Jul 15, 2010

पहले वो गोली दागते थे, अब पेशाब करते हैं



पटना पुस्तक मेले में किन मजबूरियों और समझदारी के चलते हिंदी के साहित्यकार आलोक धन्वा,अरुण कमल और आलोचक खगेन्द्र ठाकुर छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्वरंजन का पुस्तक विमोचन करने पहुंचे थे, इस बारे में इनलोगों ने अपनी सफाई जनज्वार को दे दी है. महा आलोचक नामवर सिंह से बात नहीं हो सकी है, उनका जवाब आते ही संलग्न कर दिया जायेगा........... 


यारी देख ली, अब ईमान खोजें : दाहिने से खगेन्द्र ठाकुर, नामवर सिंह, किताब विक्रेता अशोक महेश्वरी, डीजीपी विश्वरंजन और आलोक धन्वा : चचा आलोक आप गाय घाट पर माला जपते, तो भी अपने बुजुर्गों पर हम शर्मिंदा न होते.





अरूण कमल-     बड़े  दिनों बाद आपको याद  आया  । हमें इस बारे में कोई बात नहीं कहनी है, मैं कहता नहीं, लिखकर बात करता हूं।

यह कहने के थोड़ी देर बाद उनका दुबारा फोन आता है और वे कहते हैं-

विश्वरंजन हमारे बहुत पुराने दोस्त हैं। कॉलेज में साथ पढ़े हैं। उनकी पहली किताब का लोकार्पण हमने ही किया था। देखिये आदमी का जहां बहुत पुराना रिश्ता होता हैं वहां आदमी कई बार जाता है और नहीं भी जाता है। मै इतना कमजोर आदमी नहीं हूं कि किसी के छूने मात्र से अपवित्र हो जाउं, मुझे अपने को संभालने आता है। जिस कार्यक्रम की तस्वीर की आप जिक्र कर रहे हैं उसी में मैंने कुछ बातें कहीं थी जो सलवा जुडूम और विश्वरंजन के खिलाफ थीं। जिसके बाद मुझे बनारस विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे रामजी राय ने बधाई भी दी थी। विश्वरंजन के कार्यक्रम में शामिल होने से मैं सलवा जुडूम का समर्थक नहीं हो जाउंगा, और फिर आप विश्वरंजन को क्यों दोषी मानते हैं, सरकार पर बात कीजिए।


खगेंद्र ठाकुर-  तो सलवा जुडूम के लिए वह दोषी कैसे हुआ। विश्वरंजन की जगह कोई भी अधिकारी होता तो वही करता,जो वह कर रहा है। पटना में एक लड़का था सुशील, जो अपने को नक्सल कहता था। बाद में वह डीएसपी हो गया और इस समय वह नीतीश कुमार की सुरक्षा में है। तो क्या हम उसके कार्यक्रमों में शामिल नहीं होंगे। आप समझिये कि हिंदी साहित्य पर अधिकारियों का बहुत दबाव है। अगर अशोक वाजपेयी,विभूति नारायण राय और तमाम इनकमटैक्स कमीश्नर साहित्कार हो सकते हैं तो विश्वरंजन क्यों नहीं। पिछले वर्ष भी जब विश्वरंजन ने प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान का आयोजन किया था तो कुछ लोगों ने विरोध का तमाशा किया था। अबकी भी रायपुर में शमशेर और अज्ञेय की जन्मशति पर एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है, इसमें जाने में क्या हर्ज है।

थोड़ी देर बाद फिर फोन आता है

देखिये जो लोग अपने को माओवादी कह रहे हैं वही तो सलवा जुडूम के असली कारण हैं। माओवादी कहीं स्कूल उड़ा रहे हैं,रेल ट्रैक  तोड़ रहे हैं। अभी मैं हाल में टीवी देख रहा था तो बच्चे तख्तियां लेकर प्रदर्शन कर रहे थे कि माओवादी अंकल हमें पढ़ने दो। अच्छा एक बात और .........मैं तो वहां ‘लेखक से मिलिये’कार्यक्रम में नामवर सिंह से मिलने गया था। पहले से घोषित तो था नहीं कि विश्वरंजन की किताब का विमोचन है। अब वहां चले गये तो लोगों ने बैठा लिया तो क्या करें। फिर मैंने तो बोला भी नहीं था.......

आलोक धन्वा-  यार जानते नहीं हो, मैं गौरीनाथ की दूकान अंतिका प्रकाशन पर बैठा हुआ था। तभी मुझे बड़ी तेज पेशाब लगा। पेशाब करने का रास्ता नेशनल बुक ट्रस्ट( एनबीटी) की दुकान के सामने से होकर जाता था। इन सब झमेलों से बचकर,अभी मैं धीरे से वहां से निकलने की कोशिश कर ही रहा था कि एनबीटी के चेयरमैन ने मुझे देख लिया। उसने जो है कि विश्वरंजन को इशारा कर दिया। इतने में विश्वरंजन और उसके कमांडो हमको आकर चारो ओर से घेर लिये। विश्वरंजन कहने लगे कि अगर आप मेरे पुस्तक विमोचन में नहीं चलेंगे तो हम आपको घेरे रहेंगे।

अब बताओ मैं क्या करता। आखिर तुम होते तो क्या करते? ऐसा थोड़े ही है कि जो हत्याएं हमारे साथियों की कर रहे हैं उसे मुझे खुशी मिल रही है। हमारा उनसे विरोध हो सकता है,मगर ऐसे उनकी हत्या करना कैसे जायज है।

 

12 comments:

  1. हिंदी साहित्यकारों की यह दशा देखकर तरस आता है.जनता पहली फुर्सत में एक काम करे कि इनके लिए जगह-जगह शौचालय बनवाएं. जो सरकारी मंचों से कोसों दूर रहे. इससे कम से कम हमारे साहित्यकार सुकून से पेशाब तो कर ही सकेंगे. साथ ही विश्वरंजन के कमानों से भी बच जाया करेंगे.

