Feb 6, 2016

'आलोचना के नाम पर गालियां दी जाती हैं आरसीएलआई में'

वामपंथ के नाम पर ठगी, शोषण और मुनाफे का धंधा चलाने वाले शशिप्रकाश और उनकी पत्नी कात्यायिनी के परिवार के मालिकाने वाले कम्यूनिस्ट संगठन आरसीएलआई की धंधेबाजी के खिलाफ उठी  आवाज पर मौन साधने वालों में तीन तरह के लोग अव्वल हैं। पहले हैं कात्यायिनी के स्वजातीय बुद्धिजीवी,  दूसरे हैं उनके यहां क्रांति के भ्रम में फंसे युवा और तीसरे हैं शशिप्रकाश के परिवार से जुड़े समाजवादी खेमे के दो कम्यूनिस्ट संगठन। हां, चुप रहने वालों में उन वामपंथियों की भी एक संख्या है जो खुद के संगठनों की सड़ाध को ढांपे रखना चाहते हैं। पर इसके मुकाबले सच को उजागर करने वालों की तादाद इतनी बड़ी, व्यापक और साहसी है कि इनकी हर जनविरोधी कार्रवाई को हर कीमत पर समाज में सरेआम करती है। इनकी गालियों, तोहमतों और धमकियों के मुकाबले तनकर खड़ी होती है और डंके की चोट पर इनके ठगी और शोषण को तथ्यजनक रूप से सबके सामने लाती है।

इसी कड़ी में पंजाब  से मनप्रीत मीत का पत्र

साथियो, मैं इस पत्र को अपने आखिरी स्‍टेटमेंट के तौर पर रख रही हूं, इसके बाद मैं इस पर और कुछ नहीं कहूंगी। ध्‍यान रहे, आपकी चुप्‍पी भविष्‍य में अन्‍याय के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को निकलने से पहले ही रोक देगी, क्‍योंकि जब जन-पक्षधर लोग ही चुप लगाकर ऐसी बातें होते हुए देखेंगे, तो भला अन्‍याय का प्रतिकार करने वाले लोग कहां जाएंगे?

सभी इंसाफपसंद नागरिकों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं के नाम खुला पत्र

मेरा सरोकार इतना ही है कि नव करण के साथ और ऐसे तमाम युवाओं के साथ इंसाफ हो, जो RCLI की पतित व घृणित राजनीति के दुष्‍चक्र में फंसे हुए हैं।

साथियो, कामरेड नव करण की आत्‍महत्‍या के बाद, पिछले तीन-चार दिन में जो हालात हुए हैं उनकी वजह से मैं यह खुला पत्र लिखने को मजबूर हो रही हूं।

सबसे पहले, मैं यह स्‍पष्‍ट कर दूं कि Revolutionary Communist League of India (RCLI) को छोड़ने के बाद मेरा किसी भी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है। मैंने उस समय के बाद से कभी RCLI पर कोई टिप्‍पणी नहीं की है। निजी जीवन की परेशानियों व खराब तबियत के कारण मैं आंदोलन में सक्रिय भागीदारी नहीं कर सकी, लेकिन जितना भी हो सका, आंदोलन के जनपक्षधर मामलों का समर्थन करने का प्रयास करती हूं।

मैं किसी मार्क्‍सवादी,स्‍तालिनवादी या त्रात्‍सकीवादी संगठन से नहीं जुड़ी हूं। ऐसे किसी भी संगठन द्वारा किसी भी मार्क्‍सवादी शिक्षक पर की गई छींटाकशी का मैं हिस्‍सा नहीं हूं। मेरा सरोकार इतना ही है कि नव करण के साथ और ऐसे तमाम युवाओं के साथ इंसाफ हो, जो RCLI की पतित व घृणित राजनीति के दुष्‍चक्र में फंसे हुए हैं। साथी नव करण ही आत्‍महत्‍या ने ही यह बेचैनी भी पैदा की कि युवा इस संगठन की सच्‍चाई को जानने का प्रयास करें, आंख बंद करके ज्ञानपूर्ण प्रवचनों के भ्रमजाल में न फंसे और अपनी क्रांतिकारी ऊर्जा को सही दिशा में लगाएं। कोई इंसान सक्रिय क्रांतिकर्म में नहीं लगा है, तो इसका यह मतलब नहीं कि वह अपने आस-पास हो रहे अन्‍याय के बारे में बोलना भी बंद कर दे।

