May 8, 2017

सिर्फ 'एक काबिलियत' ने बनाया कपिल को केजरीवाल का प्रिय मंत्री

देश की जनता को ईमानदारी और नए लोकतंत्र का झुनझुना थमाकर अरविंद केजरीवाल बनने तो सिकंदर चले थे, पर औकात इतनी हो पाई कि वह अपने ही पाले हुए संपोलों को बस में रख सकें। उन्हीं संपोलों में से एक हैं कपिल मिश्रा, जिनको अरविंद ने अपना दूध पिलाकर किंग कोबरा बनाया था। किंग कोबरा अब फुंफकार रहा है और अरविंद हैं कि उनको जादू—मंतर का कोई सम्मोहनी मंत्र सूझ नहीं रहा! 

दिल्ली से भूपेंदर चौधरी की रिपोर्ट 


सम्मोहनी मंत्र के अभाव में पिछले तीन दिनों से अरविंद केजरीवाल सदमे में हैं। 

हालांकि उनको सदमे में होना नहीं चाहिए, क्योंकि केजरीवाल और आरोपों—प्रत्यारोपों का रिश्ता कोई नया नहीं है। बल्कि उनकी छवि है कि वह रोज सुबह उठते ही दो—चार आरोप किसी न किसी नेता—पार्टी, व्यवसायी, पुलिस पर लगा दिया करते हैं, फिर फ्रेश होने जाते हैं। उनके नजदीकी लोग कहते हैं, फ्रेश होने में आरोप उनके लिए वही काम करता है जैसे आम जनों के लिए सिगरेट, चाय, बीड़ी, खैनी या पानी। 

पर सच यही है कि अरविंद केजरीवाल सदमे में हैं। उन पर तानाशाह, झूठा, मक्कार, कुंडलीमार, राजनीतिक काइयांपन का रणनीतिकार और यूज एंड थ्रो वाली पॉलिटिकल स्टाइल का महारथी जैसे आरोप तो लगे थे, लेकिन अभी तक अरविंद केजरीवाल की 'एमएसपी' पर ऐसी चोट किसी ने नहीं की थी कि केजरीवाल कहीं मुंह दिखाने लायक न रह जाएं। 

वह पिछले तीन दिनों से सिर्फ जवाब खोज रहे हैं कि वह अपने ही सरकार में मंत्री रहे 'कपिल भाई' के आरोपों का मीडिया के सामने जवाब देंगे? कैसे बताएंगे कि मेरा सबसे प्रिय मंत्री कपिल  मुझ पर 2 करोड़ रुपए लेने का आरोप लगा रहा है, वह सच नहीं है। वह भी कपिल के आंखों देखी को कैसे झुठलाएंगे, वह भी दूसरे प्रिय मंत्री सत्येंद्र जैन के सामने की बात कह रहा है और सबसे बड़ी बात रिश्तेदार की जमीन डील के मामले में 2 करोड़ कमीशन लिए जाने का आरोप? 

जानकार बता रहे हैं कि केजरीवाल अभी भी कोशिश में हैं कि किसी तरह मामला शांत हो और मीडिया में हीरो बने कपिल मिश्रा को हाशिए पर डाला जा सके। इसीलिए दिल्ली सरकार के मंत्री मनीष सिसोदिया 25 सेकेंड में प्रेस कांफ्रेंस करके कट लेते हैं? कपिल मिश्रा से केजरीवाल नहीं उलझना चाहते क्योंकि वह उनके गहरे राज के साथी हैं? कई गुनाहों में केजरीवाल ने कपिल का इस्तेमाल किया है? बहुत कुछ अनौपचारिक और औपचारिक कपिल केजरीवाल बारे में जानते हैं जो एक पाला हुआ संपोला ही जान सकता है।  

ये वही कपिल मिश्रा हैं जो अरविंद केजरीवाल के इशारे पर आम आदमी पार्टी के सबसे बुजुर्ग संस्थापक शांति भूषण और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण को भरी सभा में मारने के लिए दौड़ा लिए थे।  

समय का चक्र भी कितना बलवान होता है। कब किस तरफ घूम जाए किसी को नहीं पता चलता। शायद कभी कपिल मिश्रा ने भी ये नहीं सोचा होगा कि जो खाई उन्होंने प्रशांत भूषण और शांति भूषण जैसे वरिष्ठों के लिए खोदी थी एक दिन वो खुद उसमें गिरेंगे।

यह बात साल 2015 की है। आम आदमी पार्टी दिल्ली में 67 एमएलए के साथ प्रचंड बहुमत के दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई थी। स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव और वकील प्रशांत भूषण की अरविंद केजरीवाल को सलाह थी कि वे संयोजक पद छोड़कर बतौर मुख्यमंत्री दिल्ली पर फोकस करें। 

मगर अरविंद केजरीवाल को उनकी यह बात खटकने लगी थी। कुछ दिन बाद करनाल बाई पास के पास बने आप के एमएलए के रिसोर्ट में पार्टी की नेशनल कौंसिल की मीटिंग रखी गई। योगेंद्र यादव और प्रशांत को निकालने की साज़िश रची जा चुकी थी। जैसे ही मीटिंग शुरू हुई तो प्रशांत ओर शांति भूषण ने कुछ बोलने की कोशिश की। 

तभी केजरीवाल की तय स्क्रीप्ट के अनुसार कपिल मिश्रा भूषण बाप—बेटे को चुप रहने और बाहर निकल जाने को लेकर शोर मचाने लगे। शोर कई लोग मचा रहे थे पर कपिल सबसे आगे थे।  इस पर नेशनल कौंसिल के कुछ मेंबर ने प्रशांत से सहमति जताते हुए उनके समर्थन में बोलने की कोशिश की तो कपिल मिश्रा और एक अन्य एमएलए दोनों बाप और बेटे को मीटिंग हॉल से बाहर करने के लिए उनके पीछे मारने के लिए दौड़ पड़े। 

हालांकि लोगों ने उन्हें शांति बनाए रखने की अपील की, जिसमें मनीष सबसे प्रमुख थे। लेकिन एक बात साफ थी कि वो बस दिखावा था। पीछे से कपिल को केजरीवाल का पूरा समर्थन था। 88 साल के बुजुर्ग शांति भूषण बहुत ही लाचार दिख रहे थे। उनकी आंखों में जैसे लाचारी साफ देखी जा सकती थी। 

नेशनल कौंसिल के कुछ सदस्य इस घटना से इतने आहत थे कि उन्हें खुद अपनी बेबसी पर रोना आ रहा था। इतने बुजुर्ग आदमी को धक्के मार के बाहर निकला जा रहा था और उसकी अगुआई कपिल मिश्रा कर रहे थे। 

कपिल मिश्रा ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन उन्हें भी इस पार्टी से ऐसे ही धक्के मार के मंत्री पद से निकाल दिया जायेगा।

2 comments:

  1. जितनी तेजी से बुलंदियों को छूने चले थे
    उतनी ही तेजी से विनाश को ओर

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