Jun 13, 2017

उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ने राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री को किया शर्मसार

मुख्यमंत्री जब अपना सम्बोधन कर रहे थे तब केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर व प्रदेश के राज्यमंत्री धनसिंह उन्हें अवाक होकर देख और सुन रहे थे....

जगमोहन रौतेला

उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्री त्रिवेन्द्र रावत ने केन्द्रीय मानव संशाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर व प्रदेश के उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत को उस वक्त आइना दिखा दिया, जब कल 12 जून 2017 को पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में ये लोग गाउन पहनकर कर बैठे थे. 

पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में गाउन पहने केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल और  अन्य 
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत जब समारोह में पहुँचे तो उन्होंने गाउन को फिरंगियों की पोशाक बताते हुए उसे पहनने से इंकार कर दिया. अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी दीक्षांत समारोह के लिए क्यों नहीं भारतीय पोशाक तय कर पाए. गाउन हमारी गुलाम मानसिकता का प्रतीक भी बन गया है. इसे अब उतार दिए जाने का वक्त आ गया है. 

त्रिवेंद्र रावत ने पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी के कुलपति से कहा कि अगली बार जब भी विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह हो तो वह भारतीय पोशाक में हो. मुख्यमंत्री जब अपना सम्बोधन कर रहे थे तब केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर व प्रदेश के राज्यमंत्री धनसिंह उन्हें अवाक होकर देख और सुन रहे थे. दोनों को शायद आभास भी नहीं रहा होगा कि जिस गाउन को पहनकर वे मंच में बैठे हैं, उसके खिलाफ ही मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत इस तरह की टिप्पणी ही नहीं करेंगे, बल्कि गाउन पहनने से इंकार तक कर देंगे. समारोह में राज्यपाल केके पॉल भी गाउन पहने हुए थे.

इस मामले में मुख्यमंत्री रावत अपने राज्यमंत्री के ऊपर भारी पड़ गए. उल्लेखनीय है कि उच्च शिक्षा राज्य मंत्री बनने के बाद से ही डॉ. धनसिंह रावत वन्दे मातरम, विश्वविद्यालयों, डिग्री कॉलेजों में सौ फीट का तिरंगा फहराने व डिग्री कॉलेजों में यूनिफार्म लागू किए जाने जैसे बयान देकर पिछले दिनों बेहद चर्चा में रहे हैं. इन बातों के समर्थन में वह इससे देशभक्ति का जज्बा पैदा होेने, छात्रों के अनुशासित होने और पढ़ाई में गुणवत्ता आने की बात करते रहे हैं. 

मगर विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोहों में गाउन व हैड पहनने की विदेशी परम्परा की ओर उनका ध्यान नहीं गया और इस मामले में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने बाजी मार ली. मुख्यमंत्री के सम्बोधन के जवाब में विश्वविद्यालय के कुलपति ने भरोसा दिलाया कि अगला दीक्षांत समारोह भारतीय वेशभूषा में ही होगा. समारोह में राज्यपाल केके पॉल भी गाउन पहने हुए थे.

Jun 12, 2017

समोसा बेचे या चाय कोई काम मीडिया की निगाह में छोटा कैसे है

अगर गरीबों की तादाद ज्यादा है, तो उसके प्रतिनिधि क्‍यों तमाम अमीर लोग होते जा रहे हैं। अखि‍र इस करोड़पति तंत्र को लोकतंत्र लिखने की क्‍या मजबूरी है मीडिया की.... 

कुमार मुकुल

देश के तमाम छोटे—बड़े मीडिया समूह एक खबर चला रहे हैं कि 'आईआईटी में समोसे बेचने वाले का बेटा'। यह क्‍या तरीका है खबरें बनाने का। कल को अमित शाह जैसे राजनीतिज्ञ इसे 'बनिये का बेटा बना आईआईटीयन' कह सकते हैं। जब वे गांधी को बनिया कह सकते हैं, तो फिर उनसे और क्‍या उम्‍मीद की जा सकती है। 


आखिर यह मीडिया राजनीतिज्ञों की भ्रष्‍ट भाषा को अपना आधार क्यों बना रहा है। यह प्रवृत्ति इधर बढती जा रही है। किसी भी सफल युवा को उसके आर्थिक हालातों के लिए सार्वजनिक तौर पर शर्मिंदा करना, जैसे जरूरी हो गया है। समोसा बेचे या चाय कोई काम मीडिया की नजर में छोटा क्‍यों है। केवल पैसे वालों के ही बेटे क्‍यों बढ़ें आगे। 

जाति, पेशे, धर्म, गरीबी आदि के आधार पर बांटने की राजनीतिज्ञों की बीमारी को मीडिया आखिर क्‍यों हवा दे रहा। एक ओर गुड़, तेल, चूरन बेचने वाले रामदेव को मीडिया योगीराज बताता है, जबकि रामदेव खुद अपना टर्नओवर (मुनाफा) बताते हुए खुद को मुनाफाखोर घोषित करते हैं। 

