Jun 27, 2017

मोदी की तारीफ में एक शब्द नहीं बोले अमेरिकी राष्ट्रपति



मोदी की अमेरिका यात्रा पर पढ़िये पूर्व आईपीएस वीएन राय का लेख, जिन्होंने भारत के कई प्रधानमंत्रियों के साथ अमेरिका यात्रा की है। संयोग से अब की वह प्रधानमंत्री की यात्रा में तो नहीं पर अमेरिका में मौजूद थे...

मोदी के अमेरिका पहुँचने पर हवाई अड्डे पर उनके स्वागत के लिए बमुश्किल एक मेयर का पहुंचना बताता है कि अमेरिका में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी की क्या कद्र और कितना महत्व है। भारत में मोदी के चाहने वालों के लिए यह किसी सदमे से कम नहीं है, क्योंकि चाहने वालों को सरकार पोषित मीडिया ने बता रखा है कि मोदी की अमेरिका में धाकड़ छवि है
पर यहां सबकुछ उल्टा देखने को ही मिला। बड़ी बात तो यह है कि अमेरिका के वाशिंगटन स्थित व्हाइट हाउस में भारतीय प्रधानमंत्री मोदी का पारम्परिक रूप से लॉन पर मीडिया के सामने रस्मी स्वागत करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने मोदी की व्यक्तिगत तारीफ में एक शब्द भी नहीं कहा।
इससे जाहिर होता है कि मोदी को ट्रम्प ने कोई भाव नहीं दिया, जबकि मोदी की ट्रम्प से पहली मुलाकात थी। पहली मुलाकात में यह रवैया आश्चर्य में डालने वाला है। यह आश्चर्य इसलिए भी है कि सरकार पोषित मीडिया ने देश को बहुप्रचारित स्तर पर बता रखा है कि मोदी की पूछ अमेरिकी शासकों में दूसरे किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री के मुकाबले बहुत ज्यादा है।
जानकारों को पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गाँधी, नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की तारीफ में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कसीदे याद हैं। ओबामा ने तो मनमोहन सिंह को विश्व के श्रेष्ठतम अर्थशास्त्रियों में शामिल बताया था। यह वही मनमोहन सिंह हैं जिनकी छवि भारतीय समाज में अब एक मौनी बाबा की बना के रख दी गयी है।
ऐसे 'मौनी बाबा' के मुकाबले मोदी का स्वागत टांय-टांय फिस्स होना, मोदी की वैश्विक छवि पर एक सवालिया निशान खड़ा करता है?
हालांकि कुछ का कहना है कि जिस ट्रम्प को बस अपनी तारीफ़ की ही आदत है, वह मोदी की तारीफ कैसे करता? एक अन्य विचार है कि मोदी में तारीफ लायक है भी क्या? कुछ भी हो, इसी ट्रम्प ने इसी व्हाइट हाउस लॉन पर कुछ ही दिन पहले रूमानिया जैसे अदने से देश के राष्ट्रपति की तारीफ़ के बिंदु भी ढूंढ लिए थे।
मोदी का व्यक्तिगत अपमान इसलिए भी हुए चुभने वाला हो जाता है कि उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत ने अमेरिकी युद्ध इंडस्ट्री से रिकार्ड तोड़ युद्ध का सामान खरीद कर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को जम कर सहारा दिया है।
भारत ने 2009 में अमेरिका से 200 मिलियन डॉलर की जंगी खरीद, 2016 में नौ बिलियन डॉलर तक पहुँच गयी है। स्वयं ट्रम्प ने अपने स्वागत भाषण में इसक जिक्र किया, विशेषकर भारत द्वारा 100 जहाज खरीदने के समझौते का।
दूसरे शब्दों में, जो पैसा देश के विकास में लगाना चाहिए था, वह अमेरिकी रोजगारों को पैदा करने में मोदी सरकार लगा रही है। जबकि इसके बदले में अमेरिका कोई ऐसा आश्वासन भी नहीं दे रहा कि भारतीय कंप्यूटर प्रोफेशनल पर आ रहे प्रतिबंध कुछ ढीले किये जाएंगे। नारायण मूर्ति की इनफ़ोसिस पर तो अभी-अभी एक भारी भरकम जुर्माना भी ठोका गया है।
हालाँकि ट्रम्प ने भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र अवश्य कहा, और यह भी कि दोनों देशों के संविधान के पहले तीन शब्द एक समान 'वी द पीपल' हैं। शायद लोकतंत्र की इस कसौटी पर जोर देने के बाद ट्रम्प को लगा हो कि इस सन्दर्भ में मोदी का अपना ट्रैक रिकॉर्ड इस योग्य नहीं कि उनकी तारीफ की जा सके। उन्होंने सरकारी काम-काज में मोदी सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी दावों का जिक्र अवश्य किया, शायद इसलिए की अमेरिकी कंपनियों को भारत में घूस देने से छूट मिल जाय।
भारत में बिका हुआ मीडिया मोदी की अमेरिका यात्रा को जैसा भी बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहा हो, अमेरिकी मीडिया में बहुत कम और वह भी नेगेटिव बातें ही आ रही हैं। भारतीय दूतावास ने डॉलर शक्ति से एक दोयम श्रेणी के अख़बार में मोदी के हस्ताक्षरों का लेख छपवाया, जिसकी अमेरिकी मीडिया में कोई चर्चा नहीं हुयी अंतरराष्ट्रीय ख्याति के 'इकनॉमिस्ट' ने लिखा है कि मोदी की शोहरत पूंजीपतियों को धड़ाधड़ जमीन दिलाने की तो है पर व्यापक औद्योगिक विज़न की नहीं।
ट्रम्प के हाथों मोदी की उपेक्षा, ट्रम्प की जीत पर दीवाली मनाने वाले मोदी भक्तों को निराश तो करेगी ही।

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