Aug 1, 2010

वीएन राय से बड़ा लफंगा नहीं देखा


मेरी आत्मकथा ‘गुड़िया भीतर गुड़िया’कोई पढ़े और बताये कि विभूति ने यह बदतमीजी किस आधार पर की है। हमने एक जिंदगी जी है उसमें से एक जिंदा औरत निकलती है, जो लेखन में दखल देती है।

मैत्रयी पुष्पा

महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति वीएन राय लेखिकाओं को ‘छिनाल’कहकर अपनी कुंठा मिटा रहे हैं और उन्हें लगता है कि लेखन से न मिली प्रसिद्धि की भरपाई वह इसी से कर लेंगे। मैं इस बारे में कुछ आगे कहूं उससे पहले ज्ञानोदय के संपादक रवींद्र कालिया और कुलपति वीएन राय को याद दिलाना चाहुंगी कि दोनों की बीबियां ममता कालिया और पदमा राय लेखिकाएं है,आखिर उनके ‘छिनाल’होने के बारे में महानुभावों का क्या ख्याल है।

लेखन के क्षेत्र में आने के बाद से ही लंपट छवि के धनी रहे वीएन राय ने ‘छिनाल’ शब्द का प्रयोग हिंदी लेखिकाओं के आत्मकथा लेखन के संदर्भ में की है। हिंदी में मन्नु भंडारी,प्रभा खेतान और मेरी आत्मकथा आयी है। जाहिरा तौर यह टिप्पणी हममें से ही किसी एक के बारे में की गयी, ऐसा कौन है वह तो विभूति ही जानें। प्रेमचंद जयंती के अवसर पर कल ऐवाने गालिब सभागार (ऐवाने गालिब) में उनसे मुलाकात के दौरान मैंने पूछा कि ‘नाम लिखने की हिम्मत क्यों न दिखा सके, तो वह करीब इस सवाल पर उसी तरह भागते नजर आये जैसे श्रोताओं के सवाल पर ऐवाने गालिब में।

मेरी आत्मकथा ‘गुड़िया भीतर गुड़िया’कोई पढ़े और बताये कि विभूति ने यह बदतमीजी किस आधार पर की है। हमने एक जिंदगी जी है उसमें से एक जिंदा औरत निकलती है और लेखन में दखल देती है। यह एहसास विभूति नारायण जैसे लेखक को कभी नहीं हो सकता क्योंकि वह बुनियादी तौर पर लफंगे हैं।

मैं विभूति नारायण के गांव में होने वाले किसी कार्यक्रम में कभी नहीं गयी। उनके समकालिनों और लड़कियों से सुनती आयी हूं कि वह लफंगई में सारी नैतिकताएं ताक पर रख देता है। यहां तक कि कई दफा वर्धा भी मुझे बुलाया,लेकिन सिर्फ एक बार गयी। वह भी दो शर्तों के साथ। एक तो मैं बहुत समय नहीं लगा सकती इसलिए हवाई जहाज से आउंगी और दूसरा मैं विकास नारायण राय के साथ आउंगी जो कि विभूति का भाई और चरित्र में उससे बिल्कुल उलट है। विकास के साथ ही दिल्ली लौट आने पर विभूति ने कहा कि ‘वह आपको कबतक बचायेगा।’ सच बताउं मेरी इतनी उम्र हो गयी है फिर भी कभी विभूति पर भरोसा नहीं हुआ कि वह किसी चीज का लिहाज करता होंगे।

रही बात ‘छिनाल’ होने या न होने की तो, जब हम लेखिकाएं सामाजिक पाबंदियों और हदों को तोड़ बाहर निकले तभी से यह तोहमतें हमारे पीछे लगी हैं। अगर हमलोग इस तरह के लांछनों से डर गये होते तो आज उन दरवाजों के भीतर ही पैबस्त रहते,जहां विभूति जैसे लोग देखना चाहते हैं। छिनाल,वेश्या जैसे शब्द मर्दों के बनाये हुए हैं और हम इनकों ठेंगे पर रखते हैं।

हमें तरस आता है वर्धा विश्वविद्यालय पर जिसका वीसी एक लफंगा है और तरस आता है 'नया ज्ञानोदय' पर जो लफंगयी को प्रचारित करता है। मैंने ज्ञानपीठ के मालिक अशोक जैन को फोन कर पूछा तो उसने शर्मींदा होने की बात कही। मगर मेरा मानना है कि बात जब लिखित आ गयी हो तो कार्रवाई भी उससे कम पर हमें नहीं मंजूर है। दरअसल ज्ञोनादय के संपादक रवींद्र कालिया ने विभूति की बकवास को इसलिए नहीं संपादित किया क्योंकि ममता कालिया को विभूति ने अपने विश्वविद्यालय में नौकरी दे रखी है।