अगर वाकई यह लोकतंत्र है तो यह सहज होना चाहिए कि गरीब आदमी जिसकी संख्‍या ज्‍यादा है, उसको हर जगह ज्‍यादा जगह मिलनी चाहिए। खबर तो यह होनी चाहिए कि इस बार भी मुट्ठीभर अमीरजादों ने तमाम पदों पर कब्‍जा कर लिया।

संसद में साढ़े चार सौ के आसपास करोड़पति हैं। यह सवाल बार-बार क्‍यों नहीं उठाया जाता कि भारत में अगर गरीबों की तादाद ज्यादा है, तो उसके प्रतिनिधि क्‍यों तमाम अमीर लोग होते जा रहे हैं। अखि‍र इस करोड़पति तंत्र को लोकतंत्र लिखने की क्‍या मजबूरी है मीडिया की।

सिसौदिया के साले ने विश्वास के पीए को कहा कायर, कुमार के पीए का आरोप आप नेता कराते हैं विश्वास के खिलाफ खबरें प्लांट

सबकुछ ठीक नहीं आप में, कपिल के बाद अब विश्वास को निपटाने की तैयारी में जुटे हैं अरविंद के अपने 

कपिल मिश्रा कुमार विश्वास के घर के बाहर बैठे करते रहे ट्वीट पर मिलना तो दूर, कुमार के घर के दरवाजे भी नहीं खुले कपिल के लिए.  लेकिन आप समर्थक कथित मीडिया ने करा दी मुलाकात 

आप की आंतरिक कहानी कहती, दिल्ली से स्वतंत्र कुमार की रिपोर्ट 

जिन लोगों को ये लग रहा है कि आम आदमी पार्टी में पड़ी फूट खत्म हो चुकी है तो उन्हें ये गलतफहमी हैं। कल आम आदमी पार्टी से निष्काषित मंत्री व विधायक कपिल मिश्रा जब कुमार विश्वास के घर धरना देने पहुँचे तो कुमार घर पर नहीं थे और कुमार के घर के दरवाजे कपिल के लिए नहीं खुले। 


हालांकि कभी कपिल हर दूसरे दिन कुमार के घर जाते थे। कुमार के ना होने पर उनका घर के अंदर बैठ कर इंतज़ार भी करते थे। लेकिन आज न दरवाजा खुला न मुलाकात हुई पर पार्टी के सूत्रों से किसी ने ये ख़बर प्लांट करा दी कुमार की कपिल के साथ मीटिंग हो गई है और अब दोनों मिलकर नया आंदोलन चलाएंगे। 

खास बात ये है कि यह खबर एक उस पोर्टेल पर चली जिसे प्रो आप माना जाता है और दूसरे ऐसे पोर्टल पर चली जिसकी पार्टी के कुछ लोग तारीफ कर रहे थे( इस तारीफ का दावा किसी ओर ने नहीं कुमार के एक खास शिष्य ने ट्वीट करके बताई)।

खबर के ब्रेक होते ही कुमार के साथ रहने वाले उनके प्राइवेट पी ए शैल ने ट्वीट कर तंज़ कसा कि हमें पता है किसने ये खबर प्लांट करवाई है और इसके पीछे कौन हैं। 

इस ट्वीट के आते ही पार्टी के नवनियुक्त खजांची दीपक वाजपेयी का ट्वीट आ गया बताओ कौन है वो। उसका नाम बताओ जिसने ये खबर प्लांट करवाई है। 

खैर शैल का जवाब तो नहीं आया पर सोशल मीडिया पर आप की चल रही इस लड़ाई में डिप्टी चीफ मिनिस्टर मनीष सिसौदिया के साले साहब संजय राघव भी कूद पड़े और बोलने लगे ये शैल तो कायर है, डरपोक है ये किसी का नाम नहीं ले सकता।

इसके अलावा कुमार को लेकर पार्टी में उठी चिंगारी अभी राख नही हुई है क्योंकि कल ही अमानतुल्ला खान के पार्टी द्वारा कई कमेटियों का चेयरमैन बनाने पर लगे पोस्टर औऱ उसमें अरविंद केजरीवाल की तारीफ इस बात का इशारा कर रहे हैं कि कुमार के विरोधियों को पार्टी में कितना मान सम्मान मिल रहा है। कल ही हुई राजस्थान के वालंटियर्स के साथ कुमार की मीटिंग ओर उसमे बैठे मनीष दोनों के चेहरे देख कर कोई भी पढ़ सकता था कि इन दोनों के बीच बचपन वाली दोस्ती कहीं नहीं दिख रही। 