मैं 2010 में RCLI से जुड़ी और पंजाब के नेताओं के बेहद खराब व्‍यवहार के बावजूद लंबे वक्‍त तक यह सोचकर आंदोलन में सक्रिय रही कि क्रांति के बड़े लक्ष्‍यों के सामने मुझे अपने कष्‍टों की अनदेखी करनी चाहिए। मैं अपना घर-परिवार छोड़कर आंदोलन में शामिल हुई थी और सक्रिय रहने के दौरान ही डॉक्‍टर अमृत पाल से मेरी शादी हुई थी। RCLI में अपने सक्रिय दिनों के दौरान, मुझ पर लगातार ताने कसे जाते थे, बीमार हालत में अकेले छोड़ दिया जाता था और अमृत पाल को मेरे खिलाफ भड़काया जाता था।

आलोचना के नाम पर गालियां दी जाती थी। मैं इस सबको अपनी कमजोरी मानकर, चुपचाप किताब बेचने, ट्रेन व बस अभियान में पैसे जमा करने, कार्यालयों की साफ-सफाई करने जैसे काम में लग जाती थी। खैर, इस बारे में अपने कटु अनुभवों का ब्‍योरा फिर कभी। जब मामला हद से गुजर गया, तो अंतत: मैंने RCLI छोड़ दी। संगठन के उकसावे और अपने ढुलमुनपन के कारण अमृत पाल ने तलाक की पेशकश रखी और मैंने इंकार नहीं किया। लेकिन तलाक होने के बाद भी लंबे वक्‍त तक अमृत पाल चंडीगढ़ में मेरे पास आकर रुका करता था।

मैंने उसे कई बार संजीदगी से अपने व्‍यवहार पर सोचने को कहा। मेरे पास आकर वह भी संगठन के नकारात्‍मक पक्षों पर मौन सहमति तो जताता था, पर कुछ ठोस करने से मुकर जाता था। आखिर, मैंने उसे अंतिम विदा कह ही दिया। इसके बावजूद वह लगातार फोन करता था, पर धीरे-धीरे उसे समझ आ गया कि अब मुझे बहलाना संभव नहीं है। संक्षेप में यह बातें इसलिए, ताकि सनद रहे कि मेरे चरित्र पर कीचड़ उछालने की हाल की हरकतें निराधार हैं और बदले की कार्रवाई हैं।

साथी नव करण की आत्‍महत्‍या की खबर मुझे 26 जनवरी को हुई, लेकिन पूरी जानकारी के इंतजार में मैंने इस बारे में कोई टिप्‍पणी नहीं की। इस बारे में मैंने पहली बार 30 जनवरी को लिखा और वह भी नव करण की आत्‍महत्‍या के कारणों और RCLI के नेताओं की षडयंत्रकारी चुप्‍पी से मामले को रफा-दफा कर दिए जाने की कोशिश के बाद। याद रहे कि इस बारे में संगठन का बयान भी इसी के बाद आया और तब तक संगठन चुप्‍पी साधे रहा था। यह भी ध्‍यान रहे कि इस पर सामान्‍य तर्कसंगत सवाल उठाने पर साथी अभिषेक श्रीवास्‍तव पर भी कुत्‍सा-प्रचार करने का आरोप लगा दिया गया।

मैंने और दूसरे लोगों ने सिर्फ इतना पूछा था कि आखिर नव करण ने आत्‍महत्‍या क्‍यों की? वह पूरावक्‍ती कार्यकर्ता था और जैसा कि RCLI ने नव करण की श्रद्धांजलि में भी कहा, वह बेहद संवेदनशील और प्रतिभावन कार्यकर्ता था। आखिर ऐसे कार्यकर्ता को अपने सुसाइड नोट में यह क्‍यों लिखना पड़ा कि वह भगोड़ा है, पर गद्दार नहीं और मुझमें उन जैसी अच्‍छाई नहीं और मेरे बारे में रियायत के साथ सोचना? आखिर क्‍यों आत्‍महत्‍या के एक सप्‍ताह बाद तक कोई बयान नहीं आया आखिर क्‍यों 30 जनवरी को साथी नव करण की आत्‍महत्‍या के बाद पूछे सवालों पर तब तक चुप्‍पी रही जब तक कि 31 जनवरी को नौजवान भारत सभा ने देर रात गये एक संवेदनहीन और खोखला स्‍पष्‍टीकरण नहीं दे दिया गया?

