Apr 2, 2017

हालात यही रहे तो इंदौर जेल के कैदी होते जाएंगे टीबी मरीज

चूने से साफ करने पड़ते हैं दांत, नहीं मिलता भरपेट खाना, सभी कैदियों का गिर रहा लगातार वजन  

इंदौर जेल से लौटकर दीपक असीम की रिपोर्ट 

इंदौर के पत्रकार दीपक असीम वही शख्स हैं जिनको ओशो का लिखा अपने अखबार में छापने पर हिंदूवादियों ने जेल पहुंचवा दिया था। उन्हें 4 से 12 मार्च तक जेल में रहना पड़ा। जेल में रहने के दौरान हुए अनुभवों को उन्होंने जनज्वार से साझा किया है। उन अनुभवों को हम इसलिए भी प्रकाशित कर रहे हैं कि जेल की स्थितियों को लेकर जो काम एक खोजी पत्रकार को करना चाहिए था, उसे बहुत ही शानदार तरीके से एक कैदी रहते हुए दीपम असीम ने किया है। रिपोर्ट तीन किस्तों में प्रकाशित होगी, पेश है पहली किस्त... 


इस बार जब जेल गया तो डरा हुआ था। जो आदमी देवी-देवताओंं के अपमान के (झूठे ही सही) आरोप में जेल गया हो, उसे अंदर उन कैदियों से खतरा हो सकता है, जो रोज़ शाम को ज़मानत और रिहाई की आस में आवाज़े बाबुलंद में आरती करते हों और चोटी भी रखते हों।  जब ऐसे कैदी पूछते थे कि धारा २९५ ए का क्या मतलब होता है और मतलब सुनकर भड़कने लगते थे, तो अपनेराम यही पूछते थे कि आप खुद बताइये, क्या पुलिस जो आरोप लगाती है, वो सच्चे होते हैं? इतना सुनकर ही वे हलवा हो जाते थे। फिर उनका सवाल यह होता था - आखिर आपको पुलिस ने फंसाया क्यों? फिर वे खुद बताने लगते थे कि उन्हें क्यों फंसाया गया है। 

तो एक तो यह पुलिस वाली तरकीब काम कर गई। दूसरी राहत यह रही कि सेंट्रल जेल में इस समय कोई बड़ा दादा-पहलवान नहीं है। किसी की नक्शेबाजी अब इस जेल में नहीं चलती। जो सीओ (पुराने कैदी) पहले 'नई आमद' को मारते-कूटते थे, वो सब भी अब एकदम बंद...। पहले कैदी की हैसियत देख कर उसके घर से पैसा मंगाने का रैकेट चलता था। वो रैकेट भी अब बिल्कुल खत्म हो चुका है। 

अपन वहां 12  दिन रहे। बारह दिनों में यही देखा कि अव्वल तो शेर बचे ही नहीं हैं और जो शेर हैं, वो बकरी की खाल ओढ़ कर रह रहे हैं। जिन रोटियों को पहले जलाकर अपना खाना अलग बनाया जाता था, उन रोटियों की कीमत हो गई है। उन रोटियों को अब बचा कर रखा जाता है और कैदी नाश्ते बतौर जब भूख लग जाए खा लेते हैं। 

अव्वल तो पांच रोटियां कैदियों को कम पड़ती हैं, क्योंकि बाहर के खाने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई है। पाबंदी इतनी सख्त है कि नमक तक के लिए लोग तरसते हैं। भोपाल में जब से सिमी के कैदियों का एनकाउंटर हुआ, तब से जेल के नियम बहुत सख्त हो गए हैं। चूंकि भोपाल में यह कहा गया था कि कैदियों ने टूथ ब्रश से चाबी बना ली सो यहां के सभी कैदियों से टूथब्रश धऱवा लिये गए। कहा गया था कि तौलियों से रस्सी बना ली, सो सारे तौलिये जब्त। 

हालांकि जो काम तौलिये जोड़ कर हो सकता है, वो चादर जोड़ कर भी हो सकता है। पेस्ट भी नहीं मिलता। कैदी ऐसे पाउडर से दांत साफ करते हैं, जो मुंह पर लग कर होंठ  फाड़ देता है (शायद चूना है)। सो कैदियों के मुंह बास रहे हैं। नहाएं तो बदन कैसे पोछें? तेल कंघा साबुन छीन लिया गया है और जेल में खोपरे का जो तेल मिलता है, उसमें पाम आइल मिला होता है। इसे चेहरे पर लगाओ तो चेहरा काला पड़ जाता है और चमड़ी फटने लगती है। 

कैदियों से उनका सारा सामान छीन लिया गया है। जिस थाली में खाना खाते हैं, चाय तक कैदी उसी से पी रहे हैं। शौचालय में इस्तेमाल होने वाली पानी की बोतलें तक कम पड़ने लगी हैं। मगर जेल नियमों के खिलाफ कोई चूं तक नहीं कर सकता। 

जेल नियमों के हिसाब से कैदी की खुराक पर एक दिन में लगभग 140 रुपये खर्च करने का प्रावधान है, जो वाकई अगर ईमानदारी सो हो, तो कैदी आराम से रह सकते हैं, मगर मात्र बीस-पच्चीस रुपये ही कैदी की खुराक पर खर्च हो रहे हैं। पांच रोटियां (जो गेंहू में न जाने कौन से आटे की मिलावट से बनाई जाती हैं), एक डंका पतली पानी जैसी दाल और एक पतली पानी जैसी ही सब्जी। 

एक कैदी की खुराक में दिन भर में तीस ग्राम खाने का तेल होना चाहिए, मगर तीन ग्राम भी नहीं होता। तीन मिलीग्राम शायद होता हो। अगर कोई पुराना कैदी सब्जी की तरी निकाल ले, तो उसकी पिटाई हो जाती है। कैदियों का वजन तेजी से कम हो रहा है। दस्तावेज के हिसाब से अपन जब 4 मार्च को जेल गए थे, तब वजन था सौ किलो और 14 मार्च की दोपहर को जब जेल में वजन हुआ तो वजन बैठा 92  किलो। 

मोटे आदमी के लिए यह कमाई है कि दस दिनों में वजन आठ किलो कम हो जाए। मगर जो बेचारे पहले ही दुबले हैं, उनके लिए तो यह डेढ़ आषाढ से भी बदतर है। बहुत से कैदियों ने बताया कि जब हम जेल आए थे तो हमारा वजन ज्यादा था, जो भोपाल वाली घटना के बाद तेजी से कम हुआ है और लगातार हो रहा है। 

पर जेल प्रशासन पर सख्ती की सनक सी सवार है। वो कुछ सुनने को तैयार नहीं है। कुछ पुराने कैदी कहते हैं कि अगर यही हाल रहा तो कुछ महीने में कैदी टीबी से मरने लगेंगे। बहरहाल कुछ कैदियों ने पहचान लिया कि ये साहब तो पहले भी आ चुके हैं और गुल खिला चुके हैं। मगर ये वाला किस्सा कल के लिए...। 

editorjanjwar@gmail.com

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