कवि अक्सर लोगों की आंखें और चेहरे पढ़ कर अपनी कविता पढ़ते हैं। पर कुमार ये भूल गए कि उनका चेहरा भी पढा जा सकता है। कुमार के चेहरे पर तनाव और गुस्सा साफ देखा जा सकता था (एक फोटो को छोड़ कर जब वो मंच छोड़ कर वालंटियर्स के बीच बैठे हैं)। 

ऐसे में ये समझ रहे हैं कि कुमार को राजस्थान देकर लड़ाई को समाप्त कर दिया गया है तो वो भूल कर रहे हैं। दरअसल पार्टी का गुजरात का चुनाव लड़ना पक्का नहीं है तो कुमार को राजस्थान भेजकर वहां का चुनाव लड़वाने का मतलब कुमार के सर पर भी एक हार का ठिकरा फोड़ कर उन्हें पार्टी से किनारे लगाना हैं। 

इसकी जड़ पंजाब चुनाव ही है क्योंकि पंजाब की हार के बाद ही कुमार ने वहांचुनाव की कमान संभाल रहे दुर्गेश पाठक ओर संजय सिंह के ख़िलाफ बोलना शुरू किया था। और उन्हें हार की जिम्मेदारी लेने के लिए भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दवाब डाला था।

Jun 10, 2017

तैयारी की स्ट्रीट लाइट के सामने, रियाज किया दरवाजे पर और टॉप कर गयी जिला

सफलता की कहानियां तो बहुत पढ़ते हैं आप, पर इस बेटी की इच्छाशक्ति देख आप दांतों तले अंगुलियां दबा लेंगे। इलाज के अभाव में मरे पिता की लाश पड़ी थी दरवाजे पर, हिम्मत नहीं थी कि परीक्षा केंद्र तक जाए, लेकिन विराट कोहली के उदाहरण ने उसे किया था इंस्पायर....

संजीव चौधरी

मुजफ्फरनगर। शुक्रवार 9 जून, 2017 को उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् की बोर्ड की हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षाओं का परिणाम आया है, जिसके बाद कहीं ख़ुशी कहीं गम देखने को मिला। आज के भौतिक युग में जहां तमाम सुख—सुविधाओं के बाद भी कई सम्पन्न घरानों के बच्चे परीक्षा में ज्यादा अंक प्राप्त नहीं कर पाते, वहीं एक ऐसी प्रतिभा भी है जिसने गरीबी और मुफलिसी के बाद भी अपने मृतक पिता का सपना साकार किया है। मीनाक्षी ने गरीबी के चलते स्ट्रीट लाइट की रौशनी में पढ़कर इंटर की परीक्षा में न केवल अपना विद्यालय टॉप किया, बल्कि जनपद में दूसरा स्थान प्राप्त किया है।

अपनी माँ  के साथ मीनाक्षी 
मुजफ्फरनगर जिले के गांव अलमासपुर निवासी ऋषिपाल की बेटी मीनाक्षी शर्मा लाला जगदीश प्रसाद सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज की 12वीं की छात्रा है, जिसने बोर्ड की परीक्षा में 500 में से 459 अंक पाकर अपना विद्यालय तो टॉप किया ही है, साथ में जनपद में भी दूसरा स्थान प्राप्त कर अपने मृतक पिता का भी सपना साकार किया है। मीनाक्षी बहुत गरीब परिवार से ताल्लुक रखती है। उसके पिता की बीमारी के चलते और गरीबी के कारण इलाज के अभाव में उसी दिन मौत हो गयी थी, जिस दिन मीनाक्षी की अंग्रेजी विषय की परीक्षा थी। 

मीनाक्षी ने बताया उसके पिता रिक्शा चलाकर परिवार का पालन—पोषण करते थे। इसी बीच बीमारी के दौरान इलाज समय से ना करा पाने की वजह से उन्होंंने दम तोड़ दिया। पिता की मौत के बाद परिवार पर मानो आसमान टूट पड़ा और इसी मुफलिसी में मीनाक्षी ने स्ट्रीट लाइट की रौशनी और किवाड़ का ब्लैक बोर्ड बनाकर पढाई की।

मीनाक्षी कहती हैं, मेरे 90.8 प्रतिशत अंक आये हैं इस बात की ख़ुशी भी है, लेकिन पापा का गम भी है। आज मेरी फोटो तमाम पेपरों में छपी है, मगर यह सब देखने के लिए मेरे पापा जिंदा नहीं हैं। वो चाहते थे कि मेरा फोटो अखबार में छपे। पिता की मौत के बारे में बताते हुए वो कहती है, उन्हें सैप्टिक हो गया था। डॉक्टर ने हमें इसके बार में बताया नहींं। हमने सोचा ऐसे ही छोटी—मोटी फुंसी हैं ठीक हो जायेगी। बाद में जब हम उन्हें एसडी हॉस्पिटल लेकर गए तो सेप्टिक का पता चला। 