मैं साहित्य समाज और संवेदनशील लोगों से मांग करती हूं कि इस पर व्यापक स्तर पर चर्चा हो और विभूति और रवींद्र बतायें कि कौन सी लेखिकाएं ‘छिनाल’हैं। मेरा साफ मानना है कि ये लोग शिकारी हैं और शिकार हाथ न लग पाने की कुंठा मिटा रहे हैं। मेरा अनुभव है कि तमाम जोड़-जुगाड़ से भी विभूति की किताबें जब चर्चा में नहीं आ पातीं तो वह काफी गुस्से में आ जाते हैं। औरतों के बारे में उनकी यह टिप्पणी उसी का नतीजा है।
(अजय प्रकाश से हुई बातचीत पर आधारित)

15 comments:

  1. I am in total agreement with Maitrai Pushpa whom I value as one of the contemorary symbols of feminist asertion and scholarship. In fact, the conservatives and status-quoists whose cliched MANTRA is KUCHH NAHIN HOGA, can not swallow the two visible advances -- the Dalit Assertion and scholarship and the feminist assertion and the scholasrship -- breaking apart the prejudices notions and myths about them orchestrated by MANUVADIS and the MARDVADIS. Unable to tolerate the breaking apart the ideological constructs of "glorious" traditions, perpetuatred by the myths and dogmas about women, the lumpen intellectuals like the Police-poet VN Rai palay the role of captive aplogetic to the status-quo and its true MCP values.

    In fact all the sexual moralities, inhibitions and taboos are ideological tools in the hands of patriarchy and its Shastras to control the female sexuality. The flag bearers of moral values in fact behave like authentic MARDVADIs, the Maale Chaunist Pigs. Breaking these taboos and unhibitionbs is a rebellion against the MCP culture of the patriarchy. Continue the rebelluion unpuirtubed by the barkings of the ideological agents of the MARDVADI cultur. I salute the rebellion against the inhuman patriarchal values by women writers and condemn the lumpen behaviour of state agents like VN Rai or Vishwaranjan and their promotors.

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  2. I am in total agreement with Maitrai Pushpa whom I value as one of the contemorary symbols of feminist asertion and scholarship. In fact, the conservatives and status-quoists whose cliched MANTRA is KUCHH NAHIN HOGA, can not swallow the two visible advances -- the Dalit Assertion and scholarship and the feminist assertion and the scholasrship -- breaking apart the prejudices notions and myths about them orchestrated by MANUVADIS and the MARDVADIS. Unable to tolerate the breaking apart the ideological constructs of "glorious" traditions, perpetuatred by the myths and dogmas about women, the lumpen intellectuals like the Police-poet VN Rai palay the role of captive aplogetic to the status-quo and its true MCP values.

    In fact all the sexual moralities, inhibitions and taboos are ideological tools in the hands of patriarchy and its Shastras to control the female sexuality. The flag bearers of moral values in fact behave like authentic MARDVADIs, the Maale Chaunist Pigs. Breaking these taboos and unhibitionbs is a rebellion against the MCP culture of the patriarchy. Continue the rebelluion unpuirtubed by the barkings of the ideological agents of the MARDVADI cultur. I salute the rebellion against the inhuman patriarchal values by women writers and condemn the lumpen behaviour of state agents like VN Rai or Vishwaranjan and their promotors.

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  3. आपको किसी सफाई की ज़रूरत नहीं है मैत्रेयी जी…हिन्दी वालों ने अपनी मोरल पुलिसिंग की ज़िम्मेदारी किसी रिटायर्ड पुलिसवाले को नहीं सौंपी है।

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  4. Matreyi ji ne bilkul theek likha hai ki V.N. ray se bada lafanga koi ho hi nahi sakta. waise to hindi sahitya main lafangon ki kami nahi hai, per vibhuti ki lafangai to sareaam dikhti hai. uske is nature ko bhuktbhogi mahila lakhikayen bakhaoobi janti hain.

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  5. हिंदी साहित्य में सत्ता के भाड़ों ने जो नरक मचा रखा है उसके लिए साहित्य के चाटुकार प्रगतिशील जिम्मेदार हैं. प्रगतिशीलों सत्तानाशिनों की चाटुकारिता से बाज आओ, और विभूति की पुलिसिया गुंडई को नंगा करो...........

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  6. प्रशांत कांडपालSunday, August 01, 2010

    मैत्रयी जी आपने बहुत सटीक और जरूरी बातें कहीं हैं... हम आपके पाठक रहे हैं. हमारे जैसे हजारो पाठक देश भर में हैं. इसलिए आप धूर्त और गंदे लोगों से मोर्चा लेने में तनिक नहीं हिचकियेगा.

