लखनऊ 1 अप्रैल 2017। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने के आरोपों की जांच के लिए 153 (ए) के तहत सरकार द्वारा अनुमति देने पर सवाल किया है। इस मामले में 31 मार्च को एक याचिका की सुनवाई करते हुए उच्च अदालत ने सरकार से तीन हफ्ते के भीतर जवाब मांगा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सीबीसीआईडी जांच क्यों नहीं हुई ?
सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ सक्रिय संगठन रिहाई मंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट इस फैसले का स्वागत किया है। सामाजिक कार्यकर्ता परवेज परवाज और असद हयात ने 2007 में गोरखपुर में हुए साम्प्रदायिक हिंसा को लेकर अदालत में याचिका दायर कर मांग की थी कि इस मामले में आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच की जाए।
याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार से जानना चाहा कि योगी और अन्य आरोपियों के खिलाफ सीबीसीआईडी जांच के लिए 153 (ए) के तहत सरकार ने अबतक अनुमति क्यों नहीं दी। 153 (ए) आईपीसी के तहत साम्प्रदायिक भड़काऊ भाषण के आरोप में न्यूनतम तीन साल की सजा का प्रावधान है। लेकिन इस मामले में कोर्ट तभी संज्ञान लेती है जब राज्य या केंद्र सरकार मुकदमें की मंजूरी देती हो।
मुकदमे की पृष्ठभूमि बताते हुए रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव कहते हैं कि 27 जनवरी 2007 की रात गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर विधायक राधामोहन दास अग्रवाल और गोरखपुर की मेयर अंजू चौधरी की मौजूदगी में हिंसा फैलाने वाला भाषण दिया। भाषण के दौरान मुख्यमंत्री योगी ने हिंदुओं को उकसाते हुए कहा कि वो मुहर्रम में ताजिया नहीं उठने देंगे और खून की होली खेलेंगे। इस भाषण के बाद भीड़ ‘कटुए काटे जाएंगे, राम राम चिल्लाएंगे’ के नारों के साथ मुसलमानों की दुकानें फूंकी गयीं।
याचिका में कहा गया है कि इसके साथ ही गोरखपुर के दूसरे क्षेत्रों, देवरिया, पडरौना, महाराजगंज, बस्ती, संत कबीरनगर और सिद्धार्थनगर में योगी के कहे अनुसार ही मुस्लिम विरोधी हिंसा हुई। मुसलमानों की करोड़ों की सम्पत्ति का नुकसान हुआ लेकिन एफआईआर तक दर्ज नहीं हुआ।
ऐसे में सामाजिक कार्यकर्ता परवेज परवाज और असद हयात द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट पेटिशन दायर कर प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई। लेकिन अदालत ने उसे खारिज करते हुए सेक्शन 156 (3) के तहत कार्रवाई का निर्देश दिया। जिसके बाद सीजेएम गोरखपुर की कोर्ट में एफआईआर दर्ज कराने के लिए गुहार लगाई गई। जिस पर कुल 10 महीने तक सुनवाई चली और अंततः मांग को खारिज कर दिया गया।
मामला खारिज कर दिए जाने के बाद याचिकाकर्ताओं द्वारा हाईकोर्ट में रिवीजन दाखिल हुआ। तब जाकर इस मामले में एफआईआर दर्ज हो पायी। एफआईआर के बाद योगी के साथ सहअभियुक्त अंजू चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर एफआईआर और जांच पर स्टे ले लिया। पर 13 दिसम्बर 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने अंजू चौधरी की एसएलपी को खारिज कर दिया और जांच के आदेश दे दिए। लेकिन सीबीसीआईडी की इस जांच के लिए अखिलेश यादव सरकार ने अपने जांच अधिकारी को अनुमति ही नहीं दी और मामला वहीं का वहीं पड़ा रहा।
सरकार द्वारा सीबीसीआइडी जांच की अनुमति नहीं देने पर सरकार को हाईकोर्ट ने तीन हफ्ते में जवाब देने को कहा है। अगर जांच सही पाई जाती है तो इस मामले में प्रदेश के मुख्यमंत्री को तीन साल की सजा हो सकती है।
पर सब जानते हैं कि जब अखिलेश सरकार ने जांच के आदेश नहीं दिए फिर योगी जी अपने खिलाफ ही जांच के आदेश क्यों देंगे?
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