हमारी आर्थिक हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि हम उन्हें मेरठ ले जाते। हम उन्हें डॉक्टर अंसारी के पास लेकर गए। उन्होंने कहा दवाई दे देता हूं वो ठीक हो जाएंगे। हम उन्हें वापस घर लेकर आये तो उन्होंने सुबह अपनी पहली डॉज ली और फिर थोड़ी देर बाद उनकी डेथ हो गयी। 

जब पिता की मौत हुई उस वक्त मेरे दो पेपर रह रहे थे। मेरे पापा नानाजी के साथ काम भी करते थे। उन्होंने रेड़ा और रिक्शा भी चलाया। दरवाजे को ब्लैकबोर्ड क्यों बनाया? के जवाब में मीनाक्षी कहती हैं, गेट पर इस वजह से लिखा क्योंकि मेरा सब्जेक्ट मेथ था। उसमें एक सवाल करो तो पेज भर जाता है, तो काफी कॉपी यूज होती थी। 

ज्यादा कॉपी भरने पर मम्मी ने कहा बोर्ड पर लिख लो इसलिए मैंने दरवाजे को ब्लैकबोर्ड बना लिया। स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई की। रात को बेट्री चार्ज करा लेते थे तो उससे पढ़ती थी, सुबह 4 बजे से मोबाइल से पढ़ती थी।

मेरे नंबर अच्छे आए हैं, मगर मुझे थोड़ी ज्यादा की उम्मीद थी। इंग्लिस में मेरे नंबर कम आये हैं, क्योंकि उसी दिन मेरे पापा एक्सपायर हुए थे। पापा मुझसे कहते थे कि विराट कोहली के पापा जब एक्सपायर हुए थे, तो उसने अपने पापा को नही देखा था, वो देश के लिए खेल रहे थे। पापा की इस बात से मुझे सीख मिली और मैंने रोने के बजाय पापा की इस बात को गांठ बांध लिया। आगे क्या करने का विचार है? पूछने पर वो कहती है बीएससी करूंगी, फिर एमएससी और फिर यूजीसी नेट करके प्रोफेसर बनूंगी।

मीनाक्षी की सफलता पर उसकी मां पूजा शर्मा कहती हैं, ख़ुशी है, पर थोडा दुःख भी है। दुःख इसके पापा की तरफ से है कि वो नहीं रहे। उनका सपना था कि मेरी बेटी का फोटो न्यूज़ पेपर में छपे। आज इस लड़की ने अपने पापा का सपना पूरा किया है, लेकिन वो नही हैं। सारे रिश्तेदार मीनाक्षी की सफलता से बहुत खुश हैं। उनके न रहने से हमें आर्थिक कठिनाइयां आएंगी, पर मैं बिटिया की पढ़ाई रुकने नहीं दूंंगी। कुछ भी करूंगी उसके लिए। 

मैं मिडडे मील में काम करती हूं, मगर उसमें भी बहुत कम पैसा मिलता है, आगे अब कुछ और काम करने के लिए भी सोचना पड़ेगा। फिलहाल तो हमारा परिवार मीनाक्षी के नानाजी पर ही निर्भर है आर्थिक तौर पर। मगर वो भी बूढ़े हो रहे हैं।

देखें वीडियो : 

दिल्ली में डिस्टेंस एजूकेशन के केवल 1 प्रतिशत विद्यार्थी हुए पास

दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने पहले 62000 बच्चों को स्कूल सिस्टम से निकाला और फिर पत्राचार से दसवीं  की परीक्षा दिलाई, जिसके कारण 99 फीसदी बच्चे फेल हो गए ...

दिल्ली में इस बार पत्राचार से दसवीं की परीक्षा देने वाले 62000 विद्यार्थियों में से 60750 विद्यार्थी फेल हो गए हैं। आॅल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन ने इस परीक्षा परिणाम को केजरीवाल सरकार की गलत शिक्षा नीति का नतीजा बताया है। इसके खिलाफ रविवार, 11 जून, 2017 को जंतर मंतर पर विद्यार्थी अपने माता—पिता और रिश्तेदारों के साथ धरना प्रदर्शन करेंगे। 

आॅल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन का कहना है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने पहले 62000 बच्चों को स्कूल सिस्टम से निकाला और फिर पत्राचार से दसवीं  की परीक्षा दिलाई, जिसके कारण 60750 बच्चे असफल हुए। गलत शिक्षा नीति के चलते इतने सारे विद्यार्थियों का भविष्य अधर में लटक गया है। इन नीतियों के खिलाफ ही विद्यार्थियों ने धरना प्रदर्शन करने का फैसला किया है।
  