इसके बाद, संगठन के नेताओं (कविता, सत्‍यम, कात्‍यायनी आदि) ने जो पोस्‍टें डालीं उनमें तीन तरह की बातें थी : पहली, खोखली श्रद्धांजलि (उसमें भी धैर्य नहीं बरत पाये और सवाल उठाने वालों को कुत्‍सा प्रचार करने वाला कहा गया)। दूसरी, कुछ उद्धरण जिनके जरिए सवाल उठाने वालों को मुर्दाखोर गिद्ध समेत ढेरों उपाधियों से नवाजा गया। तीसरी, विपयर्य का दौर और क्रांतिकारी आंदोलन में होने वाली इस तरह घटनाओं पर झूठी हमदर्दी बटोरने वाली बातें।

इस दौरान, कार्यकर्ताओं को खुला छोड़ दिया गया कि वे सवाल उठाने वालों की सामाजिक हैसियत देखकर, उन्‍हें खुले आम गाली दें (अशोक पांडे को मुत्‍तन पांडे और भगोड़ा-गद्दार कहना, राजेश त्‍यागी व राजिन्‍दर को पतित त्रात्‍सकीपंथी कहना, अभिषेक श्रीवास्‍तव को तनिक नजाकत के साथ कुत्‍सा-प्रचार करने वाला कहना, और प्रदीप और मुझे खुले आम गाली देना, चरित्रहीन कहना)। इसमें मार-पीट की धमकी देना शामिल है।

साथियो, मैं इस पत्र को अपने आखिरी स्‍टेटमेंट के तौर पर रख रही हूं, इसके बाद मैं इस पर और कुछ नहीं कहूंगी। ध्‍यान रहे, आपकी चुप्‍पी भविष्‍य में अन्‍याय के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को निकलने से पहले ही रोक देगी, क्‍योंकि जब जन-पक्षधर लोग ही चुप लगाकर ऐसी बातें होते हुए देखेंगे, तो भला अन्‍याय का प्रतिकार करने वाले लोग कहां जाएंगे?

इस अंधेरे दौर में, लोग अंधेरे के खिलाफ कैसे उठ खड़े होंगे जबकि अंधेरे के खिलाफ बोलने वाले लोग ही इंसाफ की लड़ाई में चुप्‍पी लगाकर बैठे रहेंगे? क्‍या मार्क्‍सवाद हमें सवाल उठाने या शंका करने से रोकता है? क्‍या मार्क्‍सवादी सवाल उठाने वाले व्‍यक्ति को दक्षिणपंथियों की तरह गालियां देंगे (वे लोगों को पाकिस्‍तान भेजने और मार डालने की धमकी देते हैं, और ये यहीं मारपीट करने, गालियां देने और चरित्रहनन करने जैसी बातें करते हैं)?

साथियो, जब कोई ''वामपंथी'' भगत बन जाता है, तो वह समूचे आंदोलन को कीचड़ में धकेल देता है और लोगों का क्रांतिकारी आंदोलन से ही भरोसा उठ जाता है। दुनिया भर के क्रांतिकारी आंदोलन में लोग नेताओं पर, संगठनों के गलत फैसलों पर, कठमुल्‍लावाद पर, लाइन पर सवाल उठाते रहे हैं, और दुनिया भर में ''सवाल उठाने वालों को किनारे लगा दिए जाने'' की ऐसी कोई मिसाल नहीं मिलती। यह शर्मनाक है। मैं इस आखिरी बात के साथ अपनी बात खत्‍म करती हूं कि आप अगर इस समय अपना पक्ष और राय नहीं देते, तो याद रहे कि भविष्‍य में किसी भी अन्‍याय के खिलाफ आवाज उठाने वाला कोई नहीं बचेगा। (फेसबुक वाल से साभार)

क्रांतिकारी अभिवादन के साथ
मनप्रीत मीत

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