मर्दो का बहुमत औरतों के बारे में जनमत कैसे बनाता है, उसका एक मजमून देखिए।
दिल्ली के राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर यात्रियों के चढ़ने के साथ चटाक की
आवाज आई। साफ था कि किसी के गाल पर जोर का तमाचा लगा है। देखा तो पता चला
कि तमाचा एक लड़की ने एक लड़के के गाल पर मारा है। तमाचा मारने वाली लड़की,
लड़के को डांट रही थी। बदतमीज और बेशर्म बोल रही थी। लड़का भौचक था जबकि
भीड़ तत्पर निगाहों से दोनों को देख रही थी।
लड़का अकबकाते हुए बोला, 'मैंने क्या किया, मैंने क्या किया। इतनी भीड़ में धक्का लग गया तो मैं क्या करूं।'
लड़की, 'धक्का लगा है। बताउं मैं तुम्हें। एक और जोर की लगाउंगी तो सब याद आ जाएगा।'
भीड़ और भी तत्परता से कभी लड़के की तरफ तो कभी लड़की ओर ताके जा रही थी। लड़का वहीं गेट पर खड़ा रहा और गुस्से में तमतमाई लड़की दूसरे बोगी की ओर बढ़ गयी। थोड़ी देर में लड़का भी दूसरी ओर खिसक लिया।
तबतक ट्रेन मंडी हाउस से आगे बढ़ चुकी थी और मौन भीड़ विमर्श की मुद्रा में आ चुकी थी। विमर्श की शुरुआत करते हुए एक दक्षिण भारतीय हिंदी बोलने वाले सज्जन ने कहा, 'मैंने देखा नहीं कि लड़के ने क्या किया, लेकिन जब इतनी परेशानी रहती तो इन लोगों को लेडिज बोगी में जाना चाहिए। बताइए, मारने का क्या? पलट कर वह भी मार दे फिर हम ही लोग कहेंगे कि लेडिज पर हाथ उठाता है।'
बात को आगे बढ़ाते हुए एक दूसरे अधेड़ ने कहा, 'मैंने भी नहीं देखा कि लड़के ने क्या किया पर इन लड़कियों के साथ अपराध इसीलिए हो रहे हैं कि मर्दों का यह कोर्इ् वैल्यू ही नहीं समझतीं। जब कोई लड़की ऐसे सरेआम मर्द को बेइज्जत करेगी तो क्या होगा। अगर वह लड़का अपने पर आ जाए और कुछ कर दे तो। वैसे भी तेजाब फेंकने की कितनी घटना होने लगी हैं आजकल।'
तीसरी राय एक नौजवान की ओर से आई, 'ऐसी लड़कियों के ही बलात्कार होते हैं। कैसे ठुमक के चली गयी। अरे क्या किया होगा लड़के ने। भीड़ में धक्का ही लगा होगा न। क्यों चलती है मेट्रो से। इतने ही नखरे हैं तो गाड़ी से चला करे, बोल दे बाप को।'
चौथी राय उस आदमी की ओर से आई जिसके गले में मिनिस्ट्री आॅफ होम अफेयर्स का आईकार्ड गले में लटका था। उनके विचार में, 'पता नहीं लड़के ने लड़की के साथ किया क्या पर इसमें मैं लड़की से ज्यादा मां—बाप को दोषी मानता हूं। वह बेटियों को पारिवारिक मूल्य सिखा नहीं रहे। मेरी भी बेटियां हैं, हमलोग भी परिवार वाले हैं, कभी कोई संस्कारी लड़की ऐसा करेगी नहीं। वह सह लेगी चुपचाप। आखिर क्या मिला उस लड़की को। जो बात छुपी हुई थी वह सबके बीच आ गई, क्या इज्जत रह गयी।'
ऐसी घटनाओं के एकाध किस्से आपके पास भी होंगे। पर इस घटना में आपने गौर किया होगा कि राय बनाने वालों में से किसी को पता नहीं कि लड़के ने लड़की के साथ क्या किया, किस रूप में छेड़खानी की, क्योें लड़की ने चाटा मारा। पर राय बना ली, अगल—बगल वालों को प्रभावित किया। इतना ही नहीं राय बनाने वाले ये लोग जहां काम करते होंगे, पढ़ते होंगे या रहते होंगे, वहां भी कल को औरतों—लड़कियों की बात आने पर आंखों देखी इस साक्ष्य को कुर्सी पर मुक्का मारकर दावे के साथ पेश करेंगे।