आल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन ने केजरीवाल सरकार से मांग की है कि सभी फेल विद्यार्थियों को री-टेस्ट का मौका दिया जाए। री-टेस्ट में पास होने वाले विद्यार्थियों को स्कूल में ग्यारहवीं में एडमिशन दिया जाए साथ ही री-टेस्ट में फेल होने वाले विद्यार्थियों को स्कूल में दसवीं कक्षा में एडमिशन दिया जाए।

आल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने सभी असफल विद्यार्थियों और उनके माता—पिता से अपील की है वे ज्यादा से ज्यादा तादाद में आकर इस धरने को सफल बनाएं जिससे केजरीवाल सरकार की आंखें खुलें और वो अपनी गलत शिक्षा नीति की तरफ ध्यान दे।

देखें वीडियो :


Jun 5, 2017

एनडीटीवी इतनी आसानी से नहीं बना है जो आप मिटा देंगे : रवीश कुमार

र​वीश कुमार की मोदी को ललकार, कभी आमने—सामने तो आइए 

सरकार विरोधी माने जाने वाले एनडीटीवी समूह के संपादक प्रणब रॉय के यहां 2010 के एक बैंक फ्रॉड के मामले में हुई छापेमारी के बाद पूरे देश से तीखी प्रतिक्रियाएं हो रही हैं। भाजपा को छोड़ ज्यादातर पार्टियों ने सरकार की इस कार्यवाही की निंदा की है। देश के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सरकार की हां में हां नहीं मिलाने वाली मीडिया के मूंह पर जाबी लगाने की कायराना हरकत बताया है।

गौरतलब है कि तीन दिन पहले भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा एनडीटीवी अंग्रजी के डिबेट में शामिल होने एनडीटीवी के दफ्तर पहुंचे थे। शो में बहस के दौरान संबित ने एंकर निधि राजदान के एक सवाल पर एनडीटीवी को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि आपलोगों का एक एजेंडा है, जिसपर आपलोग काम करते हैं। 

संबित के कहे पर एंकर ने ऐतराज किया पर संबित ने अपनी बात जारी रखी और एजेंडा वाली बात पर अड़े रहे। ऐसे में एंकर निधि राजदान ने उन्हें शो से जाने को कहा और संबित को शो से जाना पड़ा। 

माना जा रहा है कि भाजपा सरकार ने अपने प्रवक्ता की इस बेइज्जती का बदला लिया है और एनडीटीवी को सबक सिखाने के लिए छापेमारी करवाई है। भाजपा की इस प्रतिक्रियावादी कार्यवाही पर ज्यादातर पार्टियों ने भाजपा और मोदी सरकार की आलोचना की है और कहा है कि मीडिया की आवाज को इस तरह से दबाया जाना कहीं से भी लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता है। 

सरकार की कार्यवाही से आहत एनडीटीवी के सबसे प्रखर एंकर रवीश कुमार ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि मोदी सरकार देश में सिर्फ गोदी मीडिया को देखना चाहती है।

औरत के गुप्तांग की शक्ल वाली ऐशट्रे के विज्ञापन का हो रहा विरोध

अमेज़ॉन डॉट कॉम के इस वाहियात विज्ञापन का हो रहा जमकर विरोध, कंपनियां सामान बेचने के नाम पर हमारे नौजवानों बना रही हैं असंवेदनशील, कंपनी की निगाह में औरतों की नहीं कोई इज़्ज़त। सोशल मीडिया पर हो रही मांग, अमेजॉन तत्काल हटाए ये विज्ञापन।

इस मसले को सबसे पहले सोशल मीडिया में लेकर आयीं अनामिका चक्रवर्ती अनु लिखती हैं, 

स्त्री के गुप्तांग में सिगरेट बुझाना यानि पुरूष की सोच कहाँ तक जा चुकी है। अब तक बलात्कारी — डंडा, राॅड, बाँस और न जाने क्या क्या डाल चुके हैं पीड़िताआं के गुप्तांगों में। अब एक दुनिया की सबसे बड़ी आॅनलाइन अमेजॉन लेकर लेकर आयी है ऐश ट्रे स्त्री के गुप्तांग के रूप में।

अनामिका लिखती हैं, 'किसी न किसी बहाने औरत को नंगा कर उसे बेइज्जत करना एक शौक बन गया है। रचनात्मकता का आधुनिकरण इस चरम पर पहुँच गया है कि
अब एक सिगरेट बुझाने वाले ऐश ट्रे के डिजाइन को स्त्री के गुप्तांग के रूप में बनाना पड़ गया।'

और ये महान घिनौना काम किया है सबसे बड़ी Online Company #amazon ने।

लेखिका सवाल करती हैं कि इन्हें पूरी दुनियाँ में, पूरी पृथ्वी में कोई और डिजाइन नहीं मिला एक अदने से ऐश ट्रे को डिजाइन करने के लिये।'