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  7. is bahas ko aage badhaya jana chahiye. sahitya ke aisi byadhiyon se har star par nipta jana chiye.

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  8. वी एन राय की इस भाषा को सुन कर ऐसा लगता है जैसे कोई कलई उतर गई हो और एक भद्दी सी शक्ल आई हो. आखिरकार अन्दर का पुलिसिया मर्द बाहर आ ही गया. वैसे मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ. वी एन राय का तो नहीं पता लेकिन कभी देखना हो तमाम पुरोधाओं को तो उनकी मित्र मंडली में शराब के चौथे पैग के बाद देखिये. तब इनका अन्दर का सूअर खुल के बाहर आ जाता है.... किस किस को अपने ख्यालों में बिस्तर पर ला रहे होते हैं. तब ये लिजलिजाते से कोई जीव होते हैं... अगर कोई औरत अपने जीवन में पारदर्शी बनने की कोशिश करे तो ये भरसक उसे शीशे की तरह चटखा देंगे.

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  9. Achhi se achhi kism ki nasl ke bade se bade kutte ko agar sahi tareeke se prashaasnik training na di jaye to wah aksar paagal ho jata hai.

    Zyada gambheer hone ka nahin.
    Is Shwaan-mandali ka tamaasha dekho.

    Yah Naye Gyan Ka Naya Udaya Hai-
    Tathaakathit Bhaarteeya Gyan ki Peeth pe sawaar!

    Inhone Snowa Borno ki ek kahaani chhapne ke baad mujhe kaha tha ki jab tak main apni prawaasi sahlekhika Snowa Borno ko inke gunda darbaar me pesh nahin karoonga ye hamem maanyata nahin denge.

    Jab ham ne dhyaan nahin diya to Gyanoday men hamaara mazaak udaaya gaya. Inke ek paaltoo kutte ne Government se yah kah kar hamaare pariwaar ki kaanooni jaanch karaayi ki kahin ham chhipe huye aatanki na hon. Irada wahi tha ki Snowa Borno, Hazir ho !

    Government ne snowa Borno ki swatantrata ke paksh me faisla sunaaya. Inke haath inki aukaat aa gayi.

    Tumhari maanyata?
    Agyan ke Kaale aakhro, bhoose ke Vibhootiyo!
    Bhaarat ke Bhardwaaj, Chootiyo!
    Mahadev ka Ghanta pakdo!

    Ab inke paaltoo kutton ki dun dekhna.

    Pilpile Pillo !
    Zara apne aaka se thodi moonchh udhar le lo...
    Sirf poonchh se kaam nahin chalega.

    Ham tamaasha dekhte rahenge.
    Tum apni poori jaat aur aukaat par aa hi jao.

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  10. श्री विभूति नारायण राय के इस कथन से कोई भी सहमत नहीं होगा, और इसका जितना विरोध किया जाए कम है. लेकिन इस विवाद में उनकी और कालिया जी की लेखिका पत्नियों को खींच लाना मुझे ज़रा भी उचित नहीं लगता. बेहतर हो कि उनके बारे में कोई टिप्पणी इस विवाद में न की जाए. अगर हम करेंगे तो फिर श्री राय को सही सिद्ध करेंगे.

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  11. maitrai ji, main aise pulisia ravaie aur samnti mansikta ke sath ki gai tippani ke sakht khilaf hoon. yah larai ham sabki hai. alpana mishra

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  12. Maitreyi ji ham sab isake viroodha hain.

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  13. विभूति की टिप्पणी पर विरोध से मेरी सहमति है. मगर मुझे जो छिद्र मैत्रेयी जी के इंटरव्यू में दिखाई दिए हैं, उन्हें भी देखना जरूरी है. पहली बात तो यह कि क्या एक ऐसे व्यक्ति, जिसे आप लफंगा कह रही हैं, उसका निमंत्रण स्वीकार करना कोई बाध्यता है? दूसरे उसकी लफंगे का हवाला देते हुए उसी से हवाई जहाज़ का किराया भी क्लेम करना! तीसरे,उसके भाई विकास को साथ लेकर जाएँगी और उसी दिन लौट आयेंगी, कय इसके लिए भी विभूति की पूर्वानुमति जरूरी है? मेरी ईमानदार राय यह है कि यह मामला व्यक्तिगत ज्यादा और मुद्दे का कम लगता है!!

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  14. दूसरे दुर्गाप्रसाद जी के इस कमेंट से सहमत होते हुए कि विवाद में उनकी पत्नी को घसीट लेना गलत है, में यह भी जोड़ना चाहूँगा कि "लफंगा" जैसे शब्द "छिनाल" का पुल्लिंग पर्यायवाची ही हैं...और वे भी निंदनीय हैं...

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  15. सच जो भी है, उसे सामने आना ही चाहिए...

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