पर आप सब जोकि इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी नहीं है, सिर्फ इस वाकये के एक पाठक भर हैं, क्या प्रत्यक्षदर्शियों के जनमत बनाने की इस प्रक्रिया के साथ आप खड़े होना जायज मानते हैं। नहीं न। फिर इसे रोकिए, चुप मत बैठिए क्योंकि बहुमत द्वारा जनमत बनाने का यह तरीका बहुत ही खतरनाक है। सिर्फ औरतों के लिए नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए, एक सक्षम मुल्क के लिए।' #metrodairy
भीड़ और भी तत्परता से कभी लड़के की तरफ तो कभी लड़की ओर ताके जा रही थी। लड़का वहीं गेट पर खड़ा रहा और गुस्से में तमतमाई लड़की दूसरे बोगी की ओर बढ़ गयी। थोड़ी देर में लड़का भी दूसरी ओर खिसक लिया।
तबतक ट्रेन मंडी हाउस से आगे बढ़ चुकी थी और मौन भीड़ विमर्श की मुद्रा में आ चुकी थी। विमर्श की शुरुआत करते हुए एक दक्षिण भारतीय हिंदी बोलने वाले सज्जन ने कहा, 'मैंने देखा नहीं कि लड़के ने क्या किया, लेकिन जब इतनी परेशानी रहती तो इन लोगों को लेडिज बोगी में जाना चाहिए। बताइए, मारने का क्या? पलट कर वह भी मार दे फिर हम ही लोग कहेंगे कि लेडिज पर हाथ उठाता है।'
बात को आगे बढ़ाते हुए एक दूसरे अधेड़ ने कहा, 'मैंने भी नहीं देखा कि लड़के ने क्या किया पर इन लड़कियों के साथ अपराध इसीलिए हो रहे हैं कि मर्दों का यह कोर्इ् वैल्यू ही नहीं समझतीं। जब कोई लड़की ऐसे सरेआम मर्द को बेइज्जत करेगी तो क्या होगा। अगर वह लड़का अपने पर आ जाए और कुछ कर दे तो। वैसे भी तेजाब फेंकने की कितनी घटना होने लगी हैं आजकल।'
तीसरी राय एक नौजवान की ओर से आई, 'ऐसी लड़कियों के ही बलात्कार होते हैं। कैसे ठुमक के चली गयी। अरे क्या किया होगा लड़के ने। भीड़ में धक्का ही लगा होगा न। क्यों चलती है मेट्रो से। इतने ही नखरे हैं तो गाड़ी से चला करे, बोल दे बाप को।'
चौथी राय उस आदमी की ओर से आई जिसके गले में मिनिस्ट्री आॅफ होम अफेयर्स का आईकार्ड गले में लटका था। उनके विचार में, 'पता नहीं लड़के ने लड़की के साथ किया क्या पर इसमें मैं लड़की से ज्यादा मां—बाप को दोषी मानता हूं। वह बेटियों को पारिवारिक मूल्य सिखा नहीं रहे। मेरी भी बेटियां हैं, हमलोग भी परिवार वाले हैं, कभी कोई संस्कारी लड़की ऐसा करेगी नहीं। वह सह लेगी चुपचाप। आखिर क्या मिला उस लड़की को। जो बात छुपी हुई थी वह सबके बीच आ गई, क्या इज्जत रह गयी।'
ऐसी घटनाओं के एकाध किस्से आपके पास भी होंगे। पर इस घटना में आपने गौर किया होगा कि राय बनाने वालों में से किसी को पता नहीं कि लड़के ने लड़की के साथ क्या किया, किस रूप में छेड़खानी की, क्योें लड़की ने चाटा मारा। पर राय बना ली, अगल—बगल वालों को प्रभावित किया। इतना ही नहीं राय बनाने वाले ये लोग जहां काम करते होंगे, पढ़ते होंगे या रहते होंगे, वहां भी कल को औरतों—लड़कियों की बात आने पर आंखों देखी इस साक्ष्य को कुर्सी पर मुक्का मारकर दावे के साथ पेश करेंगे।
पर आप सब जोकि इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी नहीं है, सिर्फ इस वाकये के एक पाठक भर हैं, क्या प्रत्यक्षदर्शियों के जनमत बनाने की इस प्रक्रिया के साथ आप खड़े होना जायज मानते हैं। नहीं न। फिर इसे रोकिए, चुप मत बैठिए क्योंकि बहुमत द्वारा जनमत बनाने का यह तरीका बहुत ही खतरनाक है। सिर्फ औरतों के लिए नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए, एक सक्षम मुल्क के लिए।' #metrodairy
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