आखिर ये कम्पनी आज किसी बलात्कारी से कम नजर नहीं आ रही है। इस कम्पनी ने इससे पहले भी ऐसी ही शर्मनाक काम किया था जूतों पर तिरंगे का डिजाइन करके ।

अनामिका अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए सवाल करती हैं, 'क्या स्त्री केवल भोग संभोग की वस्तु है?
क्या स्त्री केवल एक सेक्स का प्रतिरूप है ?
कहाँ हैं वे लोग जो स्त्री के मान सम्मान उसकी सुरक्षा पर बड़ी बड़ी बातें करते हैं लेख, कहानी, उपन्यास और क्रांतिकारी कविताएं लिखते हैं।

वह अपील करते हुए कहती हैं, 'कम्पनी की इस वाहियात हरकत पर आवाज उठाएं और तुरन्त बंद करवाएं इस प्रोडक्ट को। और इतना ही नहीं इस पर एक केस दर्ज होना चाहिये जिससे भविष्य में फिर कभी ये ऐसी बेशर्मी वाली हरकतें न करें ।
ये सिर्फ ऐश ट्रे नहीं अपनी माँ बहन को बाजारू वस्तु बना रहे हैं ऐश ट्रे के रूप में।

इस कम्पनी का पूरी दुनियाँ में बहिष्कार किया जाना चाहिये।

जनरल पहले आप कानून का सम्मान करें

पैंतीस वर्ष के पुलिस जीवन में मेरा सैकड़ों पत्थर फेंकने वाली हिंसक भीड़ से, अनेकों बार हजारों की संख्या में भी वास्ता पड़ा होगा जिसमें शामिल लोग ‘उपद्रवी’, ‘शरारती’, ‘पथभ्रष्ट’, ‘भाड़े के टटटू’ कुछ भी कहे जाने चाहिये थे, पर देश के दुश्मन हरगिज नहीं.....

विकास नारायण राय 

भारत के सेनाध्यक्ष जनरल रावत ने कश्मीर में उपचुनाव के बहिष्कार के समर्थन में पत्थर फेंकने वालों को ‘डर्टी वार’ का हिस्सा और देश का ‘दुश्मन’ करार दिया है. उनसे निपटने में सेना की ‘मानव कवच’ रणनीति के समर्थन में उतरे जनरल ने कहा कि लोग डरेंगे नहीं तो सेना के आदेशों का सम्मान नहीं करेंगे.


पैंतीस वर्ष के पुलिस जीवन में मेरा सैकड़ों पत्थर फेंकने वाली हिंसक भीड़ से, अनेकों बार हजारों की संख्या में भी वास्ता पड़ा होगा जिसमें शामिल लोग ‘उपद्रवी’, ‘शरारती’, ‘पथभ्रष्ट’, ‘भाड़े के टटटू’ कुछ भी कहे जाने चाहिये थे, पर देश के दुश्मन हरगिज नहीं. यह भी मेरा अनुभव रहा है कि उत्तेजित लोग तभी आपकी बात मानेंगे जब आप भी कानून का सम्मान करें. 

9 अप्रैल, श्रीनगर उपचुनाव के दिन, पांच घंटे सेना की जीप के बोनेट पर रस्सी से बंधे-बंधे एक कश्मीरी मुस्लिम युवक को अट्ठाईस किलोमीटर का सफ़र तय करना पड़ा था. जीप उसे इसी रूप में कुल सत्रह गांवों में लेकर गयी और अंत में एक सीआरपीएफ़ कैंप में उसे उसके भाई और सरपंच के हवाले किया गया.

सारा दिन वह इस बात की गारंटी रहा कि उसे कवच बनाकर निकली सैन्य टुकड़ी पर पत्थर न फेंके जायें. 13 अप्रैल को जाकर स्थानीय पुलिस ने मुक़दमा दर्ज किया. 22 मई को सेना ने मेजर को पुरस्कृत किया. अगले दिन मेजर ने प्रेस कांफ्रेंस में ऐसी गढ़ी कहानी सुनायी जिस पर एक भी सवाल लेने की उनकी हिम्मत नहीं हो सकी.

गोगोई के अनुसार उन्हें उपचुनाव के दिन सूचना मिली कि एक मतदान केन्द्र में तैनात लोगों को पत्थरबाजी करती भीड़ ने घेर रखा है. मौके पर पहुंचे उनके जवानों ने भीड़ में से एक प्रमुख पत्थरबाज फारूकडार को काबू कर जीप के बोनेट से बाँध दिया जिससे उनकी दिशा में आने वाला पथराव रुक गया और वे घिरे लोगों को निकालकर ले जा सके. ऐसा उन्होंने स्थानीय लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया, अन्यथा उन्हें गोली चलानी पड़ती. तब से छिड़ी देशव्यापी बहस में कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने भी गोगोई के कदम को साहसी और त्वरित बुद्धि वाला करार दिया है. उनके मुताबिक, हिंसक प्रतिरोध की आशंका में मानव कवच का प्रयोग कोई नयी रणनीति नहीं है.

