Jul 31, 2010

कुलपति वी एन राय ने लेखिकाओं को कहा 'छिनाल'


आशुतोष भारद्वाज

नई दिल्ली, 31 जुलाई। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति और भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी वीएन राय ने हिंदी की एक साहित्यिक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में कहा है कि हिंदी लेखिकाओं में एक वर्ग ऐसा है जो अपने आप को बड़ा ‘छिनाल’साबित करने में लगा हुआ है। उनके इस बयान की हिंदी की कई प्रमुख लेखिकाओं ने आलोचना करते हुए उनके इस्तीफे की मांग की है।

भारतीय ज्ञानपीठ की साहित्यिक पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’को दिए साक्षात्कार में वीएन राय ने कहा है,‘नारीवाद का विमर्श अब बेवफाई के बड़े महोत्सव में बदल गया है।’भारतीय पुलिस सेवा 1975बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के अधिकारी वीएन राय को 2008 में हिंदी विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया था। इस केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना केंद्र सरकार ने हिंदी भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए की थी।

हिंदी की कुछ प्रमुख लेखिकाओं ने वीएन राय को सत्ता के मद में चूर बताते हुए उन्हें बर्खास्त करने की मांग की है। मशहूर लेखक कृण्णा सोबती ने कहा,‘अगर उन्होंने ऐसा कहा है तो,यह न केवल महिलाओं का अपमान है बल्कि हमारे संविधान का उल्लंघन भी है। सरकार को उन्हें तत्काल बर्खास्त करना चाहिए।’

‘नया ज्ञानोदय’ को दिए साक्षात्कार में वीएन राय ने कहा है,‘लेखिकाओं में यह साबित करने की होड़ लगी है कि उनसे बड़ी छिनाल कोई नहीं है...यह विमर्श बेवफाई के विराट उत्सव की तरह है।’ एक लेखिका की आत्मकथा,जिसे कई पुरस्कार मिल चुके हैं,का अपमानजनक संदर्भ देते हुए राय कहते हैं,‘मुझे लगता है इधर प्रकाशित एक बहु प्रचारित-प्रसारित लेखिका की आत्मकथात्मक पुस्तक का शीर्षक हो सकता था ‘कितने बिस्तरों में कितनी बार’।’

वीएन राय से जब यह पूछा गया कि उनका इशारा किस लेखिका की ओर है तो उन्होंने हंसते हुए अपनी पूरी बात दोहराई और कहा,‘यहां किसी का नाम लेना उचित नहीं है लेकिन आप सबसे बड़ी छिनाल साबित करने की प्रवृत्ति को देख सकते हैं। यह प्रवृत्ति लेखिकाओं में तेजी से बढ़ रही है। ‘कितने बिस्तरों में कितनी बार’का संदर्भ आप उनके काम में देख सकते हैं।’

वीएन राय के इस बयान पर हिंदी की मशहूर लेखिका और कई पुरस्कारों से सम्मानित मैत्रेयी पुष्पा कहती हैं,‘राय का बयान पुरुषों की उस मानसिकता को प्रतिबिंबित करता है जो पहले नई लेखिकाओं का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं और नाकाम रहने पर उन्हें बदनाम करते हैं।’ वे कहती हैं, ‘ये वे लोग हैं जो अपनी पवित्रता की दुहाई देते हुए नहीं थकते हैं।’पुष्पा कहती हैं,‘क्या वे अपनी छात्रा के लिए इसी विशेषण का इस्तेमाल कर सकते हैं?राय की पत्नी खुद एक लेखिका हैं। क्या वह उनके बारे में भी ऐसा ही कहेंगे।’पुष्पा,वीएन राय जैसे लोगों को लाइलाज बताते हुए कहती हैं कि सरकार को उनपर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाना चाहिए।

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति के इस बयान को ‘घोर आपराधिक’करार देते हुए ‘शलाका सम्मान’ से सम्मानित मन्नू भंडारी कहती हैं,‘वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं। एक पूर्व आईपीएस अधिकारी एक सिपाही की तरह व्यवहार कर रहा है।’वे कहती हैं कि वे एक कुलपति से वे इस तरह के बयान की उम्मीद नहीं कर सकती हैं। भंडारी कहती हैं,‘हम महिला लेखकों को नारायण जैसे लोगों से प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं है.'
(जनसत्ता से साभार)
 
