पत्रकार हेम चंद्र पांडे उर्फ हेमंत पांडे की फर्जी मुठभेड़ में हुई मौत ने साफ कर दिया है कि भारतीय पत्रकार आज एक अघोषित आपातकाल की स्थितियों में काम कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की संस्था युनेस्को ने उन परिस्थितियों की जांच किए जाने की मांग की है जिसमें हेम चंद्र पांडे मारे गए। आईएफजे,प्रेस क्लब,नागरिक समाज संगठनों,पत्रकार यूनियनों समेत पार्टी लाइन से ऊपर उठकर उत्तराखंड के सभी राजनीतिक दलों ने इस सुनियोजित हत्या की निंदा की है। नागरिक समाज संगठनों की ओर से स्वामी अग्निवेश द्वारा की गई इस मौत की जांच की मांग को हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री ने ठुकरा दिया है।
टीवी टुडे के दफ्तर पर हिंदूवादी गुंडों द्वारा किए गए ताजा हमलों को अगर इसमें शामिल कर लें, तो हालात बदतर नजर आते हैं। अब भारतीय पत्रकार सरकार के साथ कट्टर हिंसक समूहों के दुतरफा हमलों का खतरा झेल रहे हैं। दुर्भाग्यवश, ऐसे वक्त में कॉरपोरेट मीडिया प्रतिष्ठान राजकीय दबाव के तले अपने ही पत्रकारों से पल्ला झाड़ने की कवायद में लिप्त हैं,जैसा कि हमने हेमंत पांडे के मामले में देखा जिसमें हिंदी दैनिक नई दुनिया,दैनिक जागरण और राष्ट्रीय सहारा ने खुले आम तत्काल दावा कर डाला कि पांडे का उनके साथ किसी भी रूप में कोई लेना-देना नहीं था।
निश्चित तौर पर यह अघोषित आपातकाल ही है। इससे बेहतर शब्द इन हालात के लिए नहीं सोचा जा सकता। इसलिए यह सवाल उठाना अब अपरिहार्य हो गया है कि आगे क्या होगा।
पत्रकारों का एक अनौपचारिक और मुक्त मंच जर्नलिस्ट्स फॉर पीपुल ऐसे ही तमाम मुद्दों पर एक बहस के लिए आपका आह्वान करता है। निम्न विषय पर मुक्त परिचर्चा के लिए आप सादर आमंत्रित हैं-
अघोषित आपातकाल में पत्रकारों की भूमिका
दिनांक- 20 जुलाई, 2010, मंगलवार
समय- शाम 5.30 बजे
स्थान- गांधी शांति प्रतिष्ठान, दीनदयाल उपाध्याय मार्गख् आईटीओ, दिल्ली
परिचर्चा के बाद दिवंगत पत्रकार हेमंत पांडे की स्मृति में एक व्याख्यानमाला के आरंभ की औपचारिक घोषणा की जाएगी,जिसका आयोजन हर साल उनकी पुण्यतिथि 2 जुलाई को किया जाएगा।
बैठक का समापन उन हिंदी दैनिकों के खिलाफ एक निंदा प्रस्ताव पढ़ कर किया जाएगा जिन्होंने पांडे से अपना पल्ला झाड़ लिया है।
आपसे अनुरोध है कि कार्यक्रम में जरूर शामिल हों।
जर्नलिस्ट्स फॉर पीपुल की ओर से जारी
निसार मैं तेरी गलियों पे ऐ वतन के जहां
ReplyDeleteचली है रस्म के कोई न सर उठा के चले