यह देश उकसाऊ कश्मीरी पत्थरबाजों की आशंका से घिरे मेजर गोगोई के जोशीले रणनीतिक अतिरेक को तो शायद पचा सकता है, लेकिन बचाव में उतरे जनरल रावत के‘दुश्मन’ और ‘डर्टी वार’ से निपटने के शेखचिल्ली दावों को नहीं. इन दावों से रावत ने, जिन्हें दो वरिष्ठों की अनदेखी कर सेनाध्यक्ष बनाया गया है, अपने संघी पैरोकारों को बेशक खुश किया हो, कश्मीर में कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर तो निराशा ही बढ़ी है. 

रावत ने कहा-
1. भारतीय सेना कश्मीर में डर्टी वार लड़ रही है.
2. वहां दुश्मन के विरुद्ध कल्पनाशील दांव-पेंच की जरूरत है.
3. मेजर गोगोई ने स्थानीय युवक फारूकडार को मानव कवच बनाकर मौके के मुताबिक ठीक किया. अन्यथा उन्हें मतदान केंद्र में फंसे जवानों को बचाने में पत्थरबाजी कर रहे स्थानीय लोगों पर गोली चलानी पड़ती.
4. सेनाध्यक्ष होने के नाते अपने अफसर के पक्ष में खड़ा होना उनका कर्तव्य बनता है.
5. मामले में कोर्ट मार्शल की कार्यवाही का नतीजा आये बिना सेना का गोगोई को पुरस्कृत करना उचित कदम है.
6. नागरिकों को सेना से डरना चाहिए अन्यथा वे सेना के आदेशों का सम्मान नहीं करेंगे.

मेजर के प्रेस कांफ्रेंस के वीडियो में बयान किया गया घटनाक्रम पहली नजर में ही बनावटी बातों का पुलिंदा नजर आता है. पत्थर बरसाती पांच सौ नौजवानों की उग्र भीड़ के बीच से, बिना गोली चलाये, एक व्यक्ति को पकड़कर जीप के बोनेट पर बांधना संभव ही नहीं है. डार ने उस दिन उपचुनाव में वोट भी डाला था, लिहाजा उसके पत्थर मारने वालों में शामिल होने की बात में वैसे भी दम नहीं लगता. न उसे घंटों बोनेट पर बाँध कर गाँव-गाँव घुमाने की जरूरत थी.

उसे गोगोई की टुकड़ी द्वारा रास्ते से उठाकर मानव कवच के रूप में इस्तेमाल करने का विवरण, तब से कई राष्ट्रीय अख़बारों में आ चुका है. यह भी तय है कि अगर जीप से बंधे डार की तस्वीर वाइरल न हुयी होती तो न गोगोई पर सवाल उठते और न रावत का बयान आता.

जायज सवाल है कि क्या कश्मीर अपवाद नहीं है? क्या वहां पाकिस्तान के समर्थन से छाया युद्ध ही नहीं चलाया जा रहा? तो आइये, कानून-व्यवस्था में सेनाको झोंकने की गति को एक अलग प्रसंग से समझते हैं. फरवरी, 2016 में हरियाणा के हिंसक जाट आरक्षण आन्दोलन के बीच सेना की झज्जर शहर के मुख्य बाजार में तैनात टुकड़ी ने गोली चलाकर आठ व्यक्तियों को मार दिया था, जबकि वहां आगजनी और लूट-पाट का दौर तब भी निर्बाध चलता रहा.

दरअसल, प्रदेश में नागरिक समुदाय का कोई भी तबका उस दौरान सेना की भूमिका से संतुष्ट नहीं था. होता भी कैसे, सेना से जो काम लिया जा रहा था, उसके लिए सेना बनी ही नहीं है. उसे झज्जर के बाजार की व्यवस्था का नहीं देश की सीमा की रक्षा का ज्ञान दिया जाता है, उसे नागरिकों के असंतोष से नहीं दुश्मनों के दांव-पेंच से निपटने की सिखलाई दी जाती है.

अन्यथा जनरल रावत से बेहतर कौन जानेगा कि पाकिस्तान का छाया युद्ध वहां की सेना और आइएसआई, भाड़े के आतंकियों और खरीदे हुए अलगाववादियों की मार्फ़त लड़ रहे हैं. कि पाकिस्तान का जिहादी इस्लाम वहां की सत्ता राजनीति को इस छाया युद्ध के लिए उकसाता रहता है. सीमा पर भारतीय सैनिकों का सर काटना ‘डर्टी वार’ का हिस्सा है. अलगाववादियों को आर्थिक और कूटनीतिक मदद देना ‘डर्टी वार’ का हिस्सा है. भाड़े के आत्मघाती तैयार कर भारतीय सैन्य कैम्पों पर हमला कराना ‘डर्टी वार’ है. कारगिल‘डर्टी वार’ था. कश्मीरी पंडितों का घाटी से पलायन ‘डर्टी वार’ था. इन सब को रोकने के लिए बेशक कल्पनाशील दांव-पेंच चाहिए.