 

5 comments:

  1. Truly shocking. These traditionalists can't digest women's freedom and achievements. As demanded by many women writers he shall be relieved from his post instantly. I am one of the founder member and secretary of Gujarati Writers Asso. in Ahmedabad and I strongly condemn such attitude, specially from higher officials.
    - Kiran Trivedi

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  2. Mujhe lagata hai V.N. Roy ka dimag kharab ho gaya hai. or jahan tak uske lekhikaon ko chhinal kahne ka sawal hai to usse isse jayada ki ummid ki hi nahi ja sakti. pata nahi satta ke chakar ko sahitya biradari ne sahitykar kaise maan liya. wo to....................

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  3. abe tu lekhak kaise bana, baat to sipahi jaisi karta hai.

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  4. एक बेहद शर्मनाक और अपमानजनक वक्‍तव्‍य जिसकी अपेक्षा एक वरिष्‍ठ साहित्‍यकार से नहीं की जा सकती. निश्‍चय ही यह दंभ है और मातृशक्ति का अपमान भी.

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  5. आज मिस्टर वी एन राय ने एक साक्षात्कार में लेखिकाओं को छिनाल कह दिया तो सारा हिंदी जगत, उचित ही, उन पर टूट पड़ा. उनकी भर्त्सना, लानत मलामत होनी ही चाहिए. वर्धा यूनिवर्सिटी का सब लेखकों को बहिष्कार करना चाहिए जब तक वो वहां है. यह सब उचित है, लेकिन ....

    अगर वह इंटरव्यू पूरा पढ़ें तो उसमें इस एक असावधान शब्द के अलावा और कुछ आपत्तिजनक या स्त्री विरोधी तलाशना मुश्किल है. वह स्त्रियों की आज़ादी का, उनकी गरिमा और संघर्षों का पक्ष ही लेता है. वह एक शब्द कोई इतना बड़ा गुनाह नहीं कि हर शख्स उनके पीछे इस तरह पड़ जाये.

    मैं मिस्टर वी एन राय का या उनके लेखन का समर्थक या प्रशंसक नहीं. मिस्टर वी एन राय के गुनाह और हैं और इससे बहुत बड़े. एक बार उदयप्रकाश से विवाद होने पर उन्होंने एक लेख में उदय के लिए जिस भाषा का इस्तेमाल किया था, वह इतनी बर्बर और हिंसक थी कि कल्पना करना मुश्किल है. ज़रा वह लेख तलाश करके दुबारा पदिये. कटुतम पोलिमिक्स में भी आज तक ऐसी भाषा नहीं इस्तेमाल की गयी. यह शख्स साहित्य में घुस आया एक हिंसक जानवर है. तब एक शख्स ने भी उदय के पक्ष में एक शब्द भी नहीं लिखा. लेखकीय गरिमा की इतनी फ़िक्र करने वाले आदरणीय खरे जी ने भी नहीं. क्यों ? क्यों उदय को तब अपमान में अकेला छोड़ दिया गया. एक भी हाथ उनके समर्थन में नहीं उठा. क्यों ? मैं पूछता हूँ, क्यों ?

    उसी कायरता का नतीजा है कि यह हिंसक जानवर आज इस हद तक उतर आया. दोषी यह नहीं सारा लेखक जगत है. तो फिर इस वक़्त के उबलते आक्रोश के पीछे का खेल कुछ और है, यह क्यों न समझा जाये.

    मिस्टर वी एन राय ने नैनीताल में श्री मंगलेश दब्राल और श्री विरेन डोंग्वल जैसे कवियों का भी अपमान किया. इसके जूतों के तस्मे, भारत भरद्वाज ने, देवेन्द्र जैसे कहानीकार का मंच पर सार्वजनिक अपमान किया. ऐसे मौकों पर सब खामोश हो जाते हैं क्योंकि उन्हें अपने लाभों के अंगूर दिखाई दे रहे होते हैं. इसलिए इस वक़्त का यह विरोध तमाशा नकली लगता है. मिस्टर वी एन राय ने किसी का अपमान नहीं किया. हिंदी भाषी समाज ने ही खुद अपना अपमान किया है. इस आदमी को बर्दाश्त कर कर, उसे मौके दे दे कर और इसकी और इसके जूतों के तस्मे की हिम्मत बढ़ा बढ़ा कर.

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