कि क्यों आप के संगठन कि सारी लड़ाइयाँ या तो बैठी हुई हैं या पार्टी के खुदायों द्वारा बैठा दी जाती हैं लेकिन प्रकाशन का काम ख़ूब उन्नति कर रहा है. और जैसा कि आपने लिखा था जीवित क्रांतिकारी समूह.... ये जीवित क्रन्तिकारी समूह क्या होता है मित्र? क्या कुछ मरे हुए क्रन्तिकारी समूह भी होते हैं? मुझे तो यही पता है या तो कोई समूह क्रांतिकारी होता है या फिर नहीं होता. खैर क्या जिन्दा है क्या मरा हुआ ये तो तभी साबित होगा जब संगठन के आका लोग कोई फ़तवा सुनायेंगे. इतना जरुर है कि मुझे आपकी तरह क्रांतिकारी होने का गुमान कभी नहीं हुआ. अगर मुझे चुनना ही है कि चुनो सिर्फ दो रस्ते हैं १. फासिस्ट गैस चेंबर (आप के हिसाब से 'जीवित क्रन्तिकारी समूह' ) या फिर २. संवेदनशील माध्यम वर्गीय व्यक्ति. तो मै दूसरे को ही चुनुँगा आप मुझ पर प्रतिक्रांतिकारी होने का कीचड़ उछल सकते हैं. सवाल तो यह भी है कि आपका संगठन इसके सिवा भी कुछ कर सकता है क्या? मीनाक्षी जी ने भी कुछ अलग बात नहीं कही नीलाभ पतित... मुकुल, आदेश, अजय विघटित.... अरुण, अशोक छि थू धिक्कार .... दूसरे लोग मनोरोग से ग्रसित, तमाम कवि लेखक महत्वकांछी जोंक .... सारे बुद्धिजीवी निठल्ले प्रलापी.... संसार के सभी लोग केंचुए.... (बतौर मीनाक्षी- भारत के बुद्धिजीवी समाज के अंतर्विवेक को लकवा मार गया है।) और फिर जो खरा तपा सोना बचता है. वो है शशिप्रकाश, मीनाक्षी,जयसिघ, क्यों यही तर्क है न आप लोगों का? और आप चाहते हैं कि मै इसे मान लूँ ! क्योंकि आप लोग जब गालियाँ देते हैं तो उसके साथ लेनिन , माओ, मार्क्स की कोटेशन चस्पा कर देते हैं. (शुक्र है कोटेशन तो बोलते हैं ,वो भी नहीं बोलेंगे तो सिर्फ गालियाँ ही बचेंगी. ) क्यों क्या यही है आप लोगों की सारी क्रांतिकारिता.
    अब मै मीनाक्षी जी से क्या कहूँ कि लोग आपसे ये नहीं पूछ रहे की फलाना समय में स्टालिन ने क्या कहा था? वो हम पढ़ लेंगे . किताबें बेचीं हैं आपने वो भी पूरे प्रोफिट के साथ. लोग तो आपसे ये पूछ रहे हैं कि आप इस ठगी के धंधे को क्रांति का जामा पहना कर क्रांति को बदनाम क्यूँ कर रहे हैं?
    माफ़ करना जय और मीनाक्षी जी ........ १. फासिस्ट गैस चेंबर (आप के हिसाब से 'जीवित क्रन्तिकारी समूह' ) या फिर २. संवेदनशील माध्यम वर्गीय व्यक्ति; सिर्फ यही दो रस्ते नहीं होते. आदमी जब कदम बढाता है तो ''फूट पड़ती हैं सौ राहें'' और कदम कदम पर मिलते हैं चौराहे बाहें फैलाये. लोग सोच रहे हैं. कोशिश कर रहे हैं खड़े होने की, चलने की.... चल पाते हैं या नहीं ये कुछ-कुछ इससे भी तय होगा आप के गैस चेंबर ने उनमे कितनी सकत छोड़ी है.
    माफ़ करना जय! मीनाक्षी लाख कहें पर मार्क्सवाद कोई धर्म नहीं है कि उसकी कोटेशन को दिन में दस बार दोहराया जाये. न ही भाषा में सिर्फ छि! थू! धिक्कार जैसे ही शब्द होते हैं. विज्ञान से परिचित होने के लिए आपको गैस चेंबर से निकलना होगा और उस सीखे हुए विज्ञान को दूसरों में बांटने के लिए जरुरी है कि आप भाषा के दूसरे शब्द भी सीखें.

    नए फतवे के इंतजार में
    आपका
    पवन मेराज

    ReplyDelete
  8. मि. अरुण कुमार आप क्यों इतना चिल्ल पो मचा रहें है विवेक कुमार के शब्दों में कहें तो आप तो सचमुच इतिहास से बेदखल कर दिए गये है
    भरोषा न हो रहा हो तो अरविन्द के जितने फोटो उन लोगों ने अपनी पत्रिकाओं में छापे है उनके बगल में जहाँ आप की तस्वीर है कालिख पोत दी गई है जुगाड़ करके देख लीजियेगा

    ReplyDelete