हमारा राजनीतिक, कूटनीतिक और सामरिक नेतृत्व इन मोर्चों पर वांछित परिणाम नहीं दिखा सका है. उपचुनाव में मतदान का बायकाट और फर्जी मुठभेड़ या सेना और पुलिस की अन्य ज्यादतियों पर बाजार बंद और उस क्रम में पथराव जैसा असंतोष प्रदर्शन देश में कहाँ नहीं होता. कश्मीर में इन सबको ‘डर्टी वार’ का हिस्सा मानने का मतलब है हम पाकिस्तान के हाथ खेल रहे हैं. क्या इस तरह हम हर कश्मीरी मुस्लिम को पाकिस्तान के पाले में खड़ा नहीं कर रहे?

स्पष्ट कर दूँ, मैं भी उन लोगों में से ही हूँ जो मानते हैं कि कश्मीर में लम्बे अरसे से उग्र नागरिक स्थितियों से दो-चार हो रही अपनी सेना से हम भारतीयों को पूरी सहानुभूति रखनी चाहिए. वे इस तरह के काम के लिए बने ही नहीं हैं, यानी अफस्पा या बिना अफस्पा, उनके हिस्से अलोकप्रियता ही आनी है.

मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड में कानून-व्यवस्थाकी कवायद से लम्बे सैन्य साहचर्य का कटु अनुभव हमारे सामने है. इसी कारण इन प्रदेशों में भारतीय सेना को लेकर लोगों में गर्मजोशी का प्रकट अभाव मिलेगा। साथ ही पंजाब का उदाहरण हमारे सामने है जहाँ सेना का आतंकवाद से निपटने में सीमित एवं केन्द्रित इस्तेमाल सभी के लिए फलदायी रहा। सबक यह कि सेना सरहद के लिए होनी चाहिए, वक्ती जरूरत पड़ने पर अपवादस्वरूप नागरिक प्रशासन की मदद में आये. लेकिन नागरिकों के बीच उसकी अंतहीन उपस्थिति प्रतिकूल ही सिद्ध होगी.

हालाँकि किसी को ऐसा मुगालता भी नहीं होना चाहिए कि कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर स्थानीय पुलिस की भूमिका,प्रायः लोकप्रिय रहती है. दरअसल, नागरिकों के असंतोष से निपटने के क्रम में पुलिस पर पक्षपात, मनमानी, निकम्मापन और सत्ता केन्द्रित होने के आरोप आम लगते रहते हैं, एक हद तक सही भी.

कितनी ही स्वतंत्र एवं सरकारी जांच रपटों में पुलिस की कमियों और मिलीभगत का लेखा-जोखा पाया जा सकता है. लेकिन, निर्णायक तत्व यह है कि एक गयी गुज़री पुलिस भी न कभी नागरिकों को ‘दुश्मन’ करार देने की गलती करेगी, और न डींग मारेगी कि नागरिकों को पुलिस से डरना चाहिए.

कश्मीर में असंभव नागरिक दायित्व निभा रही सैन्य टुकड़ियों से किसी को ईर्ष्या नहीं हो सकती. दिल्ली से संचालित सत्ता केंद्र जब तक अपनी नीतियां नहीं बदलते, सेना को बेहद विषम परिस्थितियों में मनोबल कायम रखना ही है. हालाँकि, मेजर गोगोई के मानव कवच वाले कृत्य पर खेद जारी कर सेना न सिर्फ अपनी गौरवशाली परम्पराओं के साथ खड़ी नजर आती, शायद कश्मीर में विश्वसनीय आंतरिक सुरक्षा माहौल देने का श्रेय भी पा रही होती.

हमारे जनरलों को दोटूक बताना चाहिए कि सेना को दुश्मन से युद्ध लड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है, न कि नागरिकों के बीच कानून-व्यवस्था संभालने की. नागरिक प्रशासन की मदद में ड्यूटी करने वाली सैन्य टुकड़ियों में उग्र भीड़ से निपटने के समय प्रायः अनुभव और सिखलाई की कमी दिखना स्वाभाविक है.

तो भी मैं यह मानने को कतई तैयार नहीं कि सेना को अपनी गलती पकड़े जाने पर खेद जताना नहीं सिखाया जाता. सामान्य शिष्टाचार का यह सबक सैन्य अनुशासन का अभिन्न हिस्सा होता है, बेशक सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत इसे अपवाद सिद्ध करने पर उतारू नजर आते हों.

editorjanjwar@gmail.com