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  2. आलोक धन्वा- यार जानते नहीं हो, मैं गौरीनाथ की दूकान अंतिका प्रकाशन पर बैठा हुआ था। तभी मुझे बड़ी तेज पेशाब लगा। पेशाब करने का रास्ता नेशनल बुक ट्रस्ट( एनबीटी) की दुकान के सामने से होकर जाता था। इन सब झमेलों से बचकर,अभी मैं धीरे से वहां से निकलने की कोशिश कर ही रहा था कि एनबीटी के चेयरमैन ने मुझे देख लिया। उसने जो है कि विश्वरंजन को इशारा कर दिया। इतने में विश्वरंजन और उसके कमांडो हमको आकर चारो ओर से घेर लिये। विश्वरंजन कहने लगे कि अगर आप मेरे पुस्तक विमोचन में नहीं चलेंगे तो हम आपको घेरे रहेंगे।

    अब बताओ मैं क्या करता। आखिर तुम होते तो क्या करते? ऐसा थोड़े ही है कि जो हत्याएं हमारे साथियों की कर रहे हैं उसे मुझे खुशी मिल रही है। हमारा उनसे विरोध हो सकता है, मगर ऐसे उनकी हत्या करना कैसे जायज है।

    nice..........................nice......................matmuto विश्वरंजनsay

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  3. कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूँ कोई बेवफा नहीं होता........

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  4. अरुण कमल जी या खगेन्द्र बाबू जो कह रहे हैं उस पर तो बात हो भी सकती है…पर आलोक धन्वा जी! उनसे इतने लिजलिजे बयान की उम्मीद नहीं थी…घिन आती है…

    इस पूरे विवाद के बाद मैने रायपुर में होने वाले कार्यक्रम में न जाने का फ़ैसला किया है।

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  5. तो आलोक धन्वा की पेशाब का क्या हुआ ? विश्वरंजन को देखते ही ग़ायब हो गई ?

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  6. समझ में नहीं आता कि हमारे साहित्यकार सत्ता की चेरी बनकर समाज का नेतृत्व कैसे करेंगे, इनसे सत्ता और समाज के बीच अंकुश -संतुलन की भूमिका अदा करने की अपेक्षा करना अब संशय कारक हो गया है

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  7. वाह रे ज़माना! कातिल भी मैं, कवि भी मैं! चोर भी मैं, साधु भी मैं! अब जब तिनका दाढ़ी में दिख गया तो बोलना शुरू कर दो की वो तो तिनका नहीं ज़नाब, दरअसल एक तिल था!

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  8. यार जानते नहीं हो, गोली और पेशाब के बीच नाजुक रिश्ता है..
    ख्वाहिश में लिपटी ज़रुरत की दुनिया
    इंसान के सपनो की नीयत की दुनिया ..ओ दुनिया

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  9. जो गोली दागते थे पेशाब करने लगे
    कपड़े के जूते अपने ख़राब करने लगे

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  10. बड़ी फूहद मज़ाक है । आलोक का । आलोक धन्वा भी कम बुर्जूआ नहीं । पत्नी के साथ क्या किया । और मैं वहाँ मौजूद था । एक भी कमाडो़ं नहीं था उनके साथ । पढ़े लिखे होकर मूर्खता ? और वे छुट्टी पर थे । सिर्फ पटना मेले में भाग लेने । विश्वरंजन पहले स्टेज पर बैठ चुके थे । बाद में आलोक धन्वा आये वहाँ । और आते ही वे विश्वरंजन जी से गले मिले । काहे को झूठ बोलते हैं । और सुमन जी हत्या आपके माओवादी मित्र भी तो हज़ारों की संख्या में कर चुके हैं । उन्हें क्या आप जनता का मित्र बताते हैं । लानत
    है आप पर और आपके माँ बाप पर ।

    एक दर्शक, पुस्तक मेला
    पटना

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  11. ये अशोक कुमार कौन है, और आलोक धन्वा जैसे उसके ही साथी ने ऐसा कर दिया तो इसमें रायपुर वाले आयोजन का क्या संबंध ? अच्छा पागलपन है, और इसे यहाँ किस लिए बताया जा रहा है । कहीं नहीं जाना । कहीं जाना उसका इस खड़े किये गये नये विवाद से क्या संबध है । किसे और किसलिए नाहक किसको लपेटने का यह नया ड्रामा अशोक कर रहा है ।

    एक दर्शक पुस्तक मेला

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  12. Vyangya Rachna

    यार जानते नहीं हो, मैं गौरीनाथ की दूकान अंतिका प्रकाशन पर बैठा हुआ था। तभी मुझे बड़ी तेज पेशाब लगा। पेशाब करने का रास्ता नेशनल बुक ट्रस्ट( एनबीटी) की दुकान के सामने से होकर जाता था। इन सब झमेलों से बचकर,अभी मैं धीरे से वहां से निकलने की कोशिश कर ही रहा था कि एनबीटी के चेयरमैन ने मुझे देख लिया। उसने जो है कि विश्वरंजन को इशारा कर दिया। इतने में विश्वरंजन और उसके कमांडो हमको आकर चारो ओर से घेर लिये। विश्वरंजन कहने लगे कि अगर आप मेरे पुस्तक विमोचन में नहीं चलेंगे तो हम आपको घेरे रहेंगे। अब बताओ मैं क्या करता।

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